जलग्रहण विकास में प्रचार प्रसार: महत्व एवं विधियाँ

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 09)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||जलग्रहण विकास में प्रचार प्रसार: महत्व एवं विधियाँ||


मानव का सम्पूर्ण जीवन चक्र समुदाय में रहते हुए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में व्यतीत होता है। मनोवैज्ञानिकों का आंकलन है कि हम अपने कार्यशील जीवन का लगभग तीन चैथाई हिस्सा संचार में व्यतीत करतें हैं।


9.2 संचार ( )


संचार या सम्प्रेषण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें एक व्यक्ति या स्थान में दूसरे व्यक्ति या स्थान तक सूचनाओं, भावनाओं तथा संदेशो का आदान-प्रदान होता है। संचार करने के माध्यमों में श्रव्य साधन, दृश्य साधन, द्रव्य-दृश्य  साधन तथा प्रतीक चिह्रन महत्वपूर्ण होतें हैं।


स्थूल रूप से संचार के निम्नलिखित कार्य हैं-



  1. सूचना लेना-देना

  2. अभिप्रेरणा प्रदान करना

  3. भावनात्मक अभिव्यक्ति करना

  4. नियंत्रण करना


9.2.1 संचार के तत्व तथा प्रक्रिया ( procedure and elements of communication )


इस सृष्टि पर जीव-जगत् की उत्पति से लेकर आज तक, किसी किसी रूप में संचार होता रहा है और होता रहेगा,  क्योंकि महज एक  प्रक्रिया नहीं बल्कि जीवन की अनिवार्यता है। संचार की प्रक्रिया में पाँच तत्व महत्वपूर्ण हैं, जो प्रक्रिया से सम्बन्ध हैं।


(i) सम्प्रेषण या सूचनादाता


(ii) सूचना या जानकारी 


(iii) सूचना का माध्यम या विधि


(iv) सूचना प्राप्तकर्ता


(vप्रत्युत्तर या वांछित प्रतिक्रिया


9.2.2 संचार प्रक्रिया  ( communication procedure )


संचार-प्रक्रिया में पाँचों तत्व महत्वपूर्ण हैं। सम्प्रेषण वह होता है जो किसी जानकारी, आकडें, आचरण, विचार, भावना तथा सम्मति को दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों को सम्प्रेषित करना चाहता है। सम्प्रेषक की इच्छा, भावना या पहल ही सूचना के रूप में अभिव्यक्त होती है अर्थात सूचना अपने आप में सजीव या गतिशील नहीं बल्कि यह सम्प्रेषक द्वारा धकेलने तथा संचार के उचित माध्यम या विधि की प्राप्ति पर निर्भर करती है। माध्यम या विधि का तात्पर्य उस स्वरूप से है जिसमें सूचना का संचरण होता है। बोलकर, लिखकर, प्रतीक दिखाकर अथवा छूकर हम अपनी बात दूसरों तक पहुचा सकतें हैं। प्राप्तकर्ता वह व्यक्ति होता है जिस तक सूचना पहुँचाई जाती या पहुँच जाती है। यह आवश्यक नहीं है कि सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित सूचना उसी अर्थ एवं स्वरूप में प्राप्तकर्ता तक पहुँचे, जिस रूप में सम्प्रेषक चाहता था। सूचना प्राप्ति के पश्चात प्राप्तकर्ता जो उत्तर देता है वह वांछित प्रतिक्रिया या प्रत्युत्तर कहलाता है। प्रत्युत्तर देते समय प्राप्तकर्ता की भूमिका सम्प्रेषक की हो जाती है।


संचार-प्रक्रियाओं में इसके महत्वपूर्ण आयामों को ध्यान में रखा जाता हैं-



  1. क्या कहना है ?

  2. किसे कहना है ?

  3. क्यों कहना है ?

  4. कब कहना है ?

  5. कैसे कहना है ?

  6. कहाँ कहना है ?


घर-परिवार, समुदाय तथा मित्रमण्डली से लेकर प्रशासनिक संगठनों तक हम निरन्तर इन्हीं प्रश्नों से जूझते रहते हैं। जो व्यक्ति संचार के समय इन आयामों को ध्यान में नहीं रखता हहै वह प्रायः मैने सोचा कि ........................मेरा यह मतलब नहीं था.................अजी, यह तो मिसअंडरस्टैडिंग हो गई जैसे जुमलों के प्रयोग के लिए बाध्य हो जाता है।


9.2.3 संचार में बाधाएँ  ( obstruction in communication )


सामान्यतः संचार प्रक्रिया को बहुत सरल कार्य माना जाता है किन्तु वास्ताविकता यह है कि बेहतर संचार करना एक कला है और कला तब तक विकसित नहीं की जा सकती है जब तक की हम यह ना जान लें कि संचार की राह में क्या-क्या बांधाएँ आती हैं। सामान्य रूप से संचार निम्नाकित कारणों से बाधित होता हैं।



  1. भाषा, बोली, लिपि तथा संदेश की अस्पष्टता

  2. संचार के माध्यमों जैसे - मशीन, टैलीफोन, रेडियो, टी. वी. पत्र तथा चित्र इत्यादि में बाधा गड़बडी़ हो।

  3. संदेश देने वाला या प्राप्त करने वाला उदासीन हो।

  4. किसी संदेश को प्राप्तकर्ता ने अपनी मर्जी से भिन्न अर्थ निकाला हो।

  5. संदेश देने वाले तथा प्राप्त करने वाले के बीच में कई कडियाँ या मध्यस्थ हो तों भी मूल संन्देश का अर्थ परिवर्तित हो सकता है।

  6. लिंग, धर्म, आयु, जाति, शिक्षा का स्तर तथा व्यक्तिगत रूचि-अरूचि भी संचार में बाधक बनती हैं।

  7. विभिन्न देशों या क्षेत्रों की संस्कृति में शब्दों, वाक्यों तथ्था प्रतीकों का अर्थ भिन्न होता है अतः कई बार अनचाहे ही संचार बाधित हो जाता है।

  8. प्रशासनिक तंत्र में सत्ता के नियम, लालफीताशाही, अफसरशाही, उच्चधिकारी-अधिनस्थ सम्बन्ध तथा अंहकारवादी प्रवृतियाँ भी संचार में बाधक बनती हैं।

  9. संदेश में अस्पष्टता या संदेश की बहु अर्थात्मक प्रकृति भी अफवाहों को जन्म देती हैं।

  10. तकनीकी शब्दों की जटिलता भी संचार में बाधक बनती हैं।

  11. संगठन का बडा़ आकार, भीड़ सभा-सम्मेलन या भौगोलिक दूरियाँ भी संचार को बाधित कर सकती हैं।

  12. शारीरिक हाव-भाव की भिन्नता, बहुत कम बोलना या बहुत ज्यादा बोलना भी संचार की राह में रोडा़ बनता है।


9.2.4 अच्छे संचार हेतु कुछ उपाय ( some methods for good communication )



  1. याद रखिए संचार वह नहीं है जो कहा गया है बल्कि संचार वह है जो समझा गया है अतः संदेश प्राप्तकर्ता के अनुरूप व्यवहार कीजिए।

  2. लोगों को समझाने से पहले उन्हें समझिये।

  3. सीधे, सहज सरल तथा छोटे वाक्यों का प्रयोग करें। द्विअर्थी या बहुअर्थी शब्द काम में नहीं लें।

  4. लोगों के सामने चेहरे को देखते हुए बातें कीजिए।

  5. संदेश प्राप्तकर्ता की शिक्षा, आयु, लिंग, भाषा, रूचि, संस्कृति तथा पृष्ठभूमि को ध्यान में रखियें।

  6. संदेश प्राप्तकर्ताओं ( श्रोताओं/पाठकों/साथियों/समूह ) से प्राप्त प्रत्युत्तर का सम्मान कीजिए।

  7. संचार या वार्तालाप हेतु अच्छे वातावरण का निर्माण करें।

  8. हमारे पास दो कान तथा एक जुबान है अतः दो बार सुनिए तथा एक बार बोलिए।

  9. लोगों में, उनके नाम में, उनके काम में रूचि लीजिए तथा सहानुभुति प्रदर्शित कीजिए।

  10. देश, काल, भाषा तथा परिस्थिति के अनुसार व्यवहार कीजिए।

  11. संचार में तीन बातों का ध्यान रखिए।


लोगों को विश्वास होना चाहिए।


इसमें दूसरे के दर्द या आवश्यकता की झलक दिखें।


संचार में औचित्य या तार्किकता हो।


9.3 सामुदायिक गतिशीलता जन सहभागिता एवं महिलाओं की भागीदारी (   )


9.3.1 सामुदायिक गतिशीलता ( community mobilization )सांस्कृतिक परम्पराओं को कायम रखना, स्थानीय लोगों की योग्यता क्षमता का पूर्ण उपयोग, स्थानीय संसाधनों का अनुकूलतम एवं मितव्ययता पूर्ण उपयोग, स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं का आकलन आदि ग्रामीण समुदाय के लागों को एकत्रित करके ही सम्भव है। ग्रामीण समुदाय के लागों को एकत्रित कर उनसे उनकी स्थानीय स्थिति से सम्बन्धित बातचीत करने पर वे एक साथ मिल बैठकर अपनी समस्याओं का आकलन करते हैं और परम्परागत तरीकों पर आधारित, उनके अनुरूप वे स्वंय ही उन समस्याओं का समाधान निकालते हैं। यदि उनके कार्य उनसे ही करवाये जायें तो वे ज्यादा फलदायी सफल होते हैं। उन पर दूसरों द्वारा निर्णय थोपे जाने तथा ग्रामीण विकास योजना के निर्माण क्रियान्विति में उनकी पूर्ण भागीदारी नहीं होने से कार्यक्रम की सफलता संदिग्ध रहती है। सामुदायिक संगठन के अन्तर्गत की जाने वाली कुछ गतिविधियाँ नीचे दी जा रही हैं-


9.3.2 वातावरण निर्माण करना ( construction of working atmosphare )ग्रामीण समुदाय के लोगों को इकटटा कर उनसे बातचीत के माध्यम से ग्रामीण विकास की संभावनाओं को उजागार किया जा सकता है। इससे लोग एकत्रित होकर परस्पर वार्तालाप करने को उत्सुक्त होंगे। साथ ही विचारों के आदान-प्रदान के साथ-साथ उनकी योजना के प्रति जागृति भी बढेंगी। मुख्य रूप से परियोजना के निम्नांकित बिन्दुओं के सम्बन्ध में वातावरण निर्माण करना आवश्यक हैं-



  1. समाज के हर वर्ग के व्यक्तियों को जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के सम्बन्ध में बताना, समझाना जागरूकता उत्पन्न करना

  2. परियोजना के अन्तर्गत संचालित गतिविधियों की जानकारी जनसमुदाय तक पहुँचाना।

  3. कार्यक्रम के प्रति ग्रामीण समुदाय का सकारात्मक दृष्टिकोण बनाना उनका विश्वास प्राप्त करना।

  4. ग्रामीण समुदाय के हर वर्ग, विशेष रूप से महिलाओं अनुसूचित जाति जनजाति के सदस्यों को परियोजना की गतिविधियों के साथ जोड़ना।


9.3.3 वातावरण निर्माण के साधन   ( facility to develop a warking atmosphare )वातावरण निर्माण हेतु विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया जा सकता हैं-


(1) प्रिन्ट मीडिया द्वारा


यह वातावरण निर्माण का एक सशक्त हथियार है। इसके अन्तर्गत कार्यक्रम की जानकारी देने वाले- विभिन्न पोस्टरों, स्टीकरों, विज्ञापन बोर्डो एवं स्थानीय समाचार पत्रों में दिये जाने वाले विज्ञापनों द्वारा जन-जागृति फैलाकर समुदाय को परियोजना के प्रति जागरूक करना है। इसके साथ-साथ प्रचार सामग्री घर-घर जाकर, स्कूलों मेंलो सांस्कृति समारोहों में वितरित की जानी चाहिए।


(2) इलैक्ट्रोनिक संचार माध्यम 


इलैक्ट्रोनिक संचार माध्यम आज के समय में जनमानस को अत्यधिक प्रभावित करने वाला है। जलग्रहण सग्रंहण क्षेत्र विकास परियोजना के विभिन्न पहलुओं की स्लाइड्स, वीडियों कैसेट रोचक रूप से तैयार करके ग्रामीण समुदाय के मध्य प्रदर्शित करने पर एक तो उनमें जन-चेतना जागृत होगी, साथ ही सही/गलत तथ्यों की जानकारी होने पर निर्णय लेने में आसानी या सहूलियत रहेगी। इनका प्रदर्शन विशेष रूप से हाट, मेंलो, ग्राम सभा आदि में करना चाहिए।


(3) सांस्कृतिक गतिविधियाँ


इसमें कला जत्था जैसे कठपुतली नृत्य, नुक्कड़ नाटक आदि का समय-समय पर मंचन प्रदर्शन शमिल है। प्रचार माध्यम से जनता को एकत्रित कर इनका प्रदर्शन करना चाहिए। ये साधन खेल-खेल में सीख के प्रतीक है। एक ओर ये जन समुदाय का मनोरंजन करते हैं तो दूसरी ओर उन्हें सीख प्रदान करते हैं। ये साधन स्थानीय भाषा, प्रचलित लोक कथाओं पर आधारित होने के कारण आकर्षण का केन्द्र होते हैं। विशेष अवसरों जैसे प्रचलित मेंला, त्यौहार आदि पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जा सकते हैं। जिनके माध्यम से परियोजना के उद्देश्य एवं संचालित गतिविधियों के बारे में ग्रामीण समुदाय को बताया जा सकता है।


अन्य गतिविधियाँ


कुछ अन्य गतिविधियाँ भी वातावरण निर्माण हेतु महत्वपूर्ण हो सकती हैं, यथा-


(i) शिविरों की आयोजना


ग्रामीण क्षेत्रों में शिविरों का आयोजन कर योजना से सम्बन्धित गतिविधियों का प्रदर्शन किया जा सकता है। यह आकर्षण का महत्वपूर्ण जरिया है। यदि सम्भव हो  तो अच्छी गतिविधियों की जानकारी प्रदर्शन के  माध्यम से दी जा सकती है जिससे लोग इसके प्रति आकर्षित हो सकें और उनकी महत्ता को समझ कर उसे  व्यवहार में , प्रयोग में लायें।


(ii) प्रभात फेरी रेली


गाँव में एक किनारे से दूसरे किनारे तक प्रभात फेरी रैली निकाली जानी चाहिए और इनमें विकास कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करके नारों का उदघोष करते हुए ग्रामीण समुदाय को कार्यक्रम से रू--रू कराते  हुये जोडा़ जाना आसान है


(iii) व्यक्तिगत रूप से जन सम्पर्क अभियान


ग्रामीण समुदाय के लागों से व्यक्तिगत रूप से उनके घरों में जाकर मिलने से भी जनमानस को प्रभावित तथा उसमें बदलाव लाया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से स्कूलों में जाकर स्कूली बच्चों में योजना के बारे में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया जा सकता है।


(iv) ग्रामसभा/पंचायत से सहयोग प्राप्त करना


ग्रामीण समुदाय को ग्राम सभा में भाग लेने हेतु प्रेरित कर उन्हें विकास योजनाओं की जानकारी देकर जिम्मेदारी सौंपना योजना की सफलता में महत्वपूर्ण साबित होगा। परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन कर ग्रामीण समुदाय को एकत्रित करने से एक ओर उनकी प्रतिभा निखारी जा सकती है दूसरी ओर परियोजना की जानकारी दी जा सकती है।


(v) ग्रामीण हाट/ मेला


ऐये मेले भी आयोजित किये जा सकते हैं जो ग्रामवासियों में विशेषकर प्रयोक्ता समूहों एवं स्वंय सहायता समूहों के लिए ज्ञानवद्र्वक तो हों ही साथ-साथ समस्याओं को हल करने से सम्बन्धित हो, जिससे वे व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित हो सकें। इन मेंलों का आयोजन से पूर्व प्रचार-प्रसार भी हो जिससे अधिकाधिक संख्या में ग्रामवासी एकत्रित हो सकें।


9.3.4 सामुदायिक संगठन से लाभ ( advantage of community organization )1. लोगों की परियोजना में सुनिश्चित भागीदारी



  1. स्थानीय परम्परागत ज्ञान कौशल का उपयोग

  2. कार्यक्रम की महत्ता स्थापित करना

  3. कम लागत तथा कम अवधि में कार्यक्रम का सुचारू क्रियान्वयन

  4. प्रभावी क्रियान्वयन तथा पर्यवेक्षण


9.4 जलग्रहण विकास कार्यक्रम में महिलाओं को भागीदारी एवं सशक्तीकरण (    )


हमारे देश में अधिंकाश जनसख्यां गाँवों में निवास करती है तथा ईधंन, इमारती लकडी़, चारे, बल्लियों आदि के उत्पादन के लिए ग्रामवासी पूरी तरह से वन पर निर्भर करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएँ विभिन्न कृषि कार्यो में पुरूषों की सहायता करती हैं, लेकिन जलाने के लिए लकडी़, पशुओं के लिए चारा पेयजल का प्रबन्ध भी उन्हीं को करना पड़ता है। ऐसा भी देखा गया है कि बडी़ जोत वाले सम्पन्न किसानों के घरों की महिलाएँ अधिकतर पशुपालन का कार्य करती हैं जबकि सीमान्त कृषकों, कृषि मजदूरों तथा भूमिहीन किसान परिवार की महिलाओं को ईधन, चारे, पेयजल का प्रबन्ध स्वंय करना पड़ता है। कहने का मतलब  यह है कि सभी ग्रामीण  महिलाएँ प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होती हैं क्योकि जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की परियोजना है अतः इनमें महिलाओं की सक्रिय भूमिका आवश्यक हैं।


9.4.1 भागीदारी क्यो आवश्यक है ? ( why participation is necessary )



  •  महिलाओं की दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपनी प्राथमिकताएँ हैं और पुरूष वर्ग इन प्राथमिकताओं से अनभिज्ञ होते हैं, अतः उनकी समस्यओं का उचित हल नहीं मिल पाता।

  •  महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से उन्हें अपनी समस्या पर विचार करने के लिए मिलकर बैठना, उचित उपाय ढूँढना आय मूलक गतिविधियों से जोड़ना सिखाया जा सकता है जिससे आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ पारिवारिक आय भी बढ़ती है।

  •  एक आम लक्ष्य के लिए जब पूरे समुदाय की महिलाओं में एकजुटता आती हैं तो जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि सामाजिक तनाव अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं।

  •  संसाधनों के निरन्तर कमी से ईधंन, चारा वनौषधि एकत्रित करने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है, पेयजल लाने एवं पशुओं को चराने के लिए भी बहुत दूर तक ले जाना पड़ता है, इसमें समय और श्रम दोनों अधिक व्यय होते हैं।


9.4.2 भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारक सामाजिक बाधाएँ समाधान (factors affecting pratifpation/soul obstructions and solutions)



  1. जनसाँख्यिकी कारक


() आयु संरचना : 35 वर्ष या इससे अधिक उम्र की महिलाएँ पूरी तरह से सहयोग प्रदान कर सकती हैं। उनके समक्ष सामाजिक बंधन भी आडे़ नही आते। युवतियाँ अपने से अधिक उम्र की महिलाओं के सामने खुलकर अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाती हैं।


(सामाजिक संरचना: घर का कामकाज, परिवार एवं बच्चों की देखभाल, पशुओं की देखभाल आदि के पश्चात सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के लिए उनके पार समय कम उपलब्ध होता है। इसके अलावा इन कार्यक्रमों में महिलाओं की राय और उनकी प्राथमिकताओं को समुचित महत्व नहीं दिया जाता है, परिणामस्वरूप उनका ऐसे कार्यक्रमों के प्रति उत्साह कम होता हैं, जिससे उनकी पूर्ण भागीदारी नहीं मिल पाती है। सामाजिक कुरीतियाँ जैसे- पर्दा प्रथा, बुजुर्गो एवं पुरूष सदस्यों के सामने सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत करना आदि अनेक सामाजिक रीति रिवाजों के कारण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी नहीं मिल पाती है।


() धन वितरण: महिलाओं का मेहनताना कम होता है और सामाजिक लाभों की भी वे कम हकदार होती हैं।



  1. सामाजिक कारक


() नेतृत्व: संरपच तथा अन्य स्थानीय नेताओं का पूरा सहयोग नहीं मिल पाता है। महिलाओं को विभिन्न विकास कार्यक्रमों से जोड़ने एवं लाभान्वित करने में स्थानीय नेतृत्व की सकारात्मक भूमिका आवश्यक है।


() समूह निर्माण: यदि गाँव में दो या अधिक परस्पर विरोधी गुट सक्रिय है, जो विरोधी गुटों के नेता अपने समूह की महिलाओं को सामुदायिक विकास कार्यक्रमों में  भाग लेने की अनुमति नहीं देते। अतः स्थानीय नेताओं का पूरा सहयोग आवश्यक है, क्योकि नेता के सहयोग से उसके अनुयायियों का सहयोग भी मिल जाता हैं, इससे अधिकाधिक भागीदारी संभव हो पाती है।


() अशिक्षा: गाँवों में शिक्षा का प्रसार नहीं होने से विभिन्न सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के प्रति ग्रामीण महिलाओं की रूचि कम होती है। अतः उनमें शैक्षणिक  जागृति लाना बहुत जरूरी है, जिससे वे इन योजनाओं को समझकर उनसे प्राप्त होने वाले लाभ-हानि का विश्लेषण कर सकें एवं अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत रह सकें।



  1. कानूनी कारक


ग्रामीण महिलाओं के पार भू-स्वामित्व का अधिकार नहीं है। यद्यपि इस दिशा में कानून बन चुका है, किन्तु गाँवों में अभी तक स्थिति यथा तथ्य ही बनी हुई है। पुत्र होने की दिशा में पति की मृत्यु के उपरान्त खेतीहार जमीन एवं अन्य भू सम्पत्ति सम्बन्धित महिला को मिलने के स्थान पर मृतक के भाइयों में हस्तान्तरित हो जाती है। अतः इस दिशा में विचार किया जाना चाहिए।



  1. तकनीकी कारक


नई तकनीकी लागू करने से पहले महिलाओं की राय सम्मिलित की जाये। कहीं महिलाओं में यह धारणा बन जाये कि नई तकनीकी सामुदायिक विकास कार्यक्रम उन पर अतिरिक्त कार्यो का बोझ डाल रहे हैं।



  1. संस्थानिक कारक


जलग्रहण विकास दल, ग्राम पंचायत आदि में महिलाओं की उपस्थिति अनिवार्य रूप से की जानी वाहिये एवं उनके सुझावों को समुचित महत्व दिया जाना चाहियें। महिला संरपचों के साथ यथा संभव ग्राम सेविका की नियुक्ति की जानी चाहिये। यदि संभव हो तो जेण्डर सवेंदनशील ग्राम सेवक की नियुक्ति की जानी चाहियं।



  1. स्थितिपरक कारक


बैठक की जगह एवं समय महिलाओं की सुविधानुसार तय करना चाहिये जिससे उनकी अधिकाधिक भागीदारी निश्चित की जा सके। बैठक की सूचना उचित समय पर प्रसारित की जानी चाहिये एवं यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि सूचना सभी को मिल गयी है। बैठक गाँव में किसी सार्वजनिक स्थान जैसे- स्कूल, पंचायत भवन आदि पर आयोजित करनी चाहिये।



  1. आर्थक कारक


वैकल्पिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाये जायें।


9.4.3 विभिन्न संरक्षण/ सामुदायिक कार्यो में महिलाओं की भूमिका( role of women in various conseravation/community work )



  • महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित योजनाएँ

  •  महिला विकास अभिकरण द्वारा संचालित योजनाएँ

  •  जलग्रहण विकास दल की सदस्या के रूप में

  •  स्वयं सहायता समूह में


महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित योजनाएँ :- इसके  अन्तर्गत जिले में ग्राम स्तर पर आंगनबाडी़ केन्द्रों के माध्यम से संचालित समेकित बाल विकास सेवाएँ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं। इस कार्यक्रम के  अन्तर्गत महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा आदि के बारे में विशेष गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं इन कार्यो के सुपरविजन हेतु महिला सुपरवाइजर भी नियुक्त की जाती है तथा आंगनबाडी़ कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं को समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाता है।


महिला विकास अभिकरण द्वारा संचालित योजनाएँ :- महिलाओं में चेतना पैदा करने एवं उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के उद्देश्य से महिला विकास अभिकरण द्वारा महिला विकास कार्यक्रम वर्तमान में राज्य के सभी जिलों में संचालित किया जा रहा है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर जानकारी उपलब्ध करवा कर समाज में उनका अस्तित्व स्थापित करने के उद्देश्य से कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करवाये जाते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्न हैं-



  1. जाजम बैठक

  2. शिविर आयोजन

  3. कार्यशाला आयोजन

  4. महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण आयोजन

  5. महिला विकास से सम्बन्धित मुद्यों पर सकारात्मक वातावरण निर्माण हेतु रैली, नुक्कड़ नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन

  6. बाल विवाह, बेमेल विवाह, दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, पर्दा प्रथा आदि सामाजिक कुरीतियों के निवारण हेतु अभियान संचालन

  7. लैंगिक असमानता के निवारण हेतु कार्यक्रम

  8. पर्यावरण, एड़स, साक्षरता एवं विभिन्न राष्ट्रीय कार्यो का आयोजन


किशोरी बलिका योजना :- इस कार्यक्रम के माध्यम से 11 से 18 वर्ष की स्कूल छोड़ चुकी किशोर बालिकाओं को साक्षर बनाने, खेलने-कूदने गाने-बजाने के प्रशिक्षण के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के कुटीर एवं लघु उद्योगों की जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रावधान है ताकि वे अपना आर्थिक विकास कर स्वावलम्बी बन सकें।


जलग्रहण विकास दल की सदस्या के रूप में:- जलग्रहण विकास दल में कम से कम एक महिला सदस्य का प्रावधान है जो इस ार्यक्रम के द्वारा सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर सकती है।


स्वयं सहायता समूह में:-  महिलाएँ स्वयं सहायता समूह में संगाठित होकर आय मूलक गतिविधियों से जुड़ कर घर बैठे ही आय अर्जित कर सकती हैं।


9.5 जलग्रहण विकास कार्यक्रम प्रचार-प्रसार हेतु दरवाजे से दरवाजे तक अभियान सम्पर्क अभियान  


आज के बदले परिवेश में जबकि जलग्रहण विकास परियोजना का क्रियान्वयन केवल मात्र सरकारी कार्यक्रम ही नहीं रह गया है, बल्कि यह एक नवीन पद्वति है जिसे कि लाभान्वित होने वाले लोगों की प्रत्येक स्तर पर सक्रिय सहभागिता के माध्यम से क्रियान्वित किया जाना है जिससे कि जलग्रहण से होने वाले लाभ एवं व्यव्स्थाएँ टिकाऊ एवं स्थायी बन सकें। निवासियों को परिसम्पत्तियों के एकरूप, समान एवं सतत उपयोग एवं प्रबन्धन हेतु प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है। अतः यह आवश्यक है कि जलग्रहण परियोजना के आरम्भिक चरण में व्यापक स्तर पर जलग्रहण क्या है ?, काम कैसे होगें ?, काम क्या होगें ?, लागत एवं सीमाएं क्या-क्या हैं?, लाभार्थी अंशदान की क्या प्रक्रिया हैं?, कौन मजदूरी करेगा?, क्या मजदूरी मिलेगी?, समूह किस प्रकार बनाने हैं?, समूह को क्या-क्या सहायता मिल सकती हैं?, एवं किस-किस मजदूरी काम के लिए?, स्थानीय निवासियों की प्रतिबद्वद्यता/संकल्प क्या होगा?, पंचायत का क्या रोल रहेगा?, इत्यादि। जलग्रहण विकास के सम्बन्ध में उठाये जाने वाले या उठ सकने वाले सभी प्रकार के प्रश्नों का सर्वोपयुक्त हल परियोजना सहजकर्ताओं के पास होना चाहिए। प्रश्न का समय पर यथोचित जवाब लाभार्थी को नहीं मिलने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।


अतः यह पाया गया है कि जलग्रहण क्षेत्र में चयनित गाँवों के दरवाजे से दरवाजे तक अभियान एक सम्पर्क अभियान किया जावें जिससे कि प्रत्येक लाभार्थी से संवाद स्थापित कर जलग्रहण की जानकारी दी जा सकें, मागं एकत्रित की जा सके, समस्याओं की जानकारी प्राप्त की जा सके इत्यादि। यह एक सशक्त प्रक्रिया है जिसे कि जलग्रहण विकास दल के सदस्यों, कार्यकर्ताओं,पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा आरम्भ में ही किया जाना है। पी. आर. . अभ्यास में भी उक्त सम्पर्क अभियान के परिणाम लाभकारी होगें। सम्पर्क अभियान प्रारम्भ करने से पहले यह आवश्यक है कि इस प्रकार के वातावरण का निर्माण किया जावे जिससे कि अनूकुल परिस्थिति उत्पन्न हो। अब तक विकास की योजनाओं का क्रियान्वयन सरकार द्वारा किया जा रहा था वह भी एक निर्धारित मापदण्ड एवं पद्वति के अनुसार तथा बिना लाभार्थियों का सहयोग लिये। निवासियों की सोच प्राथमिकताओं को सम्मिलित नहीं किया जा सका था और प्रायः यह बिन्दु उपेक्षित रह गया था। जिस व्यक्ति अथवा समूह को विकास योजनाओं का लाभ मिलने वाला है उसे विश्वास में लेकर कार्यक्रम डिजायन एवं क्रियान्वित नहीं किया जा रहा था। इसके परिणामस्वरूप जलग्रहण विकास एवं अन्य ग्रामीण विकास की योजनाएं मात्र सरकारी लक्ष्यों की पूर्ति हेतु चलाये जा रहे कार्यक्रम ही बनकर रह गई थी और जनता का कार्यक्रम नहीं बन पाया था जो कि होना चाहिए था। अन्त में विकास योजनाओं के परिणाम प्रभावित होने लगें एवं परियोजना पश्चात रखरखाव सम्बन्धी प्रबन्धन एवं व्यवस्थाओं का अभाव रहा।


जलग्रहण विकास की नवीन मार्गदर्शिकाओं में यह जोर दिया गया है कि परियोजना की तैयारी के चरण से लेकर कार्य योजना अनुसार क्रियान्वयन तक जनता का सक्रिय सहयोग प्राप्त किया जावे। सरकारी संस्थाएं मात्र सहजकर्ताओं की भूमिका अदा करें एवं तकनीकी ज्ञान एवं मार्गदर्शिन उपलब्ध करावें। यह पूर्णतः एक नई व्यवस्था स्थापित हुई। जिसके फलस्वरूप कार्यक्रम मांग आधारित जनता का कार्यक्रम बन सका है। 


दरवाजे से दरवाजे तक अभियान सम्पर्क किये जाने के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-



  •  जलग्रहण कार्यक्रम के बारे में जानकारी प्रसारित करना, महत्व को समझाना एवं जन सहभागिता विकसित करना

  •  स्थानीय निवासियों/लाभार्थियों के मध्य साख स्थापित करना 

  •  व्यक्तिगत एवं सामुदायिक समस्याओं की पहचान करना

  •  लोगों की जन सहभागिता प्राप्त करना

  •  स्थानीय स्तर पर कुशल नेतृत्वकर्ताओं की पहचान करना


9.5.1 तैयारी  ( preparation )



  • दरवाजे से दपवाजे तक अभियान, सम्पर्क अभियान करने से पूर्व यह आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में राजकीय अथवा सामुदायिक भवनों पर गेरू के रंग से जलग्रहण से सम्बन्धित नारों को लिख जावे। स्थानीय भाषा में चित्रों के माध्यम से जलग्रहण के महत्व एवं  उद्देश्यों एवं होने वाले लाभों को प्रदर्शित किया जावे। जलग्रहण क्षेत्र में लिखे जाने वाले नारे निम्न प्रकार हो सकते हैं-


वर्षा पहले बांधो पाल, ताकि रहो हमेशा खुशहाल


जल, जंगल, जमीन और जीवन, इन चारों का रखो सन्तुलन


जल रोको मिटटी बचाओं, भूमि को हरा भरा बनाओ


घर घर का एक ही नारा, जलग्रहण विकास अभियान हमारा


भूमि एवं जल संरक्षण अपनाऐं जीवन को सुखी बनाएँ


जलग्रहण क्षेत्र विकास का मंत्र, खूड़ का पानी खूड़ में


खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में


समोच्य रेखा पर फसल उगाओं, अधिक पैदावार से खुशहाली लाओ


जलग्रहण विकास हमारा नारा है ,इसे सफल बनाना है



  •   ढोल नगा़डों के माध्यम से लीफलेट/पम्पलेट का वितरण गाँव के महत्पूर्ण स्थलों पर किया जावे एवं कार्यक्रम के बारे में ध्वनि विस्तारण यंत्र/विधियों के माध्यम से, मुनादी के माध्यम से गाँव में जोर शोर से जाग्रति पैदा की जावे।

  • इस सम्बन्ध में वितरित किये जाने वाले लीफलेट/पम्पलेट का प्रारूप परिशिष्ट-1 पर सलंग्न है, जिसमें बताया गया है कि जलग्रहण विकास क्या है? इसके क्या अंग है? क्या क्या गतिविधियां ली जा सकती है? परियोजना अवधि एवं उपलब्ध राशि क्या होगी? इत्यादि।

  • कठपुतली शो एवं ग्राम पंचायत मुख्यालय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से भी जन जाग्रति जलग्रहण के बारे में पैदा की जा सकती है। अधिकाधिक लोगों को कार्यक्रम में बुलवाने हेतु व्यापक व्यवस्था की जानी चाहिए।

  • कठपुतली शो एवं संध्या ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार के सशक्त माध्यम हैं जिनके द्वारा किसी भी प्रकार के सन्देश को स्थानीय लोगों तक आसान तरीके से पहँुचाया जा सकता है। राजस्थान में तो इन माध्यमों का अधिकाधिक प्रयोग ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है क्योंकि राज्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अत्कृष्ट है। परियोजना कियान्वयन संस्थाओं के द्वारा कठपुतली शो एवं सांस्कृतिक संध्या के कार्यक्रम हेतु आलेख, विषय वस्तु इत्यादि तैयार करनी होगी एवं उपयुक्त संस्थाओं/व्यक्तियों को किराये पर लिया जाकर आयोजन सफलतापूर्वक पूर्ण कराना होगा।


9.5.2 गतिविधियाँ (Activities)


 


दरवाजे से दरवाजे तक अभियान के दौरान स्थानीय स्तर पर स्कूलों के बालक एवं बालिकाओं को लीफलेट/पम्पलेट के वितरण हेतु लगाया जा सकता है जिसके लिए उन्हें मानदेय अथवा मेहनताना दिया जा सकता है। ग्रीष्म अवकाश में स्कूल प्रायः बन्द रहते हैं एवं ग्रामीण बालक एवं बालिकाएँ भी पर्याप्त संख्या में अभियान को सफल बनाने हेतु उपलब्ध हो सकते हैं। जब स्कूल जाने वाले बालक एवं बालिकाएँ अपने-अपने घरों में जलग्रहण के बारे में चर्चा करते हैं एवं परिवार में मौजूद अशिक्षित प्रौढ़ों को इसके बारे में बताते हैं तो इसकी पूर्ण सम्भावना है कि बुजुर्गों पर पर्यावरण विकास से सम्बन्धित जलग्रहण कार्यक्रमों के बारे में सकारात्मक प्रभाव पड़े। परियोजना कियान्वयनकर्ताओं को ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल जाने वाले बालक एवं बालिकाओं को केन्द्र में रखना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर जन जाग्रति पैदा करने के लिए नुक्कड़ नाटक, चेतना रैली, रात्रि गोष्ठी, टेलीविजन शो, खेलकुद के माध्यम से भी व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा सकता हैं।


इस सम्पर्क अभियान के दौरान जिन विषयों अथवा मुद्दों पर ध्यान दिया जाना है वे निम्नानुसार हैं-



  1. सूचना का सम्प्रेषण व्यक्तिगत एवं सामुदायिक भूमि पर ली जाने वाली गतिविधियों, उनसे जुड़ी समस्याओं एवं आवश्यकताओं, लाभों, प्राकृतिक संसाधनो की स्थिति, उपलब्धता, गुणवत्ता इत्यादि के बारे में स्थानीय निवासियों से अनौपचारिक वार्ता की जावे एवं अनुभवों को इन्द्राज किया जावे

  2. जलग्रहण से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों के बारे में स्थानीय जनता को अवगत कराया जावे। सम्भव हो तो यह भी बताया जावे कि उनके निकटवर्ती किस जलग्रहण क्षेत्र में क्या-क्या कार्य अच्छे हुए हैं एवं जनता को क्या-क्या फायदा हुआ है, वे उसे देखने भी जा सकते है। इससे एक सकारात्मक प्रतिस्पद्र्धा की भावना ग्रामीणजन के जेहन में उत्पन्न होगी एवं वह प्रतिबद्ध होगा कि उनके क्षेत्र में भी ऐसी ही आत्मनिर्भरता जावे। अतः कार्यक्रम कियान्वयनकर्ता लीफलेट/पम्पलेट के साथ सफल जलग्रहण क्षेत्रों की सफलता की कहानी (प्रभाव दर्शाते आंकड़े सहित) मय फोटोग्राफ्स यदि उपलब्ध करावेंगे तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे।

  3. यह अवगत कराना चाहिए कि जलग्रहण कार्यक्रम जनता द्वारा क्रियान्वित किये जाने वाला कार्यक्रम है अतः इसकी रूपरेखा तैयार करने, आयोजना करने एवं क्रियान्विति/प्रबन्धन करने के लिए ग्रामीण निवासियों को ही आगे आना पड़ेगा।

  4. जलग्रहण कियान्वयन हेतु जो निर्धारित संस्थागत व्यवस्थाएँ होती हैं, उसके बारे में भी पूर्व में ही ग्रामीण जनता को अवगत कराया जाना आवश्यक होता है इससे अनावश्यक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने से बचा जा सकता है। यह प्रयास किये जाने चाहिए कि स्थानीय स्तर पर कुशल नेतृत्वकर्ता की पहचान परियोजना प्रारम्भ करने से पूर्व ही हो जाये जिससे कि परियोजना का क्रियान्वयन सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया जा सके। स्थानीय स्तर पर कुशल नेतृत्वकर्ता की पहचान बिना किसी वोटिंग/मतभेद के हो सके तो अति उत्तम होगा।

  5. क्षेत्र की विशिष्ट समस्या की जानकारी प्राप्त करना जो कि व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक प्रकृति की हो सकती है। प्रत्येक समस्या हेतु उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ तकनीकी विकल्पों की जानकारों की जानकारी उपलब्ध कराना भी सम्पर्क अभियान की गतिविधि हैं। जैसा कि पहले अवगत कराया जा चुका है पी.आर.. अभ्यास में ये गतिविधियाँ कारगर सिद्ध होंगी। जलग्रहण क्षेत्र से जुड़ी सामान्य जानकारी हेतु एक प्रपत्र परिशिष्ट-2 पर उपलब्ध हैं जिसमें कि कृषकवार परिवार, भूमि, पशुधन, जल संसाधन इत्यादि का पूर्ण विवरण इन्द्राज कर एकत्रित किया जा सकता है।


9.5.3 जिम्मेदारियाँ (Responsibilites)


 



  •  जिला परिषदों की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने जिले में स्वीकृत होने वाले अथवा स्वीकृत हो चुके प्रत्येक जलग्रहण क्षेत्रों हेतु दरवाजे से दरवाजे तक सम्पर्क अभियान की कार्य योजना तैयार करें और ऐसी व्यवस्था करें कि प्रभावी रूप से समस्त गतिविधियाँ पूर्ण की जा सकें। इस हेतु जिला परिषद स्तर पर नियोजित अधिशाषी अभियन्ता (भू-संसाधन) अपने अधीन कार्यरत सहायक परियोजना अधिकारी (भू-संसाधन) को पूर्ण रूप से उक्त सम्पर्क अभियान हेतु जिम्मेदार बन सकते हैं। पंचायत समिति एवं ग्राम पंचायत स्तर हेतु भी जिम्मेदारियाँ निर्धारित की जा सकती हैं।

  •  नियमित रूप से प्रत्येक स्तर पर सम्पर्क अभियान का फीड बैक लिया जाना जरुरी होगा। इस हेतु प्रत्येक स्तर के लिये समय सीमा का निर्धारण किया जा सकता है।

  •  पंचायत के सचिव की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उक्त अभियान में होगी क्योकि वे ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े महत्त्वपूर्ण राजकर्मी हैं।

  •  जलग्रहण विकास दल के सामाजिक विज्ञानी सदस्य को उनके कार्य क्षेत्र में आने वाले जलग्रहण क्षेत्रों हेतु पृथक् से जिम्मेदारी दी जानी होगी।


दरवाजे से दरवाजे तक सम्पर्क अभियान कोई एक दिन की गतिविधि नहीं है, यह एक क्रमबद्ध निरन्तर प्रकिया है जो कि प्रत्येक जलग्रहण क्षेत्र के आरम्भिक चरण में अपनाई जानी चाहिए। समय-समय पर आवश्यकता पड़ने पर इसके स्वरूप एवं पुनरावृति हेतु निर्णय लिये जा सकते हैं। ग्राम सभा की प्रत्येक स्तर पर सक्रिय भूमिका इस कार्य में होनी बेहद जरूरी है।


जलग्रहण क्षेत्र क्या है?


भूमि की ऐसी इकाई जिसका जल निकास एक ही बिन्दु अथवा स्थान पर होता हो।


जलग्रह विकास क्या है?


(1) जलग्रह क्षेत्र से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े ग्रामीण समुदाय का आर्थिक विकास


(2) जलग्रह क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन तथा भूमि, वर्षा जल, पानी वनस्पति का सदुपयोग


(3) क्षेत्र के ग्रामीणों की आमदनी एवं बचत में वृद्धि हेतु प्रोत्साहन


(4) जलग्रहण क्षेत्र के पारिस्थिकीय संतुलन को बढ़ावा


(5) क्षेत्र की समस्याओं के निवारण हेतु स्थानीय ज्ञान मौजूदा साधनों से सरल सस्ती तकनीकों का विकास


(6) जलग्रहण क्षेत्र में सृजित परिसम्पत्तियों के संचालन, संधारण तथा विकास में जन भागीदारी


(7) क्षेत्र के पिछड़े, गरीब संसाधनहीन व्यक्ति सामाजिक एवं आर्थिक पुनरूत्थान


(8) क्षेत्र के भूमि एवं जलस्रोतों से प्राप्त लभा का बराबर बंटवारा


(9) उनकी आमदनी बढ़ाने के स्रोतों का विकास


परियोजना के मुख्य अंग


(1) जलग्रहण क्षेत्र के लगभग 85 प्रतिशत क्षेत्र में उपचार/विकास कार्य


(2) योजना के लगभग 65 प्रतिशत कार्य उपभोक्ता समूहों द्वारा सम्पादित


(3) जलग्रहण क्षेत्र के 50 प्रतिशत व्यक्ति यथा महिलाएँ, अनुसूचित जाति/जनजाति, खेतीहर मजदूर, चरवाहों को स्वयं सहायक समूह में चयन


परियोजना अवधि राशि


(1) एक जलग्रहण क्षेत्र 5 वर्ष की अवधि में विकसित किया जावेगा।


(2) जलग्रहण क्षेत्र लगभग 500 हैक्ट, का चयन कर उसमें 4.5 से 6 हजार रू. प्रति हैक्ट, की दर से विकास कार्य करवाये जायेंगे।


(3) परियोजना राशि का 85 प्रतिशत हिस्सा उपचार/विकास कार्यों एवं गतिविधियों पर व्यय किया जावेगा


(4) परियोजना राशि का 15 प्रतिशत हिस्सा सामुदायिक संगठन, प्रशिक्षण एवं प्रशासनिक व्यय पर खर्च किया जायेगा।


जलग्रहण क्षेत्र विकास/उपचार/अन्य कार्य


(1) क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की जानकारी हेतु सर्वेक्षण कार्य


(2) क्षेत्र की मिट्टी की किस्म बनावट की जानकारी हेतु मृदा सर्वेक्षण


(3) क्षेत्र की औसत वर्षा, भूमिगत जलस्तर, कुओं के जलस्तर आदि की जानकारी हेतु जल संसाधन जल विज्ञान सर्वेक्षण


(4) सामाजिक एवं आर्थिक सर्वेक्षण


(5) मिट्टी, वर्षा जल संरक्षण हेतु ढलवा खेतों में कन्टूर क्रमबद्ध बन्डों वानस्पतिक रूकावटों का निर्माण


(6) जल निकास नालियों वाले क्षेत्रों में वानस्पतिक छोटे मिट्टी की संरचनाओं रूकावटों का निर्माण


(7) वर्षा जल के संचय हेतु सस्ते कुण्ड, नाला बंध, नाड़ी जल रिसाव तालाब, खण्डीन का निर्माण


(8) चारागाह विकास कार्य


(9) चारा, इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, फल बागवानी वाले पौधों पेड़ों का रोपण


(10) नई फसलों/किस्मों/उन्नत क्रियाओं को प्रचार हेतु फसल प्रदर्शन मिनीकिट वितरण


(11) स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार/आर्थिक पुनरुत्थान के अवसर उत्पन्न करना



  1. ये सभी जलग्रहण विकास सम्बन्धी कार्य उसी क्षेत्र के उपभोक्ता स्वयं सहायक समूहों द्वारा सम्पादित करवाये जाने हैं। इन कार्यों पर होने वाले व्यय का 5 से 10 प्रतिशत हिस्सा उन व्यक्तियों को जन भागीदारी के रूप में देना होगा जो कि उस कार्य से लाभान्वित होंगे।


2. अतः जलग्रहण विकास कार्य ग्रामीणों का कार्य, ग्रामीण का कार्य, ग्रामीणों के लिये व ग्रामीणों के द्वारा अपने क्षेत्र के विकास में जन भागीदारी का आन्दोलन है। इन कार्यों को सूचारू रूप से करवाने विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के क्षेत्रीय कर्मचारी एवं अधिकारी तकनीकी मार्गदर्शन व अन्य सहायता के लिये उपलब्ध रहेंगे।



  1. जलग्रहण विकास कार्यक्रम प्रचार-प्रसार हेतु दरवाजे से दरवाजे तक अभियान, सम्पर्क अभियान हेतु क्या तैयारी करेंगे?

  2. संचार के तत्व एवं प्रक्रिया क्या हैं?


9.7 सारांश


प्रचार-प्रसार में सूचना लेना-अभिप्रेणा प्रदान करना, भावनात्मक अभिव्यक्ति करना, नियंत्रण करना मुख्य तत्व हैं। क्या, किसे, क्यों, कब, कैसे कहाँ कहना है महत्वपूर्ण आयाम है।


9.8 संदर्भ सामग्री     ( )



  1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  3. जलग्रहण मार्गदर्शिका- संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश-जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  4. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी


5.राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ-जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी



  1. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल

  2. वाटरशेड मैनेजमेन्ट - श्री वी.वी ध्रुवनारायण, श्री जी. शास्त्री, श्री वी. एस. पटनायक

  3. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास- दिशा निर्देशिका

  4. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास- हरियाली मार्गदर्शिका

  5. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  6. विभिन्न परिपत्र- राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग


12.जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका



  1. इन्दिरा गाँधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री जलग्रहण प्रकोष्ट

  2. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका

  3. प्रसार शिक्षा निदेशालय ,महराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा विकसित सामग्री

  4. जलग्रहण प्रबन्धन - श्री बिरदी चन्द जाट