बेमौसमी सब्जी उत्पादन एवं बागवानी

बेमौसमी सब्जी उत्पादन एवं बागवानी


केदार सिंह कोरंगा


लगभग पचास वर्ष पूर्व शामा क्षेत्र, जिला बागेश्वर, में मेरे पिताजी स्व0 श्री खीम सिंह कोरंगा ने बागवानी के क्षेत्र में काम करते हुए कसाणी गाँव में सेब, आडू, नाशपाती, प्लम का बगीचा लगाया था । स्वास्थ्य खराब होने की वजह से सन् 1971 में उनका देहान्त हो गया । उस समय मेरी उम्र मात्र दस वर्ष की थीइस वजह से बगीचे की देख-रेख न हो सकी। कुछ समय पश्चात् बगीचा बंजर हो गया।वर्ष 1970 के दौर में शामा क्षेत्र के निवासी आलू उत्पादन करते हुए आजिविका चलाते थे।  अन्य सब्जियों की पैदावार कम होती थी ग्रामवासी अनेक प्रकार की सब्जियों से परिचित भी नहीं थे। स्थानीय सब्जियाँ जैसे-आलू, कद्, ककड़ी और तुमड़ी इत्यादि उगाते थे। आज इस क्षेत्र में आलू का उत्पादन गिर गया है ।  वर्ष 1990 में उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा एवं कसार ट्रस्ट के स्व0 डॉ. टिम रीस के सहयोग से शामा में एक पॉली हाउस बनाया गया । बन्दगोभी, फूलगोभी, टमाटर आदि की पौधशाला तैयार करके संस्था ने निःशुल्क पौधे वितरित किये । इस प्रयोग का परिणाम सन्तोषजनक रहा। इसी के साथ सब्जियों का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मटर, कद्दू, मूली, गाजर, खीरा आदि लगाये गये । इसमें पूर्ण सफलता मिली। इस प्रयोग के फलस्वरूप आज शामा गाँव के इर्द-गिर्द लीती, बड़ी-पन्याली, शामा डाना, भनार डाना, रमाड़ी, सीरी आदि गाँवों में ग्रामवासी बेमौसमी सब्जी के उत्पादन से आजीविका चलाते हैं।  ग्राम शामा डाना, विकास खण्ड कपकोट, के निवासी पूर्व प्रधानाचार्य श्री भवान सिंह कोरंगा जी ने कीवी के बगीचे से उत्पादन लेने में पूर्ण सफलता प्राप्त की है ।  बागवानी के क्षेत्र में ग्राम सभा रमाड़ी के निवासी सन्तरा, माल्टा, कागजी नींबू, बड़ा पहाड़ी नींबू उगाकर आजीविका चलाते थे। वर्तमान समय में उत्पादन कम होने का मुख्य कारण उद्यान विभाग द्वारा पौधों का वितरण न किया जाना, कटाई-छंटाई पर ध्यान न देना तथा प्रशिक्षण की कमी रहे । यही हाल सेब, आडू, खुबानी, प्लम आदि फलों की प्रजातियों का रहा।  उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के सहयोग से वर्ष 2008-2009 में शामा क्षेत्र में बागवानी कार्यक्रम पुनः शुरू करने का प्रयास किया गया है। मैं स्वयं इस कार्यक्रम में शामिल हूँ। मेरा मानना है कि पहले खुद काम करके सीखो, फिर दूसरों को प्रेरित करो । संस्थान के सहयोग से शामा क्षेत्र के युवकों को गल्ला, रामगढ़ (जिला नैनीताल) एवं पाटी (जिला चंपावत) में बागवानी, मत्स्य पालन, वैज्ञानिक समझ वाले प्रयोगात्मक कृषि कार्यों को देखने का अवसर मिला । गल्ला और पाटी क्षेत्र में भ्रमण से मिली प्रेरणा के परिणामस्वरूप युवक सेब व आडू की चार–चार पौध खरीद कर लाये तथा खेतों में रोपित किया । छ: माह पश्चात् ग्राम गल्ला, रामगढ़ के निवासी श्री महेश गलिया, सूपी गाँव के श्री बची सिंह बिष्ट एवं पाटी, जिला चम्पावत के निवासी श्री पीताम्बर गहतोड़ी जी शामा क्षेत्र के भ्रमण पर आये। उन्होंने पौधों की बढ़त देखकर संतोष जताया और किसानों को प्रोत्साहित किया। आजीविका-सुधार कार्यक्रम में पर्यावरण एवं शिक्षा समिति, शामा के बैनर तले उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के मार्गदर्शन व आर्थिक सहयोग से बागवानी, पौधालय, सब्जी उत्पादन, मत्स्य पालन, कृषि उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। क्षेत्र में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नगण्य है। गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है।  शामा क्षेत्र में "निकरा परियोजना' के तहत चालीस पॉली हाउस बनाये गये। इससे बेमौसमी सब्जी उत्पादन को बढ़ावा मिला है। ग्रामीणों की आजीविका में सुधार हो रहा है बागवानी के क्षेत्र में सेब और आडू के लगभग तीन सौ पेड़ लगाये गये हैं । इस वर्ष पेड़ों में थोड़ा सा फल भी आने लगा था परन्तु ओलावृष्टि के कारण नुकसान पहुँचा और उत्पादन कम हो गया। मौन-पालन इस क्षेत्र के परम्परागत व्यवसायों में शामिल है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों को देखने के लिए स्थानीय निवासियों, सरकारी कर्मचारी एवं नन्दा अधिकारियों के अलावा प्रति वर्ष आस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि देशों से शिक्षाविदों, पर्यावरणविदों के दल शामा आते रहे हैं। कई नामी भारतीयों ने भी गाँव में भ्रमण किया हैग्रामवासी इस कार्यक्रम में रूचि लेते हैं । एक-दूसरे से सीखने का प्रयास करते हैं।  क्षेत्र में आजीविका को स्थायित्व देने में सबसे बड़ा रोड़ा सीमांत कृषक समुदाय की बिखरी हुई जोत जमीन है। गाँवों में बागवानी एवं सब्जी-उत्पादन का काम बढ़ने से युवाओं का पलायन कम होगा। लेकिन इस दिशा में विशेष प्रयास किये जाने जरूरी हैं। संस्था का यह प्रयोग बहुत बड़ा कदम ना कहा जाये तो भी अपने आप में एक अनूठा प्रयास है। लोगों की जागरूकता और सीखने की चाह से सब्जी-उत्पादन के क्षेत्र में शामा की पहचान बन पाई है। भविष्य में बागवानी का निरंतर प्रसार होने की संभावना है। यह कार्य स्थानीय निवासियों के अथक प्रयासों से सम्भव हुआ है।