जलग्रहण परियोजना संचालन: निधियों का आवंटन, उपयोग

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा


किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 03)


सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||जलग्रहण परियोजना संचालन: निधियों का आवंटन, उपयोग||


जैसा कि पूर्व के अध्यायों में अवगत कराया गया है राज्य में प्रमुख रूप से दो प्रकार की जलग्रहण विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है, पहली-ग्रामीण विकास मत्रांलय, भारत सरकार के वित्त पोषण से संचालित की जा रही मरू विकास कार्यक्रम, मरू प्रसार रोक कार्यक्रम, सूखा सम्भाव्य क्षेत्र कार्यक्रम, समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम इत्यादि तथा दूसरी- कृषि मत्रांलय, भारत सरकार के वित्त पोषण से सचांलित बारानी क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना। दोनों प्रकार की योजनाओं में प्रति हैक्टेयर उपलब्ध कराई जाने वाली राशि, निधियों के आंवटन की प्रक्रिया, निधियों के उपयोग की प्रक्रिया में अन्तर है।ग्रामीण विकास मंत्रालय की जलग्रहण योजनाओं में केन्द्र सरकार के हिस्से से प्राप्त होने वाली केन्द्रयांश राशि सीधे ही जिला परिषदों को आंवटित की जाती है तथा निर्धारित अनुपात में राज्यांश राशि राज्य सरकार के नोडल विभाग  द्वारा जिला परिषदों को जारी की जाती है तथा प्रति हैक्टेयर लागत 6000 रूपये निर्धारित है। यहाँ यह बताना आवश्यक होगा कि मरू विकास कार्यक्रम मरू प्रसार रोक कार्यक्रम, सूखा सम्भाव्य क्षेत्र कार्यक्रम में केन्द्रयांश एवं राज्यांश का अनुपात 75ः25 है, जबकि समन्वित बंजर भूमि किसी कार्यक्रम हेतु केन्द्रयांश एवं राज्यांश का अनुपात 91ः67ः 8.33 है।


दूसरी ओर कृषि मंत्रालय के सहयोग से पूर्व में 10वी पंचवर्षीय योजना अवधि वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका द्वारा संचालित राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना में प्रति हैक्टेयर लागत 4500 रूपये 8 प्रतिशत से कम ढाल वाले क्षेत्रों के लिए तथा 6000 रूपये 8 प्रतिशत से अधिक ढाल वाले क्षेत्रों के लिए निर्धारित थी। भारत सरकार द्वारा जारी एवं वर्तमान में 1.4.2008 से प्रभावी कामन मार्गदर्शिका के अनुसार प्रति हैक्टेयर लागत अधिकतम 12000/ तक निर्धारित कर दी गई है। इस योजना अन्तर्गत कृषि मंत्रालय से राशि राज्य के कृषि विभाग, जो कि मैक्रों मैनेजमेन्ट मोड हेतु नोडल विभाग है, को आंवटित की जाती है। मैक्रो मैनेजमेन्ट मोड में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार से विभिन्न राज्यों को प्राप्त होने वाली कुल सहायता अनुमोदित कार्य योजना के अनुसार दी जाती है जिसमें जलग्रहण विकास विभाग, कृषि विभाग, वन विभाग इत्यादि की विभिन्न योजनाएं सम्मिलित हैं। केन्द्रयांश एवं राज्यांश राशि का अनुपात 90ः 10 का है तथा केन्द्र से प्राप्त होने वाली 90 प्रतिशत राशि में से 80 प्रतिशत राज्य को अनुदान तथा 20 प्रतिशत ऋण है। राष्ट्रीय जलग्रहण परियोजनाओं हेतु राज्य स्तर से निध्यिों का आंवटन 10 प्रतिशत राज्यांश सहित जिला परिषदों को किया जाता है। तदुपरान्त जिला परिषदें उनके अधीनस्थ परियोजना क्रियान्वयन संस्थाओं के रूप में कार्यरत पंचायत समितयों को एवं विभिन्न जलग्रहण समितियों को निर्धारित मापदण्डों के अनुसार निधियों का आंवटन करती है एवं इसी प्रक्रिया के अनुसार उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त किये जाते हैं।


जलग्रहण योजना का सीमांकन एवं प्राथमिकीकरण जो मानचित्र, माइक्रो वाटरशेड (  25000 से 30000 हैक्टेयर ) सर्वे विभाग एवं स्टेट रिमोट सेन्सिंग एजंसी के नक्शों पर करते हुए क्रमशः उप वाटरशेडों 5000 से 6000 हैक्टेयर में विभक्त करते हुए अन्त में 500-500 हैक्टेयर की इकाई में किया जाता है, जिन्हें माइक्रों वाटरशेड कहते हैं। यह क्षेत्र जलग्रहण संस्था हेतु एक आदर्श इकाई होता है। काॅमन मार्गदर्शिका में मैक्रों/माइक्रों जलग्रहण क्षेत्र का वास्ताविक क्षेत्र उपचार हेतु चयन किया जाता है। इस परियोजना हेतु नोडल विभाग राजस्थान सरकार का जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग है। जिले पर जिला परिषद ( ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ ) द्वारा परियोजना का कार्य देखा जाता है एवं ब्लाक पर पंचायत समिति परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी है।


3.2 ग्रामीण विकास जलग्रहण योजनांतर्गत निधियों के आंवटन की प्रक्रिया


3.2.1 वित्त पोषण  पद्धति ( disbursement flLVe )


हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार क्रियान्वित किये जा रहे जलग्रहण क्षेत्रों में वर्तमान लागत मानदण्ड 6000/रूपये प्रति हैक्टेयर है। इस राशि को निम्नलिखित परियोजना संघटकों के बीच प्रत्येक के सामने उल्लेख किये गये प्रतिशत के अनुसार विभाजित किया जाएगा-


(1) जल संग्रहण उपचार/विकास कार्य/गतिविधियाँ 85 प्रतिशत


(2) सामुदायिक संगठन और प्रशिक्षण 5 प्रतिशत


(3) प्रशासनिक व्यय    10 प्रतिशत


(4) योग     100 प्रतिशत


योजना की हरियली मार्गदर्शिका के अनुसार लागतों में यदि कोई बचत हो तो उसे अन्य दो शीर्षो अर्थात् प्रशिक्षण और जल संग्रहण कार्यो के अन्तर्गत कार्यकलाप करने हेतु उपयोग में लाया जा सकता हैं, परन्तु अन्य दोनों शीर्षो के अन्तर्गत बचत की राशि को इस शीर्ष के अन्तर्गत उपयोग में नहीं लाया जाएगा। प्रशासनिक लागतों के तहत वाहनों, कार्यालय उपकरणों, फर्नीचर आदि को क्रय करने, भवनों का निर्माण करने और सरकारी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने हेतु व्यय किए जाने की अनुमति नहीं होगी।


जल संग्रहण विकास परियोजना के लिए सामान्य लागत मानदण्ड परिशिष्ट-1 में दिए गए अनुसार होगें। कार्य की प्रत्येक मद और परियोजना सम्बन्धी कार्यकलाप के लिए लागत अनुमान सम्बन्धित कार्य क्षेत्र में राज्य सरकारों द्वारा यथा अनुमोदित मानक दर सूची (एस. एस. आर. ) के अनुसार लगाये जायेंगे।


3.2.2 किस्तें जारी करने हेतु प्रक्रिया( procedure for release of installment )


मार्गदर्शिका के अनुसार निधियों के केन्द्रीय भाग को जिला परिषदों/जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों को 5 वर्षो की अवधि में 5 किस्तों में जारी किया जायेगा। राज्यों द्वारा भी अपना सदृश्य भाग जिला परिषदों/जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों को तदनुसार जारी किया जायेगा। इन किस्तों का ब्यौरा परिशिष्ट- 2 में दिया गया है।


केन्द्रीय निधियों की पहली किस्त परियोजना की स्वीकृति के साथ-साथ ही जारी की जायेगी। परन्तु आगे की किस्तें तब ही की जायेगी जब उपयोग न की गई शेष, राशि, जारी की गई पिछली किस्त की राशि के 50 प्रतिशत से अधिक न हो। जिला / परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा किस्तों से सम्बन्धित प्रस्ताव तिमाही प्रगाति रिपोर्टों और पिछले वर्ष के लेखाओं के लेख परीक्षित विवरण सहित भूमि संसाधन विभाग को राज्य सरकार के माध्यम से प्रस्तुत किया जायेगा। इसके अलावा दूसरी किस्त जारी करने हेतु प्रस्ताव के साथ, विकास हेतु लिये गये क्षेत्र का सम्बन्धित गाँववार ब्यौरा, परियोजना की रूपरेखा , जिला परिषद जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा अनुमेदित कार्य योजना और आवश्यकतानुसार मांगे गये अन्य दस्तावेज सलंग्न किये जायेंगे। जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों और ग्राम पंचायतों को निधियों केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से उनके प्राप्त होने पर 15 दिन के भीतर जारी की जायेगी।


परियोजना निधियों का 45 प्रतिशत भाग 2 किस्तों में प्राप्त करने के बाद राज्य सरकार, भूमि संसाधन विभाग की अपेक्षित स्वीकृति के बाद इसके द्वारा बनाये गये मूल्यांकनकर्ताओं के पैनल में से किसी एक स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता द्वारा जल संग्रहण विकास परियोजना का मध्यावधिमूल्यांकन करवायेगी। केन्द्रीय निधियों की तीसरी किस्त को ऊपर विनिर्दिष्ट की गई अन्य सभी अपेक्षाओं को पूरा करने के अलावा संतोषजनक मध्यावधि मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने के उपरान्त ही जारी किया जायेगा। राज्य सरकार परियोजना के पूरा होने पर एक अन्तिम मूल्यांकन भी करायेगी और इस सम्बन्ध में रिपोर्ट परियोजना पूरी होने सम्बन्धी के साथ भूमि संसाधन को प्रस्तुत करेगी।


3.2.3 जल संग्रहण विकास निधि( watershed development fund )


t जल संग्रहण विकास कार्यक्रमों में गाँवों के चयन के लिए एक अनिवार्य शर्त जल संग्रहण विकास निधि ( डब्ल्यू. डी. एफ. ) में लोगों द्वारा अंशदान जमा करना है। जल संग्रहण विकास निधि में अंशदान लोगों की निजी भूमि पर किये गये कार्यो की लागत के कम से कम 10 प्रतिशत की दर से किया जायेगा। अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति और गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों के मामले में न्यूनतम अंशदान उनकी भूमि पर किये कार्य की लागत के 5 प्रतिशत की दर से किया जायेगा। सामुदायिक सम्पत्ति के सम्बन्ध में निधि के लिए अंशदान सभी लाभार्थियों से प्राप्त किया जा सकता है जो व्यय की गई विकास लागत का न्यूनतम 5 प्रतिशत की दर से होगा। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अंशदान लाभ प्राप्त करने वाले किसानों से ही किया जाये और इसे श्रमिकों को अदा की गई मजदूरी में से नहीं काटा जाये। यह अंशदान नगद रूप में , स्वैच्छिक श्रम के रूप में अथवा सामग्री के रूप में स्वीकार्य होगा। स्वैच्छिक, श्रम और सामग्री के मूल्य के बराबर राशि जल संग्रहण परियोजना खाते से ली जायेगी और इस निधि में जमा करवा दी जायेगी। ग्राम पंचायत जल संग्रहण विकास निधि का खाता अलग से रखेगी। ग्राम पंचायत के अध्यक्ष और सचिव जलग्रहण संग्रहण विकास निधि के खाते को संयुक्त रूप से संचालित करेंगे। अलग-अलग व्यक्तियों और धर्मार्थ संस्थाओं को इस निधि में अधिकाकधिक अंशदान दिये जाने हेतु प्रोत्याहित किया जाना चाहिए। इस निधि में प्राप्तियों कों परियोजना अवधि समाप्त होने के बाद सामुदायिक भूमि पर अथवा सार्वजनिक उपयोग के लिए सृजित की गई परिसम्पत्तियों को बनाये रखने के लिए उपयोग में लाया जायेगा। व्यक्तिगत लाभ हेतु किये गये कार्यो में मरम्मत/रख रखाव के कार्यो पर व्यय इस निधि से नहीं किया जायेगा।


कामन मार्गदर्शिका के अनुसार प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन कार्यो हेतु जो कि सिर्फ निजी भूमि पर किये गये हो तो गैर अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से कुल लागत का 10 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से कुल लागत का 5 प्रतिशत अंशदान लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सघन लागत वाली कृषि व्यवस्थाओं जैसे कि एक्वाकल्चर, उधानिकी, कृषि वानिकी, पशुपालन आदि जो कि व्यक्तिगत लाभार्थी की निजी भूमि पर उसके लाभ हेतु किये गये हो, तो गैर अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से कुल लागत का 40 प्रतिशत व्यक्ति द्वारा अंशदान व 60 प्रतिशत परियोजना से देय होगा। लाभार्थी हेतु परियोजना अंश अधिकतम परियोजना के लिए लागू मानक इकाई लागत नार्मस का दुगुना हो सकता है तथा अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से कुल लागत का 20 प्रतिशत व्यक्ति द्वारा अंशदान व 80 प्रतिशत परियोजना से देय होगा। लाभार्थी हेतु परियोजना अंश अधिकतम परियोजना के लिए लागू मानक इकाई लागत नार्मस का दुगुना हो सकता है।


3.2.4 प्रयोक्ता प्रभार ( user's charges )


ग्राम पंचायत द्वारा गाँव के टैकों/तालाबों से सिंचाई हेतु पानी लेने, सामुदायिक चारागाहों में पशुओं को चराने आदि जैसी सामान्य सुविधाओं के उपयोग के लिए प्रयोक्ता समूहों पर प्रयोक्ता प्रभार लगाया जाएगा। इस प्रकार एकत्रित किये गये प्रयोक्ता प्रभारों का आधा भाग  परियोजनाओं की परिसंम्पत्तियों के रख रखाव के लिए जल संग्रहण विकास निधि में जमा कराया जाएगा और शेष आधा भग पंचायत द्वारा किसी भी अन्य प्रयोजन के लिए जैसा कि उचित समझा जाए, उपयोग में लाया जा सकता है।


3.2.5 स्वयं सहायता समूहों के लिए परिक्रमी निधि ( revolving fund for self help groups )


ग्राम पंचायत आय अर्जन सम्बन्धी कार्यकलाप आरम्भ करने हेतु एक लाख रूपये से अधिक राशि की परिक्रमी निधि स्थापित करेगी जिसे स्वयं सहायता समूहों को व्यावसायिक विकास के लिए मूल राशि ( सीड मनी ) के रूप में दिया जाएगा। प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को यह राशि 10.000- रूपये से अधिक दर पर मुहैया करायी जाएगी। स्वयं सहायता समूह के सदस्यों से यह मूल धनराशि मासिक आधार पर अधिक सेअधिक 6 किस्तों में वापस ली जाएगी। इस राशि को उसी या अन्य स्वयं सहायता समूह में पुनः निवेश किया जा सकेगा। राज्य स्तर द्वारा इस सम्बन्ध में पृथक से निर्देश जारी किये जा सकते हैं।


3.2.6 कार्यक्रमों का समेकन ( integration of the programmes )


जल संग्रहण विकास कार्यक्रम का लक्ष्य जल संग्रहण क्षेत्रों का समग्र रूप से विकास करना है। भारत सरकार के सभी कार्यक्रमों, विशेष रूप से ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रमों का समेकन किए जाने से अन्तिम अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति में वृद्धि होगी तथा इससे ग्रामीण समुदाय को सतत् रूप से आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा। अतः जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण जल संग्रहण विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए चुने गए गाँवों में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अन्य सभी कार्यक्रमों जैसे सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना ( एस. जी. आर. वाई. ), स्वर्ण जंयती ग्राम स्व-रोजगार योजना ( एस. जी. उस. वाई. ) इन्दिरा आवास योजना ( आई. ए. वाई. ) सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान ( टी.एस. सी. ) तथा ग्रामीण पेयजल की आपूर्ति कार्यक्रम का समेकन सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव उपाय करेगा। इन गाँवों में अन्य मंत्रालयों अर्थात स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, शिक्षा, सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता और कृषि मंत्रालय और राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे समान स्वरूप के कार्यक्रमों का समेकन करना भी उपयोगी रहेगा।


3.2.7 ऋण सुविधा ( loan facilty )


जल संग्रहण विकास परियोजनाओं के लिए सामान्य लागत मानदण्ड परिशिष्ट-1 में दिए गए अनुसार रहेगें। तथापि, जिला परिषद/जिला ग्रामीएा विकास अभिकरण जल संग्रहण क्षेत्रों में आगे और विकासात्मक कार्य करने के लिए बैकों द्वारा अथवा अन्यय वित्तीय संस्थाओं द्वारा मुहैया कराई जाने वाली ऋण सुविधाओं का स्वयं सहायता समूहों, प्रयोक्ता समूहों, पंचायतों और व्यक्तियों द्वारा लाभ उठाने के बारे में पता लगायेगा और उन्हें प्रोत्साहित करेगा।


3.2.8 निगरानी तथा समीक्षा( supervision and review )


ग्राम पंचायत जल संग्रहण विकास दल द्वारा संवीक्षित और अनुमोदित तिमाही प्रगति रिपोर्ट परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण को प्रस्तुत करेगी। परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण तिमाही प्रगति रिपोर्टों को राज्य सरकार के माध्यम से भूमि संसाधन विभाग को आगे भेजने हेतु जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को प्रस्तुत करेगी। जिला स्तर पर जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण परियोजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करेगा। राज्य स्तर पर संबंधित विभाग के सचिव इन परियोजनाओं की नियमित निगरानी करने तथा परियोजनाओं के मध्यावधिक और अन्तिम मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी होंगे। भूमि संसाधन विभाग भी जल संग्रहण विकास परियोजनाओं का मूल्यांकन करवाने/प्रभाव संबंधी अध्ययन करवाने के लिए स्वतंत्र संस्थाओं/व्यक्तियों को नियुक्तियों को नियुक्त कर सकता है। जिला और राज्य स्तरीय सतर्कता और निगरानी समितियाँ भी जल संग्रहण परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा कर सकती हैं।


जानकारी हेतु पूछताछ


आगे जानकारी हेतु निम्नलिखित को लिखे


(क) जिला स्तर पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जिला परिषद/परियोजना निदेशक, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण


(ख) राज्य स्तर पर सचिव/आयुक्त/ निदेशक, ग्रामीण विकास।


(ग) राष्ट्रीय स्तर पर  भूमि संसाधन विभाग/ग्रामीण विकास मंत्रालय, एन.बी.ओ. बिल्डिंग, जी विंग, निर्माण भवन, नई दिल्ली-110011


3.3. कृषि मंत्रालय द्वारा पोषित राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु निधियों के आवंटन/उपयोग की प्रक्रिया


इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, जंगल, जमीन, जन-मानस, जानवर का स्थायी एवं सतत् विकास सुनिश्चित करना, कृषि योग्य भूमि से उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाना तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन उपलब्ध करना है। 10वीं पंचवषीय योजना अवधि के दौरान लागू वरसा जन सहभगिता मार्गदर्शिका के अनुसार परियोजना क्रियान्वयन एजेन्सी द्वारा जलग्रहण विकास दल की नियुक्ति की जाती है, जिसमें कृषि अभियांत्रिक, कृषि, पशुपालन एवं सामाजिक-विज्ञान के विशेषज्ञ होते हैं। इनके परामर्श एवं तकनीकी मार्गदर्शन में ही जलग्रहण विकास गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं। जलग्रहण समुदाय की साधारण सभा जिसे जलग्रहण संस्था कहा जाता है, का गठन करवाया जाता है, जो कि औपचारिक रूप से सहकारिता विभाग द्वारा सोसाइटी अधिनियम अन्तर्गत पंजीकृत करवाई जाती है। स्वयं सहायता समूहों में से चार, उपभोक्ता समूहों में से पाँच एवं ग्राम पंचायत व डब्ल्यू.डी.टी. में से एक प्रतिनिधि नामजद कर ग्यारह सदस्यीय ''जलग्रहण समिति' बनाई जाती है। समिति के रोजमर्रा के काम एवं लेखे आदि संधारण करने में मद्द हेतु वेतनभोगी जलग्रहण सचिव एवं जलग्रहण कार्यकर्ताओं की पहचान की जाती है।


जैसे कि ऊपर बताया गया है प्रति हैक्टेयर लागत रु. 4500 अथवा 6000 के हिसाब से इस योजना हेतु 500 हैक्टेयर के जलग्रहण के जलग्रहण क्षेत्र की लागत 8 प्रतिशत कम ढाल वाले क्षेत्रों हेतु 22.5 लाख तथा 8 प्रतिशत से अधिक ढाल वाले क्षेत्रों हेतु 30 लाख बनती है जिसका घटकवार प्रतिशत प्रावधान निम्न प्रकार से हैं-


वरसा जनसहभागिता मार्गदर्शिका के अनुसार कुल 100 प्रतिशत राशि का वृहद मदों के अन्तर्गत निम्नानुसार बंटवारा किया जाता हैः-


 

































































1.



प्रबंन्धन मद



 



(अ)



प्रशासनिक मद   



10 प्रतिशत



(ब)



प्रशिक्षण मद       



5 प्रतिशत



(स)



सामुदायिक संगठन मद   



7.5 प्रतिशत



 



   योग (1)             



22.5 प्रतिशत



2.



विकास मद



 



(अ)



प्राकृतिक संसाधन विकास              



50 प्रतिशत



 



(ब)



फार्म उत्पादन प्रवृति         



20 प्रतिशत



 



(स)



भूमिहीन परिवारों हेतु सहायता       



7.5 प्रतिशत



 



 



योग (2)



77.5



 



 



    महायोग   (1+2)                                                       100 प्रतिशत



 



3.3.1 वित्तीय शक्तियाँ (Financial powers)


अधिकांश कार्य वास्तव में उपभोक्ता समूहों द्वारा निष्पादित किये जाते हैं। रूपये 1000 तक के व्यायों के लिए जलग्रहण समिति के अध्यक्ष को प्राधिकृत किया गया है और रूपये 1000 से अधिक के व्ययों के लिए जलग्रहण समिति के अध्यक्ष एवं जलग्रहण विकास दल के सम्बन्धित सदस्य संयुक्त रूप से प्राधिकृत हैं।


जिला अध्यक्ष सामुदायिक संगठन, आदि के तहत किसानों को यात्रा भत्ता/महंगाई भत्ता, कार्यदक्ष अतिथियों को मानदेय देने और किये जाने वाले अन्य फुटकर खर्चों के लिए कुछ लागत मानदंड (कोस्ट नाम्र्स) निधारित करेगा। ये लागत मानदण्ड यथा संभव केन्द्र सरकार की सम्बन्धित योजनाओं के सामान ही होंगे।


3.2.2 जिला स्तर को निधि के प्रवाह (फण्डफ्लो) की क्रियाविधि (Procedure for fund flow to the Districts)


प्रत्येक मंत्रालय की निधि प्रवाह, क्रियाविधि विशिष्ट होगी। कृषि मंत्रालय के मामले में यह क्रियाविधि निम्नानुसार संचालित होगी।



  1. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार से राज्य सरकार के नोडल विभाग जैसे कृषि विभाग जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग/राज्य भूमि विकास निगम इत्यादि।

  2. राज्य विभागों से कृषि/मृदा संरक्षण/वाटरशेड प्रबंधन/राज्य भूमि विकास निगमों आदि विभागों के जिला अध्यक्ष तक।


(3) कृषि/मृदा संरक्षण आदि विभागों के जिला अध्यक्षों से सम्बन्धित जलग्रहण संस्थान (प्रबंधन घटक के लिए पी.आई.ए. विकास घटक के लिए जलग्रहण संस्था और क्षमता निर्माण घटक के लिए सहायक अभिकरण (सपोर्ट एजेन्सी) यदि कोई हो तक।


3.3.3 जलग्रहण बजट जारी बरना (Release of watershed Budget)


विभन्न अभिकरणों को निधि जारी करने सम्बन्धी विस्तृत विवरण परिशिष्ट-3 से 8 में दिये गये हैं। परिशिष्ट-3, 4 में विभिन्न अभिकरणों को प्रतिवर्ष जारी की जाने वाली निधि के मानक प्रतिशत सम्बन्धी सूचना संकलित है। परिशिष्ट-5,6 में उन जलग्रहण क्षेत्रों जिनका कि कुल बजट केवल रु. 225 लाख ही है (जहाँ औसत ढाल 8 प्रातिशत से कम है) को जारी की जाने वाली वास्तविक राशि के सम्बन्ध में सूचना संकलित है। परिशिष्ट-7,8 में इन जलग्रहण क्षेत्रों जिनका कि कुल बजट रु. 30 लाख है (जहाँ औसत ढाल 8 प्रतिशत से अधिक है) को जारी की जाने वाली वास्तविक राशि के सम्बन्ध में सूचना संकलित है।


3.3.4 घटकवार उपयोग हेतु मार्गदर्शन (Guidelines to use component-wise Budget)


(l)  प्रशासनिक मद


प्रशानिक लागत के लिए 10 प्रतिशत आवंटन में से 4 प्रतिशत सीधे जलग्रहण समिति को जारी की जायेगी, 5 प्रतिशत राशि परियोजना क्रियान्वयन संस्था को और 1 प्रतिशत राशि जिला/राज्य नोडल एजेन्सी के पास आवंटित की आयेगी/रहेगी। जलग्रहण समिति के लिए प्रस्तावित राशि का उपयोग जलग्रहण सचिव और कार्यकर्ताओं को मानदेय देने, जलग्रहण कार्यालय के किराये के भुगतान और कार्यालय के विभिन्न फुटकर व्ययों को पूरा करने के लिए किया जायेगा अधिकांश गाँवों में सामुदायिक भवनों/निजी मकानों आदि में निःशुल्क व्यवस्था का प्रबंध किया जायेगा। ग्राम स्तर पर निःशुल्क आवास व्यवस्था नहीं होने की स्थिति में ही जलग्रहण समिति का कार्यालय भवन किराये पर लिया जाना चाहिए। परियोजना क्रियान्वयन संस्था की प्रशासनिक निधि का उपयोग परियोजना अवधि के लिए संविदा आधार पर भाड़े पर लिये गये जलग्रहण विकास दल के 4 सदस्यों के वेतन, जलग्रहण क्षेत्र में किराये पर लिये गये जलग्रहण विकास दल के यात्रा भत्ता, महंगाई भत्ता, परिवहन, अंशकालीन लेखा सहायक के मानदेय, प्रतिवेदनों के टंकण कार्य और अन्य फुटकर व्ययों के लिए किया जायेगा। इस प्रयोजन हेतु परियोजना क्रियान्वयन संस्था राष्ट्रीयकृत/सहकारी बैंक में खाता खोलेगा जिसका सचालन पी.आई.ए. के सक्षम अधिकारियों द्वारा किया जायेगा। जिला/राज्य नोडल एजेन्सी के प्रशासनिक व्यय का उपयोग, विषय विशेषज्ञों द्वारा जलग्रहण क्षेत्रों का दौर करने, जलग्रहण कार्यक्रमों को सहयोग दने के लिए, अल्पावधि परामर्शियों के यात्रा भत्ता, मंहगाई भत्ता के भुगतान पर किया जायेगा।


(ll) सामुदायिक संगठन मद


सामुदायिक संगठ तथा अन्य गतिविधियों के लिए आवंटित 7.5 प्रतिशत राशि में से 3 प्रतिशत राशि प्रवेश बिन्दु गतिविधियों के लिए जिला अध्यक्ष द्वारा जलग्रहण समिति को सीधे जारी की जायेगी; 2 प्रतिशत राशि परियोजना क्रियान्वयन संस्था को ग्राम स्तरीय सामुदायिक संगठनकर्ता के मानदेय स्वीकृत करने (साख एवं मितव्ययी गतिविधियों से सम्बन्धित स्वयं सहायता समूहों और उपभोगता समूहों को पोषित करने के लिए) तथा शेष 2.5 प्रतिशत राशि जिला मुख्यालय पर कार्यक्रम एवं मार्गदर्शिका के प्रचार-प्रसार लिए, माइक्रो स्तर पर प्रौद्योगिकीय निवेश के उत्पादन को सहायता देने हेतु (अर्थात एन.पी.वी. आधारित कीटनाशियो, रेशम उत्पादन आदि, के लिए रेशम कीड़ों के पालन आदि), ग्राम स्तर पर प्रौद्योगिकी सूचना सहायता हेतु, जलग्रहण समिति की कार्पस निधि के प्रावधान हेतु, जलग्रहण मार्गदर्शिका आदि के प्रचार-प्रसार पर होने वाले विविध व्ययों के लिए रोक ली जावेगी।


(lll)  प्रशिक्षण मद


        प्रशिक्षण कार्यक्रमों की 5 प्रतिशत राशि में से पी.आई.ए. को 2 प्रतिशत राशि एक्सपोजर विजिट कार्यक्रमों हेतु और जलग्रहण संस्था/जलग्रहण समिति, स्वयं सहायता समूह उपभोक्ता समूहों के प्रशिक्षण के लिए जारी की जायेगी, 2 प्रतिशत राशि जिला नोडल एजेन्सी को पी.आई.ए. डब्ल्यू.डी.टी. आदि के लिए अनुस्थापन (ओरियन्टेशन) और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने के लिए जारी की जायेगी, शेष 1 प्रतिशत राशि राज्य मुख्यालय पर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संगठनों को सहायता देने, राज्य स्तरीय प्रशिक्षणार्थियों के प्रशिक्षण के लिए, जिला एवं राज्य पर वरिष्ठ अधिकारियों, परियोजना क्रियान्वयन संस्थाओं के ओरियन्टशन के लिए, जिला अध्यक्षों की वार्षिक कार्यशाला के आयोजन, स्वसमर्थित संगठनों आदि की आधारभूत आवश्यकताओं के लिए रोक ली जावेंगी।


इसके अतिरिक्त कार्य मद हेतु निर्धारित 77.5 प्रतिशत राशि में से 50 प्रतिशत राशि में से 50 प्रतिशत राशि प्राकृतिक संसाधन विकास मद अन्तर्गत कृषि भूमि अकृषि भूमि एवं निकास नाली उपचार में संरक्षण उपायों इत्यादि हेतु, 20 प्रतिशत राशि फार्म उत्पादप मद अन्तर्गत उन्नत कृषि विधियों का प्रयोग, प्रचलित कृषि विधियों का प्रयोग, प्रचलित कृषि विधियों का प्रयोग, कृषि विधियों का प्रयोग, कृषि वानिकी, शुष्क उद्यानिकी, कृषि विविधिकरण इत्यादि हेतु तथा शेष 7.5 प्रतिशत राशि स्वयं सहायता समूहों को जीविकोपार्जन की विभिन्न गतिविधियों हेतु सहायता प्रदान की जाती है।


प्राकृतिक संसाधनों के अन्तर्गत निजी भूमि संसाधन हेतु कम से कम भूमि को बिना जुता रखने एवं खेतों में पूर्ण रूप से नमी संरक्षित रखने के मार्गदर्शी सिद्वान्तों के तहत अंशदान देने के इच्छुक कृषकों के यहाँ ही रिज टू वैली एप्रौच से कार्य किया जाता है, जिसमें निजी एवं बंजर भूमि का सुधार भी शामिल है। जल एवं मृदा-संरक्षण उपायों सहित समस्याग्रस्त भूमि भी उपचारित की जाती है। सामान्य ( सामूहिक ) भूमि संसाधन प्रबन्धन के अन्तर्गत चारागाह विकास में सरंक्षण के उपाय वी. डिच बीजारोपण/पौधारोपण आदि कार्य किये जाते हैं। जल संसाधनों के  विकास हेतु जहाँ की तहाँ ( इन सिटु ) नमी संरक्षण, विभिन्न संरचनाओं द्वारा जल संरक्षण भूजल एवं अधिवेश वर्षाजल के संरक्षण हेतु अधिकतम देश ज्ञान का सदुपयोग किया जाता है।


भूमि की उत्पादकता एवं जल आधारित उपक्रमों के सुधार के लिये तकनीकी प्रबंधन व्यवस्था में नवीन एवं चिरस्थायी तकनीकों का परीक्षण एवं प्रदर्शन जैसे कि एकीकृत कीटनाशक, सूखा प्रतिरोधी अल्पावधि प्रजातियाँ, खेती  पद्धति में विभिन्नीकरण पर जोर दिया जाता है। पशुधन के मामले में मौजूद नस्ल सुधार, बीमारी के नियंत्रण हेतु लागत प्रभावी  पद्धतियों के अंगीकरण/पोषकों का वित्तीय प्रबंधन, मौसमी चारे की उपलब्धता, अनुत्पादक पशुओं की छंटनी कर पशुधन उत्पादकता में वृद्धि की जाती है। खेतीहार भूमि में बागवानी एवं वानिकी के सम्मिलित प्रयासों से चारा, लकडी एवं फल आदि से नगद आय उपलब्ध करायी जाती है। भूमिहीन परिवारों की आय एवं अजीविका की उन्नति हेतु संबधित परिवारों द्वारा तैयार किये गये माइक्रो प्लान के विरूद्व स्वयं सहायता समूहों को मैचिंग रिवोल्विगं निधी, परियोजना मद से उपलब्ध करायी जाती है। इसमें संसाधनहीन परिवारों एवं महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु पूरा ध्यान रखा जाता है, जिसकी अधिकतम सीमा 25000/ रूपये प्रति समूह है ( बशर्ते विकसित स्वयं सहायता समूह की बचत मांग की गई सहायता से आधी अथवा अधिक हो (।


विस्तृत अध्ययन एवं सहायता हेतु बरसा जन सहभागिता का अध्ययन किया जा सकता है।


कुल मिलाकर परियोजना परिव्यय की 10 प्रतिशत राशि प्रथम वर्ष में , 20 प्रतिशत राशि द्वितीय वर्ष में 27.3 प्रतिशत राशि तीसरे वर्ष में, 21.2 प्रतिशत राशि चैथे वर्ष में तथा शेष 21.5 प्रतिशत राशि पांचवे वर्ष में जारी की जावेंगी। प्रत्येक वर्ष निधि 2 बराबर किस्तों में जारी की जायेगी। प्रथम किस्त के बाद दूसरी किस्त, पूर्व किस्त की 50 प्रतिशत राशि की उपयोगतिा के पश्चात ही जारी की जावेगी।


नोडल विभाग का जिला अध्यक्ष प्रत्येक परियोजना राशि में से अपने प्रबंन्धन घटक के तहत अंश को रोकते हुए परियोजना क्रियान्वयन एजेन्सी को प्रशासनिक लागत सामुदायिक संगठन और प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए निधि जारी कर सकेगा। जिला अध्यक्ष परियोजना क्रियान्वयन संस्था से प्राप्त सहमति के आधार पर प्रवेश बिन्दु गतिविधि एवं कार्य घटक (वर्कस कम्पोनेन्ट ) के लिए राशि सीधे जलग्रहण संस्था को जारी कर सकेगा। परियोजना किक्रयान्वयन एजेन्सी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जलग्रहण समिति द्वारा, जलग्रहण संस्था के नाम से जलग्रहण परियोजना खाता जिला अध्यक्ष द्वारा प्रवेश बिन्दु गतिविधियों एवं कार्य घटक के लिए निधि जारी करने से पूर्व खोला गया है।


परियोजना हेतु निधियों का आंवठन जलग्रहण संस्था द्वारा स्वीकृत कार्य योजना के विपरीत राशि आवंटन पी. आइ. ए. द्वारा इस कार्य के लिये विशेष रूप से खोले गये खाते में किया जाता है, जो कि जलग्रहण कमेटी के अध्यक्ष, डब्ल्यू,डी,टी, के एक सदस्य और जलग्रहण सचिव के संयुक्त हस्ताक्षरों से संधारित होता है। राशि का मदवार आवंटन/व्यय पाँच वर्षो तक लगातार  उपर्युक्त खाते में से किया जाता है। परियोजना अन्तर्गत निर्मित सामुदायिक परिसम्पत्तियों के उपयुक्त रख-रखाव की सुनिश्चितता हेतु अनुमोदित परियोजना लागत का एक प्रतिशत जलग्रहण विकास निधि ( कोर्पस ) निधि के रूप में चिन्हित कर समुदाय को उपलब्ध कराया जाता है। स्थानीय ग्रामीण अपना अंशदान  नियमानुसार अलग से उपलब्ध कराते हैं, जो कि एक बैंक खाते में रखा जाता हैं। परियोजना के अनुवेक्षण एवं मूल्यांकन हेतु भी व्यवस्थाएं की गई हैं।


3.3.5 निधि के पुर्नआंवटन में लचीलापन( flexibilit in  re-allocation of funds )


यथा सम्भव परियोजना क्रियान्वयन संस्था मार्गदर्शिका में दर्शाये अनुसार विस्तृत आवंटन के अन्तर्गत निधि के उपयोजन को प्रतिबंधित करेगा। तथापि विशेष परिस्थितियों में एक उपघटक से दूसरे उपघटक के लिए 10 प्रतिशत की सीमा तक बजट का पुर्नआंवटन किया जा सकेगा। विकास घटक की किसी राशि को प्रबंन्धन घटक के लिए हस्तान्तरित नहीं किया जा सकेगा तथापि प्रंबधन घ्टक की किसी बचत को विकास घटक के लिए हस्तान्तरित किया जा सकेगा।


3.3.6 समुदाय में अंशदान की दर (rate of contribution foor the communtiy )


विभिन्न गतिविधियों और समुदायों के लिए अंशदान की दर्रे भिन्न-भिन्न होंगी। वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुच्छेद 79, 80 तथा 81 में दिये गये विस्तृत विवरण के अनुसार व्यक्तिपरक गतिविधियों के लिए अंशदान की सीमा 10 से 50 प्रतिशत और समुदाय परक गतिविधियों के लिए न्यूनतम 5 प्रतिशत होगी। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के  लिए अंशदान की सीमा व्यक्तिपरक गतिविधियों के 5 से 25 प्रतिशत और समुदाय परक गतिविधियों के लिए न्यूनतम 5 प्रतिशत होगी। दो घटकों के बजट के कुछ भाग का उपयोग अर्थात भूमि धारत करने वाले परिपारों के लिए फार्म उत्पादन  पद्धति और भूमिहीन किसानों के लिए जीविका समर्थन प्रणाली का उपयोग अनुच्छेद 82 के अनुसार उपभोक्ता समूहों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा परिक्रामी निधि ( रिवोल्विंग फण्ड ) के रूप में किया जायेगा।


मृदा संरक्षण उपायों के मामले में कार्य रिज टू वैली से प्रारम्भ किया जाना चाहिए।इससे अपर रिचेज में सीमान्त भूमि के विकास में सहायता मिलेगी और लारेअर रिचेज में हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर में गाद जमाव भी कम होगा, तथापि अपर रिचेज के कुछ किसान अक्रियाशील ( भूमि मालिकों आदि की अनुपस्थिति में ) या अन्य किसी कारण से अंशदान करने के इच्छुक नहीं होते, ऐसे क्षेत्रों में कार्य किसानों को सहभागी बनने के लिए प्रोत्साहित किये जाने तक स्थगित रखा जाना चाहिए। ऐसी स्थितियों में उपायों के डिजाइन में आवश्यक परिवर्तन किये जाये ( उपर्युक्त किसानों द्वारा सहभागिता न  करने से उत्पन्न प्रभावों को कम करने के लिए )।


वाटर हार्वेस्ंिटग स्ट्रक्चर्स के मामले में केवल उन्ही कार्यो के सम्बन्ध में विचार किया जाये, जिनके लिए वास्ताविक उपभोक्ता का लिखित मांग पत्र प्राप्त होता है। ऐसे उपायों के लिए सम्भावित लाभान्वित को सही रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक उपभोक्ता से समतुल्य लाभ अनुपात में अंशदान प्राप्त किया जाना चाहिए। ऐसे मामले जिनमें कि रनआॅफ वाटर की उपलब्धता के मुकाबले ऐसे ढांचे की मांग अधिक है, डब्ल्यू. डी.टी के माध्यम से उचित सरलीकरण करके सामुदायिक परामर्श द्वारा प्राथमिकीकरण कार्य किया जाना चाहिए। ऐये परिवारों जिनकों कि प्रस्तावित उपायों से हानि होने की सम्भावना हैं, से विरोधाभास भी हो सकता है। अतः उपर्युक्त विरोधाभास का समाधान हो जाने के पश्चात ही ऐसे कार्यो का क्रियान्वयन प्रारम्भ किया जाये।


3.3.7 अप्रयुक्त राशि (लेफट ओवर अमाऊन्ट ) का परियोजना पश्चात व्यय


( expenditure of un-used funds after completion of the project )


यद्यपि परियोजना निधि का उपयोग परियोजना अवधि में किया जाना हैं, जलग्रहण समिति द्वारा परियोजना समाप्त होने की तारीख के छः माह पश्चात तक इस राशि का व्यय किया जा सकता है। निधि का उपयोग विकास कार्यो के लिए किया जा सकता है। तथापि  परियोजना समाप्त होने की तारीख के पश्चात इसका उपयोग प्रशासनिक पहलुओं के लिए नहीं किया जायेगा। किसी भी बचत को विकास घटक में हस्तांतरित कर दिया जावेगा।


3.3.8 काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार राष्ट्रीय जलग्रहण परियोजना का क्रियान्वयन


( implementation of national watershed development project as per common guidelines )


जैसा कि पूर्व में अध्यायों में बताया गया है भारत सरकार के स्तर से जारी नई काॅमन मार्गदर्शिका 1.4.2008 से राज्य में प्रभावी हो गई है। इससे पूर्व 10 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में जो जलग्रहण परियोजनाएं क्रियान्वित की गई थी वे वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुसार क्रियान्वित की गई थी। समय के साथ बदलते परिदृश्य के अनुसार यह आवश्यक है कि हम पृथक-पृथक मार्गदर्शिका में उल्लेखित प्रावधानों , समय के साथ लाए गए बदलावों एव. अन्य विशेषताओं का गहराई से अध्ययन करें।


 काॅमन गाईड लाइन के प्रमुख बिन्दु



  1. राज्य को शक्ति प्रदान की गई हैः राजय अपने यहाँ जलग्रहण परियोजनाएं देंखेगे व स्वीकृत करेंगे। अब तक परियोजाएं स्वीकृत हेतु भारत सरकार को भेजी जाती थी जो कि अब नहीं भेजी जायेगी। वे राज्य स्तर पर स्वीकृत होगी व राज्य द्वारा ही उनका क्रियान्वयन देखा जायेगा।

  2. समर्पित संस्थान: राष्ट्रीय राज्य व जिला स्तर समर्पित क्रियान्वयन अभिकरण होंगे जिनमें बहुसंकायी पेशेवरों के दल जलग्रहण कार्यक्रमों का प्रबंन्धन करेंगे। ये संस्थान व्यावसायिक रूप से बेहतर कार्य कर सकेगें क्योकि उन्हें अब सिर्फ यही काम देखना है।

  3. समर्पित संस्थानों को वित्तीय सहायता जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर जलग्रहण परियोजनाओं को मजबूती देने हेतु अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी जायेगी।

  4. कार्यक्रम की अवधि अब तक यह अवधि नियत ( 5 वर्ष ) रहती थी। अब इसे लचीला बनाकर 4 से 7 वर्ष किया गया है जो कि 3 अलग-अलग चरणों में विभक्त होगीं, तैयार कार्य व सघनीकरण चरण।

  5. आजीविका उन्मुख: उत्पादकता में वृद्धि व आजीविका को उच्च प्राथमिकता प्रदान की जायेगी ( संरक्षण उपायो के साथ-साथ ) पशुधन आधारित आजीविका समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

  6. कलस्टर पहुँच: माइक्रो जलग्रहण साथ-साथ जुडें हुए (कलस्टर ) जो कि 1000 से 5000 हैक्टेयर होंगे लिये जायेगें। यदि संसाधन व क्षेत्र उपलब्ध है तो अतिरिक्त क्षेत्र भी कलस्टरर्स में जुडा़ हुआ लिया जा सकता है।

  7. वैाज्ञानिक आयोजनाः सूचना प्रौद्योगिकी व रिमोट सेंसिग इनपुट का उपयोग परियोजना आयोजना, मानीटरिंग व मूल्यांकन में किया जायेगा।

  8. कैपेसिटी बिल्डिंग: तय एक्शन प्लान के मुताबिक सभी कार्यकर्ताओं व दावेदारों को क्षता निर्माण व प्रशिक्षण किया जावेगा।

  9. जलग्रहण विकास हमेशा रिज से वैली की ओर किया जाता है। ऊँची रिज में अक्सर जंगल व पहाड़ होते हैं अतः इन क्षेत्रों के विकास पर वन विभाग व संयुक्त वन प्रबन्धन कमेटी द्वारा ज्यादा जोर दिया जावेगा। मंझली रिज में कृषि भूमि के ऊपर के ढलान होंगे। एग्रो फारेस्ट्री, शुष्क उद्यानिकी, क्रापिंग पैटर्न, भूमि उपचार द्वारा जिन्हें विकसित किया जावेगा। निचले क्षेत्र में ज्यादातर खेती होती है, वहाँ श्रम आधारित कार्यो की मात्रा काफी ज्यादा होगी अतः नरेगा व बी. आर. जी. एफ. आदि के साथ तालमेल बिठाया जा सकता है।


कामन मार्गदर्शिका के अनुसार संस्थागत व्यवस्थाएँ


( institutional arrangements as per common guidelines )


भारत सरकार के स्तर पर नेशनल रेनफेड एरिया आथोरिटी स्थापित की गई है जो कि सम्पूर्ण राष्ट्र में समस्त मंत्रालयों एवं अन्य संस्थाओं द्वारा सम्पादित किये जा रहे जलग्रहण विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन, नीतिगत दिशा निर्देश प्रदान करने के सम्बन्ध में   सर्वोच्च अधिकार प्राप्त प्राधिकरण है। राष्ट्रीय स्तर पर ही कृषि मंत्रालय, ग्रामीण  विकास मंत्रालय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इत्यादि द्वारा विधियों का आंवटन जलग्रहण पिकास परियोजनाओं हेतु किया जाता है तथा इन  मंत्रालयों में विभिन्न प्रकोष्ठ नियमित रूप से योजनाओं की समीक्षा करते है। विभिन्न राज्यों केस्तरों पर राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी गठित किए जाने का उल्लेख है। राजस्थान में राज्य स्तरीय नोडल एंजेसी का गठन किया जा चुका है जिसके अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य सचिव ( विकास ) है तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सदस्य सचिव, आयुक्त जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग को नामित किया गया है। आयुक्तालय जलग्रहण विकास, एवं भू संरक्षण कृषि भवन, जयपुर स्थित कार्यालय में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ , आयुक्त जलग्रहण विकास एवं एस. एल. एन. ए. की सहायता हेतु उपलब्ध है। जिला स्तरों पर जिला जलग्रहण विकास इकाई गठित किए जाने का उल्लेख है जिसके प्रमुख परियोजना प्रबन्धक होगें। वर्तमान  प्रक्रिया में अधिशासी अभियन्ता ( भू संसाधन ) जिला परिषदों के अधीन जलग्रहण विकास कार्य सम्पादित करवा रहे हैं। उन्हें परियोजना प्रबन्धक के रूप में नामित किए जाने का निर्णय लिया गया है। परियोजना प्रबन्धन, सामाजिक विज्ञान, वन इत्यादि नियोजित किए जाने का प्रावधान है।


परियोजना के क्रियान्वयन हेतु जिलों के अधीन परियोजना  क्रियान्वयन संस्था का चयन किए जाने का उल्लेख किया गया है। कोई भी राजकीय विभाग, स्वैच्छिक/अनुसंधान संस्थान, पंचायती राज संस्थान इत्यादि परियोजना क्रियान्वयन संस्था के रूप में चयनित हो सकता है। वर्तमान में पचायत समितियाँ द्वारा परियोजना क्रियान्वयन संस्था  का कार्य किया जा रहा है। प्रत्येक परियोजना क्रियान्वयन संस्था द्वारा न्यूनतम 4 सदस्यीय जलग्रहण विकास दल का नियोजन किया जाता है जिसमें जल प्रबन्धन, कृषि, मृदा विज्ञान पशुपालन, संस्थागत व्यवस्था एवं क्षमता   निर्माण के विशेषज्ञ सम्मिलित हो सकते हैं। एक महिला सदस्य की अनिवार्यता का भी उल्लेख किया गया है। उक्त दल के सदस्यों का व्यावसायिक योग्याताधारी होना अपेक्षित है। जलग्रहण विकास दल के सदस्यों का मुख्य कार्य जलग्रहण विकास की विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन को मांग आधारित एवं तर्कसंगत बनाना, अपने विषय से संबधित वास्ताविक कार्य योजना का समावेश करना तथा अनुमोदित डी. पी. आर. के अनुसार कार्यो का क्रियान्वयन, गुणवत्ता एवं जवाबदेही को ध्यान में रखते हुए सुनिश्चित करना है।


कामन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण विकास परियोजा तीन चरणों में विभक्त होगी


(!) तैयारी चरण (!!) कार्य व (!!) सघनीकरण व निकासी चरण


जलग्रहण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत बढे़ हुए स्कोप व आशाओं के दृष्टिगत परियोजना अवधि 4 से 7 वर्षो में हो सकती है। यह अवधि गतिविधियों व मंत्रालय/विभागों पर निर्भर करेगी। विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन ( डी. पी. आर. ) में प्रस्तावित परियोजना अवधि के लिए विस्तृत औचित्य का उल्लेख होना चाहिये। परियोजना अवधि नोडल मंत्रालय द्वारा निर्णय लिये अनुसार 3 भिन्न चरणों में फैलायी जा सकती है एवं निम्नलिखित हो सकती है।


 


























चरण



                नाम       



अवधि



i



तैयारी चरण        



1-2   वर्ष



ii



जलग्रहण कार्य चरण         



2-3   वर्ष



iii



सघनीकरण व निकासी चरण          



1-2   वर्ष



कामन मार्गदर्शिका के हिन्दीं संस्करण का अध्ययन विद्यार्थियों के लिए लाभकारी रहेगा।


3.4 ग्रामीण विकास योजनान्तर्गत वित्तीय प्रावधान


परिशिष्ट-1



  1. जलग्रहण संग्रहण विकास परियोजनाएं केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित दर पर स्वीकृत की जायेगीं। वर्तमान दर 6000 रूपए प्रति हैक्टेयर हैं।

  2. प्रशासनिक व्यय के सम्बन्ध में अधिकतम सीमा।


 






































































































1



 



जिला  परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के स्तर पर जल संग्रहण विकास दल के सदस्यों को  प्रशिक्षण ( 10 जल संग्रहण विकास परियोजनाओं के लिए )



30.000 रूपए



 



(i)



एक जल संग्रहण विकास परियोजना के लिए अनुमानित व्यय               



3.000 रूपए



 



( ii)



विविध व्यय/जल संग्रहण विकास परियोजना            



3.000 रूपए



 



(क)



एक जल संग्रहण परियोजना के लिए योग    



6.000 रूपए



2.



 



परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण जल संग्रहण विकास दल के स्तर पर (10 जल संग्रहण विकास परियोजनाओं के लिए)



 



 



(i)



जल संग्रहण विकास दल के सदस्यों को मनादेय        



7.50.000  रूपए



 



(ii)



यात्रा भता /दैनिक भत्ता  



4.50.000  रूपए



 



(iii)



कार्यालय कर्मचारी / आकस्मिकताएँ           



2.70.000  रूपए



 



 



10 जल संग्रहण विकास परियोजनाओं के लिए योग  



14.70.000  रूपए



 



(ख)



एक जल संग्रहण परियोजना के लिए               



1.47.000



3.



 



ग्राम स्तर पर



 



 



(i)



स्वयंसेवकों / वन रक्षकों को मानदेय             



1.20.000  रूपए



 



(ii)



यात्रा भता /दैनिक भत्ता



15.000  रूपए



 



(iii)



कार्यालय आकस्मिक व्यय             



12.000  रूपए



 



(ग)



प्रत्येक जल संग्रहण परियोजना के लिए योग              



1.47.000  रूपए



 



 



500 हैक्टेयर क्षेत्र के प्रति जल संग्रहण के लिए प्रशासनिक कुल व्यय ( क़ख़ग ) के सम्बन्ध में लागत का कुल योग      



3.00.000  रूपए



परिशिष्ट-2


जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण (पी.आई.ए.) तथा ग्राम पंचायत को जारी की जाने वाली परियोजना निधियाँ  









































































































वर्ष



किश्त



प्रतिशत



अभिकरण



प्रतिशत



संघटकों का ब्यौरा



प्रतिशत ब्यौरा



प्रथम



पहली



15



परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण                                           


 



4



प्रशासनिक लागत सामुदायिक विकास एवं प्रशिक्षण



1 प्रतिष


 


3 प्रतिशत



 



 



 



ग्राम पंचायत                                        1


 



11



प्रशासनिक लागत कार्यगत लागत



प्रतिशत


10 प्रतिशत



द्वितीय



दूसरी     



30



परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण                           



2



प्रशासनिक लागत सामुदायिक विकास एव  प्रशिक्षण



1 प्रतिशत


1 प्रतिशत


 



 



 



 



ग्राम पंचायत



28



प्रशासनिक लागत कार्यगत लागत



1 प्रतिशत


27 प्रतिशत



तृतीय



तीसरी



30



परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण                                           



2



प्रशासनिक लागत सामुदायिक विकास एवं प्रशिक्षण



1 प्रतिशत


1 प्रतिशत


 



 



 



 



ग्राम पंचायत                                       



28



प्रशासनिक लागत कार्यगत लागत



1 प्रतिशत


27 प्रतिशत



चतुर्थ



चैथी



15                                          


 



परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण



1



प्रशासनिक लागत सामुदायिक विकास एवं प्रशिक्षण      



1 प्रतिशत



 



 



 



ग्राम पंचायत                       



14



प्रशासनिक लागत



1 प्रतिशत


13 प्रतिशत


 



पचम



पाँचवी



10



ग्राम पंचायत                                        1


 



1



प्रशासनिक लागत



प्रतिशत



 



 



 



ग्राम पंचायत                                       



9



प्रशासनिक लागत कार्यगत लागत



1 प्रतिशत


8 प्रतिशत



परिशिष्ट -3


जलग्रहण कार्यक्रमों हेतु विभिन्न वर्षों के दौरान संबन्धित स्तरों को आंवटन की जाने वाली निधि का मानक विवरण।


परियोजना बजट अन्तर्गत विभिन्न घटकों में किये जाने वाला व्यय निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा-


- डब्ल्यू.डी.टी. डब्ल्यू.सी. के सचिव आदि का वेतन प्रशासनिक मद घटक से चार्ज होगा।


- परियोजना लागत के प्रत्येक घटक में , यदि कहीं, बचत है तो वह जलग्रहण कार्यो में ही उपयोग की जा सकती है।


- गाडी़ एवं अन्य उपकरण खरीद आदि व भवन निर्माण की अनुमति नहीं है, हांलाकि कम्पयूटर एवं संबधित साफ्टवेयर खरीदे जा सकते है।


- लाइन विभागों से संबधित पी. आई. ए. प्राथमिकतापूर्ण तरीके से स्वयंसेवी संस्थाएँ सी. बी. ओ. को  सामुदायिक गतिशीलता एवं क्षमता निर्माझा गतिविधियाँ आउसोर्स कर सकती हैं।


विद्यमान जलग्रहण विकास इकाई लागत रू. 6000/ प्रति हैक्टेयर है जो कि अप्रैल 2001 में निर्धारित की गई थी हालांकि ग्यारहवीं योजना में यह उपयुक्त समझे जाने अनुसार संशोधित की जा रही है ताकि निम्न तीन आयामों का ध्यान रखा जा सके।


(अ) कृषि व्यवस्थाओं के जरिये उत्पादकता में वृद्धि सहित आजीविकाओं की प्रोन्नति।


(ब) सामूहिक/बन भूमि सहित जलग्रहण के अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्र को सम्पूर्णतया लिया जाना।


(स) श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी एवं सामग्री की कीमतों में सामान्य वृद्धि।


यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु अधिकतम रू. 12000/ प्रति हैक्टेयर इकाई लागत निर्धारित की जा चुकी है।


राशि किस्ते निर्मुक्त करने की  क्रियाविधि (procedure for release oof ffunds)


परियोजना अवधि अन्तर्गत क्रियान्वयन के तीन चरणों हेतु निम्नानुसार या नोडल मंत्रालय द्वारा निर्धारित किये अनुसार राशि का केन्द्रीयांश डी. डब्ल्यू. यू./ अभिकरण को निर्मुक्त किया जायेगा।


























किश्त का प्रकार



निर्मुक्त कब की जायेगी



केन्द्रीयांश का प्रतिशत जो निर्मुक्त होगा


 



प्रथम किश्त तैयार चरण गतिविधियों सहित



एस. एल. एन. ए. द्वारा परियोजना स्वीकृति पश्चात



20



द्वितीय किश्त



तैयारी चरण के पूर्ण होने के पश्चात  सही प्रमाणन व दस्तावेजों को प्रस्तुत करने व प्रथम किश्त के 60 प्रतिशत का व्यय करने के उपरान्त



50



तृतीय किश्त



कुल निर्मुक्त  राशि  के 75 प्रतिशत व्यय के सही प्रमाणन जो कि संबधित दस्तावेजों से समर्थित हो।



30 (परियोजना के कार्य चरण हेतु 25 व सघनीकरण चरण हेतु 5 )


 



परन्तु यदि उपरोक्त व्यवस्था व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं हो तो संबधित मंत्रालय द्वारा राशि निर्गमन हेतु विद्यमान व्यवस्था जारी रह सकती है।


राज्य सरकार/जिला क्रियान्वयन अभिकरण को राशि निर्मुक्त प्रत्येक जिले से उनके चालू परियोजना देयताओं व नये परियोजना स्वीकृति व जिले के लिए सम्पूर्णतया प्रावधित बजट व उनकी कार्य योजनाओं के एस. एल. एन. ए. द्वारा अनुमोदन को ध्यान में रखते हुए प्राप्त विशिष्ट वार्षिक प्रस्ताव के आधार पर की जावेगी। डी. डब्ल्यू. यू./अभिकरण पी. आई. ए. व डब्ल्यू. सी. को फण्ड प्राप्ति के 15 दिवस में राशि निर्मुक्त कर देगें।


परियोजना स्वीकृति राशि आंबटन व निर्मुक्त जिम्मेदारी व स्वीकृति तालिका


 









































क्रं.स.



गतिविधि



जिम्मेदार अभिकरण



स्वीकृति अभिकरण



समय सीमा जहाँ कहीं लागू हो


 



1.



चालू देयताओं व नयी परियोजना सहित विस्तृत   वार्षिक कार्य योजना प्रस्तृत करना एवं वार्षिक आंवटन करवाना।



एस. एल. एन .ए.



केंन्द्रीय विभागीय नोडल अभिकरण



प्रत्येक   वर्ष फरवरी अन्त (प्रस्तुत करना)



2.



वार्षिक आंवटन प्राप्त होने के पश्चात  नयी परियोजना स्वीकृत करना



एस. एल. एन .ए



 



 



3.



नयी परियोजना स्वीकृत आदेश प्राप्त करने पर जिला अभिकरणों को सीधे/ राशि  निर्मुक्त करना



केंन्द्रीय विभागीय नोडल अभिकरण



 



 



4.



पी. आई. ए. व डब्ल्यू.सी. को  राशि  प्राप्ति पश्चात  निर्मुक्त करना



जिला स्तरीय अभिकरण



 



 राशि  प्राप्ति के 15 दिवस में



3.6 स्वपरक प्रश्न



  1. ग्रामीण विकास जलग्रहण योजना के अन्तर्गत वित्त पोषण पद्धति क्या है?

  2. राष्ट्रीय जलग्रहण परियोजना के अन्तर्गत जलग्रहण बजट कैसे जारी होता है?

  3. कामन मार्गदर्शिका में दर्शाए वित्तीय प्रावधान क्या हैं?

  4. काॅमन मार्गदर्शिका में संस्थागत व्यवस्था में बदलाव क्या दर्शाते हैं?


3.7 सांराश


ग्रामीण विकास जलग्रहण योजना में वित्त पोषण  पद्धति, किस्तें जारी करने की प्रक्रिया , जल संग्रहण विकास निधि, प्रयोक्ता प्रभार, स्वय सहायता समूहों की परिक्रामी निधि, कार्यक्रमों का समेकन, ऋण सुविधा व निगरानी तथा समीक्षा मुख्य तत्व हैं।


राष्ट्रीय जलग्रहण परियोजना में वित्तीय शक्तियाँ, जिला स्तर पर फण्ड प्लों, जलग्रहण बजट जारी करना, घटकवार उपयोग, निधि के पुर्नआंवटन में लचीलापन, समुदाय में अंशदान की दर एवं अप्रयुक्त राशि का परियोजना पश्चात व्यय मुख्य बिन्दु है।


3.8 संदर्भ सामग्री



  1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन ।

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  3. जलग्रहण मार्गदर्शिका- संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा -निर्देश - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  4. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  5. राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  6. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।

  7. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास- दिशा निर्देशिका।

  8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास- हरियाली मार्गदर्शिका ।

  9. - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  10. विभिन्न परिपत्र- राज्य सरकार /जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग।

  11. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी भूमि क्षमता आधारित भूमि उपयोग- आज की आवश्यकता।

  12. कृषि मंत्रालय,, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।

  13. जलग्रहण प्रबन्धन- श्री बिरदी चन्द जाट।


14. भारत सरकार द्वारा जारी नई काॅमन मार्गदर्शिका।