यर्थाथ को चित्रित करता ‘‘सपनो के साथ चेहरे

||यर्थाथ को चित्रित करता ''सपनो के साथ चेहरे||



अपने जीवन के, सबसे उदासीभरे दिनों, उसे लगा था, वह कविता लिख सकता है, इतनी उदास कविता, जैसे पे्रमिका से बिछुड़े हुए प्रेमी का चेहरा'। यह पंक्तियां महावीर रंवाल्टा कृत  'सपनो के साथ चेहरे' कविता संकलन की है। कवि उस जीवटता को रेखांकित कर रहा है कि एक कवि किस तरह हर रोज कविता बुनने का शिल्प जोड़ता है और किस तरह उन पंक्तियों को लिखने से पहले भोगता है उस यर्थाथ को श्री रंवाल्टा ने कविता का रूप दिया है। यह उन बातो का जबाव है जो यदाकदा कही जाती है कि कविताऐं अक्सर काल्पनिक होती है। मगर श्री रंवाल्टा द्वारा रचित कविता संग्रह में 36 कविताऐं जो 86 पुष्टो में समेटी गयी है। एक भी कविता काल्पनिक नहीं है। यर्थाथ को प्रतिबिम्बित करती हुई एक संदेश की ओर आगे बढती है। इस संकलन में यर्थाथ को समझाने का जो अनूठा प्रयास किया गया वह साहित्य जगत में एक बार फिर सोचने के लिए बाध्य करता है। ये कविताऐं जिस तरह व्यक्ति और व्यक्तिवादी सोच को परिभाषित करती है उसी तरह कठिनभरी राहो पर जीने के तजुर्बों को भी रेखांकित करती है। खुद को और दूसरो के लिए जीने की कला का जो अद्भुत संदेश इस संग्रह में है वह निश्चित ही समाज के लिए संदेशात्मक है। वे लिखते हैं कि- ''अलग-अलग महकमों के, नौकरी पेशा लोग, अलग-अलग स्थानो से, बस में सवार हुए, एक दूसरे से मिले, अभिवादन का आदान प्रदान हुआ, मुद्दो पर चर्चा हुई, अपने-अपने गंतव्य पर, एक-एक कर उतरे, और फिर, अलग-अलग दिशाओं में खो गये'। यही नहीं दुख और सुख को भी कविताओं की पंक्तियां जिस तरह मर्मस्पर्शी चरित चित्रण करती है उसी तरह वे इन्सान को संयम बनाय रखने के लिए इसी संग्रह में श्री रंवाल्टा ने ''रूझान के बहाने'' नामक शीर्षक में एक लम्बी कविता को 14 भागो में लिखी। कविता की पहली पंक्ति बतलाती है कि-''तुम्हारा आना, हमारे लिए, कोई बसन्त था, और जाना..., कोई ऋतु नहीं, पूरा का पूरा अन्त था''। इस तरह कविता आगे बढती है और इन्सान को पग-पग पर आने वाले कठिनतम् रास्तो को सुलभ बनाने व संयम रखने का बखूबी संदेश देती है। 36 कविताऐं जिस तरह व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन को सकारात्मक रूप देती है उसी तरह वह विकास की योजनाओं पर हो रहे राजनीतिक प्रहार को परिभाषित करती हुई एक दिशा भी बता रही है कि-''मौसम का बदलना, कुर्सी नहीं देखता, कुर्सी की पीठ नहीं देखता, वह ना अकेले आदमी को देखता है, ना बहुत सारे लोगो को, अमीर को वह नहीं देखता, ना गरीब लोगो को'।


कुलमिलाकर यह कविता संग्रह विशेषकर उत्तराखण्ड राज्य को बनने का संघर्ष और उसके बाद हो रही राजनीतिक प्रतियोगिताओं का भी साक्ष्य गवाह है और राज्य में हो रहे अनियोजित विकास को भी उजागर करती ये कविताऐ भविष्य के संकट को भी अगाह कर हरी है। यह कविता संग्रह सामाजिक ताने-बाने का एक जीता-जागता दस्तावेज है। जो भविष्य में शोध का विषय बन सकता है। यह कविताऐं संघर्षनामा को बयां करती हुई कवि के व्यक्तिगत संघर्षो से भी परीचित कराती हुई आने वाली पीड़ी के लिए संदेशात्मक है। कविताओं में कवि के मूल स्थान की भाषाओं का भी समिश्रण है तो वही खुद की पीड़ा को कविता के माध्ययम से कवि ने वाकिफ करवाया। राज्य आन्दोलन में आन्दोलनकारियो और पत्रकारो पर हुए सत्ता के प्रहारो को एक बार फिर कवि ने सवालिया निशां खड़ा कर दिया है। यही नहीं पहाड़ पर हो रही प्राकृतिक आपदाओं को रेखांकित करते हुए लिखते हैं कि-''लापता हुए लोगो में, एक बड़ी तादाद, सरकारी महकमो में काम करने वाले, मुलाजिमो की होती, जो बड़ी रहस्यमयी परिस्थितियों में, लापता हो जाते हैं''। यह कहा जा सकता है कि यह कविता संकलन विकास-विपदा, द्वेष-द्वन्द, संघर्ष-सम्मान, सकारात्मक-नकारात्मक आदि पर जहां प्रश्न खड़ा करता है वही इन पहलुओ पर तंज कसते हुए सही दिशा की बात करता है। कवि ने 36 कविताओं में कहीं-कही पर एकदम निजी अनुभवो को सम्मलित किया है जो साहित्य जगत में बहस का मुद्दा बन सकता है। यह पठनीय है। संदेशात्मक है और शोधपरक है। व्यक्तिगत संकटो को सामाजिक संकटो से कैसा जोड़ा जाये वह ''सपनो के साथ चेहरे'' कविता संकलन अच्छी तरह समझा रहा है।


समीक्षक - प्रेम पंचोली,


लेखक - महावीर रंवाल्टा,


कविता संग्रह - सपनों के साथ चेहरे


प्रकाशक - उद्भावना एच 55 सेक्टर 23 राजनगर गाजियाबाद


मूल्य - 60/रू॰