आंसुओ से छलकती आंखे कर रही इन्तजार


||आंसुओ से छलकती आंखे कर रही इन्तजार||


उसे क्या मालूम था कि वह वापस नही लौट पायेगा। वह तो खुशी-खुशी आपदा की राहत पंहुचाने आराकोट गया था। 21 अगस्त 2019 को तड़के सुबह सात बजे उसने अपने साथियों के संग देहरादून स्थित सहस्रधारा रोड़ हैलीपैड से हेरीटेज एविशियन के हेलीकाप्टर से उड़ान भरी थी। किसे मालूम था कि राजपाल कभी अब वापस अपनो के पास नहीं आ पायेगा। आराकोट में उनका हेलीकाप्टर क्रैश हुआ। वह अपने साथियों संग हादसे का शिकार हुआ। इस खबर से सम्पूर्ण यमुनाघाटी मे मातम छाया हुआ है।


लोग हतप्रद हैं, कुछ सूझ भी नहीं पा रहा है, कैसे सांत्वाना बावत राजपाल की मां को और उसकी पत्नी को ढांढस बंधवाये। यहां तो ईश्वर ने शब्द और जुबान दोनो छीन ली है। कभी ऐसा सोचा भी नहीं कि ईश्वर की इतनी क्रूर हरकत इंसानों के संग होगी। ना कोई आपदा, ना कोई बीमारी, मगर इस पापी ईश्वर को तनिक भी ऐसा नही गुजरा कि राजपाल तो अभी अपनी जिन्दगी के 32 बसन्त भी पूरा नहीं कर पाया, उसके संग उसकी माता, उसकी पत्नी और गंगा, यमुना बेटियां और एक बेटा भी है। हादसे के बाद परिवार के लोग अभी भी राजपाल का इन्तजार कर रहे हैं।



राजपाल की माता मंजू देवी की आंसुओं से भरी नम आंखे साफ जबाव दे रही है कि उसका लाडला उसे ऐसे नहीं छोड़ सकता। पत्नी अंजना का रो-रो कर बुरा हाल है। उसके रूदन स्वर बस यूं ही कह पा रहे हैं कि कभी उसने ऐसा नहीं सोचा था, कि राजपाल उसे बिना बताये अलविदा कह देगा। उसकी आवाज इतनी लडखड़ा रही है कि वह हर किसी को ईशारो में यूं ही कह पा रही है कि राहत तो राजपाल ने पंहुचा दी थी, पर उसने वापस आना था। उसका इन्तजार उसकी लाडली बेटियां गंगा व यमुना तथा उसका बेटा कर रहा है। वह खुद को संभाल नहीं पा रही है। आंसुओ से भरी आंखे कभी कभी बेटे को दुलारती है कभी गंगा, यमुना बेटियो को सहलाती है। उन्हे भी रोते रोते इतना कह पा रही है कि बेटा तुम्हारा पापा आयेगा।


इधर राजपाल का छोटा भाई यशपाल इतना दुखी है  कि वह भी अपनी किस्मत को कोसता है। किसी को कोई जबाव नहीं देता है। यशपाल इतना टूट गया कि वह अपने को अब अकेला महसूस कर रहा है। पहले पिता का साया छूटा, तो अब उसे विश्वास था कि उसके साथ तो उसके बड़े भाई राजपाल का साया है, वह भी ईश्वर को मंजूर नहीं हुआ। यशपाल की नम आंखे यूं बयां कर रही है कि उनके ऊपर दुखो का पहाड़ क्यों ढहाया गया। 


राजपाल अपनी संगीनी अंजना को देहरादून अपने आवास से यूं बता गया कि वे गये और चार से पाच घण्टे के अन्तराल में वापस लौटकर उसके संग होंगे। अंजना भी हादसे से अनजान ही थी और इन्तजार कर रही थी कि नीले आसमान से उसके प्रियतम कब उसके पास उतरने वाले है। मगर ईश्वर को कुछ और ही करना था। बिना बताये, बिना सलाह, या बिना कारण उसे अंजना से ईश्वर ने छीन लिया।



राजपाल के सगे-संबधी भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। यही नहीं राजपाल के गांव के लोग खरसाली में राजपाल के हादसे में मृत्यु होने पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे हैं। अभी तो राजपाल ने खरसाली में ''कैलाश ऐविशियन'' नाम से एक हेली सेवा की कम्पनी पंजिकृत करवाई थी। गांव और क्षेत्र में राजपाल की प्रगति का लोग लोहा मनवाते थे। राजपाल का होटल व्यवसाय भी व्यवस्थित और प्रगति पर था। पिता का साया ना होते हुए भी राजपाल ने कड़ी मेहनत से स्वरोजगार के साधन ढूंढ निकाले थे। उनके गांववासियो और अन्य स्थानीय लोगो को राजपाल पर नाज था। ऐसा कारोबार यमुनाघाटी में पहली बार आरम्भ हुआ था। यही नहीं राजपाल की सोच समाज सेवा की थी। वह दीनदुखियो का लाडला भी था। यही वजह थी कि आराकोट में आई आपदा की राहत बावत वह हेलीकाप्टर से राहत पंहुचाने अपने साथियो संग देहरादून से आराकोट पंहुचा।


किसे मालूम था कि राजपाल का हेलीकाप्टर वापसी वक्त ट्राली के तार से टकरा जायेगा और वह मौत के मुंह में समा जायेगा। इतनी दर्दनाक मौत से लोगो के होश फाक्ता हैं। यमनोत्री के विधायक केदार सिंह रावत, पुरोला के विधायक राजकुमार सहित तमाम जनप्रतिनिधि राजपाल की इस घटना से दुखी है। यमुनाघाटी के सामाजिक कार्यकर्ता डा॰ कपिलदेव रावत ने इस खबर को इस संवाददाता तक पंहुचाया। वह भी इतना कह पा रहे हैं कि उनका तो राजपाल भाई है। उनकी खरसाली गांव से नन्हीहाल है। वह भी इस वक्त दुखी है। दुखी मन से कुछ कहने की हिम्मत भी कपिल में नही है। राजपाल के दोस्त आंसुओ के सिवाय कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे है।