भरी मुट्ठी से फिसलती स्वप्नों की रेत

भरी मुट्ठी से फिसलती स्वप्नों की रेत


नयार घाटी ग्राम स्वराज्य समिति, जिला पौड़ी गढ़वाल, ने सन् 1988 में उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के सहयोग से महिला संगठनों के साथ कार्यों की शुरूआत की। महिलाओं को जागरूक करने के लिए गाँवों में गोष्ठियाँ, सम्मेलन, अल्मोड़ा में कार्यशालाएं और अन्य क्षेत्रों में भ्रमण के कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे.


उत्तराखण्ड महिला परिषद, अल्मोड़ा के सहयोग से संस्था जागरूकता के निमित्त महिलाओं एवं किशोरियों के बीच साक्षरता, कानूनी जानकारियाँ, महिलाओं एवं किशोरियों के अधिकार, सरकारी योजनाओं की जानकारियाँ, ग्राम पंचायतों में चुनावों की जानकारियाँ, जल, जंगल व जमीन के संरक्षण और संवर्धन जैसे अहम् मुद्दों पर विशेषज्ञों द्वारा चर्चा कराने एवं सरल से सरल उदाहरणों द्वारा समझाने का प्रयास करती रही है । सत्ता पर काबिज और समर्थ लोग, जो गाँवों की पंचायतों में आने वाली योजनाओं से यश और धन अर्जित करते हैं, जानकारियाँ रखते हैं, ब्लॉक व तहसील के कागजात, देखते-समझते हैं, स्वयं इन जानकारियों को ग्रामवासियों को नहीं देना चाहते । महिलाओं के जागरूक ना होने की दशा में सत्ता चलाने वाली जमात का फायदा है। अन्यथा, वे उनसे सवाल करेंगी या राय नहीं लेंगी। ऐसी स्थिति में सत्ताधारकों की अहमियत कम होगी या यूँ कहें कि उन्हें मुट्ठी में भरी खुशियाँ रेत की तरह फिसलती नजर आयेंगीएक उदाहरण से इस वाकये को समझने की कोशिश करें.


यह घटना सोलह नवम्बर 2013 की है। क्षेत्र से दिनाँक बारह नवम्बर, 2013 को ग्राम बड़ेत (बदला हुआ नाम) की निवासी श्रीमती भुवनी देवी और श्रीमती शीला देवी (बदला हुआ नाम) महिला संगठनों की गोष्ठी में भाग लेने के लिए अल्मोड़ा आयीं। गाँव से बाहर निकल कर अल्मोड़ा तक पहुँचना उनके लिए एक नितांत नया और रोमांचकारी अनुभव था । वे पहली बार गढ़वाल से बाहर निकल कर कुमाऊँ क्षेत्र की यात्रा कर रही थीं।


बैठक में शामिल होकर उन्होंने संगठन की जरूरत, संगठन निर्माण के तरीके, पंचायती राज, सामाजिक बुराइयों का बहिष्कार एवं सरकारी योजनाओं से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त की। गाँव में वापस पहुँची तो अन्य महिलाओं से चर्चा हुई। यह बात गाँव के प्रभावशाली व्यक्तियों तक पहुँची तो उन्होंने महिलाओं से पूछा कि वे अल्मोड़ा क्यों गयी? उनसे पूछ कर जाना चाहिए था। रास्ते में या अल्मोड़ा में ही कहीं कोई बात हो जाती तो क्या होता? यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि यह गाँव संगठन से नया नया ही जुड़ा हैसंगठन बनते ही उत्तराखण्ड महिला परिषद् द्वारा आयोजित गोष्ठी में अल्मोड़ा चले गयेमहिलाओं ने साफ शब्दों में जवाब दिया कि वहाँ पर उन्हें काफी अच्छी और नयी जानकारियाँ मिलीं । व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी। फिर वे क्यों ना जायें? यदि महिला परिषद् में उन्हें दस बार बुलायेंगे तो भी वे जायेंगी ही।



बहरहाल जो भी हो, यदि ग्रामीण महिलाओं को अमूल्य जानकारियों का भण्डार मिल रहा हो, उनकी बातों को सुनने के प्रयत्न हो रहे हों, उन्हें महत्व दिया जा रहा हो तो वे ऐसी जगह पर जाना पसंद करती हैं। दरअसल संगठन बनाने और महिलाओं के आपसी जोड़-जुड़ाव का मूल कारण भी यही है। ग्रामीण महिलायें दुनिया देखना-समझना चाहती हैं। यात्रा करना चाहती हैं। लोगों से मिलना-जुलना चाहती हैं। ये सभी इच्छाएं उत्तराखण्ड महिला परिषद् में जुड़ कर पूरी होती हैं । कुमाऊँ-गढ़वाल की महिलाओं का यह मेल अनोखा है । परिषद् के माध्यम से महिलाओं को वह खुला मंच मिल पाता है, जहाँ वे अपनी बातें स्थानीय बोली में निर्भय होकर कह पाती हैंडर और झिझक दूर होते ही उनके सामने नयी संभावनाओं का एक विशाल क्षेत्र खुल जाता हैनिर्भय होकर महिलायें स्वयं अपने और संगठन के बारे में निर्णय लेने का साहस जुटा पाती हैंयह प्रक्रिया शिक्षण और सशक्तिकरण का एक अनूठा उदाहरण है.