जलग्रहण विकास में सफलता के मानदण्ड

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||जलग्रहण विकास में सफलता के मानदण्ड||


जलग्रहण विकास कार्य विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत राज्य में कराये जा रहे है। प्रायः यह देखने में आया है कि जलग्रहण कार्य प्रारम्भ कर पूर्ण भी हो जाते है, परन्तु इन जलग्रहण क्षेत्रों में कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व के “बेस लाइन डाटा नहीं लिये जाते है, जिससे परियोजना उपरान्त अर्जित प्रभाव लाभों का आकलन किया जान सम्भव नहीं होता है। अतः जलग्रहण क्षेत्रों में जलग्रहण विकास कार्यो के प्रभाव/लाभों का आकलन करने के लिए निम्नलिखित कार्यवाही की जानी चाहिए।


 (अ) जलग्रहण क्षेत्र में परियोजना की स्वीकृति के तुरन्त बाद विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करने एवं विकास कार्यो के प्रारम्भ करने से पूर्व निम्न प्रकार से बेस लाइन डाटा बाबत् सूचनाऐं एकत्रित की जाये एवं उसका विस्तृत उल्लेख परियोजना प्रतिवेदन में अलग चैप्टर बना कर योजना पूर्ण होने पर अपेक्षित प्राप्तियाँ वर्णित की जायें।



  1. जलग्रहण क्षेत्र में कार्य शुरू करने से पहले, जितने भी कुएं है, में सम्भवतया माह जून या गर्मी के किसी भी माह में जलस्तर मापा जाकर कुओं के ऊपर जलस्तर एवं जलस्तर मापने की दिनांक पेन्ट से लिखी जाये। जलग्रहण क्षेत्र के बाहर के क्षेत्र में भी कुछ कुओं में यह जलस्तर मापा जाकर अंकित किया जाये। इस बाबत् जलग्रहण क्षेत्र में कुओं का क्रमांक अंकित किया जाकर रजिस्टर भी संधारित किया जाये।

  2. जलग्रहण क्षेत्र में खसरा नम्बरवार, फलों के पेड, चारे हेतु पेड़ एवं जलाऊ लकड़ी हेतु पेड़ की गणना की जाये।

  3. जलग्रहण क्षेत्र में चारागाह एवं बंजर भूमि का क्षेत्रफल एवं उसमें चारे का उत्पादन (क्विंटल में) बाबत् सूचना।

  4. कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया से बछड़ों की संख्या कृषकवार बाबत् सूचना।

  5. जलग्रहण क्षेत्र में मुख्य-मुख्य फसलों की पैदावार क्विंटल प्रति हैक्टेयर बाबत् सूचना।

  6. कृषकवार सूची जिन्होंने केचुएं की खाद की तकनीक, उन्नत फसल चक्र एवं उन्नत पैकेज आॅफ प्रॅक्टिस अपनाई है, का विवरण।

  7. जलग्रहण क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह का विवरण मय उनके सदस्यों की संख्या एवं नाम एवं बैंकों के साथ जुड़ाव का विवरण।


अभिप्रेरणा


किसी भी संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति तथा संगठनात्मक प्रभावशीलता के स्तर को उच्च बनाने के साथ-साथ कार्मिकों की संतुष्टि एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इसके लिए यह जरूरी है कि कार्मिकों को संगठनात्मक लक्ष्यों की ओर प्रेरित किया जाये। कार्मिकों में “कार्य करने की क्षमता” तथा “कार्य करने की इच्छा” दोनों ही विद्यमान होती है, फिर भी कई बार या तो कार्य समय पर नहीं हो पाता है या फिर कुशलतापूर्वक निष्पादन नहीं होता है। प्रश्न यह है कि कार्य करने की क्षमता तथा कार्य करने की इच्छा के मध्य यह खाई क्यों उत्पन्न होती है? एक श्रेष्ठ प्रबन्धक, पर्यवेक्षक तथा नेतृत्वकर्ता को इस खाई को पाटना होता है। कार्य करने की क्षमता तथा कार्य करने की इच्छा को जोड़ने वाली प्रक्रिया अभिप्रेरणा है। अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो कार्य क्षमता एवं इच्छा के मध्य पुल का कार्य करती है। औद्योगिकीकरण के प्रभावों तथा संगठनात्मक कुशलता के अध्ययनों के पश्चात अभिप्रेरणा प्रबन्धकों की मुख्य चिन्ता बन चुकी है, क्योंकि कार्मिकों से उसकी क्षमतानुसार कार्य लेना, संगठन की प्रतिष्ठा बढ़ाना तथा समस्त संसाधनों का सदुप्रयोग सुनिश्चित करना आज के प्रतिस्पद्र्धात्मक वातावरण में प्राथमिक आवश्यकताएँ है।


अभिप्रेरणा, अभि+प्रेरणा से मिलकर बना है। अभि उपसर्ग किसी शब्द के आगे लगाने से अत्यधिक, श्रेष्ठता, समीपता या बारम्बारता का बोध होता है। यहा अभि का तात्पर्य अत्यधिक श्रेष्ठता से अर्थात अर्थात श्रेष्ठ एवं उच्च स्तरीय प्रेरणा ही अभिप्रेरणा है। प्रेरणा वह बाह्य कारक है, जो व्यक्ति को कुछ करने या पाने के लिए उकसाता है जबकि अभिप्रेरणा, आन्तरिक कारक है जो व्यक्ति में निहित है। यदि प्रेरणा बार-बार चार्ज की जाने वाली बैटरी है, तो अभि¬प्रेरणा स्वयं एक जनरेटर है।


3.2.1 अभिप्रेरणा के प्रकार तथा तरीके


                वस्तुतः अभिप्रेरणा, प्रेरणा, प्रोत्साहन तथा मनोबल इत्यादि शब्द गूढ़ मनोवैज्ञानिक ज्ञान तथा समझ की माँग करते हैं क्योंकि मानव प्रत्येक शब्द तथा अवधारणा का विश्लेषण अपने पूर्व ज्ञान, परिवेश, मूल्य तथा संस्कृति के अनुसार करता है। वस्तुतः सूक्ष्म एवं गहन दृष्टि से देखों तो अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया है, जिसके बहुत सारे प्रकार नहीं है बल्कि अभिप्रेरणा प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रेरणाओं, कारकी तथा पारिस्थितियों को कई प्रकारों में बाँट जा सकता है-



  1. धनात्मक (सकारात्मक) अभिप्रेरणा


धनात्मक या सकारात्मक अभिप्रेरणा से आशय उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा लाभ, पारिश्रमिक, आनन्द, संतुष्टि की आशा कार्मिकों को रहती है। धनात्मक अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सम्मावित लाभ या पारितोषिक का प्रलोभन देकर दूसरों को अपनी इच्छानुसार कार्य लेने प्रेरित किया जा सकता है। धनात्मक अभिप्रेरणा वित्तीय या गैर वित्तीय दोनों प्रकार की होती हैं। जैंसे-


                (i) नकद पारिश्रमिक


                (ii) अच्छे कार्यो हेतु पारितोषिक


                (iii) पदोन्नति


                (iv) प्रेरणात्मक मजदूरी एवं अन्य भत्ते


                (v) श्रेष्ठ कार्य के लिए पुरस्कार


                (vi)कार्मिक के अच्छे कार्य की प्रशंसा


                (vii) कुशल एवं योग्य कार्मिकों की सूचनाएँ प्रसारित करना


                (viii) कार्य-सुरक्षा का विश्वास देना


                (ix) कार्मिक में उच्चाधिकारी द्वारा रूचि प्रदर्शित करना 


                (x) कार्मिकों की समस्याएँ सुनना


                (xi) निर्णयन में कार्मिकों को सम्मिलित करना


                (xii) सेवा शर्तो एवं सुविधाओं में सुधार



  1. ऋणात्मक अभिप्रेरणा


                वह होती है, जिसमें भय या नकारात्मक वातावरण से कार्मिकों को प्रभावित किया जाता है। किसी हानि, कमी या आघात के भय से भी व्यक्ति प्रेरित होता है। ऋणात्मक अभिप्रेरणा से संगठन में विद्रोह, अशांति तथा असंतोष का वातावरण व्याप्त हो सकता है ऋणात्मक या नकारात्मक अभिप्रेरणा के उदाहरण-


वेतन भत्तों में कमी


पदावनति


निलम्बन एवं बर्खास्तगी


कार्मिक के विरूद्ध जाँच (अनुशासनात्मक कार्यवाही)


डांट-फटकार


जबरन छुट्टी


वित्तीय दण्ड


निर्धारित पदोन्नति या वेतन वृद्धि पर रोक


कार्मिकों की समस्याएँ न सुनना तथा नियन्त्रण कठोर कर देना। उपयुक्त वर्णित तरीके सामान्यतः सरकार संगठनों या बड़े निजी उद्यमों के द्वारा दी जाने वाली प्रेरणाओं या दण्ड की व्याख्या करते हैं। प्रश्न यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले स्वयं सहायता समूहों या प्रयोक्ता समूहों के मध्य अभिप्रेरणा का प्रसार कैसे हो?


                3.2.2 समूह में अभिप्रेरणा


                समूह में अभिप्रेरणा प्रदान करने हेतु शक्त, योग्य तथा आत्मविश्वास से भरपूर नेतृत्व की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत आत्मविश्वास, सामूहिक मनोबल में वृद्धि करने में सहायक सिद्ध होता है। इस कतिपय प्रयास इस प्रकार हो सकते हैं।



  1. समूह के नेता को चाहिए कि वह सभी सदस्यों में विश्वास प्रकट करे।

  2. निर्णय लेने में सभी की सहभागिता रहे।

  3. अच्छे कार्य की तुरन्त तथा कभी के सामने प्रशंसा की जाये। बुरे काम हेतु डांट-फटकार सभी के सामने नहीं की जाये।

  4. प्रत्येक व्यक्ति को योग्यतानुसार कार्य दिया जाये। उत्साही एवं परिश्रमी सदस्यों को कठिन लक्ष्य देकर प्रेरित किया जाये।

  5. लाभ या अन्य पुरस्कारों का वितरण योग्यतानुसार एवं कार्य निष्पादन के आधार पर हो।

  6. पक्षपात नहीं किया जाये।

  7. नेताको चाहिए कि वह अपनी व्यथा सभी से नहीं कहे बल्कि यथासम्भव वह सहनशील बने।

  8. वही कार्य किया जाये जिसमें सदस्यों को संतुष्टि प्राप्त हो।


3.3          सफलता के मानदण्ड


                चंूकि एक परियोजना से दूसरी परियोजना की स्थितियों में बहुत अधिक भिन्नता होती हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न श्रेणियों के कार्यो/गतिविधियों के लिए कुछ मापने योग्य और कूतने योग्य मानदण्ड निर्धारित किये जायें, जिनके अनुसार उनकी फलता या दूसरे शब्दों में कथित प्रयोजनों का मूल्यांकन किया जा सके। प्रस्तावित मानदण्ड निष्पादन मानकों के समान और संख्या में अल्पमत होंगे। सरकार इनके लिए अपेक्षित होने पर और अधिक सफल मापदण्ड अनुपूरित कर सकती है या उच्च निष्पादन मानक निर्धारित कर सकती है तथापि यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए कि अतिरिक्त मानदण्ड परियोजना के प्रयोजनों और लक्ष्य परिणामों से आन्तरिक रूप से सुसंगत हो और पूर्व निर्धारित मानदण्डों के विपरीत नहीं हों। प्रस्तावित मानदण्डों को निम्न पांच श्रेणियों में विस्तृत रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है


                (1) भौतिक विकास,


                (2) वित्तीय प्रबन्धन


                (3) मानव पूंजी विकास (ह्युमन कैपिटल)


                (4) सामाजिक पूंजी विकास तथा


                (5) परियोजना पश्चात स्थिरता


                उपर्युक्त प्रेत्येक श्रेणियों के अन्तर्गत विशेष सफलता मानदण्ड निम्नानुसार दर्शाये जाते


                3.3.1 भौतिक विकास के लिए सफलता के मानदण्ड


                (क) परियोजना के अन्तर्गत कार्यो एवं गतिविधियों का समय पर सफल समापन


 लगभग 80 प्रतिशत जलग्रहण श्रेत्र में उपचार या विकास गतिविधियाँ की गई हैं।


 लगभग 50 प्रतिशत अतिरिक्त रनआॅफ जलग्रहण में संरक्षित/संग्रहित किया गया है।


 लगभग 80 प्रतिशत परियोजना गतिविधियाँ और कार्य उपभोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं।


 80 प्रतिशत से अधिक ढांचे/उपाय स्थायी और कार्य कर रहे हैं (निजी भूमि, सामान्य भूमि और जल संसाधनों के विकास के लिए क्रियान्वित)


 जहां कहीं विशिष्ट समस्याओं सम्बन्धी स्थानीय तकनीकी ज्ञान/तकनीकी समाधानों की पहचान की गई हैं, उन्हें कुछ कार्यो/गतिविधियों के समाधान हेतु उपर्युक्त माना गया, वहां 80 प्रतिशत ऐसे कार्यो/गतिविधियों का समाधान सीधे ही उन तकनीकों द्वारा या उनमें परिवर्तन और सुधार करके उनके उपयोग द्वारा कार्यो गतिविधियों का समाधान किया जाये।


 उपभोक्ता समूहों के कम से कम 50 प्रतिशत व्यक्तियों द्वारा फसल प्रबन्धन/वनारोपण/पशु बागवानी आदि में विकसित प्रौद्योगिकियों में से 80 प्रतिशत का उपयोग किया जाता है।


 समुदाय उन्मुख कार्यो के लगभग 80 प्रतिशत कार्यो को उपभोक्ता समूहों या समुदाय/पंचायत द्वारा प्रारम्भ करने और रखरखाव करने का दायित्व लिया गया है।


 सामान्य भूमि और निजी भूमि पर रोपे गये लगभग 60 प्रतिशत से अधिक नये वृक्ष परियोजना अवधि के अन्त तक जीवित है।


(ख) उत्पादकता और आय पर सतत प्रभाव


 भू जल के अच्छे पुनर्भरण, सिंचाई के प्रभावी तरीकों, नये कुओं की खुदाई के माध्यम से जीवनरक्षी और अनुपूरक सिंचाई के अन्तर्गत क्षेत्र में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि


 कृषि वानिकी, कृषि बागवानी, वन्य चारागाह आदि जैसे सघन और अतिरिक्त भूमि उपयोग पद्धतियों का कम से कम 25 प्रतिशत निजी भूमि में, भूमि का परियोजना के अन्तर्गत विकास करके उसमें उपयोग


 कृषि, बागवानी, पशुधन, मुर्गीपालन आदि मेजर कोमोडिटीज की उत्पादकता में कम से कम 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि


 जोते गये खेतों में भूक्षरण में सार्थक कमी, जलग्रहण क्षेत्र के अधिशेष रनआॅफ का सार्थक संग्रहणण्, सामान्य भूमि में अपेक्षयी पौधों का पुनः प्राकृतिक उत्पादन


 कम से कम 20 प्रतिशत परिवारों (विशेष रूप से आरपीएफ) की कृषि पद्धतियों के परिवर्तन के कारण उनकी वार्षिक आय में कम से कम 25 प्रतिशत वृद्धि


सूखा पड़ने के वर्ष में भी जल के आन्तरिक संसाधनों की सहायता से पीने के पानी की उपलब्धता को बढ़ाना


                3.3.2 वित्तीय प्रबन्धन के लिए सफलता के मानदण्ड


 लगभग 80 प्रतिशत कार्यो को लागत तकमीनों के अन्दर पूरा किया गया है।


 अपेक्षित समस्त रजिस्टरों, अभिलेखों और लेखों का संधारण उचित रूप से किया जाता है।


 जलग्रहण संस्था के लेखों का वार्षिक अंकेक्षण किया जाता है और अंकेक्षण आपत्ति अनुच्छेदों के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही की गई है।


 परियोजना के अन्तर्गत प्रस्तावित अंशदान की पूरी तरह वसूली कर उसे बैंक में जलग्रहण विकास कोष के खाते में जमा करा दिया गया है।


 परिकामी निधि की वसूली और चक्रानुक्रम 80 प्रतिशत से अधिक है।


3.3.3 मानव पंजी विकास की सफलता के मानदण्ड


 जलग्रहण विकास दल के 80 प्रतिशत से अधिक सदस्यों को उनकी नियुक्ति से प्रथम तीन माहों के अन्दर प्रौद्योगिकीय और भागीदारी प्रबन्धन पहलुओं में सक्षम बना दिया गया है।


 जलग्रहण समिति, जलग्रहण संस्था, उपभोक्ता समूहों स्वयं सहायता समूहों के 80 प्रतिशत पदाधिकारियों को परियोजना उद्देश्यों, रणनीति, दृष्टिकोण आदि के बारे में सही रूप से उन्मुख (ओरिएन्टेड) कर दिया गया है।


 सहभागी प्रशिक्षण माध्यम से जलग्रहण कार्यक्रम के प्रत्येक घटक के प्रौद्योगिकी और प्रबन्धन पहलुओं के अतिरिक्त जलग्रहण सचिवों, कार्यकर्ताओं, समुदाय संगठनकर्ताओं को कार्य (जाॅब) से सम्बन्धित पहलुओं में आलेखों के संधारण आदि सहित, का ज्ञान कराया गया है।


 जलग्रहण समिति, जलग्रहण संस्था, उपभोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों नवाचारी सदस्यों को ऐसे स्थानों जहां कि भागीदारी के आधार पर सफल जलग्रहण कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं, का भ्रमण कम से कम दो बार कराया गया है।


 समुदाय के सदस्यों को देशज लोकनृत्यों, गानों, नुक्कड़ नाटकों आदि के लगभग छः बार कार्यक्रम दिखलाकर जलग्रहण के उद्देश्यों, दृष्टिकोण, रणनीति, कार्य प्रणालियों के प्रति संतोषजनक रूप से जागरूकता लाई जाये।


 जलग्रहण कार्यक्रम के तहत समानता सम्बन्धी मुद्दों पर सफलतापूर्वक सम्बोधन किया जाता है।


 80 प्रतिशत से अधिक छोटे और सीमान्त कृषकों की भूमि का विकास किया गया, जल संग्रहण संरचनाओं के 50 प्रतिशत से अधिक प्रस्तावों को, ससाधनहीन कृषकों के समीप के स्थानों में पूरा किया गया है।


 सामान्य भूमि से भोग्याधिकारों का निर्धारण संसाधनहीन परिवारों के लिए किया है। (जो कि इसके विकसित होने से पूर्व ऐसी भूमि से लाभ प्राप्त कर रहे थे)


 परियोजना अवधि में परिवारों के रोजगार हेतु अन्यत्र पलायन (छोड़कर चले जाना) में 50 प्रतिशत की और परियोजना पश्चात कम से कम 25 प्रतिशत की कमी आई है।


3.3.4 सामाजिक पूंजी विकास के लिए सफलता के मानदण्ड


स्वयं सहायता समूहः


 लगभग 75 प्रतिशत जलग्रहण परिवार, ये वो ग्रामीण हैं जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जलग्रहण पर निर्भर हैं, कम से कम एक स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में नामांकित हैं, इसमें साधनहीन व्यक्तियों के सामान्य आर्थिक हित समूह भी सम्मिलित हैं।


 महिलाओं, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति, कृषि श्रमिकों, चरवाहों और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के लिए अलग से स्वयं सहायता समूह गठित हैं।


 लगभग 80 प्रतिशत स्वयं सहायता समूह नियमित रूप से महिने में एक बार मिलते हैं और अपने निर्णय सदस्यों की सर्वसम्मति से करते हैं, अपने 50 प्रतिशत संसाधनों का संचालन सदस्यों के प्रोदभूत (जनरेटेड) साधनों से करते हैं, बकाया ऋणों में से 80 प्रतिशत ऋणों की वसूली समय पर करते हैं,


अपने लेखों और अन्य अभिलेखों अधावधिक (पीरियोडिकल) रूप से संधारित करते हैं।


उपभोक्ता समूह


 लगभग 50 प्रतिशत परिवार कम से कम किसी एक उपभोक्ता समूह के सदस्य हैं।           


 लगभग 80 प्रतिशत जलग्रहण विकास कार्य गतिविधियों का संचालन सम्बन्धित उपभोक्ता समूहों द्वारा किया जाता है।


 लगभग 80 प्रतिशत उपभोक्ता समूह नियमित रूप से महिने में एक बार मिलते हैं और सदस्यों के बीच आम सहमति से निर्णय लेते हैं, 80 प्रतिशत ऐसे सदस्य हैं, जिन्होंने निर्धारित मानकों के अनुसार सम्बन्धित परियोजना कार्य/गतिविधियों से सम्बद्ध कार्यो के लिए स्वेच्छा से अपना अंशदान, नकद वस्तु या श्रमिक के रूप में किया हैं, जलग्रहण समिति और जलग्रहण विकास दल को नियमित रूप से अपने लेख प्रस्तुत करते हैं, सामान्य भूमि पर पूर्ण किये गये सामुदायिक कार्यो या गतिविधियों का सम्पादन तथा रखरखाव करते हैं।


जलग्रहण समिति/जलग्रहण संस्था


 जलग्रहण समिति द्वारा समस्त परियोजना कार्यो को किसी संविदा गत पद्धति के बिना ही सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया है।


 जलग्रहण समिति समस्त अभिलेखों को उचित रूप से संधारित करने में सक्षम है।


 जलग्रहण समिति लेखों की वार्षिक अंकेक्षण करती है और आवश्यक अनुवर्ती कार्रवाई करती है।


 व्यक्तियों के अंशदान से सम्बन्धित समस्त राशि संकलित की जाती है और उसे डब्ल्यू.डी.एफ. में जमा कराया जाता है।


3.3.5 परियोजना पश्चात स्थायित्व के लिए सफलता के मापदण्ड


 भारत सरकार द्वारा संगठित उपभोक्ता समूहों स्वयं सहायता समूहों का परियोजना पश्चात अवधि में भी कार्य करना (कम से कम 70 प्रतिशत की सीमा तक)


 जलग्रहण समिति का निम्नलिखित विशेष उपलब्धियों के लिए परियोजना पश्चात अवधि में भी कार्य करना, जलग्रहण विकास कोष के द्वारा परियोजना अन्तर्गत निर्मित परिसम्पत्तियों में से कम से कम 80 प्रतिशत की उचित रूप में रखरखाव, कम से कम 50 प्रतिशत स्वयं सहायता स्वयं सहायता समूह व उपभोक्ता समूह से परिक्रामी निधि का सही रखरखाव। कम से कम ऐसी दो समुदायोन्मुख गतिविधियां प्रारम्भ करना जिनके लिए समूह कार्रवाई की आवश्यकता हो (समुदाय के उपभोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित होने के परिणामस्वरूप)


 उपभोक्ता समूहों स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों के हित के लिए प्रत्येक सम्बन्धित विकास विभाग की क्षेत्र में चालू परियोजना की समरूपता


 समीपवर्ती साख एवं निवेश संस्था के साथ सहलग्नता (लिंकेजेज)


 समुदाय की स्थानीय तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समीप की कृषि विज्ञान केन्द्र, जोनल अनुसंधान स्टेशन या राज्य कृषि विश्वविद्यालय के साथ सहलग्नता (लिंकेजेज)


 अभिलेखों का रखरखाव और जलग्रहण समिति द्वारा किये गये कार्यो की गुणवत्ता का पर्यवेक्षण


 प्रत्येक स्वयं सहायता समूह उपभोक्ता समूह द्वारा हाथ में लिये गये कार्यो/गतिविधियों के लेखों का रखरखाव करेंगे। समूह उन उपभोक्ताओं का एक रजिस्टर भी संधारित करेगा, जिन्होंने अपनी अंशदान राशि के अनुपात में श्रम तथा सामग्री के रूप में अंशदान दिया है। जलग्रहण कार्यकताओं को उपर्युक्त अभिलेखों, लेखों के उचित रखरखाव और किये गये कार्य के आवधिक माप के लिए उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। जलग्रहण सचिव लेखों का सत्यापन करेगा और व्ययों के अनुमोदन हेतु इन्हें जलग्रहण समिति के समक्ष रखेगा। जलग्रहण समिति के सदस्य कार्यो के लिए भुगतान का अनुमोदन करने से पूर्व प्रमाणिकता और गुणवत्ता सम्बन्धी अपनी सन्तुष्टी के लिए कार्यो का निरीक्षण करेंगे। कार्य की अच्छी गुणवत्ता बनाये रखने के लिए वास्तविक उपभोक्ताओं के साथ-साथ जलग्रहण समिति के सदस्य और जलग्रहण सचिव उत्तरदायी होंगे।


जलग्रहण विकास दल और जलग्रहण समिति यह सुनिश्चित करेंगी कि उनकी गतिविधियों और व्यय के लेख जिला अध्यक्ष द्वारा निर्धारित प्रारूप में संधारित किये गये है। जिला अध्यक्ष प्रगति के पुनर्विलोकन और अनुवीक्षण के लिए उन्हें राज्य स्तरीय प्रतिवेदन प्रारूप के अनुरूप बनाने के लिए जिला जलग्रहण समिति से परामर्श ले सकेगा। प्रत्येक जलग्रहण विकास दल उन प्रक्रियाओं और गतिविधियों, का जो कि परियोजना स्तर पर हाथ में ली गई है, उचित प्रलेखन रखेगा। यह बाह्य स्वतंत्र अभिकरणों को प्रवृत्ति, कुशलता, व्यवहार सम्बन्धी पहलुओं, प्रक्रियात्मक कठिनाईयों सम्बन्धी समस्याओं का विश्लेषण करने और आवश्यक सुधार प्रस्तावित करने में सक्षम बनायेगा। इसके लिए जिला जलग्रहण समिति जिला स्तर पर संधारित की जाने वाली लाॅग बुक, डायरियों के लिए प्रारूप तैयार करेगी। ये प्रारूप साधारण व आसानी से संधारित किये जाने योग्य होंगे और अनावश्यक कागजी कार्रवाई के परिहार हेतु इनमें न्यूनतम आवश्यक सूचना समाहित होगी।


3.4          विकास स्तर मापन


 भिन्न-भिन्न जलग्रहण क्षेत्रों में विकास का स्तर पृथक-पृथक होता है। कुछ जलग्रहण क्षेत्रों में जो गतिविधियां उत्कृष्ट आंकी जाती है, हो सकता है कि वे अन्य जलग्रहण क्षेत्रों में परिलक्षित नहीं होती हो। बहुत कुछ निर्भर इस बात पर करता है कि जलग्रहण क्षेत्र की कृषि जलवायु, जल एवं मिट्टी की उपलब्धता, गुणवत्ता एवं वर्गीकरण, स्थानीय नेतृत्व की सोच, लाभार्थियों की जनसहभागिता एवं कार्यक्रम कियान्वयनकताओं का ज्ञान किस स्तर का है।


 अभ्यास के लिये नमूने के तौर पर तीन जलग्रहण क्षेत्रों को चयनित कर क्षेत्रीय एवं सामाजिक सूचनाओं की कल्पना कर उनके संश्लेषण-विश्लेषण के द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास किया है कि अध्ययन क्षेत्र में कौन से जलग्रहण क्षेत्र में कितना पारिस्थितिकीय लाभ हुआ है और किसी क्षेत्र में कम लाभ रहा है तो उसके नियन्त्रकों को जानने का प्रयास किया गया है।


 ऐसे नियन्त्रकों पर गौर करके प्रदेश में भविष्य में संचालन किये जाने वाले जलग्रहण विकास कार्यक्रम को सुव्यवस्थित किया जा सकेगा। यह कार्य फील्ड स्तर पर अध्ययन करने के उपरान्त प्रभावी रहेगा।


 किसी भौगोलिक इकाई क्षेत्र के विकास स्तर का अध्ययन व मापन कई मापदण्डों के आधार पर किया जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में राज्य के तीन प्रमुख भू-पारिस्थितिकीय प्रदेशों में से चयनित तीनों जलग्रहण क्षेत्रों के विकास का स्तर ज्ञात किया गया है, जिनका आधार जलग्रहण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत सम्पादित भौतिक एवं जैविक गतिविधियाँ रही हैं।                                                                                                                                                                                              (2) विकास का मध्यम स्तर - चयनित जलग्रहण क्षेत्र अ में विकास का स्तर मध्यम रहा है (सारणी 2,3) इसमें कुल 20 चयनित चरों में से साक्षरता, कृषि उत्पादन में वृद्धि, अवनलिका नियंत्रण आदि में ही अन्य 2 की तुलना में विकास उच्च रहा हैं। शेष में मध्यम, इसलिए इसका औसत रूप में मध्यम विकास स्तर रहा है।


(3) विकास का निम्न स्तर - राज्य में चयनित जलग्रहण क्षेत्र ब में विकास का स्तर तीनों जलग्रहण क्षेत्रों की तुलना में निम्नतम रहा हैं। यहां पर कुल 20 चरों के तुलनात्मक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि केवल अपवाह रेखा उपचार, चारागाह विकास, पौधशाला स्थापना आदि में ही विकास का स्तर अच्छा रहा है, शेष अन्य चरों में अन्य 2 जलग्रहण क्षेत्रों की तुलना में निम्न रहा है।


3.6          स्वपरक प्रश्न



  1. समूह में अभिप्रेरणा से क्या तात्पर्य है?

  2. विकास स्तर का मापन कैसे होता है?


3.7          सारांश


                किसी भी संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के स्तर को उच्च बनाने के लिये कार्मिकों की संतुष्टि एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है इसके लिये कार्मिकों को संगठनात्मक लक्ष्यों की ओर प्रेरित किया जाना जरूरी है। सफलता के मानदण्डों में भौतिक विकास, वित्तीय प्रबन्धन, मानव पूंजी विकास, सामाजिक पूंजी विकास एवं परियोजना पश्चात् स्थिरता आवश्यक है।


3.8          संदर्भ सामग्री



  1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  3. जलग्रहण मार्गदर्शिका - संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  4. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  5. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल

  6. वाटरशेड़ मैनेजमेन्ट - श्री वी.वी ध्रुवनारायण, श्री जी. शास्त्री, श्री वी.एस पटनायक

  7. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरियाली मार्गदर्शिका

  8. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  9. विभिन्न परिपत्र - राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग

  10. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका

  11. इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री - जलग्रहण प्रकोष्ठ

  12. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका

  13. जलग्रहण का अविरत विकास - श्री आर.सी.एल.मीणा

  14. जलग्रहण प्रबन्धन - श्री बिरदी चन्द्र जाट


                s15. मृदा अपरदन एवं भूमि संरक्षण - डा0 रमेश प्रसाद त्रिपाठी, डा0 तुलसी राठौड, डा0 हरिप्रसाद सिंह