बर्फबारी के कारण अच्छी फसल के उपज की दरकार


||बर्फबारी के कारण अच्छी फसल के उपज की दरकार||


साल 1999 में उतराखण्उ ने ऐसी ही बर्फ की चादर ओढी थी तो उन दिनो यानि तत्काल उतरप्रदेश के इस हिस्से उतराखण्ड में अगले तीन-चार वर्षो तक कहीं भी पेयजल का संकट नहीं आया। यही नहीं फसलो की पैदावार भी अच्छी रही और फसल के उत्पादन में काफी इजाफा हुआ। मौसम विभाग के अनुसार मौजूदा वर्ष अर्थात 2019 के अन्त और 2020 के आरम्भ में भी पश्चिमी विक्षोभ का उतराखण्ड हिमालय से टकराना ही बर्फबारी का कारण बना है। दो-तीन राऊण्ड में सर्वाधिक बर्फबारी का होना राज्य के पहाड़ी क्षेत्रो में किसानो के चेहरो पर रंगत दिखाई देने लगी है। लोगो का कहना है कि उतराखण्ड हिमालय का पहाड़ी क्षेत्र पेयजल की समस्या से वर्ष में आठ माह तक त्रस्त रहता है, पर इस दौरान बर्फवारी अच्छी हुई है तो यह समस्या तो अब कुदरत ने ही समाप्त कर दी है। कहते हैं कि सिर्फ पेयजल ही नहीं वरन् पानी से संबधित समस्या से इस वर्ष तो कम से कम छुटकारा मिल ही गया है। 


उल्लेखनीय हो कि दिसम्बर के माह में ही मौसम ने करबट लेनी शुरू कर दी थी। माह के एक सप्ताह बाद तिब्बत सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी, हंसलिंग, राजरंभा, पंचाचूली, छिपलाकेदार, नाग्निधुरा, कालामुनि, बेटुलीधार आदि जगहों पर 20 साल बाद ऐसा हिमपात हुआ है। बर्फबारी का क्रम जारी रहा और ठंड के चलते पिथौरागढ के तल्ला जोहार के समकोट, गिनीबैंड, बिर्थी, भंडारी गांव, सेबिला, दराती, रांथी, दुम्मर, दरकोट, नमजला, जैंती, धापा, सिन्नर, घोरपट्टा, बुंगा, पापड़ी, हरकोट, मालुपाती आदि गांवों के बच्चों और ग्रामीणों घर पंहुचने के लिए बर्फबारी के बीच काफी दिककतो का सामना करना पड़ा। मगर वे इस बात से खुश थे कि 20 बरस बाद जो बर्फबारी ने अपना परचम लहराया है वह खेती-किसानी से लेकर पर्यावरण संरक्षण में अहम कामयाब होगा।


बढते गलेशियर


इस दौरान की बर्फबारी से उत्तराखंड के ग्लेशियरों, खासकर गोमुख ग्लेशियर ने पिछले 20 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है। क्योंकि पिछले कई सालों से गौमुख गलेशियर 12 मीटर प्रति वर्ष पिघलकर पिछे खिसक रहा था। सो इस दौरान गौमुख में लगभग 15 फीट बर्फ पड़ी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अन्य ग्लेशियरों में भी दस फीट से ज्यादा हिमपात हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रिकार्ड बर्फबारी से पूरे उत्तर भारत को फायदा होगा। इस बार सिंचाई, पेयजल व बांधों को भरपूर पानी मिलेगा। वैसे भी ग्लोबल वार्मिंग का खामियाजा हिमालय के तमाम ग्लेशियर भी भुगत रहे थे। पिछले कुछ सालों में कम बर्फबारी से जहां ग्लेशियर में 'स्नो लेयर' कम होती जा रही थी, वहीं प्रदूषण के चलते ग्लेशियर 'ब्लैक कार्बन' से भी पिघल रहे थे। लेकिन, जनवरी में हिमपात ने पिछली वर्षों में आए संकट को दूर कर दिया है। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि गोमुख ग्लेशियर में इस बार 15 फीट तक बर्फ पड़ी है। विस्तृत अध्ययन के लिए एक टीम जाड़ों के बाद ग्लेशियरों के दौरे पर जाएगी। औसतन हर साल जनवरी में पांच से सात फीट तक हिमपात होता ही है। इस बार बहुत अच्छा हिमपात हुआ है। जिसके दूरगामी फायदे होंगे।


सूखती नदियों की लौटेगी रौनक


उत्तरी भारत की लाइफ लाइन गंगा और यमुना है। इन दोनों नदियों में लगभग दस सहायक नदियां मिलती हैं। भागीरथी, यमुना, भिलंगना, अलकनंदा, पिंडर, राम गंगा पूर्वी आदि सभी ग्लेशियर से निकली नदियां हैं। अच्छा हिमपात होने से गर्मियों में इन नदियों में औसत से ज्यादा जलस्तर रह सकता है। जिसका फायदा, सिंचाई नहरों, बांध, जलवायु और पेयजल सप्लाई को होगा। इसके साथ ही महान हिमालय की जैव विविधता के लिये भी ये दूरगामी फायदेमंद होगा।


बर्फबारी ने लोगों का सुख-चैन छीना


बागेश्वर जनपद में कपकोट ब्लाक के मल्ला और विचल्ला दानपुर के झूनी, खलझूनी, गोगिना, कीमू, लीती, रातिरकेठी, मल्खाडुंगर्चा, शामा, खड़लेख, हरकोट, धुरकोट, चैड़ा, धूर, उगियां, खाती, बाछम, तीख, किलपारा, बदियाकोट, कालो, कुंवारी और बोरबलड़ा गांवों में भी 20 बरस बाद पांच इंच तक की बर्फबारी हुई है। बर्फबारी से बंद पड़ी रिखाड़ी बाछम-बदियाकोट सड़क को सुचारु करने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग भी राज्य में मुस्तैद दिखा। हालांकि बर्फबारी से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ है। वैसे बताया गया कि ठंड में चारा नहीं मिलने से उत्तरकाशी जिले के हर्षिल क्षेत्र में तीन गायों की मौत हो गई है। हालांकि आजकल हर्षिल घाटी इन दिनों पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई है।


ज्ञात हो कि पहाड़ छोड़कर जो परिवार दूर शहर में जा बसे हैं उनके मबेशी इन दिनों उनके खाली घरो को ताक रहे है, और ये मबेशी इस वर्ष की बर्फबारी के गवाह हैं कि उन्हे सुरक्षित स्थान ना मिलने की वजह से बर्फबारी की शीत लहरो से मौत और जिन्दगी के बीच उन्हे झूलना पड़ा है। हर्षिल के डा. नागेंद्र रावत ने घर में जमा कुछ चारा इन लावारिश मवेशियों को दिया, लेकिन उनके अपने घर में ही छह गाय बंधी होने के कारण वे उन्हे ज्यादा चारा नहीं दे पाए। उन्होंने स्थानीय प्रशासन से मवेशियों को बचाने के लिए तिरपाल की छत व भूसे की दरकार की है।


इधर बर्फबारी के कारण लोगों की दुश्वारियां कहां खत्म होती। देहरादून जिले के जौनसार बावर क्षेत्र में हुई बर्फबारी के कारण कई मार्गों पर बर्फ जमी होने से लोगों को पैदल दूरी नापनी पड़ी। जबकि लोखंडी में आये पर्यटक बर्फबारी की वजह से एक सप्ताह तक देश दुनिय से कटे रहे। बड़ी मुश्किल से आपदा प्रबन्धन विभाग ने उन्हे रेस्क्यू किया है। आसपास के गांवों पाटिया, रावना, बुरासवा, मेरावना, सिरबा, टुंगरोली, मैपाऊटा आदि क्षेत्र के लोगों को अपने नजदिक बाजार चकराता आने के लिए पैदल दूरी नापनी पड़ी। ग्रामीण धूम सिंह चैहान, शेर सिंह चैहान, करम सिंह चैहान, मोहन सिंह आदि का कहना है कि लोखंडी एवं लोहारी पर्यटन स्थल है, जहां बड़ी संख्या में पर्यटक बर्फ देखने आये, लेकिन बिजली नहीं होने से लोग अपने मोबाइल चार्ज नहीं कर पाये। साथ ही टीवी, आटा चक्की आदि सभी बिजली से चलने वाले उपकरण ठप पड़े रहे। पर वे एक बात से बहुत ही खुश थे कि उन्हें अभी कुछ दिन की समस्या तो होगी मगर वर्षभर पानी से संबधित समस्या से लोगो को छुटकारा मिल ही गया है। मौसम विज्ञान केंद्र ने बताया कि उत्तराखंड हिमालय में पश्चिमी विक्षोभ कई बार टकराया है इसलिए अत्यधिक बर्फबारी हुई है।


उत्तराखंड में: 20 साल के अन्तराल में भरपूर हुई बर्फवारी


उतराखण्ड में बर्फ का आवरण जो कभी 20 वर्ष पूर्व था वह इस साल सोलह फीसदी तक बढ़ा है। बर्फ का आवरण बढ़ने से ग्लेशियरों से निकलने वाली गंगा, यमुना समेत सभी नदियों में पानी का संकट नहीं होगा और हिमालयी क्षेत्र की वनस्पतियों और स्थानीय लोगों को भी इससे फायदा होगा। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने सेटेलाइट इमेजों से यह अध्ययन पाया कि राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फ का अवरण 70 फीसदी से बढ़कर 86 फीसदी बढ गया है। यूसैक ने दिसंबर 2018, जनवरी व फरवरी 2019 से उच्च हिमालय की पांच प्रमुख घाटियों यमुना घाटी, भागीरथी घाटी, अलकनंदा घाटी, धौली और गोरी गंगा घाटी में इस बावत अध्ययन जारी रखा हुआ है। यूसैक के निदेशक प्रो.एमपीएस बिष्ट ने बताया कि पिछले बीस सालों में हिमालय और मध्य हिमालय के बीच पड़ने वाले कई ऐसे क्षेत्र थे, जो कभी हिम क्षेत्र रहे, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते इन क्षेत्रों में बर्फ गायब हो गई थी और ये क्षेत्र शीत मरुस्थल के रूप में विकसित हो रहे थे। कारण इसके इन क्षेत्रों में जैव विविधता पर भी गंभीर संकट पैदा हो गया था। लेकिन 2018-19 (दिसंबर-फरवरी) में इस बार रिकॉर्ड बर्फबारी हुई है। इससे यह संकट फिलहाल खत्म होता नजर आ रहा है। यूसैक के वैज्ञानिकों ने सेटेलाइट के जरिये राज्य के ग्लेशियरों और पहले के हिम क्षेत्रों का अध्ययन किया है।




































हिमालय की घाटिया



वर्ष  



हिम क्षेत्र (प्रतिशत में)


 



यमुना घाटी 



 2013-14                                        2017-18  


 



46 प्रतिशत


 51 प्रतिशत


 



भागीरथी घाटी



 2013-14


2017-18



77 प्रतिशत


80 प्रतिशत


 



अलकनंदा घाटी        


   


 



2013-14                    2017-18



72 प्रतिशत


85 प्रतिशत



धौली गंगा घाटी       


  



2013-14                   2017-18



92 प्रतिशत


95 प्रतिशत



गोरी गंगा घाटी         


 



2013-14


2017-18



76 प्रतिशत


88 प्रतिशत



बर्फ का आवरण बढ़ने से फायदे



  1. गंगा, यमुना, शारदा पर निर्भर उत्तर भारत को को मिलेगा सिंचाई के लिए ज्यादा पानी

  2. ग्लेशियरों ने निकलने वाली नदियों पर बने बांधों को ज्यादा पानी मिलने से ज्यादा बिजली उत्पादन होगा।

  3. पर्याप्त नमी मिलने से हिमालय की जैव विविधता को मिलेगा नया जीवन, स्नोलाइन भी होगी रिचार्ज।

  4. जाड़ों में पर्याप्त पर्याप्त श्चिलिंग आवरश् मिलने से खतरे में पड़ी सेब की रेड डिलिशियस और गोल्डन डिलिशियस समेत अन्य प्रजातियों को होगा फायदा।

  5. साल भर नदी और झरने रहेंगे पानी से लबालब। जिन क्षेत्रों में नदियों पर आधारित पेयजल योजनाएं हैं, वहां पानी की नहीं होगी किल्लत।