जलग्रहण क्षेत्रों में अनुवीक्षण

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||जलग्रहण क्षेत्रों में अनुवीक्षण एवं मूल्यांकन||


ग्याहरवीं योजना में उच्च विकास दर, जिसमें समाज के सभी वर्ग सम्मिलित हो, की निरन्तरता हेतु बारानी इलाकों की समस्याओं व चुनौतियों को स्पष्टतः रेखांकित किया गया है एवं इस क्रम में नवम्बर 2006 में राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र प्राधिकरण (एन.आर.ए.ए.) की स्थापना की गई है। चूंकि बारानी क्षेत्रों में जल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है एवं इन क्षेत्रों के का विकास जल, विशेषतः वर्षा जल, उसका दक्ष उपयोग, उसका संचयन व मृदा क्षरण से बचाव पर केन्द्रित व आधारित होता है अतः इन क्षेत्रों के विकास हेतु वाटरशेड/जलग्रहण माॅडल ही उपयुक्त माना गया है। जलग्रहण विकास परियोजनाओं का कई राष्ट्रीय एजेन्सियों द्वारा मूल्यांकन किया गया है। यद्यपि भूमि उत्पादकता में वृद्धि, कृषि क्षेत्र में वृद्धि, रोजगार वृद्धि व लाभार्थियों का सामाजिक उत्थान परिलक्षित हुआ है परन्तु यह कुल मिलाकर, आज के परिपेक्ष्य में नाकाफी मालूम चलता है। अतः बारानी क्षेत्रों की मूलभूत कमजोरियाँ, उनसे प्राप्त होने वाली चुनौतियाँ, सभी को साथ लेकर चलने वाले विकास की ग्याहरवीं योजनान्तर्गत की गई अवधारणा व अब तक जलग्रहण विकास परियोजनाओं से प्राप्त नतीजों के मद्देनजर योजना आयोग एन.आर.ए.ए. द्वारा जलग्रहण विकास परियोजना के समन्वय से परियोजनाओं हेतु कॅामन  गाइड लाइन बनाने का काम हाथ में लिया गया था। यह भी स्पष्ट होता है कि ये गाइड लाइन सरकार द्वारा प्रायोजित कर विभाग/मंत्रालय के जलग्रहण विकास परियोजनाओं हेतु लागू रहेगी।


2.2          कॅामन  गाइड लाइन के प्रमुख बिन्दु



  1. राज्य को शक्ति प्रदान की गई है राज्य अपने यहाँ जलग्रहण परियोजनाएं देखेंगे व स्वीकृत करेंगे। अब तक परियोजनाएं स्वीकृति हेतु भारत सरकार को भेजी जाती थी जो कि अब नहीं भेजी जायेगी। वे राज्य स्तर पर स्वीकृत होगी व राज्य द्वारा ही उनका क्रियान्वयन देखा जायेगा।

  2. समर्पित संस्थान: राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर समर्पित क्रियान्वयन अभिकरण होंगे जिनमें बहुसंकायी पेषेवरों के दल जलग्रहण कार्यक्रमों का प्रबन्धन करेंगे। ये संस्थान व्यावसायिक रूप से बेहतर कार्य कर सकेंगे क्योंकि उन्हें अब सिर्फ यही काम देखना है।

  3. समर्पित संस्थानों को वित्तीय सहयताः जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर जलग्रहण परियोजनाओं को मजबूती देने हेतु अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी जायेगी।

  4. कार्यक्रम की अवधि अब तक यह अवधि नियत (5 वर्ष) रहती थी। अब इसे लचीला बनाकर 4 से 7 वर्ष किया गया है जो कि 3 अलग-अलग चरणों में विभक्त होगी, तैयारी, कार्य व सघनीकरण चरण।

  5. आजीविका उन्मुख उत्पादकता में वृद्धि व आजीविका को उच्च प्राथमिकता प्रदान की जायेगी (संरक्षण उपायों के साथ-साथ) पशुधन आधारित आजीविका समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

  6. कलस्टर पहुँचः माइक्रो जलग्रहण साथ-साथ जुडे हुए (कलस्टर) जो कि 1000 से 5000 हैक्टेयर होंगे लिये जायेंगे। यदि संसाधन व क्षेत्र उपलब्ध है तो अतिरिक्त क्षेत्र भी कलस्टर्स में जुड़ा हुआ लिया जा सकता है।

  7. वैज्ञानिक आयोजनाः सूचना प्रौद्योगिकी व रिमोट सेंसिंग इनपुट का उपयोग परियोजना आयोजना, मॅानीटरिंग व मूल्यांकन में किया जायेगा।

  8. कैपेसिटी बिल्डिंगः तय एक्शन प्लान के मुताबिक सभी कार्यकर्ताओं व दावेदारों को क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण किया जावेगा।

  9. मल्टी टायर पहुँचः जलग्रहण विकास हमेशा रिज से वैली की ओर किया जाता है। ऊँची रिच में अक्सर जंगल व पहाड़ होते है अतः इन क्षेत्रों के विकास पर वन विभाग व संयुक्त वन प्रबन्धन कमेटी द्वारा ज्यादा जोर दिया जावेगा। मंझली रीच में कृषि भूमि के ऊपर के ढलान होंगे। एग्रो फाॅरेस्ट्री शुष्क उद्यानिकी, क्रापिंग पैटर्न, भूमि उपचार द्वारा जिन्हें विकसित किया जावेगा। निचले क्षेत्र में ज्यादात्तर खेती होती है, वहाँ श्रम आधारित कार्यो की मात्रा काफी ज्यादा होगी अतः नरेगा व बी.आर. जी.एफ. आदि के साथ तालमेल बिठाया जा सकता है। 1 अप्रैल 2008 उपरांत स्वीकृत होने वाली जलग्रहण परियोजनाएँ इन गाइड लाइंस द्वारा क्रियान्वित होगी।


परियोजना में विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम पर पकड़ बनाये रखने के लिए समीक्षा आवश्यक है। मूल्यांकन से गुणवत्ता बनी रहती है।


2.3          अनुवीक्षण और मूल्यांकन


2.3.1 अन्वेक्षण एवं मूल्यांकन हेतु तकनीकी आदान


तकनीकी इनपुट अन्तर्गत सूचना प्रौद्योगिकी व रिमोट सेंसिंग के उपयोग से जलग्रहण क्षेत्रों की आयोजना, क्रियान्वयन व मॅानीटरिंग में आमूलचूल परिवर्तन हो जायेगा। जलग्रहण परियोजनाओं में परियोजना क्षेत्र तक सूचना प्रौद्योगिकी व रिमोट सेंसिंग के उपयोग की मंशा स्पष्टतया उल्लेखित है। जी.आई.एस व आई.टी. के प्रयोग से निम्न कार्य सम्पन्न हो सकते हैं।


राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन व सर्वे आफ इण्डिया द्वारा प्रदान किये जाने वाले सैटेलाइट डाटा को ग्राम सीमा तक स्थापित किया जावेगा जिसका उपयोग स्थानीय परियोजना आयोजना हेतु किया जा सकेगा। ऐप्लीकेशन साफ्टवेयर भी क्रियान्वित किये जायेंगे।


जी.आई.एस. का नाॅलेज बेस तैयार होने के उपरान्त प्रत्येक परियोजना हेतु जलग्रहण परियोजना सीमांकन किया जावेगा एवं प्रत्येक परियोजना हेतु विशिष्ट पहचान होगी। रिमोट सेंसिंग डाटा रन आॅफ के आंकलन हेतु कन्टूर मैप्स को अन्तिम रूप देने व सर्वाधिक उपयुक्त ढांचों की पहचान करने में काम आयेंगे। रिमोट सेंसिंग द्वारा भू हाइड्रोलोजिकल क्षमता में परिवर्तन, मृदा व फसल कवर, रन आफ में समयावधि परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी की कनेक्टीविटी परियोजना स्थल तक पहुँचने से प्लान तैयार करने (गतिविधि आधारित) कार्य योजना निर्माण, स्वीकृति व फण्ड रिलीज, डीपीआर निर्माण, परियोजना प्रभाव का आंकलन आदि कार्य किये जा सकेंगे। एन.आर.ए.ए. द्वारा भी समस्त जलग्रहण परियोजनाओं हेतु एक राष्ट्रीय पोर्टल बनाया जायेगा।


2.3.2 प्रबन्धन समितियाँ एवं संस्थागत व्यवस्थाएँ. कर्तव्य व उत्तरदायित्व


परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम की समीक्षा और मार्गदर्शन करते हेतु भारत सरकार द्वारा जारी नई कॅामन  मार्गदर्शिका में विभिन्न प्रकार की प्रबन्ध समितियाँ परिकल्पित की गई हैं। इनमें राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल रेनफेड एरिया आॅथोरिटी (एन.आर.ए.ए.) कृषि, ग्रामीण विकास, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े प्रकोष्ठ कार्यालय, राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय नोडल एजेन्सी (कार्यकारी विभाग - आयुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग), जिला स्तर पर जिला जलग्रहण विकास इकाई (जब तक गठन न हो तब तक जिला परिषद्), परियोजना क्रियान्वयन संस्था - सामान्यतः पंचायत समितियां, जलग्रहण/ग्राम स्तर पर जलग्रहण समिति सम्मिलित हैं।


एन.आर.ए.ए. की भूमिका



  1. विशिष्ट एग्रोकलाइमेटिक व सामाजिक आर्थिक स्थितियों को द्दष्टिगत रखते हुए जलग्रहण क्षेत्र आधारित विकास योजनाओं के लिए राज्य व जिला स्तर पर रणनीतिक योजनाओं को तैयार करने को प्रक्रिया को सहायता प्रदान करना।

  2. इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक बहुसंकायी व समन्वित पहुँच के लिए राज्य विशिष्ट तकनीकी मैन्युअल तैयार करने में सहायता प्रदान करना।

  3. राज्य स्तरीय नोडल एजेंसीस को संसाधन संस्थानों की पहचान व क्षमता निर्माण व्यवस्थाओं में सहायता।

  4. विभिन्न एग्रोक्लाइमेटिक क्षेत्रों में जलग्रहण कार्यक्रमों हेतु उपयुक्ता कार्य अनुसंधान को सुविधाजनक बनाना।

  5. अध्ययन, मूल्यांकन व प्रभाव आंकलन करना ताकि इनका लाभ जलग्रहण विकास परियोजनाओं की गुणवत्ता में सुधार हेतु उपलब्ध हो सके।

  6. भारत सरकार की मिलती जुलती उद्देश्यों वाली विभिन्न योजनाओं व परियोजनाओं के तालमेल (कन्वरजेंस) को सुविधाजनक बनाना।

  7. कार्यक्रमों में क्रिटीकल गैप पूर्ती हेतु अन्य स्त्रोतों (निजी क्षेत्र, विदेशी धन प्रदाताओं आदि) से अतिरिक्त राशि हासिल कर राशि उपयोग को सुविधाजनक बनाना।

  8. जलग्रहण कार्यक्रमों में सम्मिलित सभी निकायों/संस्थानों/अभिकरणों/विभागों/मंत्रालयों के मध्य प्रभावकारी समन्वयक मैकेनिज्म की तरह कार्य करना।

  9. क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस, सेमीनार, कार्यशाला, अध्ययन दौरों व सूचना हिस्सेदारी का आयोजना करना।

  10. तकनीकी ज्ञान आदान व विशेषज्ञता उपलब्ध करना।

  11. एन.आर.ए.ए. की शासकीय परिषद/सरकार द्वारा समय-समय पर तय की गई अन्य गतिविधियाँ।


मंत्रालय स्तर पर संस्थानिक गठन


यद्यपि जलग्रहण विकास परियोजनाओं के देखरेख हेतु अपनी स्वयं की व्यवस्था करने हेतु हर मंत्रालय स्वतंत्र है तथापि केन्द्रीय स्तर पर इसके द्वारा एक नोडल अभिकरण की स्थापना का विकल्प भी कॅामन  गाइड लाइन में उपलब्ध है। इस नोडल एजेंसी में बहुसंकायी पेशेवरों का दल होगा।


केन्द्रीय मंत्रालय विभाग पर स्थित नोडल एजेंसी द्वारा निभाये जाने वाले प्रमुख दायित्व



  1. मार्गदर्शिका में उल्लेखित विवरण अनुसार राज्यों के बीज परियोजना हेतु बजट प्रावधान आवंटन को सुविधाजनक बनाना।

  2. राज्य व जिला स्तरीय अभिकरणों के मध्य क्रियाशील रहना, डी.डब्ल्यू.डी.यू तक राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा सिफारिशें व राशि आवंटन निर्विध्न पहुँचना सुनिश्चित व सुविधाजनक करना।

  3. सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम को खुलकर समर्थन प्रदान करना।

  4. सूचना, शिक्षा व संचार (आई.ई.सी.) गतिविधियों को आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी आदान सहित पूर्णरूपेण समर्थन व बढ़ावा देना।

  5. आनलाइन व्यवस्था द्वारा सघन मॅानीटरिंग करना।

  6. जमीनी स्तर पर परियोजनाओं के प्रभावकारी क्रियान्वयन हेतु राज्य व जिला स्तरीय अभिकरणों से सामंजस्य द्वारा क्षेत्रीय भ्रमण, मॅानीटरिंग, सामाजिक अंकेक्षण/प्रभाव आंकलन के लिए उपयुक्त व्यवस्थाओं की स्थापना।

  7. समय-समय पर मूल्यांकन अध्ययनों, प्रभाव आंकलन अध्ययनों व अन्य ऐसे उपर्युक्त समझे जाने वाले मूल्यांकन अध्ययनों हेतु मूल्यांकन कर्ताओं या मूल्यांकन अभिकरणों का पैनल तैयार करना।

  8. राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कांन्फ्रेंस, सेमीनार व कार्यशाला अध्ययन भ्रमण, अनुसंधान/क्षेत्र अध्ययनों व सूचना हिस्सेदारी को समर्थन प्रदान करना व उनमें भाग लेना सुविधाजनक करना।

  9. जलग्रहण विकास कार्यक्रमों में सम्मिलित सभी निकायों, संस्थानों, अभिकरणों, विभागों, मंत्रालयों के मध्य समन्वय मैकेनिज्य बतौर कार्य करना।

  10. उन सभी गतिविधियों को लेना जो कि देश में बारानी क्षेत्रों के सर्वागीण व सम्पूर्ण विकास हेतु जलग्रहण कार्यक्रमों को प्रमुख शक्ति के बतौर सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उपयोगी साबित हो सकती है। केन्द्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी हेतु फण्डिंग समर्थन सम्बन्धित मंत्रालय द्वारा ही प्राथमिक तौर पर उपलब्ध कराया जावेगा।


राष्ट्रीय स्तर डाटा केन्द्र एवं राष्ट्रीय पोर्टल


एन.आर.ए.ए. अधीन उपरोक्त केन्द्र व पोर्टल कार्यरत होंगे जहां कि जलग्रहण व भूमि संसाधन, डाटा व ज्ञान संधारित व संचारित किया जायेगा। राष्ट्रीय डाटा केन्द्र सम्पूर्ण देश के लिये डाटा, अभिलेखाकार (पुराना) डाटा, वर्तमान कार्यक्रमों का डाटा व राशि निर्मुक्ति। प्रबन्धन कार्य देखेगा। जी.आई.एस. आधारित जमीन, जलग्रहण, भूमि, भू उपयोग, सामाजिक आर्थिक पैरामीटर्स, आबादी इत्यादि विभिन्न थीम परतों से उक्त सुसज्जित होगा। क्षेत्र विकास कार्यक्रम, ग्रामीण रोजगार, भूमि उपयोग आयोजना, समन्वित परतों हेतु मास्टर डाटा व जिला स्तरीय आयोजना व मॅानीटरिंग हेतु उच्च स्तरीय जी.आई.एस. डाटा हेतु इसमें एप्लीकेशन सहायता होगी।


राज्य स्तरीय नोडल एजेन्सी (एस.एल.एन.ए.)


राज्य सरकार द्वारा एक समर्पित एस.एल.एन.ए. गठित की जायेगी (विभाग/मिशन/सोसायटी/प्राधिकरण) जिसका स्वतंत्र बैंक खाता होगा। एस.एल.एन.ए. हेतु केन्द्रीय सहायता सीधे इसके खाते में जायेगी एवं राज्य सरकार के बजट में नहीं जायेगी।


एस.एल.एन.ए. विभागीय नोडल एजेंसी के साथ एम.ओ.यू करेगी जिसमें कार्यदक्षता, समय पर कार्य पूर्णता व वित्तीय पैरामीटर्स जिनमें एस.एल.एन.ए. को फंड र्निमुक्त करनें की शर्त सम्मलित होंगी। एस.एल.एन.ए. कार्यक्रम की समीक्षा करेगा एवं राज्य डाटा केन्द्र स्थापित करने हेतु मैकेनिज्म लागू करना सुनिश्चित करेगा। राज्य स्तर पर बहुसंकायी पेशेवर समर्थन दल कार्यक्रम लागू करने हेतु होगी। विकास आयुक्त अतिरिक्त मुख्य सचिव/कृषि उत्पाद आयुक्त/संबंधित विभाग का प्रमुख शासन सचिव या राज्य सरकार द्वारा नामित उनके समकक्षी को एस.एल.एन.ए. का चेयरपर्सन बनाया जायेगा। एजेंसी का एक पूर्णकालिक मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा। एस.एल.एन.ए. में एन.आर.ए.ए. केन्द्रीय नोडल मंत्रालय, नाबार्ड, राज्य ग्रामीण विकास विभाग, राज्य कृषि विभाग, राज्य पशुपालन विभाग व संबंधित क्षेत्र विभाग, भूमर्भ जल बोर्ड, प्रमुख स्वयंसेवी संगठन प्रत्येक से एक प्रतिनिधि होगा एवं दो पेशेवर विशेषज्ञ अनुसंधान संस्थानों/अकादमी (राज्य की) से होंगे। नरेगा, बी.आर.जी.एफ. एवं अन्य संबंधित राज्य स्तरीय कार्यकारी अभिकरणों से भी प्रतिनिधित्व होगा। प्रचलित व्यवस्था अनुसार अनुमोदित राज्य पर्सनेक्विट व रणनितिक योजना के आधार पर राज्य के लिए जलग्रहण परियोजना एस.एल.एन.ए. द्वारा स्वीकृत की जायेगी। एस.एल.एन.ए. को 4-7 पेशेवर विशेषज्ञों का दल सहायता करेगा। दल में कृषि, जल प्रबन्धन, क्षमता निर्माण, सामाजिक मोबिलाइजेशन, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासनिक व लेखा/वित्त आदि के विशेषज्ञ होंगे। इन विशेषज्ञों को जरूरत अनुसार प्रशासनिक स्टाफ भी प्रदान किया जायेगा।


एस.एल.एन.ए. के मुख्य कार्य



  1. ब्लाँक व जिला स्तर पर तैयार प्लान के आधार पर जलग्रहण विकास के लिए राज्य स्तरीय पर्सपेक्टिव व रणनीतिक प्लान का निर्माण करना व क्रियान्वयन रणनीति और आश्वित आउटपुट/परिणाम, वित्तीय आउटले को प्रदर्शित करना व केन्द्रीय नोडल एजेंसी को उससे अवगत कराकर क्लियरेंस लेना।

  2. राज्य को स्वीकृत राशि में से एक राज्य स्तरीय डाटा प्रकोष्ठ स्थापित करना व इसे आॅन लाइन राष्ट्रीय डाटा केन्द्र से जोड़ना।

  3. सम्पूर्ण राज्य में डिस्ट्रिक्ट वाटरशेड डवलेपमेंट यूनिट हेतु तकनीकी सहायता उपलब्ध करवाना।

  4. राज्य के भीतर समस्त जलग्रहण क्षेत्र दावेदारों के लिए क्षमता निर्माण कराने वाली स्वतंत्र संस्थानों की सूची का अनुमोदन करना।

  5. उपर्युक्त वस्तुनिष्ठ चयन सिद्धांतों व पारदर्शी व्यवस्थाओं को अपनाकर जिला स्तरीय कमेटी/डी. डब्ल्यू.डी.यू द्वारा चयनित/पहचानी हुई परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों को अनुमोदित करना।

  6. मॅानीटरिंग, मूल्यांकन व सीख व्यवस्थाओं को विभिन्न स्तरों (आन्तरिक/बाहरी व्यवस्थाओं) पर स्थापित करना।

  7. केन्द्रीय नोडल एजेंसी के सहयोग से राज्य में जलग्रहण परियोजनाओं की गुणवत्तापूर्वक व नियमित आॅन लाइन मॅानीटरिंग सुनिश्चित करना।

  8. राज्य में स्थित समस्त जलग्रहण परियोजनाओं हेतु स्वतंत्र संस्थानिक मूल्यांकनकर्ताओं का पैनल गठित करना, केन्द्र स्तर पर संबंधित नोडल एजेंसी द्वारा इस पैनल को अनुमोदित करवाना एवं नियमित आधार पर गुणवतापूर्वक मूल्यांकन सुनिश्चित करना।

  9. राज्य हेतु विशिष्ट प्रक्रिया मार्गदर्शिका, टैक्नोलोजी मैनन्युअल नोडल मंत्रालय/एन.आर.ए.ए. के समन्वय से तैयार कर उसका क्रियान्वयन कराना।

  10. विद्यमान स्टाफ व आधारभूत ढाँचे की उपलब्धता व वास्तविक आवश्यकता के उपयुक्त आंकलन उपरान्त भू संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा एस.एल.एन.ए. व राज्य डाटा प्रकोष्ठ हेतु वित्तीय समर्थन प्रदान किया जायेगा।


जिला जलग्रहण विकास इकाई (डी.डब्ल्यू.डी.यू.)


जिले पर जलग्रहण विकास यूनिट की स्थापना लगभग 25000 हैक्टेयर क्षेत्र होने पर की जायेगी जिसे जिला जलग्रहण विकास इकाई कहा जायेगा। यह जिले में जलग्रहण कार्यक्रम की देखरेख करेगी एवं इसका पृथक खाता होगा। 25000 हैक्टेयर से कम क्षेत्र होने पर विद्यमान व्यवस्था अनुरूप  परियोजना क्रियान्वित की जायेगी। यद्यपि इन मामलों में जिला परिषद में एक अधिकारी जिला स्तर पर जलग्रहण परियोजनाओं के समन्वयन हेतु नियुक्त किया जावेगा। डी.डब्ल्यू.डी.यू जिला आयोजना समिति के निकट समन्वय में कार्य करेगी। जिला स्तर पर डी.डब्ल्यू.डी.यू में नरेगा व बी.आर.जी.एफ. क्रियान्वयन अभिकरणों का भी प्रतिनिधित्व होगा। वैकल्पिक तौर पर जिला स्तरीय कमेटी जिला परिषद द्वारा स्वीकृति एवं क्रियान्वयन की प्रक्रिया चालू रह सकती है। डी.डब्ल्यू.डी.यू पूर्णकालिक परियोजना प्रबन्धक व 3-4 विशय विशेषज्ञों (कृषि/जल प्रबन्धन/सोशल मोबिलाइजेशन/प्रबन्धन व वित्त) के साथ एक पृथक इकाई होगी जो कि उनकी योग्यता व विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्त किये जायेंगे। परियोजना प्रबन्धक डी.डब्ल्यू.डी.यू प्रतिनियुक्ति पर सेवारत राजकीय अधिकारी होगा अथवा पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा खुले बाजार से नियुक्त किया जा सकेगा। सेवारत राजकीय अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जावेगी जबकि खुले बाजार से नियुक्ति एस.एल.एन.ए. द्वारा की जावेगी। परियोजना प्रबन्धक डी.डब्ल्यू.डी.यू न्यूनतम तीन वर्षो के लिए एक अनुबन्ध एस.एल.एन.ए. के साथ करेगा जिसमें स्पष्टतया परिभाषित व इंगित वार्षिक लक्ष्य होंगे जिनके विरूद्ध उसकी कार्य दक्षता मॅानीटर की जायेगी। उपलब्ध स्टाफ, आधारभूत ढाँचा व वास्तविक आवश्यकता के आंकलन उपरान्त डी.डब्ल्यू.डी.यू./जिला डाटा प्रकोष्ठ की स्थापना/पुर्नगठन कार्य को भारत सरकार द्वारा वित्तीय समर्थन प्रदान किया जावेगा।


डी.डब्ल्यू.डी.यू के कर्तव्य



  1. सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पैनल बनाने की प्रक्रिया अनुसार एस.एल.एन.ए. के मशविरे से क्षमतावान परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों (पी.आई.ए.) की पहिचान करना।

  2. संबंधित जिले में जलग्रहण विकास परियोजनाओं के लिए रणनीतिक व वार्षिक कार्य योजना को तैयार करने को सुविधाजनक बनाने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी उठाना।

  3. जलग्रहण विकास परियोजनाओं की आयोजना और क्रियान्वयन में पी.आई.ए. को पेशेवराना तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना।

  4. रिसोर्स संगठनों के साथ मिलकर क्षमता निर्माण के लिए कार्य योजना को विकसित करना ताकि क्षमता निर्माण की कार्य योजना क्रियान्वित की जा सके।

  5. नियमित मॅानीटरिंग, मूल्यांकन व सीखना।

  6. जलग्रहण विकास परियोजनाओं तक फण्ड की आसान पहुँच व निर्युक्ति सुनिश्चित करना।

  7. एस.एल.एन.ए./नोडल एजेंसी को वांछित दस्तावेजों को समय पर प्रस्तुत करना।

  8. उत्पादकता व आजीविका वृद्धि हेतु जलग्रहण विकास परियोजनाओं के साथ कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, पशुपालन के संबंधित कार्यक्रमों के समन्वय को सुविधाजनक बनाना।

  9. समन्वित जलग्रहण विकास परियोजनाओं/प्लानन्स् को जिला आयोजना समितियों के जिला प्लानस् के साथ इन्टीग्रेट करना। जलग्रहण परियोजनाओं पर समस्त व्यय जिला आयोजना में प्रदर्शित होगा।

  10. जिला स्तरीय डाटा प्रकोष्ठ की स्थापना कर इसे राज्य व राष्ट्रीय डाटा केन्द्र से जोड़ना।


परियोजना क्रियान्वयन अभिकरण (P.I.A.)


 


एस.एल.एन.ए., पी.आई.ए. चयन व अनुमोदन हेतु उपर्युक्त व्यवस्था करेगा जो कि अलग-अलग जिलों में जलग्रहण परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु जिम्मेदार होंगे। ये पी.आई.ए. संबंधित लाइन विभाग, राज्य/केन्द्र सरकार के तहत स्वायत्तशासी संगठन, राजकीय संस्थान/शोध निकाय, मध्यवर्ती पंचायतें, स्वयंसेवी संगठन (वी.ओ.) हो सकते हैं। यद्यपि इन पी.आई.ए. के चयन में निम्न बातों का ध्यान रखा जायेगा।



  1. जलग्रहण विकास परियोजनाओं के प्रबन्धक या जलग्रहण सम्बन्धी पहलुओं व पूर्व अनुभव होना चाहिये।

  2. उन्हें समर्पित जलग्रहण विकास दलों के गठन हेतु तैयार होना चाहिये।


कार्यक्रम में वी. ओ की महत्वपूर्ण भूमिका है व उनकी सेवाएं जाग्रति लाने, क्षमता निर्माण, आई.ई.सी. व सामाजिक अंकेक्षण आदि क्षेत्रों में प्रयोग की जा सकती है। जहाँ तक सीधे उनके द्वारा कार्यक्रम क्रियान्वयन किया जाना है वहाँ वी.ओ जिसकी स्थापित साख है उसे निम्नलिखित आधारों पर पी.आई.ए. चुना जा सकता है।



  1. न्यूनतम 5 वर्षो से पंजीकृत कानूनी इकाई हो।

  2. प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन, आजीविका विकास क्षेत्र में समुदाय आधारित 3 वर्षो का न्यूनतम फील्ड अनुभव हो।

  3. कापार्ट या भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के किसी विभाग द्वारा काली सूची में नहीं डाली गई हो।

  4. उसके पास समर्पित लैंगिक समानता वाली बहुसंकायी दल होना चाहिये।

  5. तीन वर्षो की बैलेंसशीट, लेखों का अंकेक्षित ब्यौरा व आयकर रिटर्न उपलल्ब्ध करायेगी, संस्था के सभी लेखे आदि दिये गये दिनांक तक पूर्ण होने चाहिये।

  6. अपने निदेशक मंडल का विवरण उपलब्ध करायेगी।

  7. स्वतंत्र रूप से सफलतापूर्वक परियोजनाएँ क्रियान्वित कर चुकी हो।


वी.ओ. को परियोजना आवंटित करते समय निम्न प्रावधानों को सुनिश्चित किया जायेगा।



  1. एक जिले में किसी भी समय एक वी.ओ. को 10000 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र नहीं सौंपा जा सकता है।

  2. किसी भी समय, एक वी.ओ. को एक राज्य में 30000 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र नहीं सौंपा जा सकता है।

  3. किसी भी समय एक राज्य में कुल परियोजनाओं का 1/4 वां हिस्से से अधिक वी.ओ. द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकेगा।


चयनित पी.आई.ए. द्वारा संबंधित डी.डब्ल्यू.डी.यू के साथ एक अनुबंध एम.ओ.यू किया जायेगा जिसमें सुस्पष्ट वार्षिक परिणाम अंकित होंगे जिसके विरूद्ध प्रत्येक पी.आई.ए की कार्यदक्षता प्रत्येक वर्ष मॅानीटर की जायेगी और एस.एल.एन.ए./केन्द्रीय नोडल एजेंसी द्वारा अनुमोदित पैनल में से संस्थानिक मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा नियमित आधार पर मूल्यांकन किया जायेगा। प्रत्यके पी.आई.ए. डी.डब्ल्यू.डी.यू के अनुमोदन से एक समर्पित जलग्रहण विकास दल बनायेगा। जलग्रहण विकास दल अनुबन्ध/प्रतिनियुक्ति/स्थानान्तरण आदि पर लिया जा सकेगा जिसकी अवधि परियोजना अवधि से अधिक नहीं होगी। जलग्रहण विकास दल का गठन अनुबन्ध/एम.ओ.यू में प्रदर्शित होगा। विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन व जलग्रहण कार्यो हेतु कोई परियोजना फण्ड किसी भी परिस्थिति में पी.आई.ए. या जलग्रहण कमेटी को तब तक नहीं निर्मुक्त किये जायेंगे जब तक कि जलग्रहण विकास दल का संगठन एम.ओ.यू अनुबन्ध में स्पष्टतया प्रदर्शित नहीं हो जावे व दल के समस्त सदस्य पूर्णतया कार्यग्रहण कर चुके हो।


पी.आई.ए. के कर्तव्य व दायित्व


पी.आई.ए. ग्राम पंचायत को जलग्रहण क्षेत्र की विकास योजना जनभागिता आधारित ग्रामीण सिंहावलोकन (पी.आर.ए. अभ्यास) के माध्यम से तैयार करने, समुदाय को संगठित करने व ग्रामीण समुदायों को प्रशिक्षित करने, जलग्रहण विकास गतिविधियों का पर्यवेक्षण करने, परियोजना खातों का निरीक्षण व अधिस्वीकृति करने, कम लागत प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने और स्थानीय तकनीकी ज्ञात को बढ़ावा देने, सर्वागीण परियोजना क्रियान्वयन की समीक्षा व मॅानीटरिंग करने व परियोजना पश्चातवर्ती कार्यो हेतु संस्थानिक व्यवस्थाएँ करने व परियोजना काल में सृजित परिसम्पत्तियों के विकास व रखरखाव हेतु आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करेगी।


पी.आई.ए., सावधानीपूर्वक परीक्षण उपरांत, जलग्रहण विकास परियोजनाओं हेतु कार्य योजना (एक्शन प्लान) डी.डब्ल्यू.डी.यू/जिला परिषद को अनुमोदन व अन्य व्यवस्थाओं हेतु प्रस्तुत करेगी। पी.आई.ए., डी.डब्ल्यू.डी.यू को समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। पी.आई.ए. किये गये कार्य की भौतिक, वित्तीय व सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था करेगी। यह अन्य राजकीय कार्यक्रमों यथा नरेगा, बी.आर.जी.एफ. एस.जी. आर.वाय, एन.एच.एम., ट्राइबल कल्याण योजनाएं, कृत्रिम भूगर्भ जल भरण, ग्रीनिग इंडिया आदि से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने को सुविधाजनक बनायेगी।


जलग्रहण विकास दल


जलग्रहण विकास दल पी.आई.ए. का आन्तरिक भाग है एवं पी.आई.ए. द्वारा बनाया जायेगा। जल में न्यूनतम 4 सदस्य होंगे जिनका कृषि, मृदा विज्ञान, जल प्रबन्धन, सामाजिक मोबिलाइजेशन व संस्था निर्माण में अनुभव और ज्ञान होगा। राजस्थान में पशुधन के व्यापक स्कोप को दृष्टिगत रखते हुए इस संकाय के सदस्य को भी दल में रखा जायेगा। दल में न्यूनतम एक सदस्य महिला होगी। दल सदस्यों के पास प्राथमिकता से एक पेशेवर डिग्री होनी चाहिये यद्यपि डी.डब्ल्यू.डी.यू द्वारा उम्मीदवार के व्यावहारिक क्षेत्रीय अनुभव को दृष्टिगत रखते हुए एस.सल.एन.ए. के अनुमोदन उपरान्त अन्यथा योग्य पाये जाने मामलों में योग्यता में शिथिलता प्रदान की जा सकती है। जलग्रहण विकास दल यथा संभव जलग्रहण विकास परियोजना के निकट मौजूद रहना चाहिये। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जावे कि डब्ल्यू.डी.टी. जिले व राज्य स्तर की विशेषज्ञ दल के निकट सहयोग से कार्य करे। पी.आई.ए. को प्रशासनिक सहायता से दल सदस्यों के वेतन का आहरण किया जायेगा। डी. डब्ल्यू.डी.यू डब्ल्यू.डी.टी. सदस्यों के प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनायेगी।


ग्राम स्तर पर संस्थागत व्यवस्थाएं


स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.)


डब्ल्यू.सी. जलग्रहण क्षेत्र में डब्ल्यू.डी.टी. के सहयोग से गरीब व्यक्तियों, लघु व सीमांत कृषक परिवारों, भूमिहीन/संसाधनहीन गरीब खेतीहर श्रमिकों, महिलाओं, चरवाहों व अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों में एस.एच.जी. का गठन करेगी। ये समूह एक सार समूह होंगे जिनकी पहचान व हित एक समान है व जो जलग्रहण क्षेत्र पर अपनी आजीविका हेतु निर्भर है। प्रत्येक एस.एच.जी. को नोडल मंत्रालय द्वारा निर्धारित की गई राशि का रिवाल्विंग फण्ड उपलब्ध कराया जायेगा।


उपभोक्ता समूह (यू.जी.)


डब्ल्यू.सी. जलग्रहण क्षेत्र में डब्ल्यू.डी.टी के सहयोग से उपभोक्ता समूहों का गठन करेगी। ये प्रत्येक कार्य/गतिविधि से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले व्यक्तिओं का एकसार समूह होगा व इनमें जलग्रहण क्षेत्र के भूमिधारक सम्मिलित होंगे। प्रत्येक यू.जी. में वे व्यक्ति होंगे जो कि किसी जलग्रहण कार्य या गतिविधि विशेष से सीधे लाभान्वित होंगे। डब्ल्यू.सी., डब्ल्यू.डी.टी. के सहयोग से समता व टिकाऊपर के सिद्धांतों पर आधारित संसाधन उपयोग समझौता यू.जी. के मध्य करवायेगी। ये समझौते संबंधित कार्य लिये जाने से पूर्व करवाये जायेंगे। यह उक्त कार्य हेतु एक पूर्व शर्त मानी जायेगी। यू.जी. परियोजना अन्तर्गत सृजित समस्त परिसम्पत्तियों के आपरेशन व रखरखाव हेतु ग्राम पंचायत व ग्राम सभा के निकट सहयोग से उत्तरदायी होंगे।


जलग्रहण कमेटी (डब्ल्यू.सी.)


ग्रामसभा डब्ल्यू.डी.टी. की तकनीकी सहायता से जलग्रहण परियोजना चलाने के लिए डब्ल्यू.सी. का गठन करेगी। डब्ल्यू.सी. को संस्था रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत कराया जायेगा। ग्रामसभा ग्राम के किसी उपयुक्त व्यक्ति को जलग्रहण कमेटी अध्यक्ष चुन/नियुक्त कर सकती है। डब्ल्यू.सी. का सचिव, डब्ल्यू.सी. का भुगतान पाने वाला कार्यकर्ता होगा। जलग्रहण कमेटी में न्यूनतम 10 सदस्य होंगे, आधे सदस्य एस.एच.जी. व यू.जी., अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय, महिला व भूमिहीन व्यक्ति होंगे। जलग्रहण विकास दल का एक सदस्य भी डब्ल्यू.सी. में नामांकित किया जायेगा। जहाँ ग्राम पंचायत में एक से अधिक ग्राम होंगे वहाँ संबंधित ग्राम में जलग्रहण विकास परियोजना प्रबन्धन हेतु प्रत्येक ग्राम में एक पृथक उप कमेटी गठित की जायेगी। जहाँ एक जलग्रहण परियोजना में एक से अधिक ग्राम पंचायतें आती है वहाँ प्रत्येक ग्राम पंचायत हेतु पृथक् कमेटी बनाई जायेगी। डब्ल्यू.सी. को स्वतंत्र किराये का कार्यालय स्थान उपलब्ध कराया जायेगा।


डब्ल्यू.सी. जलग्रहण परियोजना हेतु फण्ड प्राप्त करने के लिए एक पृथक बैंक खाता खोलेगी एवं इसका उपयोग अपनी गतिविधियों के संचालन हेतु करेगी। डब्ल्यू.डी.टी. सदस्यों व डब्ल्यू.सी. के सचिव का वेतन पी.आई.ए. को पेशेवर सहायता अन्तर्गत प्रशासनिक व्यय के मद से देय होगा।


2.4          मॅानीटरिंग, मूल्यांकन


2.4.1 मॅानीटरिंग


प्रत्येक स्टेज पर परियोजनाओं की नियमित मॅानीटरिंग की जावेगी। आनलाइन मॅानीटरिंग सभी परियोजनाओं हेतु आवश्यक होगी। मॅानीटरिंग प्रक्रियाओं एवं परिणाम दोनों प्रकार की होनी चाहिए।


 2.4.2 मूल्यांकन


जलग्रहण विकास परियोजना का मूल्यांकन हेतु कॅामन  गाइडलाइन में प्रावधान किया गया है। प्रत्येक मूल्यांकन में किये गये कार्यो का भौतिक, वित्तीय एवं सामाजिक अंकेक्षण सम्मिलित होगा। मूल्यांकनकर्ताओं को निरीक्षक नहीं समझा जावे वरन सुविधाकारों समझा जावें। हालांकि वे सख्ती से कॅामन  गाइडलाइन लागू किये जाने को सुनिश्चित करेंगे। राशि की निर्मुक्ति मूल्यांककर्ता से परियोजना के पक्ष में रिपोर्ट आने पर निर्भर करेगी। समवर्ती एवं परियोजना पश्चात मूल्यांकन जलग्रहण संबंधित गतिविधियों के स्टेटस का पता लगाने हेतु की जायेगी। उचित समयावधि में संबंधित मंत्रालयों द्वारा मूल्यांकन हेतु एक पृथक मार्गदर्शिका जारी कर दी जावेगी। प्रत्येक मंत्रालय में मूल्यांकनकर्ता अभिकरणों का एक राष्ट्रीय पैनल होगा। राष्ट्रीय स्तर के मूल्यांकन अभिकरणों द्वारा कार्यक्रम उद्देश्यात्मकता सुनिश्चित करने एवं एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण हेतु एक न्यूनतम प्रतिशत के मूल्यांकन एवं प्रभाव अध्ययन किये जायेंगे। केन्द्रीय विभागीय नोडल एजेंसी द्वारा अनुमोदित एस.एल.एन.ए. मूल्यांकनकर्ताओं का भी एक पैनल होगा। पैनल में व्यक्ति सम्मिलित नहीं होंगे, मात्र संस्थाएँ एवं अभिकरण ही सम्मिलित होंगे। एस.एल.एन.ए. इन अभिकरणों के साथ एक औपचारिक अनुबंध करेगा। डी. डब्ल्यू.डी.यू एस.एल.एन.ए. द्वारा अनुमोदित पैनल में से कोई भी अभिकरण चुन सकता है बशर्ते वह अभिकरण मूल्यांकन किये जाने वाले क्षेत्र से संबंधित नहीं हो।


2.5          अंतिम परिणाम


प्रत्येक जलग्रहण विकास परियोजना से परियोजना समाप्ति पर निम्न परिणाम प्राप्त करने की आशा की जाती है।



  1. सभी कार्य/गतिविधियाँ जिनकी जलग्रहण क्षेत्र में नाला क्षेत्र, कृषि योग्य व अकृषि योग्य भूमि के उपचार एवं विकास हेतु आयोजना की गई है, वे उपभोक्ता समूहों व समूदाय से सक्रिय भागीदारी एवं अंशदान से पूर्ण कर लिये गये है।

  2. उपभोक्ता समूह/पंचायतों द्वारा सृजित परिसम्पत्तियों के संचालन एवं रखरखाव की जिम्मेदारी इच्छापूर्वक ली है एवं उनके रखरखाव एवं अग्रिम विकास हेतु उपयुक्त प्रशासनिक एवं वित्तीय व्यवस्था कर दी है।

  3. परियोजना से डब्ल्यू.डी.टी. के हटने के उपरान्त अपनी जिम्मेदारियों के सफलतापूर्वक निवर्हन के लिए उपयुक्त समझे जाने वाले स्तर तक पहुंचने हेतु डब्ल्यू.सी. के सभी सदस्यों व स्टाफ जैसे के जलग्रहण सचिव को उनकी ज्ञान वृद्धि व तकनीकी/प्रबन्धन व सामुदायिक संगठनात्मक कौशल संवर्द्धन हेतु आमुखीकरण व प्रशिक्षण प्रदान कर दिया गया है।

  4. ग्रामीण समुदाय को बचत एवं अन्य आय उत्पादक गतिविधियों के लिए कई एकसार स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित किया जा चुका है जिन्होंने अपने सदस्यों से पर्याप्त कमिटमेट प्राप्त कर लिया है व स्वयं को टिकाऊ बनाये रखने के लिए वित्तीय संसाधन निर्मित कर लिये हैं।

  5. क्रॅापिंग इन्टेनसिटी व कृषि उत्पादकता में वृद्धि सम्पूर्ण कृषि उत्पादन वृद्धि में परिलक्षित होती है।

  6. परियोजना क्षेत्र में कृषकों भूमिहीन श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है।

  7. जलग्रहण गतिविधियों के कारण पुर्नभरण वृद्धि होने से भूगर्भ जल स्तर में वृद्धि हुई है।


2.6          भौतिक और वित्तीय प्रगति का अनुवीक्षण


क्रियान्वयन चरण के दौरान जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति की समीक्षा का कार्य नियमित रूप से किया जायेगा और उपर्युक्त मानक प्रपत्र (फारमेट) का प्रयोग किया जायेगा ताकि विभिन्न स्तरों पर कार्य में एकरूपता/पद्धति स्थापित हो सके।


2.6.2 आन्तरिक तथा बाह्य अभिकरणों द्वारा समवर्ती मूल्यांकन


आन्तरिक और बाह्य अभिकरणों के माध्यम से विश्वसनीय निष्पादन संकेतों पर आधारित समवर्ती मूल्यांकन पद्धति विकसित की जायेगी। इस मूल्यांकन में, भौतिक एवं वित्तीय प्रगति के अतिरिक्त प्रौद्योगिकीय विषय सूची, कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी, गरीबों और महिलाओं के लिए साम्यता, समूह कार्यवाही का सरलीकरण सम्बन्धी प्रासंगिकताओं का समीक्षात्मक निर्धारण किया जायेगा। इस प्रयोजन हेतु परियोजना बजट में से आवश्यक बजट सम्बन्धी प्रावधान किये जायेंगे। परियोजना के मूल्यांकन हेतु रिमोट सेन्सिंग सेटेलाइट इमेजरी और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग भी किया जायेगा। “टर्मिनल मूल्यांकन और परिपूर्णता (सेट्यूरेशन) इन्डेक्सिंग एक्सरसाइज भी की जायेगी, इससे भावी परियोजनाओं के लिए प्रस्ताव तैयार करने में सीधे गये पाठों का उपयोग करने में सहायता मिलेगी।


2.6.3 परियोजना का मूल्यांकन और प्रक्रिया का प्रलेखीकरण


भारत सरकार और राज्य सरकार, परियोजना के समवर्ती एव परियोजना पश्चातवर्ती मूल्यांकन करने के लिए आन्तरिक एवं बाह्य अभिकरणों की नियुक्ति करेगी। कार्यक्रम के मार्गदर्शन सिद्धान्तों में दिये गये प्रभाव मानदण्ड ऐसे मूल्यांकनों के लिए आधार होंगे। जलग्रहण क्षेत्रों के नमूनों के प्रतिनिधि जलग्रहण क्षेत्रों में परियोजना क्रियान्वयन की वास्तविक प्रक्रिया के प्रलेखीकरण के लिए स्वतंत्र सलाहकारों से परियोजना शोध कार्य के लिए भी कहा जा सकता है। इन मूल्यांकनों का प्रलेखीकरण प्रक्रिया के परिणामों की नीतिगत मुद्दों और कार्य प्रक्रिया में सुधार पर सुझाव प्रस्तुत करते हुए राज्य और केन्द्रीय स्तर की क्रियान्वयन और समीक्षा समिति को प्रस्तुत किया जायेगा।


2.7.         जलग्रहण विकास परियोजना के मूल्यांकन करने हेतु संदर्भ क्षेत्र


2.7.1 परिचय


विभिन्न केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय/विभागों द्वारा जलग्रहण आधार पर विनष्ट हुई मृदा अपरदन का शिकार हुई भूमि के विकास हेतु कई कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा तीन वृहत् जलग्रहण विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इनमें सम्मिलित है बारानी क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना, परिवर्तित हो रहे खेती वाले क्षेत्रों हेतु जलग्रहण विकास परियोजना एवं नदी घाटी परियोजना और बाढ संभाव्य नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में विनष्ट हुई भूमि की उत्पादकता बढाने हेतु भू-संरक्षण योजना। इसी प्रकार भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अभी तक मरूस्थलीय क्षेत्रों हेतु मरू विकास कार्यक्रम, शुष्क क्षेत्रों हेतु सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम, बंजर भूमि के विकास हेतु समन्वित बंजर भूमि विकास परियोजना का संचालन किया जा रहा है। ये तीनों जलग्रहण विकास कार्यक्रम एक ही समन्वित जलग्रहण विकास परियोजनान्तर्गत सम्मिलित किये जायेगें एवं तदानुसार एक ही कार्यक्रम क्रियान्वित किये जायेगा। राष्ट्रीय जलग्रहण विकास कार्यक्रम आठवीं पंचवर्षीय योजनान्तर्गत 1990-91 में 25 राज्यों एवं 2 केन्द्र शासित प्रदेशों में प्रारंभ किये गये। नवीं पंचवर्षीय योजनान्तर्गत 28 राज्यों में इस परियोजना का क्रियान्वयन किया गया जिनमें नव सृजित 3 राज्य छत्तीसगढ, झारखण्ड एवं उत्तराखण्ड सम्मिलित है, जिसका उद्देश्य जलग्रहण आधार पर प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर उपयोग के द्वारा बारानी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना था। यह परियोजना दसवीं पंचवर्षीय योजनान्तर्गत 28 राज्यों एवं 2 केन्द्र शासित प्रदेशों में क्रियान्वित की गई है। इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार हैः-



  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, विकास एवं सत्त प्रबंधन मय उनके उपयोग।

  • निरंतर बने रहने योग्य कृषि उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि।

  • विनष्ट एवं क्षारित बारानी पर्यावरण वाले क्षेत्रों को उपयुक्त प्रजाति के वृक्ष, झाडियाँ एवं घास द्वारा हरा भरा बनाकर उन क्षेत्रों में पर्यावरण संतुलन की पुर्नस्थापना।

  • सिंचित एवं बारानी क्षेत्र के बीच में क्षेत्रीय विषमता में कमी लाना।

  • ग्रामीण समुदाय विशेषतः भूमिहीन समुदाय हेतु निरंतर बने रहने योग्य रोजगार के अवसरों का सृजन करना।


राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना को नवीं योजनान्तर्गत सामुदायिक भागीदारी एवं अधिकाधिक विनियत्रण द्वारा काफी परिवर्तित किया गया था। परियोजना घटकों के तौर पर उपयुक्त संस्थागत व्यवस्थाओं द्वारा भविष्य हेतु निरंतरता बनाये रखना सुनिश्चित किया गया था एवं तकनीक के प्रयोग में विकल्प का लचीलापन की मात्रा काफी उच्च स्तर की थी। राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना को अक्टूबर, 2000 से कृषि के वृहद प्रबंधन समर्थन व सहायता की योजना में सम्मिलित कर लिया गया है। दसवीं योजनान्तर्गत प्रथम तीन वर्षो में 493188 है। क्षेत्रफल विकास हेतु चुना गया था।


2.7.2 परियोजना का पुनर्गठन


राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना को पुराने कार्यक्रमों के तकनीकी गुणों को रखते हुऐ एक सफल परियोजनाओं से सीखे गये पाठों को सम्मिलित करते हुऐ (विशेषतः सामुदायिक जनभागीता) पुनर्गठित किया गया है। जलग्रण विकास कार्यक्रम अब जलग्रहण समुदाय द्वारा आयोजित, क्रियान्वित, प्रबोधित एवं रख रखाव किया जाता है। कार्यक्रमों में एकरूपता लाने के लिए क्योंकि भिन्न भिन्न अभिकरणों द्वारा क्रियान्वित किये जा रहे है । वरसा जनसभागिता मार्गदर्शिका एक अवधारणा/जलग्रहण विकास हेतु सिद्वांत के लिये लाई गई है। इस पर कृषि मत्रालय /ग्रामीण विकास मंत्रालय दोनों  ही सहमत है। पुनर्गठित परियोजना के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार हैः-



  • जलग्रहण कमेटी, जलग्रहण संस्था उपभोक्ता समूह/स्वयं सहायता समूह के द्वारा सहभागिता अवधारणा पर जलग्रहण कार्यक्रम का क्रियान्वयन।

  • जनभागिता आधारित ग्रामीण सिंहावलोकन प्रक्रिया के माध्यम से आयोजन।

  • संसाधनों के मदवार आवंटन का पुनर्गठन।

  • गतिविधियों एवं तकनीक का विकल्प चुनने की स्वतंत्रता।

  • विभिन्न परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों द्वारा निरंतर बनाये रखने योग्य जलग्रहण विकास।

  • परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों का सुविधा प्रदाता का दायित्व।

  • जलग्रहण विकास दल को बेहतर सामुदायिक आवागमन हेतु उपयोग किया जाना।

  • आई.सी.ए.आर., के.वी.के. एवं एस.ए.यू के माध्यम से जलग्रहण तकनीक हेतु रखे गये शोध राशि के उपयोग के लिये सर्वथा उपयुक्त प्रक्रिया एवं तकनीक के हस्तांतरण पर जोर।

  • सामूहिक सम्पदा संसाधनों एवं वन भूमि का विकास एवं प्रबंधन।

  • कार्यक्रमों का समावेशन। (कनवरजेंस)

  • गैर सरकारी संगठनों एवं पंचायतों हेतं वृहत भूमिका।

  • लाभार्थियों द्वारा परियोजना के लाभ और लागत में सहभागिता।

  • प्रबोधन एवं मूल्यांकन में दक्षता वृद्धि।

  • वास्तविक मापे जा सकने योग्य मापदण्ड के विकास के जरिये प्रभाव का मूल्यांकन।

  • प्रशिक्षण और आमुखीकरण द्वारा क्षमता निर्माण।

  • सम्बद्ध विभागों द्वारा विस्तार सहायता।


वृहत विकेन्द्रीकरण और सामुदायिक सहभागिता द्वारा कार्यक्रम में काफी पुनर्गठन किये जाने को देखते हुऐ व तकनीक के प्रयोग में उच्च स्तर के विकल्पों को अपनाने और लम्बे समय तक परियोजना के लाभों को बरकरार रखते हुऐ उपयुक्त संस्थानिक व्यवस्थाओं के दृष्टिगत यह ज्ञात करना जरूरी है कि कार्यक्रम किस प्रकार से संचालित किया जा रहा है। यद्पि त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिकी एवं वार्षिक प्रगति प्रतिवेदनों के माध्यम से एवं अधिकारियों के क्षेत्र निरीक्षकों द्वारा परियोजना का नियमित प्रबोधन किया जा रहा है। इसके उपरांत भी एक स्वतंत्र बाहरी अभिकरण की आवश्यकता अनुभव की जाती है। ताकि परियोजना के क्रियान्वयन की गुणवत्ता को सुधारा जा सके।


इस प्रकार जलग्रहण विकास परियोजना के उपयुक्त एवं प्रभावशाली क्रियान्वयन का अध्ययन करने के लिये परियोजना का मूल्यांकन किये जाने का प्रस्ताव किया जाता है। इस मूल्यांकन हेतु संदर्भ क्षेत्र निम्नानुसार होगाः-


2.7.3 मूल्यांकन अध्ययन के उद्देश्य


मूल्यांकन अध्ययन किये जाने का प्रमुख उद्देश्य प्रगति का मूल्यांकन किया जाना, परियोजना क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं की जानकारी प्राप्त कराना है ताकि उपयुक्त एवं सामयिक सूचनायें परियोजना प्रबंधन के लिये निर्णय समर्थन हेतु प्राप्त की जा सके। मूल्यांकन अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि परियोजना के उद्देश्य जो कि अपेक्षित आउट जुट और इण्डिकेटर्स के रूप में कितना प्राप्त किये जा रहे है। अतः मूल्यांकन से यह आशा की जाती है कि वह भौतिक एवं वित्तीय प्राप्तियों से सामाजिक आर्थिक एवं सांस्थनिक मापदण्डानुसार हुये प्रभावशाली परिवर्तनों को स्पष्टतया रेखांकित कर सकेगा। इसके द्वारा क्रियान्दयन अवरोधों के विश्लेषण भी वांछित होता है, ताकि विश्लेषण उपरांत निराकरण उपाय सुझाये जा सके। मूल्यांकनकर्ता से आशा की जा सकती है कि वह प्रक्रिया दस्तावेजीकरण पर जोर देगा और परिणाम के स्थान पर निष्कर्ष पर ध्यान केन्द्रित करेगा। मूल्यांकन अध्ययन को तय किये गये लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपनाये गये साधन/नयी नीतियों की वैधता को नियत करना चाहिए। मूल्यांकन अध्ययन के मूलभूत उद्देश्य निम्न प्रकार है।



  1. कार्यक्रम की गुणात्मक कार्य दक्षता का आंकलन करना।

  2. परियोजना क्रियान्वयन अभिकरण द्वारा कार्यक्रम के क्रियान्वयन के संबंध में उपलब्ध कराई गई सूचनाओं को उलट पुलट परीक्षण करना।

  3. कार्यक्रम से उत्पन्न प्रभाव का आंकलन करना।

  4. मार्गदर्शिका के अनुसार कार्यक्रम के क्रियान्वयन किये जाने को सुनिश्चित करना।


उपरोक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुऐ मूल्यांकन अभिकरण के लिये आवश्यक है कि उसे कार्यक्रम की पूरी समझ हो। उनके यह अपेक्षित है कि वे परियोजना की मार्गदर्शिकासे भलीभांति परिचित हों एवं मार्गदर्शिका की क्रियान्वयन स्थिति का मूल्यांकन कर सके। मूल्यांकन अध्ययन अंतर्गत आने वाले आयामों का एक विस्तृत परिदृश्य निम्नानुसार हैः-


2.7.4 सामुदायिक संगठन एवं संस्थानिक आयाम


जलग्रहण समुदाय की परियोजना आयोजन, क्रियान्वयन एवं परियोजना पश्चात रख रखाव प्रबंधन में महती भूमिका को देखते हुऐ मार्गदर्शिका में दर्शित प्रावधानों के अनुसार निम्न आयामों का विस्तार से मूल्यांकन किया जाना चाहिये।   



  1. क्या समुदाय को गतिमान किया गया है। एवं उसमें कार्यक्रम के मुख्य विशेषताओं एवं नई अपनायें जाने वाली रणनीति के प्रति जाग्रति पैदा की गई है।

  2. क्या जलग्रहण क्षेत्र में प्रवेश बिन्दु गतिविधियां ली गई है। यदि हां तो उसका विवरण।

  3. क्या ग्राम स्तरीय सामुदायिक संगठनकर्ता की पहचान करके उसे नियुक्त किया गया है।

  4. क्या स्वयं सहायता समूह, उपभोक्ता समूह, जलग्रहण संस्था एवं जलग्रहण कमेटी बनाई गई है, यदि हां तो क्या वे क्रियाशील है एवं अपने कार्य को उनकी भूमिका एवं उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारियों के हिसाब से कर रहे हैं।

  5. क्या जलग्रहण संस्था औपचारिक रूप से सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट अंतर्गत पंजीकृत है, यदि हाॅ तो उसका विवरण यदि नहीं तो उसके कारण।

  6. क्या जलग्रहण सचिव एवं कार्यकर्ताओं की पहचान करके उन्हें नियुक्त किया गया है।

  7. क्या जलग्रहण सचिव, कार्यकताओं एवं जलग्रहण समिति के सदस्यों को सहभागिता आयोजना, प्रक्रिया, विस्तृत जलग्रहण विकास योजना को तैयार करना, प्रशासनिक प्रक्रियाओं, रिकार्ड संधारण लेखा प्रक्रिया एवं संधारण, अभियांत्रिकी कार्यो का कार्यपालन, माप पुस्तिकाओं में इंद्राज करना आदि का प्रशिक्षण दिया है।

  8. क्या जलग्रहण समिति और संस्था के मध्य मार्गदर्शिका में रेखांकित उन संस्थानों की प्रभावशाली कार्यप्रणाली के बिन्दु को दृष्टिगत रखते हुए शक्ति संतुलन स्थापित है।

  9. क्या जलग्रहण संस्थानों को पंचायतीराज संस्थानों के साथ भविष्य में निरंतरता रखने के उद्देश्य से एकजुट रखते हुए जोड़ा गया है।


2.7.5 आयोजना आयाम


इसके अन्तर्गत निम्नलिखित आयामों का मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है-



  1. क्या जनभागिता आधारित ग्रामीण सिंहावलोकन उपाय जलग्रहण ग्रामों में आयोजित किये गये हैं एवं इससे उत्पन्न लक्ष्यों/दृश्यों का प्रयोग प्राकृतिक संसाधनों के जनभागिता आधारित विश्लेषण हेतु किया गया है एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन के विकल्पों में से अंतिम चयन करने में उनका उपयोग हुआ है।

  2. क्या आधारभूत सर्वेक्षण जलग्रहण हेतु किया गया है?

  3. क्या परियोजना क्रियान्वयन अभिकरण द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से सम्बन्धित संस्थाओं, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञा केन्द्रों जैसी अनुसंधान संस्थाओं से शोध सहायता एवं आदान प्राप्त करने हेतु कोई जुड़ाव बनाया गया है? एवं जलग्रहण कार्यक्रम को प्रभावकारी तकनीकी समर्थन आश्वस्त किया गया है?

  4. क्या जलग्रहण के वृहत घटकों हेतु राशि का आवंटन मार्गदर्शिका के अनुसार किया गया है?

  5. क्या परिपक्व उपभोक्ता एवं स्वयं सहायता समूह को मैचिंग रिवाल्विंग फण्ड प्रदान किया गया है? और क्या इसका उपयुक्त तरीके से उपयोग किया जा रहा है?

  6. क्या तकनीक/गतिविधि के प्रयोग में विकल्प की छूट समुदाय को पी.आर.ए. अभ्यास के दौरान प्रदान की गई थी?

  7. क्या रणनीतिक योजना और जलग्रहण विकास हेतु वार्षिक कार्य योजना जलग्रहण संस्था द्वारा तैयार एवं अनुमोदित की गई है?

  8. क्या प्राकृतिक संसाधनों के विकास हेतु तकनीकी के प्रबन्धन आयाम को निजी भूमि, सार्वजनिक भूमि वन भूमि एवं जल संसाधनों में मार्गदर्शिका में दर्शाये गये प्रावधानों के अनुरूप अपनाया गया है?

  9. क्या वर्तमान में जारी उत्पादन कार्यक्रमों के साथ समन्वय सुनिश्चित किया गया है?

  10. क्या ग्रामीण भूमिहीन गृहस्थियों हेतु आय उत्पादक गतिविधियों का समोवश परियोजना में प्रसतावित किया गया है? (परिपक्य स्वयं सहायता समूह को मैचिंग रिवाल्विंग फण्ड प्रदान करते हुए)

  11. क्या संसाधनहीन परिवारों के लिए समानता को प्रोत्साहित करने के लिए रणनीति तैयार की गई है? और क्या महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु भी रणनीति तैयार की गई है?

  12. क्या जलग्रहण कार्यो के डिजाइन और तकमीने तैयार करने के लिए विक्रेन्द्रित पहुँच प्रयोग में लाई गई हैं?

  13. क्या लागू अधिसूचित स्टेण्डर्ड सिड्युल आॅफ रेट्स के अनुसार क्षेत्र में ढांचों को लागत का प्राकलन किया गया है?

  14. क्या जिला नोडल अभिकरण द्वारा वार्षिक कार्य योजना का अन्तिम अनुमोदन किया गया है?

  15. क्या परियोजना क्रियान्वयन अभिकरण/जलग्रहण विकास दल द्वारा समुदाय को धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनने का पर्याप्त अवसर प्रदान करने हेतु एवं ग्राम स्तरीय संस्थाओं को परियोजना पश्चात निर्मित सम्पत्तियों के रखरखाव के लिए कार्यकारी अनुभव प्रदान करने हेतु वापसी रणनीति तैयार की गई है?


2.7.6 क्रियान्वयन आयाम


इसके अन्तर्गत निम्न आयामों के मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता हैं-



  1. क्या जलग्रहण संस्था का जलग्रहण परियोजना खाता किसी राष्ट्रीयकृत/सहकारी बैंक में खोला गया है? और क्या मार्गदर्शिका में प्रदर्शित प्रावधानों अनुरूप खाता संचालन की प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है?

  2. क्या जलग्रहण विकास (कोर्पस) फण्ड को अनुमोदित परियोजना लागत के 1 प्रतिशत एवं राज्य सरकार द्वारा 1 प्रतिशत अंशदान के माध्यम से स्थापित किया गया है' और क्या मार्गदर्शिका के अनुसार ही इसका संचालन किया जा रहा है?

  3. क्या मार्गदर्शिका में दर्शाये प्रावधानानुसार व्यय करने हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रयोग किया जा रहा है?

  4. क्या राज्य सरकार से जिला स्तर और जिला स्तर से परियोजना अभिकरण संस्थान एवं जलग्रहण कमेटी तक भिन्न-भिन्न स्तरों हेतु राशि हस्तान्तरण प्रक्रिया का पालन निर्धारित समय में किया जा रहा है?

  5. क्या विभिन्न अभिकरणों को, जैसा कि मार्गदर्शिका के अनुरूप जलग्रहण बजट निर्मुक्त किया जा रहा है?

  6. क्या परियोजना जलग्रहण कमेटी के भागीदारी से क्रियान्वित की जा रही है, जिसमें विभिन्न आयामों जैसे कि रिकार्ड और लेखों का संधारण, अंशदान का एकत्रिकरण, सामाजिक अंकेक्षण एवं पारदर्शिता का पालन, समूह क्रिया/विवादों के सुलझाने की सुविधा प्रदान करना, समुदाय के शक्तिकरण का विशेष ध्यान रखा है?

  7. क्या जलग्रहण कमेटी स्तर और पी.आई.ए./डब्ल्यू.डी.टी. स्तर पर मार्गदर्शिका में प्रदत्त प्रावधानों के अनुरूप लेखों का संधारण किया जा रहा है?

  8. क्या मार्गदर्शिका में दी गई प्रक्रिया अनुसार जलग्रहण संस्था के लेखों की वार्षिक अंकेक्षण की जा रही है ?

  9. क्या निजी उज़ख गतिविधियों, हेतु जो कि मार्गदर्शिका के अनुच्छेद 79,80 एवं 81 में वर्णित है, के अनुरूप समुदाय से अंशदान प्राप्त किया जा रहा है

  10. क्या ग्राम स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता रखी जा रही है? ताकि समुदाय के सदस्यों के मध्य विवाद न्यूनतम हो।

  11. क्या जलग्रहण कमेटी द्वारा कार्यो के भुगतान की प्रक्रिया मार्गदर्शिका के अनुरूप अपनाई जा रही है ?

  12. क्या ग्राम स्तर पर राशि के स्तरीय कामकाज के लिए जिम्मेदरारी की प्रक्रिया स्थापित की गई है।


2.7.7  सामाजिक आर्थिक आयाम


इसके अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है-



  1. आयवर्द्धक एवं रोजगार वृद्धि विशेषतः हाऊस होल्ड उत्पादन व्यवस्था अन्तर्गत, जो कि जलग्रहण क्षेत्र में भूमिहीन व्यक्तियों के लिए विशेषतः लागू किये गये है, का चयन।

  2. महिलाओं और भूमिहीन व्यक्तियों की भागीदारी।

  3. परियोजना लाभों/लाभांश वितरण में भागीदारी।

  4. पारिवारिक आय में वृद्धि का चलन।

  5. स्थानीय समुदायों के प्रवास का चलन।

  6. जलग्रहण क्षेत्र में विभिन्न दावेदारो मे मध्य विवाद का हल यदि कोई हो।

  7. सांस्थनिक व्यवस्था अन्तर्गत समुदाय की विभिन्न शाखाओ का प्रतिनिधित्व।

  8. प्रभावो का आकलन,इसमे निम्न बिन्दु सम्मिलित किये जायेेंगे।


(अ) जलग्रहण में उपचार हेतु कुल क्षेत्रफल


(ब) जलग्रहण में कुल उपचारित क्षेत्रफल


(स) परियोजना पूर्व की तुलना में भू जल स्तर में वृद्धि


(द) परियोजना पूर्व की तुलना में फसलों की प्रति हैक्टेयर मात्रा में वृद्धि


(य) उपचार पश्चात फसलों का विविधिकरण


(र) अकृषि क्षेत्र में जैविक पदार्थ उत्पादन में वृद्धि


(ल) भूमिहीन व्यक्तियों की आय में वृद्धि


(व) अन्य विशिष्ट दृष्टिकोण जैसे कि जलग्रहण गतिविधियों को पड़ोस के क्षेत्र पर प्रभाव


(प) अतिरिक्त शुद्ध क्षेत्र जिसको अन्तर्गत लाभ पहुँचा हो


2.7.8 एकीकृत पहुँच


परियोजना से जलग्रहण विकास हेतु एकीकृत व परिपर्ण पहुँच विकसित किये जाने की आशा की जाती है। परियोजना अध्ययन को निम्नलिखित बिन्दुओं पर परियोजना द्वारा अर्जित प्रगति का मूल्यांकन करना चाहिए।



  1. लघु क्षेत्रों, जिन्हें माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र कहा जाता है, इसके अन्तर्गत विभिन्न परियोजना गतिविधियों के क्रियान्वयन का एकीकरण (माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र विकास योजना को लाभार्थियों के विचार विमर्श से तैयार किया जाकर)।

  2. परियोजना दल संस्थानों का परियोजना शासन और क्रियान्वयन में विभिन्न स्तरों पर एकीकरण।


2.7.9 प्रबोधन एवं मूल्यांकन


परियोजना की मूल्यांकन का उचित प्रबोधन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह विर्निदिष्ट है कि परियोजना को विभिन्न स्तरों पर मार्गदर्शन प्रदान करने और उसकी समीक्षा करने हेतु जलग्रहण समितियाँ जिला जलग्रहण विकास समितियाँ एवं राज्य जलग्रहण विकास समिति आदि विभिन्न प्रबन्धन समितियों का कठन किया गया। यह भी विनिर्दिष्ट है कि जलग्रहण कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा जलग्रहण स्तर पर एवं जिला स्तर पर व सम्बन्धित कमेटियों द्वारा की जा रही है। इसी क्रम में यह भी उल्लेखनीय है कि भौतिक एवं वित्तीय प्रगति सम्बन्धित पी.आई.ए. द्वारा मार्गदर्शिका के प्रावधित परिशिष्ट में नियमित रूप से रिपोर्ट की जा रही है।


2.7.10 मूल्यांकन अभिकरण हेतु योग्यता के मापदण्ड


अभिकरणों से निम्नलिखित योग्यताओं के पूर्ण होने की शर्तो पर मूल्यांकन अध्ययन करने के प्रस्ताव स्वीकार किये जाने चाहिए।


 (अ) उक्त अभिकरण जलग्रहण विकास के लिए अपनाये जाने वाली पहुँच और रणनीतियों से पूर्णतया अभिन्न हो एवं इस प्रकार की आवश्यक बुनियादी सुविधाओं को रखती हो एवं इस प्रकार के अध्ययन करने के लिए उनके पास जरूरी क्षमता/ विशेषज्ञता हो एवं वे इस क्षेत्र के अनुभवी हो। मूल्यांकन अभिकरण को इस उद्देश्य के समर्थन में आवश्यक दस्तावेज संलग्न करने चाहिए।


 (ब) प्रस्ताव के साथ उन तकनीकी कर्मचारियों के जीवन वृत/कार्य वृत संलग्न किये जाने चाहिए जो कि इन मूल्यांकन अध्ययन हेतु रखे जायेंगे।


 (स) जब और जैसी आवश्यकता हो उनके प्रस्ताव के किसी आयाम पर इस प्रकार के अभिकरणों को प्रस्तुतिकरण देने के लिए कहा जा सकता है। अनुरोध करने के उपरान्त यदि अभिकरण द्वारा ऐसा प्रस्तुतिकरण नहीं किया जाता है तो यह माना जाना चाहिए कि अभिकरण को मूल्यांकन अध्ययन करने हेतु पर्याप्त रूचि नहीं है एवं इस प्रकार के अभिकरण से प्राप्त प्रस्तावों पर कोई अग्रिम कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए।


 (द) मूल्यांकन अभिकरण को यह स्पष्ट करना होगा कि वह किसी भी समय किसी भी अधिकारी द्वारा काली सूची में नहीं डाली गई है। इस प्रकार के प्रमाण पत्र के बिना आये हुये प्रस्तावों को तुरन्त खारिज किया जाना चाहिये।


2.7.11 योग्य अभिकरणों द्वारा प्रस्ताव तैयार करना


प्रस्ताव चयन समिति के सदस्य सचिव को जो कि इस हेतु गठित की गई है कि पृथक बन्द निफाफों में प्रस्तुत किये जाने चाहिये। लिफाफा-अ में निम्न दस्तावेज होंगे-


 (i) जलग्रहण प्रबन्धन/मृदा एवं जल संरक्षण विशेषतः उस कृषि जलवायु क्षेत्र विशेष हेतु, के क्षेत्र में मूल्यांकन अभिकरण का अनुभव।


 (ii) मूल्यांकन अभिकरण के क्षमताओं का वर्णन।


 (iii) विशेषज्ञों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया/रणनीति बाबत निर्धारित समयावधि में मूल्यांकन अध्ययन पूर्ण किये जाने हेतु।


 (iv) अध्ययन में सम्मिलित विशेषज्ञों के कार्य वृत। कार्य वृत में विशेषज्ञों की उपलब्धता सम्बन्धी जानकारी अवश्य शामिल होनी चाहिए। (तिथि तथा हस्ताक्षरण सहित)। जीवन वृत/कार्यवृत इस कार्य हेतु लगाये जाने वाले समस्त तकनीकी स्टाफ संलग्न किये जाने चाहिए।


लिफाफा-ब में निम्नलिखित वित्तीय सूचनाएं दी जानी चाहिए-


 (i) अध्ययन में सम्मिलित विशेषज्ञों को दिये जाने वाले वेतन भत्ते, शुल्क आदि।


 (ii) यात्रा के खर्चे, विशेषज्ञ एवं फिल्ड स्टाफ को दिये जाने वाले यात्रा भत्ते/दैनिक भत्ते।


 (iii) मुख्यालय एवं फिल्ड पर सहायक कर्मचारियों हेतु भत्ते।


 (iv) दस्तावेजीकरण कर शुल्क।


 (v) विविध एवं आकस्मिक व्यय।


 (vi) कुल व्यय।


2.8          जलग्रहण क्षेत्रों के मूल्यांकन अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने हेतु फार्मेट का प्रस्तावित अध्याय



  1. कार्यकारी सार संक्षेप

  2. जलग्रहण का विवरण - आधारभूत/बेसलाइन आंकड़ों के संदर्भ पर आधारित


 (अ) स्थानिक


(ब) प्रमोशन एवं आॅक्युपेशनल स्थिति


 (स) भू गर्भ ज्ञान एवं मृदाएं


 (द) जलवायु


 (य) वर्तमान भू उपयोग


 (र) वर्तमान ऊर्जा स्थिति



  1. राज्य एवं जलग्रहण क्षेत्र में योजना की पृष्ठभूमि

  2. जलग्रहण परियोजना गतिविधियों की लक्ष्य एवं प्रगति का वर्णन


 (i) मृदा एवं जल संरक्षण कार्य, कृषि एवं अकृषि भूमि में


 (ii) उत्पादन पद्धति


 (iii) पशुधन प्रबन्धन


(iv) मूलभूत गतिविधियां



  1. प्रक्रिया एवं आंकड़ों का संग्रहण

  2. सर्वेक्षण द्वारा की गई मालुमात का सार संक्षेप एवं क्षेत्र में समानता व निरन्तरता/स्थिरता के दृष्टिकोण से परिणामों का विमर्श।


अ- कृषि भूमि में


ब- फसलीय चक्र


स- वृक्षारोपण


द- उत्पादकता


य- अकृषि भूमि


र- संरक्षण


ल- उत्पादन


व- नला उपचार


प- पशुधन विकास


फ- जलग्रहण विकास परियोजनाओं के विकास का सार संक्षेप


व- संसाधन संरक्षण


भ- उत्पादन व्यवस्था



  1. परियोजना में अपनाई गई भागिता शोध का आकलन

  2. सामाजिक आर्थिक आयाम- राज्य में स्थित अन्य जलग्रहण क्षेत्रों से तुलना करने हेतु आई.आर.आर ई.आर.आर, एन.पी.वी. आदि की गणना से तकनीकी-आर्थिकी एवं सामाजिक-आर्थिकी विश्लेषण द्वारा। इसके साथ ही जलग्रहण क्षेत्र में इन गणनाओं की सहायता से निम्नलिखित आयामों हेतु परियोजना के दखल के पश्चात निरन्तरता की योग्यता बनने बाबत वर्णन एवं विमर्श


अ- कृषकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर जलग्रहण का प्रभाव


ब- संस्थानिक आयाम


स- एकीकृत आयाम


द- कृषकों से अपेक्षित अंशदान


य- आर्थिक विश्लेषण


व- कृषि भूमि हेतु आर्थिक विश्लेषण


ल- अकृषि भूमि हेतु आर्थिक विश्लेषण



  1. जलग्रहण क्षेत्र में पर्यावरण की वृद्धि में बेहतर स्थिति का संक्षिप्त विवरण

  2. जलग्रहण के प्रारम्भ एवं पूर्ण होने के पश्चात इसके क्रियान्वयन में कमजोरियाँ, संक्षिप्त आक्षेप आदि।

  3. रिपोर्ट के अनुच्छेदों/पृष्ठों के संदर्भ से की गई सिफारिशों, निर्णायक राय, सुझाावों का वर्णन (परियोजना की बेहतरी के लिए एवं राज्य सरकार द्वारा कार्यवाही करने के उद्देश्य से)

  4. परिशिष्ट जो कि रिपोर्ट में विचार किये गये हैं/विश्लेषण किये गये हैं, संदर्भ क्षेत्र के साथ, जिसके आधार पर अध्ययन किये गये हैं।


2.11        स्वपरख प्रश्न



  1. जिला स्तर पर प्रगति का अनुवीक्षण कैसे होता है?

  2. मूल्यांकन अभिकरण हेतु योग्यता के मापदण्ड क्या है?


2.12        सारांश


अनुवीक्षण और मूल्यांकन हेतु राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर प्रबन्धन समितियाँ है जो जलग्रहण समिति के कार्यो पर निगाहें रखती है।


2.13        संदर्भ सामग्री



  1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  3. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  4. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।

  5. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर जारी मूल्यांकन मार्गदर्शिका।

  6. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरियाली मार्गदर्शिका।

  7. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  8. विभिन्न परिपत्र - राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग।

  9. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।

  10. जलग्रहण प्रबन्धन - श्री बिरदी चन्द्र जाट।

  11. भारत सरकार द्वारा जारी कॅामन मार्गदर्शिका।