आओ मनायें सच्चा स्वतंत्रता दिवस


भारत देश को भी स्वतंत्र हुए आधी सदी से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन परिणाम फिर भी कोई बहुत अत्साहवर्धक नही हैं। अनेक प्रकार की हिंसा, लड़ाई-झगड़े आदि होते रहते हैं। पापाचार, दुराचार, अनाचार एवं अत्याचार का ही बोलबाला है। चारों और यही सुनने को मिलता है कि सरकारी व्यक्ति काम नहीं करते, नेता लोग किसी की फरियाद नहीं सुनते, पुलिस का दमन चक्र चलता रहता है तथा आम इंसान पिसता रहता है। यह बात देहरादून स्थित प्रजापति मंजू बहन ने स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कही है।


वे कहती है कि यह तो स्थूल स्वतंत्रता का आलम है। परन्तु उन्हे अब कुछ बातें सूक्ष्म स्वतंत्रता के विषय में भी करनी है। वास्तव में सूक्ष्म रूप से तो सभी स्वत्रंत है। यदि कोई आत्मा को कैद करके रख सकता है तो वह है देह अभिमान, अपने नकारात्मक संस्कार, स्वभाव तथा वृत्तियां। इसलिए कहा जाता है कि स्थूल गुलामी से मन की गुलामी कई गुणा पीड़ादायक एवं हानिकारक होती है। अतएव अपने ही मन की बेड़ियों में फँसे व्यक्ति को मुक्ति कौन दिला सकता है? अतः ठीक इसी प्रकार मानसिक दास्ता से तो हम स्वंय को मुक्ति दिला सकते हैं। कोई दूसरा तो अधिक से अधिक हमारा मार्ग दर्शन ही कर सकता है, लेकिन उन पर अमल तो हमें ही करना होगा।


वे अपने वक्तव्य को आगे बढाती है। कहती है कि यहाँ सच्ची सवतंत्रता से हमारा अभिप्राय मन स्वं संस्कारो की दासता से स्वयं को मुक्ति दिलाना से है। तो आइये! हम सभी मिलकर 15 अगस्त के पवन पर्व पर इस बार स्वयं से यह प्रष्न करें कि हमें कौन-कौन सी बेड़ियों ने अभी तक जकड़ा हुआ है और उन्हें तोड़ने का भी प्रयत्न भी करें, उनसे मुक्ति की व्यक्तिगत योजना भी तैयार करें। लेकिन याद रखें-यह भागीरथ कार्य हमें स्वयं ही करना होगा। चूँकि बंधन बाँधे भी हमने ही है अतः उन्हें तोड़ना भी हमें ही होगा। इसके लिए हम किसी दूसरे को दोशी नहीं ठहरा सकते है। किसी परिस्थिति को अपराधी नहीं बना सकते हैं। इस हेतु कुछ कथन है। 



स्वयं को अधिकारी समझे मैं आत्मा अपनी सर्व कर्मेन्द्रियांे की राजा हूँ। मैं जैसे भी अपने मन को निर्देश देता हूँ, वैसे करता हूं। इसी प्रकार हम भी जब आत्म अभिमानी के आसन पर सदैव विराजमान रहते हैं तो कोई भी इन्द्रिय हुक्म की नाफरमानी नही कर सकती। 


 


सकारात्मक चिन्तन करें 
आत्मा का भोजन है सकारात्मक संकल्प। जितना-जितना हम षुद्ध संकल्पांे का सूक्ष्म भोजन ग्रहण करते हैं उतनी ही हमारी मानसिक षक्ति, निर्णय शक्ति, सहन शक्ति आदि बढ़ती जाती है। आत्मा ताकतवर बनती जाती है, तथा स्वछंद विचरण करती हे उसे कोई भी दुनियावी शक्ति अपने प्रभाव में ले नहीं सकती।
दुआओं का खजाना जमा करते रहें |  जहाँ दवा भी काम न करे वहाँ दुआ काम करती है। तो पापों के बोझ तले दबी हुई आत्मा भी स्वयं को असक्षम एवं असहाय बना लेती है तथा इससे मुक्ति का एक ही उपाय है कि दूसरों की शुभ भावनाओ , शुभकामनाओं एवं शुभ प्रेरणाओ का खाता जमा करते चलें।


विकारों रूपी शत्रुओं से सदैव सचेत रहें
सीमाओं पर यदि पहरेदार फुर्तीला न हो तो उस देष पर कोई भी कभी भी आक्रमण कर सकता है। ठीक इसी प्रकार यदि हम भी अपने मन-बुद्धि पर निगरानी रूपी पहरेदार नहीं रखेंगे तो काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी विकार कभी भी आक्रमण कर सकते है।


योग-ध्यान में व्यस्त रहें
प्रतिदिन का योगाभ्यास हमें आन्तरिक षक्ति प्रदान करता है। हमारे अन्दर आत्मविश्वास जगाता है। हमारी सुशुप्त षक्तियांे को जाग्रत करता है तथा हमारे अन्दर अनुशासन लाता है।


इस तरह से उन्होने आहवान करते हुए कहा कि आइये, हम स्वयं से प्रतिज्ञा कर लें कि हम अपने संस्कारों को चलायेंगे, उन्हे स्वयं पर हावी नहीं होने देंगे और आदतें हमें अपना गुलाम बनाये इससे पहले हम उनके मालिक बन जायेंगे। जब हम सभी आसुरी संस्कारों के पूर्ण रूपेण मालिक बन जाते है उस स्थिति को ही सच्ची स्वतंत्र अवस्था कहा जाता है।