जाह्नवी / जाड गंगा

||जाह्नवी / जाड गंगा||


यह नदी टकनौर मल्ला क्षेत्र के जाड़ इलाके के थामला दर्रे के पास सुमेर चोटी पर पसरे हिमनद से निकलती है। जाह्नवी दो अन्य जलधाराओं वारीगुनगाड़ और चोरगाड़ से मिलकर बनी है। इस नदी का कुल प्रवाह पथ 17 किमी० है। यह नदी तीव्र प्रवाह के साथ ध्वनि करती हुई भैरों घाटी में भागीरथी से मिल जाती है।


इस घाटी से हिमाचल प्रदेश और तिब्बत क्षेत्र के लिए पूर्व से ही संकरे सम्पर्क मार्ग रहे हैं। पूर्व में यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी जाड़ लोगों के कुछ गांव स्थापित थे, जो शीतकाल में पहाड़ों की ऊँचाई से घाटी क्षेत्र में उतर आते थे। लगभग 2300 वर्ष पहले के ऐतिहासिक विवरण में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने लिखा है कि 'गंगा स्रोत के क्षेत्र में अस्टोमोई अर्थात् 'अश्वमुख' सदृश जाति रहती है।


पुराणों में एक रोचक प्रसंग आया है कि जन्हु ऋषि का आश्रम भागीरथी के जल से बह गया था, जिस कारण वे इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने इसका सम्पूर्ण जल पी लिया। भगीरथ के प्रार्थना करने पर ऋषि द्वारा नदी को जांघ द्वारा निकालने की कथा जाह्नवी नाम से जुड़ी है। जाड़ गंगा और भागीरथी के संगम से पहले एक विशाल ऊँचे पुल को पार कर गंगोत्तरी की ओर प्रस्थान किया जाता है। प्राचीन काल से ही जाड़ गंगा के बांये तट पर भैरों देव और दांये तट पर तिब्बत की नमक मण्डी कोपांग थीकोपांग का अर्थ मैदान होता है, जिसे अब लंका नाम से जाना जाता है। जाड़ गंगा/जन्हु गंगा की अन्य सहायक नदियों में माणागाड़ और सुमालागाड़ उल्लेखनीय हैं।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'