वृक्षारोपण का नया अवतार ‘‘बीज बम’’


वृक्षारोपण का नया अवतार ''बीज बम''


https://www.youtube.com/watch?v=iN8lre7j9Os


आमतौर पर जब बम का नाम आता है तो लोग दहशत में पड़ जाते है। अतएव आजकल तो उतराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में ''बीजबम'' नाम लोगो की मुखजुबानी हो गया है। बीजबम कोई अजूबा नहीं है। यह एक प्रकार से वृक्षारोपण का नायाब तरीका का है। गांधी जयन्ती के अवसर पर अक्टूबर 2018 में आरम्भ हुआ बीजबम अभियान अब तक दो लाख लोगो तक पंहुच चुका है। यही नहीं 200 स्थानो पर बीजबम गिरने की वजह से लगभग तीन लाख नर्सरी पौध तैयार हो चुकी है। इस बात का प्रमाण यह है कि अकेले उतरकाशी जिले के कमद इण्टरमीडिएट कालेज के 200 छात्रो ने अंयारखाल और बूढाकेदारनाथ के जंगलो में बीजबम छोड़े थे, जो उस क्षेत्र में नर्सरी पौध के रूप में दिखाई दे रहे हैं।


उल्लेखनीय यह है कि ''बीजबम'' मौजूदा समय की मांग बन गई है। क्योंकि संबधित विभाग जैसे वन विभाग और अन्य संस्थान बीजबम को वृक्षारोपण के विकल्प के तौर इस अभियान को हाथो हाथ ले रहे है। उतराखण्ड राज्य की राज्य पाल बेबीरानी मौर्य भी बीजबम की सराहना कर चुकी है और कहती है कि वृक्षारोपण को अब इस नये प्रयोग के हिसाब से करना होगा। बिते दिनों उतरकाशी पंहुचे उतराखण्ड शासन के मुख्य सचिव उत्पलकुमार ने भी अधिकारियों को अगाह किया कि बीजबम का काॅन्सेप्ट टिकाऊ ज्यादा लग रहा है। कहा कि भविष्य में वृक्षारोपण को बीजबम के हिसाब से करना होगा। इधर बीजबम के जनक द्वारिका प्रसाद सेमवाल अब अभियान को देशव्यापी बनाने की तैयारी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि 25 जुलाई से वे ''बीजबम पखवाड़ा'' मना रहे है।


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इस अभियान से सरकारी एंव गैर सरकारी संस्थान सीधे तौर पर जुड़ रहे है। इनमें प्रमुख तौर पर आईआईटी रूड़की, हे॰न॰ब॰गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर, एसएसबी प्रशिक्षण केन्द्र श्रीनगर, ग्राम विकास विभाग, जिला प्रशासन उत्तरकाशी, नगर पंचायत कीर्तिनगर, हैस्को संस्था देहरादून, लोक विज्ञान संस्थान, रिलायंस फाउण्डेशन, रेणुका समिति, नेहरू इन्सीट्यूट आॅफ मांन्टरिंग उत्तरकाशी, अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन, वन विभाग उतराखण्ड, उतराखण्ड राजभवन, जनदेश संस्था चमोली, यूथ फाउण्डेशन, होप रानीखेत, कुमाऊ सेवा समिति, गढमाटी, एैम संस्था, श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम, रेडक्रास सोसायटी उत्तरकाशी, जनजागृति संस्थान खाड़ी, लोकजीवन विकास भारती बूढाकेदारनाथ, नंगल हिमांचल प्रदेश, सैणियू का संगठन भवाली, उतराखण्ड वन पंचायत संगठन, होटल ऐशोसियशन उत्तरकाशी, तरूण पर्यावरण विज्ञान संस्था, संकल्प संस्था जैसे संगठन बीजबम पंखवाड़े को अंजाम दे रहे है। ये संगठन बीजबम को बनायेंगे भी और अपने आसपास के स्थानो पर बीजबम को छोड़ेंगे। अनुमान लगाया जा रहा है कि बीजबम पखवाड़ के दौरान अकेले उत्तराखण्ड में 1000 हजार स्थानो पर यह कार्यक्रम क्रियान्वित होगा।



बीजबम की खास बात यह है कि यह स्थानीय फलदार बीजो का ही संग्रहण है। जिसमें अमूमन चूलू, खुबानी, मेहल, सहतूत, गुरियाल/कचनार, जैसे फलदार बीज हैं तो दूसरी तरफ कद्दू, लौकी, चैलाई व मण्डुवा भी है। ये स्थानीय बीज एक तो आसानी से प्राप्त हो जाते हैं और दूसरी तरफ स्थानीय जंगल व अन्य स्थानो पर उगने में आसनी हो जाती है। बताया जाता है कि यदि इन बीजो से पौध तैयार हो जाती है तो वह ज्यादा समय तक जीवित रहती है। जबकि रोपित पौधे की उम्र इसके आधे में मापी गई है। इस लिहाज से वृक्षारोपण के इस वैकल्पिक कार्यक्रम से लोग स्व-स्फूर्त जुड़ रहे है। आईआईटी रूड़ी ने तो बाकायदा अपने कैम्पस में बीजबम की कार्यशाला आरम्भ की है और कैम्पस में ही प्रयोग के तौर पर बीजबम छोड़ा, जिसने मौजूदा समय में पौध का रूप ले लिया है।


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इधर बीजबम अभियान का मानना है कि वृक्षारोपण में धन और जन की मूल आवश्यकता होती है। पहले गढा बनाओ, उसके तुरन्त बाद वृक्षो हेतु नर्सरी का चयन करो, फिर पौध का रोपण करो तत्पश्चात पौध रोपो, इसके बाद पौध जीवित है कि नहीं, इसकी कोई गारण्टी नही है। जबकि बीजबम को एक बार में ही जंगल में खुले ही छोड़ दो, और अगले वर्ष इसकी पौध तैयार हो जाती है। जहां पर पौधो की संख्या घनी है वहां से जिसको जरूरत है वह पौध उखाड़कर दूसरी जगह रोपित कर सकता है। यानि शून्य बजट और स्व-स्फूर्त कार्यक्रम। गौरतलब यह है कि बीजबम को अभी 10 माह का ही समय हुआ है। यथा इस इभियान की आवश्यकता बहुत ही महसूस होने लग गई है। यह इस बात की तस्दीक है कि बीजबम के जनक द्वारिका प्रसाद सेमवाल को उत्तराखण्ड वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने भी बीजबम पखवाड़े में नैतिक सहयोग देने की स्वीकृति दे दी है।


क्या है बीजबम


बीजबम वृक्षारोपण का दूसरा रूप है। जिसे खुले में फेंक दिया जाता है जो स्वतः ही पौध के रूप में तैयार हो जाता है। इस प्रक्रिया ने अब तक दो लाख पौध तैयार किये हैं। इन पौधों के पीछे ना तो कोई बजट खर्च हुआ है। ना ही इन पौधो के पैदा होने की कोई सीमा बनी है। यानि बिना बजट और असीमित वृक्षारोपण।


कैसे बनता है बीजबम


मिट्टी और कम्पोष्ट या इसके साथ गोबर को मिलाकर आटे के जैसे गूंथ लेते है। फिर इसके गोले बनाये जाते हैं और इसके अन्दर किसी भी फलदार या जंगली फलदार पौधो या अन्य फल-फूलो, सब्जियों के तीन-चार बीजों को रख दिया जात है। जिसे छांव में सुखाते है क्योंकि धूप में सुखाने से बीजबम की नमी में कमी आती है। इस तरह से बीजबम तैयार किया जाता है। अब इन बीजबम के गोलो को जंगल में उड़ेल दिया जाता है।


बीजबम के जनक


इन दिनों सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के द्वारिका प्रसाद सेमवाल बीजबम के जनक कहलाये जाने लगे है। दरअसल पहली बार द्वारिका ने इस अभियान की शुरूआत उत्तरकाशी के ही कमद इण्टर कालेज से की है। इस दौरान कालेज के 200 छात्रो ने इस अभियान में हिस्सा लिया है। द्वारिका बताते हैं कि उन्होने राज्यभर में कई यात्राऐं पैदल और मोटर वाहन से की है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक साईकिल यात्रा की है। इस दौरान उन्होने हजारो गांवो के ग्रामिणो से वार्ता की है। ग्रामीणो का एक ही जबाव था कि उनकी फसल जंगली पशु की भेंट चढ रही है, जंगली पशु बसासत की जरफ आ रहे हैं जिससे खतरा बढ रहा है। उन्हे सुझा कि जंगल में जंगली पशुओं का भोजन खत्म हुआ है, मांसहारी पशु भी गांव की तरफ इसलिए आ रहे हैं कि उन्हे जंगल में वे छोटे पशु नहीं मिल रहे हैं जिन्हे वे शिकार बनाते थे। अर्थात आवश्यकता के जंगल कम हो रहे हैं। इसलिए उन्होंने बीजबम का कान्सेप्ट एक अभियान के तौर पर लिया है। इस बीजबम में वे ऐसे बीजो को डालते हैं जो पर्यावरण के लिहाज से भी फलीभूत हों, और इससे विकसित होने वाला जंगल जैवविधिता का भी संरक्षण कर सके। जैसा कि 10 माह में अभियान की सफलता उनके सामने आई है।


इतना ही नहीं द्वारिका हिमालयन पर्यावरण जड़ी-बूटी ऐग्रो संस्था के संस्थापक है। उन्होंने संस्थान के माध्यम से गंगोत्री और यमनोत्री धामो में स्थानीय उत्पादो से प्रसाद तैयार किया है, जो देश-दुनिया में लोगो तक पंहुच रहा है। इसके नीमित भी सैकड़ो महिलाऐं स्वरोजगार से जुड़ चुकी है। जबकि गढभोज की कल्पना को मूर्तरूप देने की शुरूआत द्वारिका ने साल 2010 में उतरकाशी के माघ मेले से की है। कुलमिलाकर द्वारिका पहाड़ में पहाड़ के उत्पादो को स्वरोजगार और आज की मांग से जोड़ रहे है। कह सकते हैं कि पर्यावरण के सजग प्रहरी के रूप में द्वारिका का अभियान जारी है।