बैराट गढ़ किले का अत्याचारी राजा सामुशाह आखिर कौन था?
लेखक - संपादक, विचारक साहित्य-संस्कृतिकर्मी व सृजनशील व्यक्तित्व है। मौजूदा समय में अध्यक्ष विधानसभा उत्तराखण्ड के सूचनाअधिकारी है व गढ वैराट समाचार पत्र के संपादक है।



बैराट गढ़ किले का अत्याचारी राजा सामुशाह आखिर कौन था? और कैसे किया चालदा महाराज ने उसका अंत. 


 

देहरादून जनपद के जौनसार बावर क्षेत्र में अतीत काल में सामुशाह राजा के आंतक की अनेक कहानियां एवं लोकगीतों में उल्लेख मिलता है। एक जन श्रुति के अनुसार राजा ने दूध के लिए अपने सैनिकों को आस-पास के गावों में भेजा। एक परिवार में दूध नहीं था, परंतु क्रूर राजा के भय से एक प्रसूति महिला ने अपना दूध निकालकर सैनिकों को दे दिया। क्रूर राजा को मनुष्य का दूध अत्यंत स्वादिष्ट लगा। अतः क्रूर राजा ने प्रत्येक दिन सैनिकों से मनुष्य का दूध ही मंगवाना प्रारंभ कर दिया। इससे नवजात बच्चे भूख से तड़प तड़प कर मरने लगे। राजा प्रसूति महिलाओं के स्तनों पर लोहे के ताले लगवा देता था, जिस कारण नवजात शिशु दूध नहीं पी पाते थे। अतः इस घटना से व्यथित होकर क्षेत्र वासियों ने महासू देवता की शरण ली।

 

परंतु अत्याचारी राजा सामुशाह का लिखित इतिहास में कोई उल्लेख नहीं मिलता। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह राजा था या सामंत। इसलिए यह घटना कौन सी सदी में हुई इसका उल्लेख एवं आकलन करना मुश्किल है। कुछ ऐतिहासिक तथ्य, लोकगीतों एवं जन श्रुतियो के आधार पर बैराट गढ़ किले में क्रूर सामुशाह राजा का आंतक एवं महासू महाराज का प्रकट होना, यह काल 13वीं सदी से 17 वी सदी के मध्य का काल रहा होगा है ।

 

ईसवी संवत 250 में (कालसी) कुलिंद जनपद के राजा शानूशाही का उल्लेख मिलता है । "उत्तराखंड का इतिहास" पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 460 पर लेखक शिव प्रसाद डबराल लिखते हैं कि कुलिंद जनपद यानी कालसी में शानूशाही नाम का एक देवानाम प्रिय राजा हुए हैं। जो राजा देवों के लिए प्रिय है, इन्हें देवपुत्र भी कहा गया है। अतः ऐसा राजा मनुष्य जाति के लिए क्रूर नहीं हो सकता। अर्थात यह राजा बैराट गढ़ किले पर निवास करने वाला क्रूर राजा सामुशाह नहीं हो सकता ।

 

इसी नाम से जुड़ी हुई दूसरी घटना शामशाह महाराजा गढ़वाल की है। सन 1547 में सिरमौर नरेश से गढ़वाल के महाराजा मानशाह के सेनापति रीखोला लोदी ने विराट गढ़ , कालसी गढ़, काली गढ़, संतूर गढ़ आदि को जीत कर अपने अधीन किया था। जबकि 1635 ईसवी में सिरमौर के राजा मांनधाता प्रकाश ने नजावत खां की सहायता से गढ़वाल महाराजा से बैराट गढ किले सहित अन्य गढ भी वापस जीते थे। अर्थात बैराट गढ़ का किला 1547 से 1635 तक लगभग 89 वर्षों तक गढ़वाल के महाराजा मानशाह व उनके पुत्र सामशाह के अधीन रहा।

 

मान शाह की मृत्यु के पश्चात

गढ़वाल के महाराजा साम शाह हुए, जो सन 1611 से 1631 तक श्रीनगर गढ़वाल के महाराजा रहे हैं । इन्हें श्याम शाह के नाम से भी जाना जाता था। उत्तराखंड का नवीन इतिहास पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 157 में लेखक यशवंत सिंह कटोच इनका उल्लेख करते है और कहते हैं कि यह महाराजा वास्तु शास्त्र के बड़े जानकार थे l

 

जबकि जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ के लेखक टीकाराम साह अपनी पुस्तक के पृष्ठ 105 पर सामशाह राजा के बारे में उल्लेख करते हैं कि यह महाराजा अत्यंत कठोर था, उसे अपने आदेशों की अवहेलना करना पसंद नहीं था । 1630 में हरिद्वार से नागा साधु बद्रीनाथ जा रहे थे जिनको महाराजा के सैनिकों ने न केवल अपमानित किया बल्कि अपने राज्य की सीमा से बाहर खदेड़ दिया था ।

 

उपरोक्त दोनों घटनाओं से प्रतीत होता है कि गढ़वाल श्रीनगर का महाराजा सामशाह ने हीं अपना कुछ समय बैराट गढ़ किले पर बिताया होगा, क्योंकि बैराट गढ़ किला उस काल में उनके अधीन था और संभवतः उन्हीं के द्वारा अपने भोजन के लिए मनुष्य के दूध पीने का अत्याचार किया गया होगा। जबकि दूसरे कोई राजा का उल्लेख इस नाम से एवं इस कालखंड में नहीं मिलता है।

 

"सामुशाह राजा की करणी बुधा! सामुशाह राजा मांगो मांणसू रो दूधा !!

चार ना चौन्तरु टाटी ना गाली की बुध!

सामुशाह राजा मांगों, माणसो रो दूध "!!

 

लोकगीतों, जन श्रुतियो एवं इतिहासकारों के अनुसार चार चौन्तरु का उल्लेख किया गया है। उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि चौन्तरु परंपरा 12-13 वीं सदी के बाद सिरमौर नरेश ने प्रारंभ की थी। तब जौनसार बावर भी सिरमोर रियासत का एक अंग था।

 

यदि सामूशाह राजा के क्रूरतम अत्याचार से पीड़ित जौनसार बावर के चार चौन्तरु हनोल स्थित महासू दरबार में गए तो यह घटना और बैराट गढ़ किले पर सामुशाह के अत्याचार का काल भी 13 वी से 17 वी सदी का रहा होगा ।

 

"गढअ बाजों नमति ,

लागों सहासू के कांगों" !

इस घटना से दुखी होकर जौनसार के चार चौन्तरुऔं ने हनोल स्थिति महाराज के दरबार में दुष्ट सामूशाह राजा के अत्याचार की कहानी सुनाई। यह सब सुनकर अन्याय का अंत करने के लिए बोठा और चालदा महाराज थैना मे प्रकट हुए। अतः जनश्रुतियों एवं लोकगीतों के अनुसार बोठा महाराज के आदेश पर चांलदा महाराज ने बैराट गढ़ किले में पहुंचकर ऐसा चमत्कार किया कि सामूशाह के नाक में देवदार की झाड़ियां जमने लगी और पेट में सूअर और चूहों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। इस प्रकार इस क्रूर और अत्याचारी सामूशाह का चलदा महाराज ने अंत कर दिया।

 

साभार - विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेज, जन श्रुतियो, लोकगीतों के आधार पर उपरोक्त लेख लिखा गया है ।