श्रद्धांजलि नही रहे पत्रकार नौटियाल


|| श्रद्धांजलि नही रहे पत्रकार नौटियाल|| 


वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल का 29 अगस्त की सांय को देहरादून में निधन हो गया है। वे 89 वर्ष के थे। नंदकिशोर नौटियाल ने मुंबई अपने पत्रकारिता का सफर बड़े दमदार ढंग से आरम्भ किया था। वे लम्बे समय तक ब्लिट्ज के संपादक रहे है। यही नहीं उत्तराखण्उ बनने के बाद उन्होने नूतन सबेरा साप्ताहिक अखबार की शुरूआत की है। उन्होने देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में हिंदीभाषी समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का नेतृत्व किया।


वे महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सचिव और कार्याध्यक्ष भी रहे हैं। बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के भी अध्यक्ष रहे। ज्ञात हो कि कि मुंबई के श्रीमंत समाज में 'पंडितजी' और पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्य जगत में 'बाबूजी' के नाम से प्रख्यात नंदकिशोर नौटियाल का जन्म 15 जून 1931 को उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा गांव में और दिल्ली में हुई। देश-दुनिया के प्रति जागरूक नंदकिशोर नौटियाल छात्र जीवन के दिनों में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। दिल्ली की छात्र कांग्रेस की कार्यकारिणी के सदस्य के तौर पर उन्होंने 1946 में बंगलोर (अब बेंगलुरु) में हुए छात्र कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में भाग लिया। 1946 में ही नौसेना विद्रोह के समर्थन में जेल भरो आंदोलन में भी शिरकत की।


नंदकिशोर नौटियाल ने पत्रकारिता की शुरुआत 1948 में की। उन्होंने नवभारत साप्ताहिक (मुंबई), दैनिक लोकमान्य (मुंबई) और लोकमत (नागपुर) में 1948 से 1951 तक काम किया। 1951 में दिल्ली प्रेस समूह की प्रख्यात मासिक पत्रिका सरिता से जुड़े रहे। वे 1954 से 57 तक दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी वर्कर्स यूनियन के सचिव रहे और अनेक बार आंदोलन किये। उन्होंने कई मजदूर संगठन बनाये और पत्रकार यूनियनों में सक्रिय रहे। उन्होने पृथक हिमालयी राज्य तथा उत्तराखंड राज्य आंदोलन में 1952-53 में सक्रिय हिस्सा लिया। सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हुए भी उन्होंने पत्रकारिता और लेखन को अपना व्यवसाय बनाया।


1962 में उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब मुंबई से साप्ताहिक हिंदी ब्लिट्ज निकालने के लिए उसके प्रथम संपादक मुनीश सक्सेना और प्रधान संपादक आरके करंजिया ने उन्हें चुना। 10 साल सहायक संपादक रहने के बाद 1973 में नंदकिशोर नौटियाल हिंदी ब्लिट्ज के संपादक बने। 


उन्होंने वर्ष 1993 में नूतन सवेरा साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। साहित्यिक और पत्रकारिता प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य के तौर पर वह अमेरिका कनाडा, उत्तर कोरिया, लीबिया, इटली, रूस, फिनलैंड, नेपाल, सूरीनाम आदि देशों की यात्रा कर चुके थे। विश्व हिंदी सम्मेलनों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हे हिंदी साहित्य सम्मेलन का साहित्य वाचस्पति सम्मान, आचार्य तुलसी सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का पत्रकार भूषण सम्मान, लोहिया मधुलिमये सम्मान समेत राष्ट्रीय स्तर के कई सम्मानों से नवाजा चुका है।


पत्रकारिता जगत में उनका काफी नाम भी था। मीडिया जगत में होने के कारण उनके संबंध हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी जैसे राजनेताओं के साथ मित्रवत थे। वे किसी के भक्त भी कभी नही रहे। उनके जाने से पत्रकारिता जगत को क्षति पंहुची हैं