वन संपदा को बचाने के लिए नया फार्मुला

वन संपदा को बचाने के लिए नया फार्मुला ||



|| उतराखण्ड हिमालय राज्य के लोग पूर्व से ही वनो को बचाने के लिए संवेदनशील रहे है। लोग प्राकृतिक संसाधनो को बचाने के तौर तरीके अपने अनुसार अख्तियार करते है। जिसका कोई प्रचार-प्रसार होता नहीं है, मगर असर दूरतलक होता है। यहां हम सरकारी स्तर पर हो रहे वन बचाने के प्रयासो का जिक्र करने जा रहे हैं। मौजूदा समय में राज्य सरकार अहतियात के तौर पर वन संरक्षण के आधुनिक संयत्रो का उपयोग करना चाहती है। जिसके लिए सरकार ने विधिवत कार्ययोजना भी पिछले ही वर्ष बना डाली थी। बताया गया कि ड्रोन कैमरे वन संरक्षण के लिए मुस्तैद रहेंगे। इधर राज्य में 11 नये फायर स्टेशन बनाने की कवायद अन्तिम वर्ष पूरी कर दी थी।


ज्ञात हो कि उतराखण्ड में हर वर्ष आग के कारण हजारो हेक्टेयर जंगल राख हो जाते है। इस वर्ष गर्मीयों में वनों को आग से नुकसान ना हो, इसके लिए इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ रिमोंट सेंसिंग ने वन विभाग के लिए एक मोबाईल एप ''फायर एप'' नाम से तैयार किया था। पर इसका असर कितना हुआ जिसकी कोई जानकारी सर्वजनिक नहीं हो पाई है। आइआईएमएस के निदेशक डा॰ प्रकाश चैहान ने बताया कि यह मोबाईल एप जंगलो की रखवाली करने वाले वन विभाग के गार्ड को दिया जायेगा। आग लगने पर वह फोटो को एप में अपलोड करेगा। इस तरह से वनो की आग को ट्रेस किया जायेगा। कह सकते हैं कि जंगल के चप्पे-चप्पे की निगहबानी तकनीकी तौर पर होगी। ''फायर एप'' के बाद उत्तराखंड में देश की पहली फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स का गठन भी हुआ है। ड्रोन फोर्स से वन, वन्य जीवों की सुरक्षा, खनन की निगरानी आदि के लिए मदद ली जाएगी। इस तरह की पूर्व तैयारी वन विभाग और प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इतनी तकनीकी के बावजूद भी इस वर्ष वनाग्नी काबू नहीं किया गया। हालात यह हुए कि हजारो हेक्टेयर वन संपदा स्वा हो गई और तकनीकी संयन्त्र यू ही सो पीस बनकर पाये गये।


जल गये जंगल, बुझ गई आग


इस वर्ष भी उत्तराखंड में जंगलो की आग पर बहुत देरी में काबू पाया गया। इस साल जंगल में आग लगने की 1400 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। लगभग 2000 हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो गए हैं। पिछले कई सालों से लगातार गर्मियों में उत्तराखंड के जंगलों में भयानक आग लग रही है और इसके लिए एक संगठित आपदा प्रबंधन तंत्र या प्रशासनिक योजना की कमी स्पष्ट रूप से दिख रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से 2017 के बीच जंगलों में आग की घटनाओं में 2.5 गुना की बढ़त हुई और 2017 में जंगल में आग की 13,898 घटनायें की गई थी। जबकि बताया जा रहा है कि राज्य में इस वर्ष लगभग 35,888 घटनायें वनाग्नी की दर्ज की गई है। यही नहीं आग की दहशत से लोग कई बार घरों से बाहर निकल आए। जबकि आग की लपटें हाइटेंशन लाइनों तक को छूने लगी।


ज्ञात हो कि गढ़वाल मंडल में जंगलों में भड़की आग बेकाबू हो गई थी। वह तो इन्द्र देवता मेहरवान हो गये और जून के मध्य सप्ताह में बारिस कर दी। वैो अब तक गढवाल मंडल में आग की चपेट में आने से 1196.53 हेक्टेयर क्षेत्रफल में वन संपदा जलकर राख हो गई है। इसमें 54.55 हेक्टेयर प्लांटेशन वाला वन क्षेत्र भी शामिल है। इस प्रकार अब तक जंगलों में आग लगने की 680 घटनाएं हो चुकी है। वन विभाग ने भी स्वीकार किया कि गढ़वाल वृत्त के जंगलों में सबसे ज्यादा आग भड़की है। इसके अलावा भागीरथी वृत्त में 261.95 हेक्टेयर, यमुना वृत्त में 126.45 हेक्टेयर, शिवालिक वृत्त में 193.18 हेक्टेयर वन आग की चपेट में आए हैं। इससे विभाग को 14.27 लाख का नुकसान हुआ है।


फारेस्ट ड्रोन फोर्स का भी गठन हुआ था


उल्लेखनीय हो कि उतराखण्ड में 71 फीसदी भू-भाग पर वन भूमि है। यहां जंगलों की सुरक्षा का जिम्मा वन बीट अधिकारी, आरक्षी, वन दरोगा, निरीक्षक, डिप्टी रेंजर, रेंजर के कंधों पर होता है। दुर्गम और काफी बड़ा क्षेत्र होने से वनकर्मी का उपलब्ध होना संभव नहीं होता है। ऐसे में जंगलों में अवैध कटान, वन्य जीवों के शिकार, अवैध खनन की आशंका बढ़ जाती है। यही वजह है कि वन विभाग ने फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स के गठन की अग्रीम कार्रवाई कर डाली। और प्रमुख वन संरक्षक के निर्देशन में ड्रोन फोर्स का गठन भी किया गया है। अब वन, वन्यजीवों की सुरक्षा से लेकर अवैध खनन, अवैध वनों का दोहन, वनाग्नी आदि पर निगरानी का काम ड्रोन से होगा। ड्रोन फोर्स के वनकर्मियों को ड्रोन संचालन के लिए तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित किया गया था। वर्तमान में वन विभाग के पास 11 ड्रोन कैमरे है।



2013 में पहली बार गौला नदी में खनन की निगरानी ड्रोन कैमरे से हुई थी। सकारात्मक परिणाम आने के बाद जंगलों में वन्य जीवों की निगरानी में भी इसका उपयोग किया गया। बता दें कि फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स के मुखिया प्रमुख वन संरक्षक जयराज को बनाया गया है। फोर्स में सेंटर फॉर ड्रोन एप्लीकेशन एंड रिसर्च के अमित सिन्हा, मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुरेंद्र मेहरा, वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक यमुना वृत्त प्रसन्न पात्रो, डीएफओ तराई पूर्वी नीतीश मणि त्रिपाठी शामिल हैं। ड्रोन कैमरे के लिए सिर्फ जिम कार्बेट नेशनल पार्क, मालसी चिड़ियाघर, राजाजी नेशनल पार्क, पश्चिमी वन वृत्त (तराई केंद्रीय, तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, हल्द्वानी और रामनगर वन प्रभाग) को परीक्षण के तौर पर लिया गया है।
गौरतलब हो कि प्रयोग के तौर पर यूसैक ने राज्य में साल 2018 में कार्यशालाऐं आरम्भ की है। ताकि तकनीकी का बेजा इस्तेमाल हो सके। यह पहली कार्यशाला सीमान्त जनपद उतरकाशी में पिछले साल उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) की ओर से जल संसाधन प्रबंधन में रिमोट सेसिंग व जीआईएस के अनुप्रयोग विषय पर आयोजित की गई थी, जिसमें वन विभाग सहित अन्य विभागों के कार्यालयअध्यक्षो ने हिस्सा लिया था। यहां विशेषज्ञों ने उपग्रह तकनीक का प्रयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए करने पर जोर दिया। यूसैक के निदेशक एमपीएस बिष्ट ने बताया कि मानव विकास व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उपग्रह तकनीक से मिली जानकारियां बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इसके तहत यूसैक भी इस तकनीक के प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, विकास कार्यों व पर्यावरणीय बदलावों की निगरानी, टेली मेडिसिन आदि कार्य कर रहा है।


चूंकि इसके अतिरिक्त विभाग ने 31 हजार स्कूलों का डाटाबेस, सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्पीड कंट्रोलर, मोबाइल एप, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टूरिज्म मैप आदि भी तैयार किए हैं। इस पर पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने खुशी जाहीर की कि हिमालय एक युवा पर्वत श्रृृंखला है, जिसकी लगातार निगरानी करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2001 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने कई गहन जानकारियों के साथ देशभर के जिलाधिकारियों को नक्शे मुहैया कराए थे। उन्होंने समस्या से निपटने के लिए पर्वतीय राज्यों को ग्रीन बोनस आदि माध्यम से अतिरिक्त बजट देने पर भी जोर दिया। बता दें कि 18 सालो में वन विभाग ने मात्र 11ड्रोन कैमरे ही खरीद पाये। जबकि राज्य को सर्वाधिक राजस्व यहीं के वनो से प्राप्त होता है। इधर लोगो को मानना है कि ड्रोन कैमरे के साथ-साथ गलत दोहन वाली जगह पर पंहुचने के लिए अत्याधुनिक यातायात सुविधा भी चाहिए। ताकि समय रहते गलत विदोहन से प्राकृतिक संसाधनो की रक्षा हो सके।
............................................................................................................................................................


हिमालय के विकास एवं पर्यावरण सन्तुलन के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना तकनीकी का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिए राज्य में कार्य कर रहे सभी राष्ट्रीय और राजकीय संस्थानो को आपस में अधिक साझे प्रयास करने होंगे।
(- त्रिवेन्द्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड)


--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


उत्तराखंड में देश की पहली फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स बनाई गई है। ड्रोन के उड़ान के लिए डीजीसी ने नियम बनाए हैं उन नियमों को पूरा करने संबंधित सभी औपचारिकताओं को पूरा किया जा रहा है। ड्रोन फोर्स के गठन से शिकार, अवैध खनन समेत अन्य गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने में मदद मिलेगी।
(-डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक, कोआर्डिनेटर फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स)


--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------