औषधीय खेती - 8 - लेमन घास

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 8)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||{लेमन घास} वानस्पतिक नामः (Cymbopogon Flexuous)||


नींबू घास को कोचीन घास के नाम से भी जाना जाता है। नींबू घास का तेल पत्तियों से प्राप्त किया जाता है तथा इसमें मुख्य घटक सिट्रल 80 से 90 प्रतिशत होता है। सिट्रल से अल्फा-आयोनोन व बीटा आयोनोन तैयार किया जाता है।


भूमि एवं जलवायु


यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों एवं ढालू जमीनों पर बारानी असिंचित फसल के रूप में उगायी जा सकती है। ये लगभग सभी प्रकार की भूमि में उपजायी जा सकती है परन्तु उपजाऊ दोमट मिट्टी में इसकी बढ़वार अच्छी होती है। जहाँ जलभराव की सम्भावना हो वहाँ इसकी खेती उपयुक्त नहीं है।


किस्में


सुगन्धित, प्रगति, प्रमाण ओ.डी.-440, ओडी- 19 कुछ उन्नतशील किस्में है।, जिनमें अधिक पत्तियाँ व तेल देने की क्षमता है।


खेत की तैयारी


फसल की बुवाई से पूर्व खेत की जुताई अच्छी तरह से की जाए इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से या हैरो से जुताई करनी चाहिए। भूमि को दीमक के प्रकोप से मुक्त रखने के लिए आखिरी जुताई के समय 4 प्रतिशत एण्डोसल्फान पाउडर 25 कि.ग्रा. हैक्टेयर की दर से खेत में मिला दें। गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट 25 टन प्रति हैक्टेयर की दर से खेत की तैयारी करते समय भूमि में मिला दे।


खेत में रोपाई


फसल को व्यवसायिक दृष्टि से बीज द्वारा ही नर्सरी में अप्रैल-मई में बीज की बुवाई कर दे। लगभग 4-6 किग्रा. ताला बीज की 4 क्यारियों में (60 से.मी. 4 मीटर) में बुवाई करे। उक्त पौध एक हैक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त होगी सात-आठ महीने पुराना बीज अपनी जमने की क्षमता खो देता है। दो महीने पुरानी पौध को 40 15 से.मी. की दूरी में बरसात के मौसम में लगाया जाता है। ओडी-44 व ओडी-19 किस्में बारानी क्षेत्रों के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं।


खाद एवं उर्वरक


इसमें 40 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस व 40 कि.ग्रा. पोटाश जमीन में बुवाई से पहले दें। इसके पश्चात 20 से 25 किग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर प्रथम सिंचाई पर कतारों में देने से अधिक उपज होती हैं।


सिंचाई


गर्मियों में दो सिंचाई व सर्दियों में एक सिंचाई प्रति माह करने की आवश्यकता है।


निराई-गुड़ाई


फसल लगाने के बाद पहले साल से दी निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। इसके उपरान्त हर कटाई के 30 दिन बाद एक बार निराई-गुडाई अवश्य करें। प्रत्येक पौध के चारो और मिट्टी चढ़ाने से प्रति पौध में अधिक सिट्टे आते हैं।


फसल की कटाई


प्रथम बुवाई के लगभग 90 से 100 दिन बाद कटाई के लिए फसल तैयार हो जाती है। इसकी कटाई करते समय इसको भूमि से 15 से.मी. ऊपर से काटा जाना चाहिए। इसके उपरान्त 60-70 दिन बाद पुनः अन्तराल पर इसकी कटाई ले ली जाती है। तेज गर्मी के महीनों में इसकी कटाई नहीं की जाती है। एक बार लगा लेने के उपरान्त ये फसल कम से कम 5 साल तक चलती है जबकि हर वर्ष 4 से 5 कटाई ली जा सकती है।