बड़कोट के पास गंगनाणी कुण्ड


||बड़कोट के पास गंगनाणी कुण्ड||


इस कुण्ड का महत्व बड़ा पवित्र माना जाता है। स्थानीय लोग प्रत्येक सक्रांती में यहां नहाने आते है। कुण्ड के पानी आचमन से ही लोग अपने को पुण्य मानते हैं। कुण्ड का सम्बन्ध गंगा जल से है। बताया जाता कि प्राचीन समय में परशुराम के पिता जगदम्बाऋषी ने इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। वे गंगा जल लेने उत्तरकाशी जाते थे, अपितु शिव उनकी तपस्या से अभिभूत हुए और सपने मे आकर कहा कि गंगा की एक धारा तपस्या स्थल पर आयेगी। फिर भी जगदम्बाऋषी महाराज ने जब कमण्डल गंगा की ओर डुबोया तो  आकाशवाणी हुई और कहा कि तुम तुरन्त वापस जाओं।


ऋषी महाराज वापस आकर अपने तपस्थली पर बैठ गये। प्रातः काल भयंकर गरजना हुई आसमान पर कोहरा छाने लगा कुछ छणों में जगदम्बाऋषी की तपस्थली पर एक जल धारा फूट पड़ी इस धारा के आगे एक गोलनुमा पत्थर बहते हुए आया जो आज भी गंगनाणी नामक स्थान पर विद्यमान है। तत्काल यहां पर एक कुण्ड की स्थापना हुई। यह कुण्ड पत्थरों पर नकासी करके बनवाया गया जिसका पुरातत्विक महत्व है। वर्तमान में इस कुण्ड के बाहर स्थानीय विकासीय योजनाओं के मार्फत सीमेन्ट लगा दिया गया है। परन्तु कुण्ड केे भीतर की आकृति व बनावट पुरातत्वीक है। यहां पर जगदम्बाऋषी का भी मन्दिर है। लोग उक्त स्थान पर मन्नत पूरी करने आते है और यह स्थान एक तीर्थ के रूप में माना जाता है।


गंगनाणी में जगदम्बाऋषी के मन्दिर में एक साध्वी के रूप में रह रही जो अपना नाम त्रिवेणी पुरी बताती है। वह कहती है कि गंगनाणी का महत्व यह भी है कि यहां पर तीन धाराऐ संगम बनाती है। कहती है कि इलहबाद में तो दो ही जिन्दी नदियां संगम बनाती है तीसरी नदी मृत अथवा अदृश्य है यद्यपि गंगनाणी में एक धारा जो जगदम्बाऋषि की तपस्या से गंगा के रूप में प्रकट हुई। सामने वाली धारा को सरगाड अथवा सरस्वती कहती है तथा बगल में यमुना बहती है। इन तीनों का संगम गंगनाणी में होता हे। वे बड़े विश्वास के साथ कहती है कि यही है असली त्रिवेणी। ज्ञात हो कि गंगनाणी कुण्ड के बारे में 'केदारखण्ड' में लिखित वर्णन है। उक्त स्थान में वसन्त के आगमन पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। लोग उक्त दिन भी कुण्ड के पानी को बर्तन में भरकर घरों को ले जाते हे। यह पानी वर्ष भर पूजा के  काम आता है। बताया जाता कि इस दिन ही गंगा यहां प्रकट हुइ थी।