विकास और मुख्यमंत्री के भाषण पर छेड़खानी


||विकास और मुख्यमंत्री के भाषण पर छेड़खानी||


आजकल उत्तराखण्डभर में एक चर्चा गरम है, कि राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में संबोधन गलत किया है। यदि गलत किया है तो क्या इनके गलत भाषण से विकास का काम रूक गया है? क्या मुख्यमंत्री ने जो नहीं कहना था, वह कह दिया? प्रश्न खड़ा हो रहा है मुख्यमंत्री आईआईटी रूड़की के दिक्षान्त समारोह में राष्ट्रपति के संबोधन में ऐसा बोल बैठे। और कुछ शरारती तत्वो ने मुख्यमंत्री का भाषण एडिट करके सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया। भाषण पर छेड़खानी करने वाले पर पुलिस रिपोर्ट हो चुकी है। यहां सही व गलत को लेकर राजनीति गरम हो गई है। समय ही बता पायेगा कि इस भाषण प्रकरण पर कानून की मार कैसे पड़ती है।


उल्लेखनीय हो कि राज्य में कांग्रेस-भाजपा के कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी के बैनर तक सीमटकर रह गये हैं। वे 24सों घण्टे, सातों दिन यह देखते रहते हैं कि पार्टी के मुखिया क्या कर रहे हैं, क्या कहने वाले हैं, क्या वह उनकी कही हुई बातों को तोड़-मोड़ कर एक दूसरे पर आरोप लगा सकते है, आदि आदि। मगर इन पार्टीयों के कार्यकर्ताओं को राज्य के विकास में बाधक कौन बन रहा है उस तक इनकी नजर पंहुचती ही नहीं है। वे पार्टी के ऐसे कार्यकर्ता हैं कि जिस ''वोट'' के लिए चुनाव के दौरान लोगो की देहरी घिस देते हैं, ऐस कार्यकर्ताओं को वोट देने वाले लोगो की विकास की समस्या उन्हें दिखाई नहीं देती, फकत अपने आका के। अर्थात उनके आका के लिए किसने कुछ कह तो नहीं दिया, यदि कह दिया तो शीघ्र-अतिशीघ्र कानूनी कार्रवाई करो। पर निष्क्रिय और भ्रष्ट अधिकारीयों पर कोई कानूनी कार्रवाई करवाने वाला इस राज्य में दिखाई नहीं दे रहा है।


ताज्जुब हो कि ऐसे अनसुलझे मसलो पर एक राजनितिक कार्यकर्ता मुखर रूप से आगे नहीं आ रहा है, कि कौन अधिकारी जनता के काम को रोक रहा है, कौन अधिकारी बजट पर घुड़की मार रहा है और साल के अन्त में विकास के बजट को लैप्स करता है, कौन अधिकारी जनता की समस्याओं पर कार्रवाई नहीं कर रहा है, कौन अधिकारी जनता के पत्रो का जबाव नहीं दे रहा है, कौन अधिकारी अपने कार्यालय में नियत समय पर नहीं आ रहा है, कौन अधिकारी छात्रवृति खा रहा है, कौन अधिकारी मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर कार्रवाई आगे नहीं बढा रहा है, कौन अधिकारी है जिसने कहा कि राज्य में वनो के मध्य एक भी गांव नहीं है, कौन अधिकारी है जो वन अधिनियम 2006 को क्रियान्वन करने पर कार्य नहीं कर रहा है, कौन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है जो सदन में मौन रहता है, कौन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है जो सदन में विकास की बात पर सहमति व असहमति देने के लिए खड़ा तक नही हो पाता है, ऐसे कितने जनप्रतिनिधि है जो सालभर में अपने हिस्से का बजट को विकासीय कार्यो पर खर्च नहीं कर सकता है, जैसे सवाल आज भी राज्य में खड़े है। इन सवालो पर पक्ष और विपक्ष के कार्यकर्ता मौन हैं। राज्य के प्रबुद्ध नागरिको का कहना है कि जिस दिन इन सवालो पर सभी राजनीतिक कार्यकर्ता अपने हिस्से का काम स्वीकार करेंगे, उसी दिन से विकास की सुजली ईबारत लिखनी आरम्भ हो जायेगी। 


कुलमिलाकार बहस फिर वहीं आ रही है कि मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन भाषण में क्या सच में कुछ गलत कहा? या पिछले समय से मुख्यमंत्री ने जो घोषणाऐं की है उन पर अमल हो रहा है या नहीं? इस पर ना तो उस वीडियो को एडिट करने वाले की नजर गई और ना ही उस शख्स की नजर गई जिसने पुलिस रिपोर्ट करवाई कि मुख्यमंत्री के भाषण पर गोडक्षेप किया गया है? यही चिन्तनीय विषय है कि आज राज्य को क्या जरूरत है।