चन्द्रायान मिशन टू जारी


||चन्द्रायान मिशन टू जारी||


पूरे देश की जनता की नजरे चन्द्रयान पर टिकी थी कि हमारे वैज्ञानिक इस समय चन्द्रमा पर फतह कर ही लेंगे। चन्द्रमा पर 2.5 किमी के फासले पर हमारे वैज्ञानिको कर सम्पर्क ''चन्द्रायान'' से कट गया था। फिर आश बन्धी और आर्बिटर के माध्यम से चन्द्रमा की जानकारी ली जा सकती है।


उल्लेखनीय हो कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) ने चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का पता लगाने में सफलता हासिल की है। इसरो के चेयरमैन डा॰ केसिवन ने रविवार को बताया कि चंद्रमा पर विक्रम लैंडर का पता लग चुका है। ऑर्बिटर ने लैंडर की कुछ तस्वीरें (थर्मल इमेज) ली हैं। विक्रम से संपर्क की कोशिशें जारी हैं। हालांकि, ऑर्बिटर के द्वारा ली गईं लैंडर की तस्वीरें इसरो तक पहुंचना बाकी हैं।


इसरो लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की कोशिशों में जुटा है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दोबारा संपर्क स्थापित करने का वक्त गुजर चुका है और इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं। मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा कि यह अच्छा संकेत है कि विक्रम सोलर पैनल की मदद से बैटरी चार्ज कर उर्जा पैदा कर लेगा।


बता दें कि इसरो पिछले 7 सितंबर 2019 को अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब था, लेकिन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का लैंडिंग से महज 69 सेकंड पहले पृथ्वी से संपर्क टूट गया था। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की इसी  दरमियानी रात 1 बजकर 53 मिनट पर लैंडिंग होनी थी। सो सम्पर्क टूटने पर असफलता ही हाथ लगी। सिवन ने बताया की लैंडर विक्रम की लैंडिंग प्रक्रिया एकदम ठीक थी। जब यान चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह से 2.1 किमी दूर था, तब उसका पृथ्वी से संपर्क टूट गया था। व ेअब ऑर्बिटर से मिल रहे डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। कहा कि आखिरी चरण में सिर्फ लैंडर से संपर्क खोया है। जबकि वे अगले 14 दिन संपर्क साधने की कोशिश करेंगे।


इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिको के अनुसार जिस ऑर्बिटर से लैंडर अलग हुआ था, वह अभी भी चंद्रमा की सतह से 119 किमी से 127 किमी की ऊंचाई पर घूम रहा है। 2,379 किलो वजनीऑर्बिटर के साथ 8 पेलोड हैं और यह 7 साल तक काम करेगा। यानी लैंडर और रोवर की स्थिति पता नहीं चलने पर भी मिशन जारी रहेगा।
अर्थात ऑर्बिटर की मदद से चांद की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी जहां मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाना है। सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना। चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना। सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना। ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना और चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना।


इधर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि पिछले छह दशक में चांद पर भेजे गए महज 61 फीसदी मिशन ही सफल हो पाए हैं। 1958 से लेकर अब तक 109 मिशन चांद पर भेजे गए, लेकिन इसमें सिर्फ 60 मिशन ही सफल हो पाए। रोवर की लैंडिंग में 46 मिशन को ही सफलता मिली है।