बाल गंगा एवं धर्म गंगा

||बाल गंगा एवं धर्म गंगा||


भिलंगना घाटी में पुराणों में वर्णित तीर्थस्थल बूढाकेदार है। पौराणिक मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद गोत्र हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया था।


इसी क्रम में वे देवभूमि हिमालय का भ्रमण करने लगेएक बार पांडवों ने भृगुपंथ पर्वत से इस स्थान पर एक वृद्ध ऋषि को धूनी रमाये बैठे देखा, किन्तु जैसे ही पांडव उनके समीप पहुंचे तो वृद्ध ऋषि अदृश्य हो गये और वहां पर मात्र शिव शिला ही रह गयीऐसी मान्यता है कि वह वृद्ध ऋषि शिव ही थे। कालान्तर में यही स्थान बूढाकेदार नामक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां स्थित शिला पर आज भी पांडवों की प्रतिकृतियां अंकित हैं। इस धार्मिक स्थल पर दो पावन जलधाराओं, बाल गंगा एवं धर्म गंगा का संगम होता है।


मान्यता है कि भगीरथ के कठोर तप से गंगा जब पृथ्वी पर अवतरित हुई तो उसकी कई धारायें प्रवाहित हुईं। प्रथम धारा उत्तर की ओर राजा भगीरथ के पीछे-पीछे जाने से भागीरथी नाम से प्रसिद्ध हुईद्वितीय धारा दक्षिण में कुबेर की राजधानी अल्कापुरी में जाने से अलकनन्दा नाम से विख्यात हुई। शेष जल से हिमालयी क्षेत्र में सहस्रों ताल (सरोवरों), नदियों और धाराओं का उद्गम हुआइस प्रकार बालखिल्य, धर्म गंगा और भिलंगना आदि जलधारायें भी गंगा की धारायें मानी जाती हैं।


बालगंगा और धर्मगंगा, बूढाकेदार में मिलने के बाद घनसाली के समीप कौड़िया में भिलंगना में समाहित हो जाती हैइन नदियों के मध्य में बालखिल्य पर्वत है, जिसे बालखिल्य ऋषि की तपस्थली माना जाता है। धर्मगंगा को धर्मराज युधिष्ठिर के तप का प्रतिफल भी कहा जाता है, इसलिए इसका नाम धर्म गंगा हैसहस्रताल क्षेत्र में स्थित सहस्रताल, महासरताल, चन्दियारताल, भीमताल, मातृकाताल, मंज्याड़ताल, जरालताल आदि सरोवरों से ऋषिवर्ण के नाम से बालखिल्य, बाल गंगा, धर्म गंगा, यक्षणी गंगा, शृंग गंगा, मेनका गंगा आदि नाम से कई जलधाराएं निकली हैं।


भिलंगना क्षेत्र में जितने अधिक बुग्याल, फूलों की घाटियां, प्राकृतिक झीलों एवं जलधाराओं की प्रचुरता है, उतनी शायद किसी अन्य घाटी में नहीं है। यही कारण है कि सहस्रताल क्षेत्र में स्थित विभिन्न झील व कुण्ड पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस क्षेत्र में पथारोहण काफी लोकप्रिय है। यहां की वन सम्पदा, बुग्याल, झील, ग्लेशियर, हिमशिखरों का अद्भुत सौन्दर्य जहां मन को मोह लेता है वहीं स्थानीय लोक मान्यताएं, पौराणिक कथाएं और जनश्रुतियां रहस्य और रोमांच से भरपूर हैं।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'