हिमालय का योगदान व हमारे दायित्व


 


||हिमालय दिवस पर विशेष || 2010 में शिमला क्नक्लेव में भी हिमालय के निवासियों को ग्रीन बोनस की बात उठी थी। इसी वर्ष मसूरी में हिमालय राज्यों के मुख्यमंत्री मसूरी में फिर इक्कट्ठे हुए और कहा कि हिमालय के निवासियों का हिमालय संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान है, लिहाजा ग्रीनबोनस दिया ही जाना चाहिए। बाकायदा उत्तराखण्ड सरकार ने इसके लिए एक ड्राफ्ट भी तैयार कर दिया है। कहा जा रहा है कि ग्रीनबोनस लोगो को तुरन्त दिया जायेगा। पर लोगो को यह ग्रीन बोनस मिलेगा कैसे इसका कोई पता नही है||



||हिमालय का योगदान व हमारे दायित्व||


देश के राष्ट्रगान से लेकर और तमाम तरह की राष्ट्रीय सेवा तक हिमालय आज भी खरा है। वेद पुराण हो महाभारत या फिर रामायण इन सब ग्रन्थों में इस महान आकृति का उल्लेख हमेशा से प्रमुख रूप से रहा है। चाहे देश की सीमा हो या फिर हवा मिट्टी जंगल पानी का सवाल हो, हिमालय सदियों से हमेशा सेवारत रहा है। देश के एक बड़े हिस्से के भोजन पानी की सीधी निर्भरता हिमालय व इसके उत्पादों पर निर्भर है। नौ राज्यों में विस्तृत हिमालय देश की 17 फीसदी भू-भाग पर फैला है जिसमें से 67 फीसदी भाग वन भूमि के लिए सुरक्षित है। देश के जल बैंक के नाम से सम्मानित हिमालय देश के 65 फीसदी लोगों के पानी की आपूर्ति करता है। भौगौलिक रूप से हिमालय देश का मुकुट ही नहीं एक ऐसा प्रहरी भी है जिससे पार पाना असंभव है। हिमालय की क्षमताएं असीमित हैं।


बर्फ के पहाड़ के रूप में यहां 30 महान चोटियां 7000 मीटर की ऊंचाई तक फैली हैं। बर्फ का यह भू-भाग हिमालय की 22.4 फीसदी भू-भाग में है। देश के 1.3 फीसदी वन हिमालय में हैं और इसमें भी देश के अच्छे वनों का 46 फीसदी भाग हिमालय में ही हैं। हिमालय में देश की 3.8 फीसदी जनसंख्या रहती है। अगर देश में दो बड़े भू-भागों को ही देख ले तो भी यह बात स्वीकारनी ही पड़ेगी कि यह हिमालय की चोटियों हो या फिर दक्षिण का समुद्र कहीं ना कहीं एक दूसरे के पूरक है। समुद्र से चला मानसून हिमालय को सींचता है तो इसकी नदियाँ उस की आपूर्ति करती है। मतलब साफ है कि हिमालय व समुद्र का अस्तित्व भी एक दूसरे से जुड़ा है। इन दोनों के मध्य जो भी जनजीवन है वो दोनों का ही कृतज्ञ है हिमालय की नदियों की यात्रा में पड़ते गांव शहर और उनसे सिंचित कुएं नहर पूरे देश को फलीभूत करते है। 



गत पांच दशकों में हमने हिमालय के साथ कई तरह की छेड़छाड़ की है और ये सब इसलिये कि हम इसे ज्यादा से ज्यादा भोग सके। बांधों की भीड़, सड़कों का जाल, अनियंत्रित खनन सबने मिलकर हिमालय को कमजोर व बीमार कर दिया है। हम जिस हिमालय के शोषण के लिये पागल हो गये हैं वो अपने मूल स्वभाव को खो रहा है। मतलब साफ है हम बड़े संकट में पड़ने वाले है। हिमालय के आज हालात बेहतर नहीं कहे जा सकते, यहां जनजीवन के नये संकट भी खड़े हो चुके हैं। जीवन-यापन के तमाम साधन या तो लड़खड़ाती हुई स्थिति में है या फिर कगार पर पहुंच चुके हंै। ऐसे में देश के हर व्यक्ति के दायित्व का यह हिस्सा होना ही चाहिए कि वो इस महान भू-भाग के संरक्षण व सुरक्षा के लिए आगे आये। हिमालय की क्षति मात्र स्थानीय लोगों की नहीं बल्कि पूरे देश की भी तय है और ये ही नहीं देवी-देवताओं को मानने वाला ये समाज ये कैसे नकार सकता है कि यह भूमि ब्रह्मा-विष्णु-महेश व नौ देवियों की भी है जिनसे हम हर संकट में मुक्त होने की गुहार लगाते हैं।