उत्तराखण्ड महिला परिषद्

उत्तराखण्ड महिला परिषद्


उत्तराखण्ड महिला परिषद् उत्तराखण्ड महिला परिषद, उत्तराखण्ड की जागरूक एवं क्रियाशील ग्रामीण महिलाओं का संगठन है जिसने ग्राम समुदाय में विकास की मुख्य धारा के ढाँचे से अलग एक वैकल्पिक विकास की व्यवस्था और उसके क्रियान्वयन के तौर-तरीके को विकसित किया है। उत्तराखण्ड में ग्रामीण महिलाओं के सबसे बड़े संगठन के रूप में प्रतिष्ठित महिला परिषद् का काम राज्य भर में फैले हुए ग्राम-स्तरीय संगठनों व स्वैच्छिक संस्थाओं ने संभाला है, जो ग्रामीण इलाकों में परिवर्तन लाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। यद्यपि उत्तराखण्ड में महिला संगठनों के गठन एवं कार्यों की शुरूआत 1988 से हो गयी थी परंतु चार सौ नब्बे महिला संगठनों की सोलह हजार सदस्याओं तथा वीस स्वैच्छिक संस्थाओं को सम्मिलित आवाज से विकास संबंधी समस्याओं को संस्थात्मक, व्यवहारिक एवं वैचारिक मध्यस्थता देने की जरूरत को समझते हुए, 7 फरवरी, 2000 को उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा में उत्तराखण्ड महिला परिषद का गठन किया गया परिषद की सदस्याओं में जाति, शैक्षणिक पृष्ठभूमि, उम्र के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता । बड़ी संख्या में पचास वर्ष से अधिक उम्र की महिलायें कभी भी विद्यालय नहीं गयी हैं, परंतु बीस से पचास वर्ष की अधिकतर महिलायें साक्षर हैं और शिक्षा का स्तर प्राथमिक है। गाँवों में जहाँ पूर्व प्राथमिक केन्द्र काम कर रहे हैं, वहाँ सभी लड़कियाँ माध्यमिक स्तर तक पढ़ी हैं तथा हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट तक पढ़ी हुई लड़कियाँ भी काफी संख्या में हैं। कुछ लड़कियों ने शिक्षिका के रूप में कार्य करते हुए बी0 ए0 एवं एम० ए० तक शिक्षा पूरी की है। यह जरूरी नहीं है कि गाँव की समृद्ध तथा शिक्षित महिला ही परिषद की सबसे क्रियाशील सदस्य हो, वल्कि इस जनधारणा के विपरीत कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर या शिक्षित महिला ही अच्छा नेतृत्व कर सकती है, गाँव की प्रौढ़ महिलायें, जो यहाँ की स्थाई निवासी हैं, खेती करती हैं, परिषद की अधिक क्रियाशील सदस्याएं हैं। उत्तराखण्ड महिला परिषद्, ग्रामीण महिलाओं के ऊपर विकास कार्यक्रमों को थोपती नहीं बल्कि उन्हें बालवाड़ी शिक्षिकाओं, पुरूषों, अध्यापकों, युवाओं, स्थानीय अधिकारियों तथा अन्य संगठनों से सम्बन्धित महिलाओं से प्रत्यक्ष रूप से मेल-जोल रखने तथा सीखने के अवसर प्रदान करती है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि परिषद केवल उन्हीं कामों को महत्व दे, जो ग्रामीण/स्थानीय महिलाओं द्वारा स्वयं आयोजित तथा क्रियान्वित किये जा सकें। स्त्री-पुरूष या फिर जातिगत असमानता से सम्बन्धित भावनाएं और बाधाएं खुलकर गोष्ठियों में सामने आते हैं, जो परिषद् द्वारा उत्तराखण्ड में विकास कार्यक्रमों को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने की दिशा में एक अनौपचारिक एवं महत्वपूर्ण प्राथमिक कदम है। जमीन-प्रबन्धन से जुड़े कार्यों में नर्सरी लगाना, चारा उत्पादन, घेराबंदी करना, खाद बनाना, रोकबाँध बनाना तथा जानवरों की मुक्त चराई पर सम्मिलित रूप से रोक लगाना, जंगलों को बचाना, वनीकरण तथा प्राकृतिक सम्पदाओं का पुनरूत्पादन आदि काम सम्मिलित हैंइसके अलावा पानी से जुड़ी समस्याओं का समाधान (जैसे-पुराने स्रोतों का जीर्णोद्धार, वर्षा जल संरक्षण, पॉलीथीन की टंकियाँ, फेरो-सीमेंट टेंक आदि) संगठनात्मक तरीके से किया जाता है। स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्यक्रमों में शौचालय बनाना, महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, व्यक्तिगत सफाई, घर एवं गाँव की स्वच्छता, पोषण संबंधी जानकारियों को फैलाना एवं संबंधित गतिविधियों का संचालन आदि कार्य सम्मिलित हैं। सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक असमानता संबंधी विषयों पर शिक्षा व जागरूकता लाने के लिए गोष्ठियाँ, सेमीनार, कार्यशालायें तथा प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाता है। परिषद् की अनेक सदस्याएं पंचायत प्रतिनिधि बन कर महिलाओं की आवाज को बढ़ा रही हैं। हर वर्ष परिषद द्वारा उत्तराखण्ड में लगभग बाइस महिला सम्मेलन आयोजित किये जाते है । साथ ही, महिला साक्षरता एवं शिक्षण कार्यक्रम भी शुरू किया गया है। संगठन की सदस्याएं उत्तराखण्ड में विकास कार्यक्रमों में नीतिगत बदलाव की माँग कर रही हैं। विभिन्न कार्यक्रम जो कि ग्रामीण विकास, महिला विकास, शिक्षा, खनन, कृषि, जंगल, पानी, आयवृद्धि और पंचायती राज व्यवस्था के लिए बनाये गये हैं, उनके बारे में ग्रामीण महिलाओं की अपनी समझ, जानकारी और अनुभव है। साथ ही, उत्तराखण्ड महिला परिषद् के रूप में काम करते हुए महिलाओं ने विकास के मुद्दे पर अपनी एक वैकल्पिक समझ व कार्य-विधि विकसित की है। इन्हीं अनुभवों को आधार बनाकर उत्तराखण्ड महिला परिषद् की सदस्याएं, सरकारी नीतियों व कार्यक्रमों में बदलाव व सुधार की माँग करती हैं।


अनुराधा पांडे


उत्तराखण्ड महिला परिषद्