औषधीय खेती - 13 - जैट्रोफा (रजनजोत)

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 13)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||जैट्रोफा (रजनजोत)||


बायो डीजल के लिए जैट्रोफा (रजनजोत) ही क्यों



  • जैट्रोफा का पौधा ऊसर, बंजर, शुष्क, अर्धशुष्क, पथरीले और अन्य किसी भी प्रकार की भूमि पर गाया जा सकता है। जल भराव वाली जमीन इसके लिए उपयुक्त होती है।

  • इस पौधे को जानवर नहीं खाते और न ही पक्षी नुकसान पहँुचाते हैं। जिससे इसकी देखभाल करने की भी आवश्यकता नहीं है।

  • जैट्रोफा का पौधा बहुत ही कम समय में बढ़कर तैयार हो जाता है। और लगाने (रोपाई) के पहले ही वर्ष में उत्पादन प्रारम्भ कर देता है।

  • जैट्रोफा के बीजों में अन्य पौधों के बीजों की तुलना में तेल की मात्रा भी अधिक होती है। इसके बीजों से 35 से 40 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है।

  • जैट्रोफा के तेल को यदि ट्राइस्टेरिफाइड करते है तो इससे जेट्रोफिन ऐसिड निकलता है जो कि विभिन्न प्रकार की बीमारियां जैसे कैंसर, लकवा, लीवर सर्पदंश (सांप के काटने) आदि की औषधी के काम आता है तथा इसमें हेयरडाई, साबुन, फर्नीचर, पाॅलिश एवं मच्छर भगाने इत्यादि के काम भी आता है।

  • जैट्रोफा की खेती से बंजर भूमि का कटाव रोका जा सकेगा। साथ ही यह पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता को बचाने के महत्वपूर्ण योगदान करेगा।

  • जैट्रोफा की खेती जिस भूमि में होगी उस भूमि को दीमक व व्हाइट ग्रब (सफेद लट) की समस्या से पूर्ण छुटकारा मिल सकेगा और आस-पास लगी हुयी फसलों का भी कीट पंतगों से बचाव होगा।


जैट्रोफा (बायो डिजल पौधा) उगाने की विधिः



  • जैट्रोफा के पौधे को फरवरी से 15 नवम्बर तक (सिंचाई वाले क्षेत्र में) तथा जून से लेकर 15 नवम्बर तक (सिंचित क्षेत्र में) लगाया जा सकता है। यदि किसान भाई जैट्रोफा की शुद्ध खेती करना चाहते है तो खेत में इसका रोपण करते समय कतार से कतार के बीच की दूरी 2 मीटर पौधे से पौधे की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। रोपण के लिए 1 1 का गड्ढा तैयार करपौधों का रोपण किया जा सकता है तथा पौधें लगाने के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके पश्चात् प्रत्येक 15-20 दिन में आवश्यकतानुसार पौधों में सिंचाई करनी चाहिए। इसकी खेती के लिए प्रति हैक्टेयर 2500 पौधे लगते हैं।

  • जैट्रोफा की खेती करने का दूसरा विकल्प अन्तः फसली विधि है। इसके अन्तर्गत पोधे की दूरी 2 मीटर तथा पंक्ति की दूरी 4 मीटर रहेगी। इन पंक्तियों के बीच में हल्दी, अदरक, चना, मटर, मसूर, गेहूँ आदि कम पानी चाहने वाली फसलें ली जा सकती है।

  • जैट्रोफा की खेती करने का तीसरा विकल्प खेत के चारों तरफ बाड़ के रूप में जैट्रोफा को उगाना इसके अन्तर्गत पौधे से पौधे की दूरी 1 से 2 मीटर रहेगी।

  • पौध रोपाई के 7 महीने बाद पौधे में फूल आना प्रारम्भ हो जाते हैं और पौध रोपाई के 11 महीने बाद फल पककर तैयार हो जाते है। फल गुच्छे के रूप में लगते है शुरू में फल हरे रंग का होता है तथा कत्थई रंग का हो जाने पर फल पक जाता है इसके उपरान्त इसको तोड़ लिया जाता है तथा ऊपर का छिलका हटा कर बीज निकाल लिए जाते हैं। बीज काले रंग के होते है। प्रत्येक फल में से 3-4 बीज निकलते है। बीजों को बोरों में भरकर बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। या फिर किसान भाई इसको गांव के ही साधारण सरसों के एक्सपेलर में इसका तेल निकाल सकते है। जिससे किसान भाईयों को 35 से 40 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है। ये प्राप्त तेल ही बायो डीजल है। किसान भाई इस तेल को सीधे अपने ट्रेक्टर, पम्पपिंग सैट, डीजल इंजन तथा अन्य वाहन जो कि डीजल से चलते है में इसका प्रयोग ईधन के रूप में कर सकते है।

  • मार्च माह में पौधे को 2-3 फुट ऊपर से काट दिया जाता है। ताकि कटी शाखा में से 3-4 नई शाखाएं निकल सकें। जितनी ज्यादा शाखाएं होगी उतना ही अधिक उत्पादन (बीज) प्राप्त होगा। काटने की प्रक्रिया 5 वर्ष तक करते है। उसके बाद पौधे को नहीं काटते है।

  • रोपण के बाद कम से कम 40 वर्ष तक किसान भाई इसी पौधे से फसल लेते रहेंगे।


जैट्रोफा की खेती के मुख्य लाभः-


इस पौध को कोई जानवर अर्थात गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट, नीलगाय व हिरण आदि न तो खाते है और न ही क्षति पहुंचाते है। इसके लिए रासायनिक खाद या कीटनाशक की आवश्यकता कम होती है।


1.3          विभिन्न औषधीय पौधों हेतु क्षेत्रीय उपयुक्तता


राजस्थान के विभिन्न भागों में जलवायु की काफी विविधता पायी जाती है, अतः जलवायु के अनुरूप निम्नानुसार औषधीय पौधों का चयन किया जाना उपयुक्त होगा-


शुष्क एवं अर्द्धशुक क्षेत्र (पश्चिमी राजस्थान) - ग्वारपाठा, शतावरी, गडतुम्बा, काचरी, अश्वगन्धा, सनाय, गुग्गल, चिरमी, नीम, खजूर, बेर, खेजडी, कैर, कुमठा, मतीरा आदि सूखे असिंचित क्षेत्र में उग सकते है। यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो इस क्षेत्र में कई अन्य प्रजातियों को भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। ग्वारपाठा ऊसर भूमि में भी पनप सकता है।


पूर्वि राजस्थान - ग्वारपाठा, कौंच, शतावरी, अडूसा, गडतुम्बा, काचरी अश्वगन्धा, कलिहारी, सदाबहार, सनाय गुग्गल, मरोड़फली, चिरमी, बिलपत्र, सहजना, इमली, आंवला नीम, खजूर, बेर, कोटबन्दी, गुन्दा


दक्षिणी पूर्वी राजस्थान - सिन्दूरी, कटकरंज, कौंच, मालकांगनी शतावरी, अडूसा, सफेद मूसली, कलिहारी, बावची सर्पगन्धा, सदाबहार, मरोडफली, गिलोय, चिरमी रतनजोत, सहजना, इमली, बेर तेन्दु, गुन्दा, कोटबड़ी करौंदा, खजूर, बेड़ा, आंवला करंज, नीम, आम, जामून


दक्षिणी राजस्थान - सिन्दूरी, कटकरंज, कौंच, मालकांगनी, शतावरी, अरण्डी, चित्रक, सफेद मूसली, कलिहारी, कुश्कदाना, बाबची, कालमेघ, मुलैठी, पीपलामूल, सर्पगन्धा, सदाबहार, अकरकरा मंछूकपर्णी, ब्रह्मी, मरोडफली गिलोय, चिरमी रतनजोत, बिलपत्र, अरीठा सहजना, इमली, अर्जुन, बहेड़ा, तेन्दु, गुन्दा, करौंदा, महुआ, कोटबडी जामुन, नीम, बेर, कुमठा


1.4          स्वपरक प्रश्न



  1. सोनामुखी का वानस्पतिक नाम क्या है?

  2. अश्वगन्धा से औसतन कितना शुद्ध लाभ प्रति हैक्टेयर कमाया जा सकता है?

  3. सफेद मूसली के लिये कैसी जलवायु एवं भूमि उपयुक्त है?


1.5          सारांश


जल ग्रहण क्षेत्रों में औषधीय खेती का रूझान बढ़ रहा है, ऐसे में आवश्यक है कि कृषकों को बुवाई से कटाई उपरान्त तक ऐसी तकनीकी विधियों की जानकारी दी जाये ताकि उत्पादन में बढ़ोत्तरी एवं गुणवत्ता में सुधार हो सके।


1.6          संदर्भ सामग्री



  1. बारीन क्षेत्रों की राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु जारी वरसा-7 मार्गदर्शिका

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  3. जलग्रहण मार्गदर्शिका - संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  4. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  5. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल

  6. वाटरशेड़ मैनेजमेन्ट - श्री वी.वी ध्रुवनारायण, श्री जी. शास्त्री, श्री वी.एस पटनायक

  7. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - दिशा निर्देशिका

  8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरियाली मार्गदर्शिका

  9. विभिन्न परिपत्र - राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग

  10. वर्मी कम्पोस्ट - जैविक कृषि का आधार (प्रशिक्षण पुस्तिका) - श्री मनजीत सिंह, श्री शुभकरण सिंह, अर्पण सेवा संस्थान, उदयपुर

  11. इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री जलग्रहण प्रकोष्ठ

  12. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका


13. जलग्रहण का अविरत विकास - श्री आर.सी.एल.मीणा