एनआरसी का होना लाजमी

|| एनआरसी का होना लाजमी|| 


उत्तराखंड में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने पर विचार करने सम्बन्धी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान का पूर्व दायित्वधारी व भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने स्वागत किया है और इसे समय की जरूरत बताया है। उन्होंने एनआरसी के साथ- साथ देवभूमि उत्तराखंड के वैशिष्ट्य को कायम रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्र को "विशेष क्षेत्र" अधिसूचित कर समुदाय विशेष के धर्म स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंध और भूमि इत्यादि के क्रय-विक्रय के लिए विशेष प्राविधान किए जाने की भी मांग की है।

 


अजेंद्र ने कहा कि विगत कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों से रोजगार एवं अन्य कारणों से वहां के मूल निवासियों द्वारा व्यापक पैमाने पर पलायन किया गया। इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों से एक समुदाय विशेष ने विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के माध्यम से वहां पर अपनी आबादी में भारी बढ़ोतरी की है। यही नहीं कई बार मीडिया एवं अन्य माध्यमों से बांग्लादेशी व रोहिंग्याओं द्वारा घुसपैठ किए जाने की चर्चा भी सुनाई देती है। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से जुडे़ होने के कारण ऐसी परिस्थितियां देश की सुरक्षा की दृष्टि से आशंकित करने वाली हैं। समुदाय विशेष द्वारा तमाम स्थानों पर गुपचुप ढंग से अपने धार्मिक स्थलों का निर्माण भी किए जाने की चर्चा भी समय समय पर सुनाई देती हैं। इस कारण कई बार सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। लिहाजा राज्य में आने जाने अथवा घुमक्क्ड़ी लोगो की पहचान करनी अब आवश्यक है। इसलिए उत्तराखंड में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का होना भी नितांत है। 

 

भाजपा नेता ने कहा कि बिना पहचान व सत्यापन के रह रहे लोगों के कारण आज पर्वतीय क्षेत्रों में अपराधों में वृद्धि हुई है। पूर्व में सतपुली, घनसाली, अगस्त्यमुनि आदि स्थानों पर हुई घटनाएं आंखें खोलने वाली हैं। इन घटनाक्रमों से पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों में तमाम तरह की आशंकाएं घर करने के साथ ही भारी आक्रोश भी व्याप्त है। इसके साथ ही "लव जेहाद" जैसी घटनाएं भी समय-समय पर सुनाई देने लगी हैं।

 

अजेंद्र ने कहा कि सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड का यह हिमालयी क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों की विशिष्ट भाषाई व सांस्कृतिक पहचान रही है। अत्यंत संवेदनशील सीमा के निकट लगातार बदल रहा सामाजिक ताना-बाना आसन्न खतरे का कारण बन सकता है। उपरोक्त तथ्य राज्य में असम जैसी परिस्थितियों का कारक भी बन सकते हैं। आदिकाल से सनातन धर्म की आस्था और हिंदू मान बिंदुओं की  प्रेरणा रहे भूभाग की पवित्रता व उसके आध्यात्मिक, सांस्कृतिक स्वरूप को बरकरार रखने के लिए संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र को विशेष क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए। 

 

समुदाय विशेष के धर्म स्थलों के निर्माण/स्थापना पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ-साथ संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में भूमि के क्रय विक्रय के लिए विशेष प्राविधान आवश्यक हैं। इस हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए, जो इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर नए कानून के प्रारूप को तैयार कर सके। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा इस संबंध में पूर्व में प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक पत्र भी सौंपा गया है।

उत्तराखंड से दुनियाभर लोगो का लगाव 


देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से अध्यात्म की धारा को प्रवाहित करता आया है। हिंदू धर्म व संस्कृति की पोषक माने जाने वाली गंगा व यमुना के इस मायके में संतों-महात्माओं के तप करने की अनगिनत गाथाएं भरी पड़ी हैं। ऋषि-मुनियों ने ध्यान व तप कर देश-दुनिया को यहां से सनातन धर्म की महत्ता का संदेश दिया है। आज भी यहां विभिन्न रूपों में मौजूद उनकी स्मृतियों से दुनिया प्रेरणा प्राप्त करती है। यहां कदम-कदम पर मठ-मंदिर अवस्थित हैं, जिनका तमाम पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इससे उनकी प्राचीनता, ऐतिहासिकता, आध्यात्मिकता व सांस्कृतिक महत्व का पता चलता है। इन अनगिनत देवालयों के अलावा यहां श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जैसे विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी स्थित हैं, जो सदियों से हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था के केंद्र रहे हैं। इस क्षेत्र के आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए पौराणिक समय से लेकर आधुनिक काल तक प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधक व श्रद्धालु हिमालय की कंदराओं का रूख करते आए हैं और यही कारण रहा कि यह क्षेत्र देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।