खंडूरी थे जरूरी, आखिर क्यों


||खंडूरी थे जरूरी, आखिर क्यों||  


"खंडूरी है जरूरी " की पटकथा से "खंडूरी थे जरूरी" कुछ समय पहले तक उत्तराखंड ही नहीं केंद्रीय स्तर के चुनाव मे भी भाजपा के पोस्टर ब्वाय रहे 85 वर्षीय उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री पूर्व सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री भुवन चंद्र खंडूरी अब पूरी तरह से देहरादून वाले हो गए हैं । इसे समय का फेर कहें या तेजी से भागती विश्व की नंबर वन पार्टी भाजपा के नेताओं में आ रहा व्यवहारिक बदलाव कि अब भाजपा नेताओं के लिए खंडूरी जरूरी नहीं रहे।


इस देश के इतिहास में खंडूड़ी ही एकमात्र ऐसे नेता है जिन्हें जिस कार्यकाल में मुख्यमंत्री पद से हटाया गया दोबारा से चुनाव मैदान में उतरने के लिए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाना पड़ा । खंडूरी सेना में जनरल पद से रिटायर होने के बाद राजनीति में आए 1991 में पहली बार सांसद बनने वाले भुवन चंद खंडूरी अटल बिहारी वाजपेई सरकार में तीन बार मंत्री रहे दो बार उन्हें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का अवसर मिला। खंडूड़ी को 1996 में लोकसभा का चुनाव और 2012 में तब विधायक करके चुनाव में हार का सामना करना पड़ा जबकि चुनाव भी उनके चेहरे पर लड़ा जा रहा था खंडूरी के नेतृत्व में लड़ रहे चुनाव में भाजपा 31 सीटों पर तो कांग्रेसी 32 पर जा रुकी की बाद में कांग्रेस में खंडूरी के ममेरे भाई विजय बहुगुणा के नेतृत्व में सरकार बनाई ।


कड़क मिजाजी के लिए जाने जाने वाले खंडूरी आजकल अकेले हैं यूं तो उनका भरा पूरा परिवार उनके साथ है किंतु उम्र के इस पड़ाव में उसी भाजपा के नेताओं ने खंडूरी से किनारा कशी कर ली है जो एक समय तक अपना चुनाव जीतने के लिए अपने चुनाव क्षेत्र में खंडूड़ी की जनसभा में लगाने के लिए व्याकुल रहते थे ।खंडूरी तकरीबन दो महीनों से देहरादून स्थित अपने निवास पर हैं न तो मुख्यमंत्री खंडूरी से मिलने गए ना किसी मंत्री विधायक ने उनके स्वास्थ्य का हाल जानने की चेष्टा की।


भारत सरकार के सड़क परिवहन विभाग के मंत्री रहने के दौरान खंडूरी की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना आज भी याद की जाती है खंडूड़ी के भीतर लाख बुराइयों के बावजूद उनके द्वारा उत्तराखंड में 15000 की फीस से एमबीबीएस की पढ़ाई, निशुल्क 108 जीवनदायिनी सेवा, सेवा का अधिकार सुशासन ,समूह ग में इंटरव्यू सिस्टम खत्म करना ,उत्तराखंड में कडा भू अध्यादेश लाना, देश में पहला लोकपाल कानून पास करवाना लोकपाल के भीतर मुख्यमंत्री को भी लाना खंडूरी के बेहतर कामों में गिने जाते हैं। खंडूरी का अधिकांश समय अब घर पर ही गुजरता है कल उनसे काफी लंबे समय बाद चर्चा का अवसर मिला लंबी चर्चा के दौरान उनके चेहरे पर उम्र की थकान और हाथ में लाठी दर्शा रही थी कि वास्तव में खंडूरी अब 85 बरस के हो गए हैं ।लंबी चर्चा के दौरान मोदी सरकार के कामकाज त्रिवेंद्र रावत सरकार की कामकाज के अलावा खंडूड़ी द्वारा भगत सिंह कोश्यारी को राज्यपाल बनने पर फोन पर बधाई देने रमेश पोखरियाल निशंक के मानव संसाधन विकास मंत्री बनने पर भी चर्चा हुई ।


खंडूरी ने बताया कि किस प्रकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय देश की तस्वीर बदल सकता है तमाम तरह के प्रसंगों के बीच जब खंडूड़ी को मैने बताया कि अब एमबीबीएस की फीस सरकार ने 4 लाख कर दी है तो वह चौंक गए । कहां ₹75000 में एमबीबीएस की पूरी पढ़ाई हो रही थी और कहां अब 50 लाख रुपए से ज्यादा कर दी गई है। खंडूरी का कहना है कि जो जितनी महंगी फीस देकर डॉक्टर बनेगा वह गरीब बीमार आदमी का उतना ही ज्यादा खून चूसेगा । खंडूरी के मुख्यमंत्री रहते उन पर लिखने का बहुत मौका मिला और जितना आलोचनात्मक लिखा जा सकता था खूब लिखा तब मुख्यमंत्री के रूप में कई प्रकार खंडूड़ी का आक्रोश भी झेलना पड़ा,कल मैंने खंडूड़ी से उनके राजनैतिक संस्मरण लिखने का अनुरोध किया कि किस तरह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया कौन-कौन साजिशकर्ता थे और बाद में क्यों उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाना पड़ा " राजनीति के भीतर की राजनीति" के खंडूड़ी के अनुभव वास्तव में बहुत ही अनोखे हैं ।


खंडूड़ी के पास भाजपा के कई छोटे-बड़े नेताओं के ऐसे ऐसे राज हैं जो वास्तव में राजनीति की असलियत को समझने के लिए बहुत जरूरी भी है कि कैसे एक व्यक्ति 1 दिन के भीतर कितनी बार कपड़े बदलता है और उसी तरह उसका चरित्र भूमिका और व्यवहार भी बदलता रहता है जो मंत्री विधायक मुख्यमंत्री निवास में उनके साथ खड़ा था वह कैसे कुछ घंटे बाद ही उनके खिलाफ बगावत कर रहा था। भाजपा के भीतर गढ़वाल कुमाऊं राजपूत ब्राह्मण की राजनीति किस प्रकार होती है ,लाल बत्ती पाने के लिए नौकरी पाने के लिए और बड़े बड़े ठेके लेने के लिए सत्ताधारी दल के लोग किन किन लोगों की सिफारिश जाते हैं ,किस प्रकार स्टिंगबाज खंडूडी कैंप में घुस रहा था, जैसे रोचक किस्से खंडूरी के पास है।


राजनीति में क्षेत्रवाद जातिवाद किस प्रकार विकास कार्यों को रोकते हैं के अनुभव भी खंडूरी के पास है हाईकमान से लेकर जिला स्तर के छोटे-बड़े कार्यकर्ता किस प्रकार मनमानी करते हैं और क्यों कई बार नकारा व्यक्ति को भी टिकट देना पड़ता है जैसे प्रसंग आप खंडूड़ी से चर्चा के दौरान समझ सकते हैं ।सत्ता के विरोध वाला एंटी इनकंबेंसी फैक्टर तोड़ने का जो प्रयोग भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दर्जनों सांसदों के टिकट काटकर दोबारा सत्ता हासिल करने का सफल फार्मूला अपनाया उसी फार्मूले को खंडूरी ने 2012 के चुनाव में उत्तराखंड में अपनाया था हालांकि खंडूरी का फार्मूला उस प्रतिशत में सफल नहीं हो सका किंतु वह भाजपा को 70 में से 31 सीटें दिलाने में कामयाब रहे। खंडूरी की बेटी भाजपा में विधायक है तो बेटा कांग्रेस के टिकट पर 2019 का पौड़ी से लोकसभा चुनाव हार चुका है । मनीष खंडूरी के चुनाव हारने पर खंडूड़ी का कहना है कि जिसके भाग्य में जो होगा वह उसे जरूर प्राप्त होगा। मनीष लाखों रुपए महीने की नौकरी छोड़कर कांग्रेस में है किंतु खंडूड़ी को उनके इस निर्णय से कोई मलाल नहीं।


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वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे भुवन चंद्र खंडूरी से मिलने उनके आवास पंहुचे। इस दौरान का उनका अनुभव यहाँ प्रस्तुत है. 85 वर्षीय खंडूरी से लंबे समय बाद हुई यह मुलाकात यादगार रही, मना करने के बावजूद खंडूरी लाठी टेकते हुए गेट तक छोड़ने आए 1 अक्टूबर को खंडूरी का जन्मदिन है शायद उस दिन बसंत विहार स्थित खंडूड़ी को घर पर भाजपा नेता देखने को मिले।