शराब ? महिलाऐं समर्थक, महिलाऐं विरोधी

शराब ? महिलाऐं समर्थक, महिलाऐं विरोधी


वरिष्ट पत्रकार राजीव लोचन साह, उत्तराखंड जल वाहिनी के मुकुल, युगवाणी के जगमोहन रौतेला, पत्रकार इस्लाम हुसैन, महिलानेत्री गीता गैरोला व निर्मला बिष्ट, हिमालय बचाओ आंदोलन व प्रजामंडल के कार्यकर्ता समीर रतूड़ी, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के कार्यकर्ता विमल भाई, लालकुंवा के बसंत पांडे ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि वे मौजूदा महिला आयोग की अध्यक्षा के शराब समर्थन क्रियाकलापो के प्रति दुख व्यक्त करते हैं कि जिस महिला शक्ति ने पृथक राज्य के आन्दोलन का नेतृत्व किया वही महिला समाज से जुड़ी और उच्चस्थ पदो पर रहती हुई शराब का समर्थन करती है तो यह कोई घब्ना नही अपितु राज्य के भविष्य के लिए चिन्ता का विषय है।


उल्लेखनीय हो कि पिछले दिनों उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा विजय बड़थ्वाल ने जो बयान शराब के पक्ष में दिये वह राज्य के विकास के लिए चिन्ता का विषय है। जबकि श्रीमति बड़थ्वाल तीन बार की विधायक भी रह चुकी हैं। वे भागीरथी गंगा व अलकनंदा गंगा के संगम देवप्रयाग में शराब की बॉटलिंग प्लांट का समर्थन कर रही है। वह कहती है कि जब शराब को लोग पीते ही हैं तो शराब कहीं से भी आए। इसलिए स्थानीय स्तर से आये तो वह स्वरोजगार का भी जरिया बन सकता है। वह कहती है कि शराब की बॉटलिंग प्लांट यहां रोजगार वृद्धि और और प्रदेश की आर्थिकी सुधारने की एक कड़ी कही जा सकती है।



इधर राज्य में विभिन्न संगठन श्रीमति बड़थ्वाल के शराब समर्थन का घोर विरोध कर रहे है। लोग इस बात पर शोक और अफसोस व्यक्त कर रहे हैं कि राज्य के अत्यंत महत्वपूर्ण एवं खासकर महिलाओं के सम्मान, अधिकार व उनकी शारीरिक रक्षण के लिए बनाये गए महिला आयोग की अध्यक्षा, देवप्रयाग में शराब प्लांट को रोजगार का साधन व विकास का हित मानती है जो एकदम अनुचित हैं। यही नहीं उनका यह बयान उत्तराखंड के बड़े अखबारों में बड़ी खबर बनकर छपी। यह मलिा आयोग का शराब के समर्थन का संदेश शराब माफिया को राज्य में मजबूती दे रहा है। दूसरी ओर सरकार के मुखिया राज्य में नशा मुक्ति की वकालत करते है। सच यह है कि सत्ता में आने के बाद इस सरकार ने शराब पर कोई पाबंदी नहीं लगाई बल्कि उसको बढ़ावा ही दिया है। ऐसे में महिला आयोग की अध्यक्ष का इस तरह का बयान बहुत चिंताजनक है, और महिलाओं विरोध मे है। सनद रहे कि यह उत्तराखंड की उन महिलाओं का अपमान है जो बरसों से शराबबंदी आंदोलन के लिए संघर्ष करती रही है। जिन्होंने समय-समय पर लंबी जेले भुगती है, लाठियां खाई है। इसलिए कि उनके संघर्षो का राज्य खुशहाल होगा। मगर राज्य तो शराब व्यवसायी होने जा रहा है।



गौरतलब हो कि महिला आयोग की अध्यक्षा का बयान उत्तराखंड की बहनों की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाला लगता है। उनके इस ब्यान ने राज्य में महिला सुरक्षा को सकते में ला दिया है। लगता है कि उनका शराब समर्थन का बयान सरकारी नीतियों के साथ पूरी सहमति के साथ दिखाता है। प्रश्न इस बात का है कि इस बयान के बाद सरकारी नाइंसाफी की शिकार और शराबबंदी आंदोलन करने वाली महिलाएं सरकारी जुल्मो के खिलाफ उनके पास अपनी शिकायत ले जा पाएंगी या नहीं? यही नहीं शराब समर्थन के बयान से आयोग में राजनीतिक नियुक्ति को आयोग की निष्पक्षता व क्रियाकलाप को संदेह की दृष्टि में ला दिया है। फिर ीाी ये संगठन राज्य महिला आयोग का सम्मान रखते हुए आयोग की अध्यक्षा से अपेक्षा करते हैं कि वे अपने इस बयान का खुलासा करें ताकि उनकी शराब समर्थन के बयान का विचार स्पष्ट हो सके।