बीज और इन्सान का परस्पर सबन्ध

||बीज और इन्सान का परस्पर सबन्ध||


आज देश में खेती-किसानी कठिन दौर से गुजर रही है। सिर्फ खेती किसानी ही नहीं हमारे प्राकतिक-सामाजिक-मानवीय संसाधन, गांव व शहर संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। जल-जंगल-जमीन-वन्य व पालतू जीव जन्तु संकट में हैं। हम प्रदूषित आबो-हवा में जीने को मजबूर होते हुए भी जाने-अनजाने में रोजगार-रिहाइश-सेहत-सामाजिक सरोकारों-मानवीय रिश्तों पर अनजाना-अनचाहा बोझ महसूस करते हुए अपनी संप्रभुता पर संकट की आहट महसूस कर मानवीय अस्तित्व को ही संकट में घिरा महसूस कर रहे हैं।


बीज बचाओ आंदोलन की स्पष्ट सोच है कि आधारभूत जीवन मूल्यों पर इस संकट का कारण खेती किसानी की दुर्दशा है। इस संकट का हल खोजने हेतु खेती किसानी के बारे में गंभीर चिंतन जरूरी है। पिछले एक साल में तीन बार लाखों किसानों ने दिल्ली में अपनी त्रासक आपबीती देश को सुनाई। हर रोज करीब दो हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। हर साल सैकड़ों किसान आत्महत्या कर रहे हैं। खेती-प्रधान देश में ''अन्नदाता'' जिंदा रहने की गुहार लगा रहा है। खेती किसानी की इन्हीं चैतरफा समस्याओं पर बातचीत हेतु 'बीज बचाओ आंदोलन' और 'भारत बीज स्वराज मंच' ने देहरादून में हिंमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लगभग 100 किसानों ने 'बीज मंत्र कार्यशाला' में भाग लिया। उत्तराखंड से पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, टिहरी, पौड़ी, बागेश्वर, रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, नैनीताल और हिंमाचल प्रदेश से मंडी, धर्मशाला, कांगड़ा, स्पीति के महिला और पुरूष किसानों ने भाग लिया।


हिमांचली किसानों का कहना है कि दोनों मुल्कों की खेती-किसानी में बहुत फर्क नहीं है। इसलिए जरूरी है दोनों मुल्क एक-दूसरे की खेती-किसानी को जान खेती किसानी में आ रही दिक्कतों को बांटकर एक साझा सीख के आधार पर अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हुए पहाड़ों की जैव-विविधता, खेती-किसानी व बीज संपदा के मुद्दों पर संयुक्त हिमालयी स्वर में बोलें। मंडी के प्रोग्रेसिव किसान नेकराम शर्मा ने बताया कि सालों पहले विजय जड़धारी ने उनको कौंणी, चींणा, झंगोरा के बीज दिये थे। आज यह बीज लगभग 200 किसानों के खेतों में लहलहा रहे हैं।


कार्यशाला में हर किसान ने अपना परिचय, अपने इलाके की खेती बाड़ी की परिस्थितियों और अपने इलाके में उगने वाले बीजों के साथ दिया। इस परिचय के दौरान किसानों ने अपने बीजों की विविधता, खेती के तौर तरीकों और वर्तमान में खेती की हालतों पर विस्तार से बताया। इससे सभी किसान एक दूसरे के हालतों के बारे में अच्छे से वाकिफ हुए। साथ ही भविष्य में साथ काम करने की बात पर सोचने की दिशा में यह कार्यशाला एक मील का पत्थर साबित होगी.


कार्यशाला में बीज बचाओ आंदोलन के एक फाउंडर सदस्य सर्वोदयी चिपको नेता हेंवलघाटी के किसान और प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरूस्कार से सम्मानित धूम सिंह नेगी जी का बीज बचाओ आंदोलन व सर्वोदय मंडल देहरादून की ओर से अभिन्नदन किया गया। कार्यशाला के मुख्य वक्ता धूमसिंह नेगी ने कहा कि बीज मंत्र कार्यशाला अनोखी पहल है। इससे दोनों प्रदेशों के किसानों में मेल-जोल का बीजारोपण होगा। 90 के दशक में हमने हेंवलघाटी में ''बीज बचाओ आंदोलन'' की शुरूआत इसी समझ के साथ की थी। तीन दशकों में हमारा यह विश्वास सुदृढ़ हुआ कि बीज, पारंपरिक ज्ञान और जैविक खेती ही हमारे जीवन व खुशहाली का प्रतीक है और खेती किसानी व देश को बचाने का सबसे मजबूत औजार भी।


कार्यशाला का मुख्य विमर्श बिंदु बीज अर्थात् हिमालयी जैव-विविधता, खेती-किसानी व बीज संपदा से जुड़े मूलभूत पहलू- नीति से लेकर व्यवहार व संरक्षण तक रहा। किसानों में विमर्श हुआ कि कैसे घर-परिवार-समुदाय के स्तर पर किसान खेती में अपनी संप्रभुता स्थापित कर जल जगंल जमीन और जीवन पर आए इस संकट को खत्म कर अपने संसाधनों को बचाए रख सकते हैं? कार्यशाला में सर्वोदयी साहब सिंह सजवाण ने धूम सिंह नेगी जी का परिचय कुछ अनोखे अंदाज में दिया कि इनका परिचय क्या दें? चारों ओर फैली जैवविविधा, जंगल, हरियाली और हर सर्वोदयी कार्य कर्ता इनका ही तो जीवंत परिचय दे रहे हैं।
बीज मंत्र कार्यशाला में दो दशकों के विश्व-व्यापी किसान-संघर्ष के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दिसंबर 2018 में पारित ''ग्रामीण इलाकों के किसानों व अन्य लोगों के अधिकारों पर ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद घोषणा-पत्र'' पर चर्चा हुई कि यह घोषणापत्र क्या है और उसके हमारे लिए क्या मायने हैं? कैसे यह घोषणापत्र खेती-किसानी के सवालों के साथ-साथ किसानों के जमीन, बीज, जैव-विविधता, स्थानीय बाजार, आदि के अधिकारों को सुरक्षित कर सकेगा?


बीज बचाओ आंदोलन के विजय जड़धारी ने कहा कि हिमालय जैविक संपदा, पारंपरिक ज्ञान व जैव विविधता का भंडार हैं। यह विविधता आज भी जिंदा हैं। यही आधार हमें बचाए हुए है। उत्तराखंड व हिंमाचल में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में, भुखमरी व किसान आत्महत्याओं की स्थिति उतनी भयावह नहीं है। ऐसे में हमें हर संभव कोशिश से जैव-विविधता, पारंपरिक ज्ञान को घर-परिवार व खेतों में बचाकर उसे बढ़ाने के प्रयास करने होंगे क्योंकि आज सवाल हिमालय को बचाने का नहीं बल्कि हमारे खुद के अस्तित्व के बचे रहने का है?


सर्वोदयी बीजू नेगी का कहना था कि हमें खेती किसानी से जुड़े मूल सवालों को अपनी कमजोरियों के साथ स्वीकार कर सुनिश्चित करना होगा कि खेती में संसाधनों का मालिकाना हक व निर्णय लेने की क्षमता किसानों के हाथों में हो। कार्यशाला में केरल से आए एक आयोजक जैकब भाई- बीज स्वराज मंच ने अपने अनुभवों को बांटा कि कैसे करके वह भोपाल गैस कांड की त्रासदी के बाद सामाजिक क्षेत्र में जुड़ गये। तब से वह सामाजिक क्षेत्र में ही किसानों के साथ ही काम कर रहे हैं क्योंकि भोपाल गैस कांड में जहरीली गैस लीकेज से हुई त्रासदी ने उनको हिला दिया था। वह समझ पाये थे कि कैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे बीजों एवं खेती बाड़ी की विरासत को कब्जा कर रही हैं। उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. रिछारिया और किसानों हेतु किये उनके अनमोल कामों के बारे में किसानों को जानकारी बांटी कि अब ऐसे वैज्ञानिकों का अभाव है जो जनता के हक में नीतियां बना सकें। जैकब भाई ने कहा कि आज सामाजिक संगठन कमजोर हो रहे हैं और बाजार की ताकतें हमें नियंत्रण कर रही हैं। दशकों पहले बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हमारे खेतों, उपज, पारंपरिक ज्ञान व बीजों पर हमला कर हमें बताया गया पश्चिमी व किताबी ज्ञान न होना हमारे पिछड़ेपन की निशानी है। हमने जाने अनजाने में इसे स्वीकारा। दशकों के अनुभव के बाद खेती किसानी की दुर्दशा ने हमें समझाया कि पश्चिमी व किताबी ज्ञान के हथियार को ही हमारी समृद्ध खेती व बीजों की विविधता पर चला कर खेती किसानी को ही हाशिए पर किया गया। इसलिए आज जरूरी है हम फिर से अपनी बीजों की विरासत और समृद्ध खेती की पंरपरा को फिर से पुनजीर्वित करें।


मैती आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत ने मैती आंदोलन के बारे में विस्तार से बताते हुए युवाओं से अपनी धरती और आस पास की रचनात्मकता खुशबु का अहसास करते हुए उसको बचाने हेतु अपनी पूरी ताकत लगाने की बात पर जोर दिया।


कार्यशाला में टिहरी से कुसुम रावत ने कहा कि हमने महिला समाख्या टिहरी में बीज बचाओ आंदोलन की ओजस्वी टीम धूमसिंह नेगी, विजय जड़धारी, कुंवर प्रसून, रधू भाई जड़धारी, सुदेशा बहन, दयाल भाई के साथ टिहरी के लगभग 500 से ज्यादा गांवों में बीज बचाओ आंदोलन की सोच को जमीन पर उतारा। यह टीम हमारे साथ गांव-गांव भटकी। हमने मिलकर सैकड़ों प्रजातियों का बीज जमा किया। कई गांवों में सामूहिक बीज बैंक बनाये गये। खेती की पुरानी पंरपराएं जीवित की गईं। 50 से ज्यादा गांवों में औरतों ने बिना चकबंदी के सामूहिक खेती की। यह अपनी तरह का एक अनुभव था। सालों पुराने बीजों को खोजा गया। जैविक खेती के तौर तरीकों और बीजों की समृद्ध विरासत का दस्तावेजीकरण किया गया। महिला समाख्या टिहरी और बीज बचाओ आंदोलन की यह अनोखी पहल आज भी कार्यक्रम खत्म होने के बावजूद गांवों के खेत खलिहानों में जिंदा है।


इस कार्यशाला का सबसे सुंदर पहलू दोनों इलाकों से आए किसानों द्वारा लगाई बीजों की विविधता की प्रदर्शनी थी और इसका मुख्य आर्कषण कार्यशाला के अंत में दोनों क्षेत्रों से आए किसानों द्वारा अपने अपने क्षेत्रों से लाए बीजों का आदान प्रदान था।


कार्यशाला में हिमांचल से जागोरी, लाहौल स्पीति से एन.सी.एफ. ग्राम दिशा सामाजिक समूह मंडी, नेक राम कांगड़ा सहित युगवाणी संपादक संजय कोठियाल, सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह कुशवाहा, डा. विजय शंकर शुक्ला, मैती आंदोलन के कल्याण सिंह रावत, चिपको आंदोलन की पुरोधा सुदेशा बहन, सर्वोदयी साहब सिंह सजवाण, देवेंद्र बहुगुणा, ज्योति गुप्ता, रश्मि पैन्यूली, शैलेन्द्र भंडारी, पूरण बिष्ट सहित दोनों राज्यों के किसानों और कई प्रधानों ने सक्रिय हिस्सेदारी की। बहुत दिनों बाद किसानों कि एक अच्छी बैठक में ह्स्सेदारी से सबको अच्छा लगा. इसमें कई युवा किसानों ने भाग लिया.