श्रमिको का नियोजन एवं भुगतान व्यवस्थाएँ

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 06)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||श्रमिको का नियोजन एवं भुगतान व्यवस्थाएँ||


जलग्र्रहण विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के सतत विकास के अतिरिक्त स्थानीय स्तर के निवासियों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराना भी है। राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में जहाँ पर कि प्रत्येक 5 वर्षो में से 3 वर्ष अकाल की विभीषिका का सामना करना पड़ता है एवं अकाल की स्थिति एवं चारे/पानी की कमी के फलस्वरूप मनुष्य अपने पशुधन के साथ अन्य= परिमार्जन हेतु विवश हो जाता है। जलग्रहण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में स्थानीय श्रमिकों को नियोजित कर उनके स्तर से ही सभी प्रकार के कार्य जैसे मृदा खुदाई, लदान एवं उतराई, सीमेन्ट/पत्थर के कार्य, पौधारोपण के कार्य इत्यादि कराये जाते हैं। अतः ग्राम पंचायत अथवा जलग्रहण संस्था/समिति का यह दायित्व हो जाता है कि वे जलग्रहण क्षे= के निवासियों/खेतीहार मजदूरों को ही सभी प्रकार के कार्यो में नियोजित करे।


6.2 श्रमिको का नियोजन ( ) 


पूर्व में यह देखा गया है कि अन्य राज्यों के मजदूरों को नियोजित करने की व्यवस्था प्रचलन में है, वह भी ठेकेदारी प्रथा के माध्यम से। इस पर भी रेक लगाने के आदेश समय-समय पर जारी किये गये हैं। इसके  अतिरिक्त यह भी देखने में आया है कि विभिन्न प्रकार की मशीनों का उपयोग मिटटी के कार्यो में किया जाता रहा है, इससे जिन गरीब भूमिहीन/खेतीहार मजदूरों को रोजगगार मिल सकता है वह बाधित/अनुपलब्ध हो जाता है। राज्य स्तर से स्पष्ट निर्देश प्रसारित किये गसये हैं कि जलग्रहण क्षेत्रों के क्रियान्वयन के दौरान किसी प्रकार की मशीनों जैसे जे. सी. बी. ट्रैक्टर, स्केपर इत्यादि का उपयोग पूर्णतः निषिद है। श्रमिकों के नियोजन में महिलाओं की सुविधाओं का पृथक से ध्यान रखा जाना चाहिये। बाल मजदूरी गर्भवती महिलाओं से मजदूरी कराया जाना सदैव निषिद माना गया है। इसके अतिरिक्त यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि समय-समय पर राज्य  सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी की दरों के अनुसार श्रमिकों को भुगतान प्राप्त हावें एवं उसी के अनुपात में उनसे कार्य लिया जावे।


श्रमिकों के नियोजन की जिम्मेदारी जलग्रहण क्रियान्वयनकर्ताओं की है जिसमें ग्राम सेवक जलग्रहण सचिव प्रमुख हैं। इस कार्य में स्थानीय संरपचं/वार्डपंच की मदद भी ली जा सकती है। श्रमिकों के नियोजन हेतु पूर्व में मस्टरोल  आधारित व्यवस्था काम में ली जाती रही थी, परन्तु जलग्रहण विकास कार्यो के क्रियान्वयन में  वर्तमान में मस्टरोंल के स्थान पर श्रमिकवार दिवसवार श्रमिक नियोजन रजिस्टर ( निर्धारित प्रप= में ) संधारित किया जाता है, जिसका प्रारूप निम्नानुसार है।


6.3 दैनिक उपस्थिति एवं भुगतान पंजिका ( )


जलग्रहण वार संधारण


जलग्रहण का नाम.......................................गाँव....................................पंचायत समिति..............................


जलग्रहण कमेटी अध्यक्ष............................................कार्य की अवधि.............................................


योजना का नाम........................................................................... 




















































क्रं.



नम


पिता/


पति, जाति



श्रेणी


कुषल/


अकुषल



1



2



3



4



5



6



7



8



9



1





0



1





1



1





1



1





1



1





1



1





1



दर प्रतिदिन



देय


 राशि



भुगतान प्राप्तकर्ता के हस्ताक्षर/अंगूठा निषानी


   

1


6



1


7



1


8



1


9



2


0



2


1



2


2



2


3



2


4



2


5



2


6



2


7



2


8



2


9



3


0


   

सचिव                                                                अध्यक्ष


जलग्रहण कमेटी                                                     जलग्रहण कमेटी


इस रजिस्टर में श्रमिको से सम्बन्धित सूचना जैसे नाम, पिता/पति का नाम, एम्र, गाँव, श्रेणी,, हाजिरी, कुल हाजिरी, श्रमिको को देय राशि उसकी दर, कार्य का नाम, स्थल, अवधि का ब्यौरा लिखा जावेगा जलग्रहण विकास कार्यक्रमों में लाभार्थी अंशदान लिये जाने का प्रावधान भी उल्लेखित है। इस सम्बन्ध में श्रमिाको की मजदूरी से लाभार्थी अंशदान काटा जाना एवं वास्ताविक लाभार्थी से निर्धारित अंशदान प्राप्त नहीं किया जाना भी समय-समय पर जानकारी में आता है। जिसके सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश हैं कि वास्ताविक लाभार्थी ( उपभोक्ता  समूह,) से ही अंशदान, श्रम, सामग्री अथवा नकद के रूप में पहले से - ही प्राप्त रि लिया जावे एवं उसकी प्राप्ति रसीद ग्राम पंचायत जलग्रहण समिति द्वारा लाभार्थी को लिखित में दे दी जावे। श्रमिकों को नियोजित किये जाने, दी जा रही मजदूरी इत्यादि पर आवश्यक रूप से चर्चा ग्राम सभा की बैठक में अथवा जलग्रहण संस्था समिति की बैठक में की जानी चाहिए, जिससे कि पारदर्शिता का भाव जलग्रहण क्षे= के सभी लाभार्थियों के मन में विकसित हो एवं वास्ताविक सहभागिता प्राप्त की जा सके।


6.4 क्रियान्वित किये गये कार्यो का भुगतान (  )


प्रत्येक स्वयं सहायता समूह उपभोक्ता समूह उनके द्वारा क्रियान्वित प्रत्येक कार्य गतिविधि का हिसाब अलग से रखें। उपभोक्ता समूह एक रजिस्टर बनाकर उसमें उपभोक्ता का नाम एवं उसके द्वारा दी गई श्रम एवं  सामग्री, उसकी कीमत के साथ दर्ज करें। स्वयं सहायक समूहों उपभोक्ता समूहों द्वारा वास्तव में क्रियान्वित कुछ कार्यो का विवरण, हिसाब एवं उनके माप नाप जोख का कार्य करने की जिम्मेदारी जलग्रहण के स्वयं सेवकों को दी जाये। जलग्रहण कमेटी द्वारा इनके कार्यो के खर्च के अनुमोदन से पहले जलग्रहण सचिव इन कार्यो एवं उनके हिसाब की जांच करे। जलग्रहण कमेटी के सदस्य इन कार्यो एवं उनके हिसाब की जांच करे। फिर जलग्रहण कमेटी के सदस्य इनका निरीक्षण कर उनकी असिलियत एवं गुणों का पता लगाने के बाद ही उनके भुगतान का अनुमोदन करे। जलग्रहण कमेटी के सदस्य एवं जलग्रहण सचिव यह सुनिश्चित करेगें कि क्रियान्वित कार्य अच्छी किस्म के हों तथा इनके भुगतान आदि के लेखों ( हिसाब ) को सही तरीके से रखा गया है।


कार्यों का क्रियान्वयन तभी प्रारम्भ जबकि वास्तविक उपभोक्ता समूह आगे आने को इच्छुक हैं। उपभोक्ता समूहों को उनके स्वयं के खेतों में वांछित गतिविधिययों के सम्पादन हेतु कुशल श्रमिकों की पहचान करने की स्वतन्त्रता है। श्रमिकों को भुगतान उपभोक्ता सीधे ही जलग्रहण सचिव द्वारा नकद ( यदि राशि कम है ) अथवा चेक द्वारा किया जावेगा। वास्ताविक उपभोक्ता से कार्यो के सन्तोषजनक क्रियान्वयन के प्रमाण-प= प्राप्त किये  जाने के उपरान्त यह किया जावे। जलग्रहण समिति के पदाधिकारीयों को पहले से ही श्रमिकों से सम्पर्क स्थापित करने अथवा उपभोक्ता से अशंदान प्राप्त करने से पूर्व ही कार्यो के क्रियान्वयन हेतु खेतों में अकंन करने से बचना चाहिये अन्यथा इससे कार्यक्रम ग्राम स्तर पर भी ऊपर से नीचे की आवधारणा वाला बन जायेेगा।


जलग्रहण विकास दल के सम्बन्धित सदस्य तकनीकी रूप से प्रत्येक बिल को अधिप्रमाणित करें एवं भुगतान की अनुंशसा का अनुमोदन करें। सही मूल्यांकन एवं भुगतान के लिए आवश्यक है कि सही प्रकार से मापों का इन्द्राज किया जावे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आगे के भाग में माप पुस्तिका में किस प्रकार से इन्द्राज कर गणना की जानी चाहिए, उसका विवरण बताया गया है।


6.5 माप पुस्तिका में इन्द्राज एवं गणना तथा बिल बनाने की प्रक्रिया ( )


किसी भी अथियांत्रिकी कार्य में माप एवं माप पुस्तिका का बहुत ही महत्व है। प्रत्येक कार्य के पश्चात कार्य का मापन माप-पुस्तिका में इन्द्राज करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-



  1. जिन व्यक्तियों को माप-पुस्तिका जारी की जाये उनके नाम मय माप-पुस्किता की संख्या के, एक पंजिका में लिखा जाना चाहिये, विस्तृत माप केवल सहायक अभियन्ता, कनिष्ठ अभियन्ता या निर्माण कार्य के प्रभारी जिन्हें माप-पुस्तिका सौंपी गई है, द्वारा लिखे जाने चाहिए।

  2. सम्पूर्ण माप केवल माप-पुस्तिका में ही स्पष्ट तौर से स्याही से लिखे जाने चाहिये और किसी पुस्तक में नहीं।

  3. चूकिं निर्माण कार्य के सम्पूर्ण भुगतान माप-पुस्तिकाओं में लिखी गई कार्य की मात्रा तथा माप पर आधारित होते है अतः लिखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह उन्हें सही स्पष्ट रूप से लिखे। यदि माप किसी चालू ठेके के लेखे के सम्बन्ध में लिये जाये कार्य पूरे होने से पूर्व ही माप लिये गये हों तो इन बातों के लिए और उत्तरदायी होगा।

  4. पहले लिये गये मापों कका प्रसंग दिया जाये और यदि कार्य पूर्णरूपेण समाप्त कर दिया गया है, तो निर्धारित स्थान या समाप्ति की तिथि अंकित की जाये। यदि चालू खाते के ऐसे माप पहली बार लिये गये हो या प्रथम या अन्तिम माप लिये गये हों तो माप-पुस्तिकाओं में प्रविष्टियों के सामने एतदर्थ सही टिप्पणी की जानी चाहिए।

  5. माप पुस्तिकाओं के क्रमांक मशीन से लगे हुये होने चाहिये। प्रविष्टियों को निरन्तरता में लिखा जाना चाहिये। कोई पृष्ठ खाली नहीं छोडा़ जाना चाहिये। यदि कोई पृष्ठ खाली छोड़ दिया जाता है तो उसे तिरछी रेखाओं से निरस्त किया जाता है एवं निरस्तीकरण दिनांक हस्ताक्षरों से प्रमाणित किया जाना चाहिये।

  6. इस बात को ध्यान रखा जाना चाहिये कि निर्माण कार्य के विभिन्न मदों का जो विवरण माप-पुस्तिका में अकिंत किया गया है वह संविदा में दिये गये विवरण से मिलता है तथा पूर्णरूपेण से दिया हुआ है।

  7. ठेकेदार को माप किये जाने का स्थान समय की पूर्व सूचना दी जानी चाहिये एवं वह जब जाता है, तो माप-पुस्तिका के नीचे उसके हस्ताक्षर स्वीकारोक्ति स्वरूप करवा लिये जाने चाहिये।

  8. प्रत्येक माप-पुस्तिका में एक सूचीप= होना चाहिये तथा अन्तिम तिथि तब लिखी होनी चाहिये।

  9. माप-पुस्तिका भरते समय माप-दिवस, दिनांक, कार्य का नाम, कार्य करने वाले का नाम, कार्य प्रारम्भ तिथि कार्य समाप्त करने की तिथि का इन्द्राज करना आवश्यक है।

  10. कार्य मापन व्यक्ति का नाम भी लिखना आवश्यक है। कार्य माप करने वाले के हस्ताक्षर भी आवश्यक है।

  11. माप चैक करने वाले का नाम चैक करने की तिथि एवं उसके हस्ताक्षर आवश्यक है।

  12. एक दिन में जितना माप एक व्यक्ति कर सकता है उतना ही माप इन्द्राज करना चाहिए एवं माप की विश्वसनीयता होनी चाहिए।

  13. माप की सन्दंर्भ सूचना भी अंकित होनी चाहिए।

  14. लम्बाई के कालम में लम्बाई चैडा़ई के कालम में चैड़ाई एवं ऊँचाई के कालम में ऊँचाई का ही इन्द्राज करना चाहिए।

  15. रेखीय माप मीटर में क्षे=फल का माप वर्गमीटर में आयतन का माप घनमीटर में देना चाहिए।

  16. माप बी. एस. आर. अथवा दर निर्धारण समिति द्वारा निर्धारित दरों में उल्लेखित की इकाई में होना चाहिए।

  17. सामान्यता माप-पुस्तिका ममें निम्न प्रकार की श्रुटियाँ तथा अनिमियतताएं पाई जाती हैं।


(i) उद्घर्षण तथा ऊपरी लेखन किया जाता है यह गम्भीर रूप से आपत्तिजनक है। प्रत्येक उद्घर्षण के ऊपर लेखन पर सदिनांक हस्ताक्षर होने चाहिये।


(ii) उद्घर्षण तथा ऊपरी लेखन किया जाता है  पूर्व की प्रविष्टियां माप लिखे जाने से पूर्व नहीं की जाती हैं।


(iii) माप पुस्तिका में माप की प्रविष्टियों में परिवर्तन कर दिया जाता है तथा उसी के अनुसार मूल बिल तैयार होने के उसकी राशि में परिवर्तन कर दिया जाता है।


 (iv) प्रविष्टियां तथा माप पुस्तिका के नीचे रिक्त स्थान दिये जाते हैं।


 (v) अधिकारियों का निरीक्षण अपार्यप्त होता हैं।


 (vi) कइ बार यह स्पष्टतया ज्ञात होता है कि माप-पुस्तिका में सीधी प्रविष्टियां नही की जाकर  कहीं अन्य प= से प्रतिलिपि की गई हैं।


 (vii) पहले प्रविष्टियां पेन्सिल से एतारी फिर उन्हें स्याही से लिख दिया जाता है।


 (viii) बिल का भुगतान किये जाने पर भी माप-पुस्तिका में पृष्ठ को रेखांकित नहीं किया जाता  तथा दोहरे भुगतान के अवसर रहतें हैं।


(ix) माप-पुस्तिका की जांच के लिए समय पर उन्हें उच्चाधिकारियों, अभियंताओं आदि के पास प्रस्तुत किया जाना चाहिए।


6.6 माप-पुस्तिका में गणना बिल बनाने की प्रक्रिया ( )


माप-पुस्तिका में गणना करते समय बहुत ही सावधानी से कार्य करना चाहिये। लम्बाई, चैडा़ई व ऊँचाई एक ही इकाई में होनी चाहिए। एसके उपरान्त उन्हें कार्य के गणित सू= के अनुसार ही गणना करना चाहिए। जैसे कि मिटटी की खुदाई करते समय लम्बाई, चैडा़ई व गहराई का मापन मीटर में करने के पश्चात उन तीनों का ( लम्बाई, चैडा़ई, ऊँचाई ) का गुणनफल निकाल कर कार्य की मात्रा घनमीटर में निकाली जाती है। उसके पश्चात दर/प्रति इकाई से गुणा कर उसकी राशि निकाली जाती है। माप-पुस्तिका में कार्य की गणना पश्चात उसी के अनुसार ही बिल बनाये जाने चाहिये।


परिप=-1


6.8 माप पुस्तिकाओं में कार्यो की माप दर्ज करने के कम में  ( )


माप पुस्तिकाओं में कार्यो की माप दर्ज करने के कम में निम्नानुसार आदेश जारी किये जाते है:


जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग में पूर्व में जलग्रहण क्षेत्रों में सम्पादित कार्यो की माप, माप पुस्तिकाओं में कनिष्ठ अभियन्ता/सहायक कृषि अधिकारियों द्वारा इन्द्राज की जाती थी। लेकिन जलग्रहण क्षे= विकास की विभिन्न योजनाओं के दिशा निर्देशों के अनुसार वर्तमान परिपेक्ष्य में कार्यो की माप का इन्द्राज जलग्रहण सचिव द्वारा किया जाता है। फलस्वरूप माप पुस्तिका में माप के इन्द्राज की प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाना आवश्यक है।


कार्यो का इन्द्राज करते समय जलग्रहण सचिव निम्न बातों का ध्यान रखेगें-



  1. निजी भूमि पर कार्य करने की स्थिति में कृषकवार एवं खसरावार कार्य की मात्रा दर्ज की जावे तथा उस कार्यस्थल की पहचान हेतु गाँव का स्थानीय नाम भी अंकित किया जावे ताकि कार्यस्थल की पहचान आसान हो सके।

  2. कृषक के खेत पर बनाई गई मेंड़ का इन्द्राज दिशावर इस प्रकार किया जावे कि प्रत्येक मेंड़ को चिन्हित किया जा सके। जैसे फला खसरा क्रमांक की पूर्व दिशा की मेंड़ इत्यादि।

  3. मिटटी खुदाई कार्य में खड्डे की माप ( मुटोस छोड़ते हुए ) ली जावे एवं जब मिटटी के बंध की माप ली जावे तब उसमें से नियमानुसार वोईस स्पैरा ( हवा की मात्रा ) को कार्य की मात्रा में से घटाई जाकर तदानुसार भुगतान किया जावें। इस हेतु 2.5 सेंमी. बंध की ऊँचाई को 30  सेंमी. मानते हुए भुगतान योग्य कार्य की मात्रा की गणना की जावें।

  4. नाला उपचार की स्थिति में नाले का स्थानीय नाम ( जिस नाम को आम ग्रामवासी जानते हैं। एवं नाला क्रमांक अंकित किया जावे। जलग्रहण ढा़चों की स्थिति ( लोकेशन ) एल सैक्शन के आर.डी. दर्शाते हुए स्पष्ट की जावे। नाला उपचार में जलग्रहण ढा़चे के माप को वेस्ट वीयर की विपरीत दिशा से इन्राज किया जावे, ताकि माप की जांच करने में कोई भ्रम की स्थिति नहीं बने।


सम्पादित किये गये कार्यो की माप की जांच करते समय सम्बन्धित उपर्युक्त बिन्दुओं की पालना सुनिश्चित करे।


परिप=-2


जलग्रहण परियोजनाओं की तकनीकी स्वीकृति जारी करना 


जलग्रहण विकास कार्यो के क्रियान्वयन के दौरान यह अपेक्षा की जाती है कि तकनीकी मापदण्डों की पालना पूर्ण रूप से की जा रही हो एवं इस तरह की व्यवस्था विद्यमान हो जिसमें कार्यो के तकमीने बनाना उनकी समक्ष स्वीकृतियां जारी करना एवं स्वीकृतियों के विपरीत नोट करना, सम्मिलित हों। राज्य स्तर से यह व्यवस्था की गई है कि-



  1. जिला परिषद् मं कार्यरत अधिशाषी अभियन्ता ( भू संसाधन ) के स्तर से मरू विकास कार्यक्रम, सूखा संभाव्य क्षें= कार्यक्रम, समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम अन्तर्गत 30 लाख रूपये की तकनीकी स्वीकृति ( स्वीकृत परियोजनाओं की ) जारी की जा सकेगी।

  2. राज्य में 6 वित्तीय कार्यालय कार्यरत हैं। ये वित्त कार्यालय कोब, जयपुर, अजमेर, उदयपुर, भीलवाडा़ एवं जोधपुर में स्थित है तथा इनका मुखिया संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी होते हैं। प्रत्येक संयुक्त निदेशक के स्तर से समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम अथवा अन्य बडी़ परियोजना की तकनीकी स्वीकृति जारी की जावेगीं।


सम्बन्धित वृत्त कार्यालय के सयुंक्ता निदेशक यह सुनिश्चित करेंगे कि



  • वर्ष 2006-07 में स्वीकृत समस्त जलग्रहण परियोजनाओं की तकनीकी स्वीकृति दिंनाक 31.3.2007 से पूर्व जारी की जा चुकी है।

  • यह दायित्व सम्मिलित रूप से अधिशाषी अभियन्ता ( भू संसाधन ) जिला परिषद एवं सयुंक्त निदेशक वृत कार्यालय का होगा कि वे सुनिश्चित करेंगे कि समस्त कार्य तकनीकी स्वीकृति के अनुसार सम्पादित किये जा रहे हैं।

  • ऐसी परियोजनाएं जो पूर्व के वर्षो से चल रही हैं एवं जिनमें कि विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन अब तैयार किया जा रहा है, ऐसी स्थिति में तकनीकी स्वीकृति अधिशाषी अभियन्ता ( भू ससंाधन ) अथवा सयुंक्त निदेशक वृत कार्यालय द्वारा की जावेगीं।


ग्रामीण कार्य निर्देशिका में उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार तकनीकी स्वीकृति जारी करने वाले अधिकारी ही कार्यो की गुणवत्ता सुनिश्चित करने एवं क्षे= में तकनीकी मापदण्डों एवं मानकों की पालना सुनिश्चित करने हेतु जिम्मेदार होगा, अतः अधिशाषी अभियन्ता ( भू संसाधन ) एवं सयुंक्त निदेशक वृत कार्यालय उनके द्वारा स्वीकृत तकमीनों/स्वीकृतियों हेतु जिम्मेदार होगें।


6.10 स्वपरक प्रश्न (   )



  1. श्रमिकों का नियोजन कैसे किया जाता है ?

  2. क्रियान्वित किये गये कार्यो का भुगतान कैसे होता है?

  3. माप पुस्तिका में इन्द्राज की प्रक्रिया क्या है ?


6.11 सारांश (   )


जलग्रहण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में स्थानीय श्रमिकों को नियोजित कर उनके स्तर से ही सभी प्रकार  के कार्य जैसे मृदा खुदाई, लदान एवं उतराई, सीमेन्ट/पत्थर के कार्य, पौधरोपण के कार्य इत्यादि कराये जाते है अतः ग्राम पंचायत अथवा जलग्रहण कमेटी का यह दायित्व हो जाता है कि वे जलग्रहण क्षे= के निवासियों/खेतीहार मजदूरो का ही सभी प्रकार के कार्यो में नियोजित करें।


6.12 संदर्भ सामग्री  ( )



  1. जलग्रहण पुस्तिका एवं भू-संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन

  2. प्रशिक्षण पुस्तिका- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  3. जलग्रहण मार्गदर्शिका - संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी

  4. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू-रक्षण विभाग द्वारा जारी

  5. राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  6. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल

  7. वाटरशेड मैनेजमेन्ट - श्री वी. वी. प्राु्रवनारायण, श्री जी. शास्त्री, श्री वी. एस. पटनायक

  8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - दिशा निर्देशिका

  9. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरयाली मार्गदर्शिका

  10. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी

  11. विभिन्न परिप=- राज्य यरकार जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग

  12. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका

  13. इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री- जलग्रहण प्रकोष्ठ

  14. कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका

  15. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय , उदयपुर विकसित सामग्री

  16. जलग्रहण प्रबन्धन- श्री बिरदी चन्द जाट

  17. 17. आई. एम. टी. आई. कोटा द्वारा विकसित की गई संदर्भ सामग्री