गाँव की ओर


गाँव की ओर


बदलती आबो हवा ने बदल दिया है सब कुछ।


तुम्हे, मुझे और उन सभी को,


जो छोड़ आये हैं गाँव एक ओर।


कुछ तुम बदले कुछ हम बदले,


फिर इक दिन ये चेहरे बदले,


रह जाएगी सिर्फ यादें एक ओर।


कौन जाएगा गाँव की ओर


आस लगाये बैठी है माँ,


शायद तू कभी ये सोचे, 


याद तुझे आ जाये माटी।


तू ही था उस माँ की लाठी..


जिसने कष्टो से पाला था।


अब तुझसे वो कष्ट छुपाती।


है उसके जीवन का अन्तिम छोर, 


कौन जाएगा गाँव की  ओर ||


02


सुनहरे सपने


बडी़-बडी़ बातें, बडे़ -बडे़ सपने,


और सपनों को पाने की ख्वाहिशें


कितना दूर कर देती है खुद को अपनों से।


वही अपने,


जिन्होने पैदा होते ही भरे इन आँखों में सुनहरे सपने |


फिर बढ़ चले कदम 


उस ओर,


जहाँ से शुरू होता मंजिल का छोर।


मंजिले हासिल हुयी, कारवाँ बढ़ता गया


किन्तु दामन पकडे़ रहा हसरतों का ,


और छूटा साथ अपनों का।


वही अपने,


जिन्होने पैदा किया ,जीना सिखाया


ख्वाबों का आईना दिखाया।


अब  ताकते है आईने की ओर,


शायद बची हुयी है उम्मीद की डोर।


मगर दिखती नहीं परछाई भी अपनों की |


वही अपने,


जिन्हें कहीं पीछे छोड आया हूँ,


सपनों की खातिर |


बिखरे हुए हैं हालात,


नहीं होती अब अपनों से बात,


न गुजरते हैं दिन , न गुजरती है रात


इन सपनों ने ही छीन लिया,


मेरे अपनों को |


वही अपने ,


जो अब साथी न रहे ,सुख दुःख के,


कही गुम हो गये सपनों के मायाजाल में ।