गैरसैण पर *गैर* सियासत








गैरसैण पर *गैर* सियासत



उत्तराखंड के पर्वतीय जनमानस की भावना से जुड़े गैरसैण को लेकर कई बार सियासत गरमा उठी है। सूबे की सरकारें गैरसैंण में विधान सभा सत्र कर चुकी है। लेकिन विपक्ष इसे फिजूल खर्ची करार देता आ रहा है सरकार विपक्ष को मनाने की कोशिशों में जुटी रहती है। इन सब राजनैतिक नाटकबाजी के बीच आम जनमानस हैरान है और परेशान भी। उसे समझ नहीं आ रहा कि गैरसैंण के नाम पर सिर्फ सियासत क्यों हो रही है गढ़वाल और कुमाऊ के इस केन्द्र बिन्दु को स्थायी राजधानी घोषित करने में अड़चन क्या है?


प्रदेश के पर्वतीय अंचल में स्थित गैरसैंण में सरकार ने विधानसभा भवन का  भवन तक बना लिया है, मगर गैरसैंण को स्थायी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का मसला अभी तक अधर में लटका हुआ है। सवाल यह है कि सरकार जब वहां विधानसभा भवन बनाने व अवस्थापना विकास कर चुकी है तो उसे राजधानी घोषित करने में हीलाहवाली क्यों बरती जा रही है। साफ है कि सरकार ने साल के 365 दिन में मात्र तीन या पांच दिन का विधानसभा सत्र आयोजित करने के लिए गैरसैण में करोड़ों रूपय खर्च करने की तैयारी ही की है. विधानसभा सत्र आयोजन को सरकार पर्वतीय क्षेत्रो के विकास की शुरूआत के रूप में प्रचारित कर रही है। लेकिन, सवाल उठना लाजिमी है कि क्या गैरसैण में सालभर में मात्र दो-चार दिन का सियासी ड्रामा करके पर्वतीय क्षेत्रो का विकास माना जायेगा।



राज्य गठन के बाद 18 साल तक लगातार हाशिये पर धकेले गये राजधानी के मुद्दे पर सरकार ने पहली बार ध्यान तो दिया, मगर गैरसैंण में राजधानी की वर्षो पुरानी मांग के पीछे छिपी पहाड़ के विकास की उम्मीदों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। वास्तविकता यह है कि गैरसैंण किसी एक स्थान का नाम नहीं, बल्कि पहाड़ की दुश्वासियों व चिंताओं का पर्याय हैं. पहाड़ी क्षेत्र की जनता जानती है कि जब तक गैरसैंण को स्थायी अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित नहीं किया जायेगा, तब तक दुर्गम क्षेत्रों में बसे गांवो को विकास की मुख्याधारा से जोड़ने की उम्मीद भी बेमानी है। यही वजह है कि वो राजधानी के सवाल पर भी सिर्फ विकास की गांरटी की उम्मीद लगाए हुए है।


दूसरी ओर सरकार के सामने तीन विकल्प मौजूद हैं। वो जनभावनाओं को आदर करे उन्हे सिरे से खारिज कर दे या फिर दीक्षित आयोग की रिपोर्ट पर अग्रिम कर्यावाही करे। लेकिन, इन तीन ठोस विकल्पों के बजाय सरकार ने जो रास्ता चुना है। उसमें गैरसैण में विधानसभा भवन के निर्माण पर कारोड़ो रूपय फूंकने के सिवाय कोई गंभीरता नजर नही आ रही। गैरसैण में कुछ दिनों का विधानसभा सत्र आयोजित करना भी फिजूलखर्ची के क्रम को आगे बढ़ाने मात्र साबित होगा।