अथ ग्राम चुनाव

अथ ग्राम चुनाव


उत्तराखंड के पहले पीसीएस टापर ललित मोहन रयाल बहुत ही नेकदिल और ईमानदार अधिकारी हैं। अपने संघर्ष की छाप उन्होंने अपने साहित्य में दिखाई है। उनकी कहानियां प्रेमचंद की भांति ही आम जनमानस से जुड़ी होती हैं तो उनका चुटीला अंदाज व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर रहे श्रीलाल शुक्ल से मिलता है। मौजूदा समय में वे गन्ना आयुक्त के पद पर तैनात हैं। उनकी पुस्तक 'खडकमाफी की स्मृतियों से' और 'अथ श्री प्रयाग कथा' को पाठकों ने खूब सराहा है।


उस बरस चुनाव का मौसम जोरों पर आयाचुनाव-कार्यक्रम आने में देर थी, लेकिन उठापटक, उखाड़-पछाड़ का दौर काफी पहले से ही शुरू हो गया। हर कोई, बस इसी फिराक में था, कि किसी भी तरह उसका मार्ग निष्कंटक होकम-से-कम मेहनत में अधिक-सेअधिक नतीजे निकल सकें। संभावित उम्मीदवार, चुपचाप गांव की आबोहवा का जायजा लेने लगे. छुप-छुपकर दूसरे खेमों की टोह लेने लगे। उन्हें इस बात की खबर ही नहीं थी, कि जिस तरह वे दूसरों की टोह ले रहे हैं, कोई तीसरा, उनकी भी टोह लेने में व्यस्त है। कछुए की तरह गर्दन निकालनिकालकर देख रहा है, कि कब, कौन, किससे मिल रहा है? क्यों मिल रहा है? कहीं दो लोग सर जोड़े दिखे नहीं, कि वह झट से यकीन कर लेता-हो-ना-हो, येचुनाव लड़ने की स्कीम बना रहे हैं. भले ही वे घरेल बात में मुब्लिला हों, इस मौसम में आदमी इतना सतर्क (स्पष्ट भाषा में कहें तो वहमी) हो जाता है, कि वे फौरन वायनाकुलर लगार उस आदमी का ऐतबार खो बैठते हैं। उधर, वह सदमा किस देरी के परसपर संभावित उम्मीदवारों को सीज करने, उलाने बिताने की जगत बिहार लगता। इन जटिल परिस्थितियों में ऐसा ही एक संभावित प्रत्याशी, किसी तरह जमाने की नजरों से बात बचात उमेरे केटीए पर जा पहुंया। ना राम राम, ना दुआ साया उसे संभलने का मौका दिशा वगैर, साधे उस पर वह बेटा। उसया बुरी तरह बिफरते हए बोला, भाई दू क्यों स्टार किसने दे दी चोक तझे मैं तो तो ऐसा नहीं समझता था। तूने तो दिल तोड़ के रख दिया. मैं नी जानता था कि तभी चनेकी डालथा जदने वाला निकलेगा।


उसने हैरत जताते हुए प्रतिप्रश्न किया, क्यों मुद्रा में क्या कमी दिख रीतुझे? मैं क्यों नीलड़ सकता? उसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। अब वह उसके सिर हो लिया और लिहाज भलकर साफगोई पर उतर आया, छै उठो छै। और तृ पिच्छे से दूसरे नंबर पे आ गा कहकर उसने छहों के नाम गिना दिए। उसकी यह सूचना लगभग सही थी. दूसरा उसे अब तक सीधा-साधा आदमी समझता था, लेकिन उसने जान लिया कि उसकी एनालिसिस कमजोर नहीं थी। दूसरे की चुप्पी ताड़कर उसने फिर से आग उगली, लेकिन उगली आसान भाषा में, तुझे कुल-कुलांत पञ्चीय भोट मिल री, तेरसे और कुछ तो होगा नी। तृ मेरी वो पच्चीस भोट भी खराब करेगा।


अपने बारे में इतना खराब आकलन सुनते ही, दूसरे का स्वाभिमान फनफनाने लगा। उसने मन में सोचा, यार, इसने तो मेरे बारे में बेझिझक राय बना ली. मैं इतना गया-बीता भी नहीं हूँ. अभी इतने बुरे दिन भी नहीं आए मेरे । हद है, ये मुझको इतना कम करके आंक रहा है।' फिर उसने लोकतंत्र के औचित्य को सही ठहराने की कोशिश करते हुए कहा, भाई! मुझे पच्चीस मिल री, तो फिर तुझे क्यों टेंशन होरी, तृ टाठमेलड़ और मुझे भी लड़ने दे। वह जान गया कि उसकी बातों से सामने वाले के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच गई। उसने बात संभालते हुए उसे पुचकारा, भाई! तू समझ नी । काँटे की टक्कर है। हार-जीत पच्चीस भोट से होगी, और मेरी वो पच्चीस भोट त खाराजब दूसरा नहीं माना, तो उसकी जिद देखकर, वह अपनी मादरी जुबान पर उतर आया, भैजि! तू पिछनै बटिक द्वर्सनंबर पर छ, तृकिलैछै स्याणी कन्न।। (भाई! तू पीछे से दूसरे नंबर पर है, क्यों आफत में फंस रहा है. तेरे लिए ये दृर की कौड़ी साबित होने वाली है।)


जब इस स्क्रिप्ट से बात नहीं बनी, तो वह उसे डराने पर उतर आया, तुन्ने कभी चुनाव तो लड़ा नी। तू नी जानता, क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं. ऐसे-ऐसे लोगों के पैर छूने पड़ते हैं, जिनकी शक्ल देखने को जी नी बोलता पैर पकड़तेपकड़ते, कमर टेढ़ी हो जाती है। त बिलौक गया कभी अरे! इतने चक्कर कटाते हैं, कि दिमाग चक्रा जाता है थाणे में जाके मुचलका भर्ना पड़ता है। तू क्या सोच रहा? मजे नी पता तु जिस्के भरोस्सेचलरा, उस्के कैणेपेकत्ता छांछना खाए।


वह नाना प्रकार से उससे बैठने की मनुहार करता रहा, लेकिन वो माना नहीं। दिमाग में चल रही स्कीम को उससे साझा करते हुए बोला, मैं तो उसी कंडिशन में बैठूग्गा, अगर तीन बच्चों में छूट वाला कानून नी आत्ता. अगर सरकार ने छूट दे दी, तब तो भाई, मैं लगा ही। जब उसकी योजना परवान नहीं चढ़ी, तो वह चिढ़कर बोला, तब क्या बैठेगा.


गांव सभा पर पाबंदी लगा दी कि बचे हुए गांव से कोई नामिनेशन नहीं भरेगा। बड़ी मुश्किल से उस गांव से एक दसवीं पास कैंडिडेट निकला। उसे समझा-बुझाकर टिकट लेने को राजी कियानामिनेशन की तारीख पर पंचों की राय बनी कि येकि ड़ी एक सजाण आदिम भेजे जाऊ जु यत्ना होस्यार ह्वाऊकि येकु टिकट भरी साकू। फेर क्या होणचौबार- बटेक बधै ऐगेन. कन गौं च. अह्हा! अजौं बि गौंवों मां सौहार्द बच्चू च. जतना लोग डरांदि छिन, वतना कलजुग भी नी तना लाग डराादाछन, वतना कलजुग भा ना आई अविनामिनेशन की आखिरी तारीख गुजर गई. सबने सुनाया- बाबा र बाबारैग्यो। थोड़ी ही देर बीती थी, कि उधर से खबर आई- कैसा निर्विरोध, कहां का निर्विरोध वहां तो दो नामिनेशन और हुएहेअब निर्विरोध निर्वाचन कहां रह गया। ये तो मामला कंटेस्टेड होकर रह गया। सयानो ने जिज्ञासा जताई- आखिरीवे दो लोग कौन हैं. भाई! जब पेली सल्ला स्वैग्ये छ, त यू घपरोल कन्नवाल कुछन भाई। कैका उबटणक दिन ऐन भौत खोजबीन चाली. पता चलिग्याई कि एक त वी सजाण आदिम छै,जू वैकिड़िगै छाऊमदारैन पैलि अपणी मदतकारि।यह बड़ी शर्मिंदगी की बात हो गई। आपस में सलाह मशविरा हुआ- अब क्या किया जाए. सलाहकारों ने राय दी जिसको अनकंटेस्टेड लड़ाना चाहते थे, उसको भारी मतों से जितवा दो. इस राय पर अब्जर्वेशन इस बात पर आकर थम गई कि अभी इलेक्शन होने में तीन हफ्ते बाकी हैं. यह इतना लंबा समय है कि तब तक हमारा कैंडिडेट तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगा। एक सलाहकार ने सयानों को लगभग उकसाते हुए कहा, बार- बटेन जैल्या, त वालू गाडिक जयान जख जख बटिन बधै छिन ठेकि, ऊसिमक्कलकैक जयान


ऊसिमक्कलकैक जयान पैली त कैंडिडेटैकि कलास लियेग्याई. त कखछै रे स्या वैल नोमिनेशन कनै भरि त्वैन कुछबोलिनी वैषै। मि पता चल्द, तन्न मि कुछ ब्वल्दू, मिन्थ चिताई नी, वैन कब यू काम कारि. वृथ मैथे लैन्पर लगैकि गैब ह्वैग्ये छाई. तीन घंटा मि लैन्फर लग्यूँ रै. म्यार खट्ट अजीतक खुगटाणा छिन


अचानक पूछाजिसने तुम्हारी सबसे ज्यादा मुखालफत की..इस चुनाव में तुम्हारी जड़ पर लगातार रेती फेरी..उसके ऊपर मट्ठा भी डाला.. नतीजा निकलते ही वह गुलदस्ता लेकर बधाई देने सबसे पहले आया होगा। उसने फोटो सेशन चलाया होगा। कानाफूसी शैली में तुम्हें नसीहत जरूर दी होगी- आगे राजकाज कैसे चलाना है। नीतिकहती है कि जो तम्हारा सबसे बड़ा निंदा-प्रेमी होगा, वह ऐसे मौके पर तुम्हारे गुणगान और स्तुति पर उतर आएगा। मीठी जुबान में बात करेगा, जैसे शक्कर घुली हुई हो.. हां, कभी-कभी चाशनी जरूर ज्यादा हो जाती है। वह तुमसे मीठी फटकार लगाने का अधिकार चाहता है. वह लगातार तुमसे सटेगा. ऐसे जताएगा जैसे वह तुम्हारा सगा और निकटस्थ है. तुम्हारा उससे बड़ा कोई शुभकामनाएं नहीं है।'


उसने उसे आश्वस्त सा करते हुए कहा, चार-छह महीने में ये सब बातें सबसाइड होती चली जाती हैं। हां, अगर कटु बाण बोले हों, विष बुझे बोल बोले हों, तो लोग याद रखते हैं, इसलिए इलेक्शन को इलेक्शन की तरह लेना चाहिए. गांव की सरलता बनी रहे. हर हाल में सौहार्द कायम रहना चाहिए. यह चुनाव की पहली शर्त हैं। अपना आचार-व्यवहार ऐसा रखो, कि कल कोई सामने पड़े, तो नजर चुराने की नौबत ना आए।.