चम्पावत के पाटी क्षेत्र से एक पहल

||चम्पावत के पाटी क्षेत्र से एक पहल||


चम्पावत जिले के विकासखण्ड पाटी में जनकाण्डे गाँव बसा हुआ है। दस-बारह तोकों के मध्य बसा हुआ यह गाँव पाटी मुख्यालय से तेइस किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैजनकाण्डे के चारों ओर त्यारसों, सिलिंग, वरकाण्डे, सिरतोली, पड़का, कानीकोट, तल्लीलड़ी, मध्यगंगोल, खुतेली, सिरमोली, जाख, हरोड़ी आदि गाँव फैले हुए हैं। ये सभी गाँव जनकाण्डे से दस किलोमीटर की परिधि के भीतर स्थित हैंमध्य गंगोल में एक हाईस्कूल तथा दस किलोमीटर की दूरी पर राजकीय इण्टर कॉलेज खेतीखान स्थित है। यह क्षेत्र बाराकोट विकासखण्ड की सीमा पर आता है.



पर्यावरण संरक्षण समिति, पाटी, एक स्वैच्छिक संस्था है। यह संस्था सन् 1990-91 से उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के साथ मिलकर कार्य कर रही है। संस्थान की पहल पर वर्ष 1997 से 2006 तक सिरमोली, खुतेली, बरकाण्डे, जनकाण्डे, हरोड़ी, त्यारसों आदि गाँवों में तीन से छ: वर्ष की उम्र के बच्चों के शिक्षण के लिए बालवाड़ी कार्यक्रम चलाया गया ग्राम सिरमोली एवं हरोड़ी में महिला एवं किशोरी संगठन बनाकर जागरूकता एवं शिक्षण का कार्य हुआ। जनकाण्डे गाँव में महिला सम्मेलन भी आयोजित किया गया। इसका लाम क्षेत्र के लोगों को मिला इस क्षेत्र के निवासी आज भी इन कार्यक्रमों को याद करते हैं।


इन कार्यक्रमों से प्रेरित हुई और संगठन से जुड़ी एक किशोरी, खीमा महरा, की इच्छा थी कि वह कम्प्यूटर पर काम करना सीखेखीमा ने संस्था से सम्पर्क किया। वर्ष 2012-13 में संस्थान के सहयोग से जोश्यूडा क्षेत्र में एक कम्प्यूटर शिक्षण केन्द्र की शुरूआत हुई। संस्था के प्रतिनिधियों ने खीमा को सलाह दी कि वह जोश्यूड़ा गाँव में जाकर कम्प्यूटर सीख ले । खीमा ने संस्था की कार्यकर्ता श्रीमती पुष्पा के घर में दो माह निःशुल्क रहकर कम्प्यूटर पर काम करना सीखा। उसके बाद जनकाण्डे में सम्पर्क करके जोश्यूडा क्षेत्र के बच्चों को कम्प्यूटर सिखाने की इच्छा जाहिर की।


पाठ्यक्रम पूरा करने के उपरान्त उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के सहयोग से जनकाण्डे गाँव में एक कम्प्यूटर केन्द्र खोला गया। यह केन्द्र जनकाण्डे के समीरा सिलिंग तोक में शुरू हुआ खीमा ने केन्द्र में शिक्षिका के तौर पर कार्य किया। दो-दो माह के कोर्स में चौबीस बच्चों के समूह बनाकर शिक्षण का काम शुरू किया गया। कक्षा पाँच से हाईस्कूल तक पढ़ रहे किशोर-किशोरियों तथा बी.ए. में पढ़ने वाली किशोरियों को प्रशिक्षण दिया। एक वर्ष में पच्चानब्बे किशोर-किशोरियों को कम्प्यूटर खोलना-बन्द करना, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में टंकण, प्रिन्ट निकालना आदि सिखाया । अभिभावकों को तब खुशी हुई जब बच्चों ने स्वयं टंकण किये हुए कागज उन्हें दिखायेइस कार्यक्रम से लोगों में अच्छा संदेश गया। कम्प्यूटर शिक्षण के इस कार्य से सभी ग्रामवासी खुश हैं, अन्यथा बच्चों को पाँच-दस किलोमीटर दूर स्थित खेतीखान में फीस देकर कम्प्यूटर पर काम करना सीखना पड़ता थाइस केन्द्र से बच्चों का उत्साह बढ़ा है। बच्चों ने लगभग निःशुल्क तौर पर कम्प्यूटर में काम करना सीखा हैअभिभावकों का कहना है कि आगे अतिरिक्त कोर्स भी करवाया जाये जिससे बालक-बालिकाओं को लाभ मिले।


भौगोलिक दृष्टि से पाटी विकास-खण्ड चम्पावत जिले के चारों विकास-खण्डों का सबसे बड़ा हिस्सा है सन् 1990 में जब संस्था पंजीकृत हुई, तभी से पाटी के आसपास के गाँवों में जल-संरक्षण का कार्य किया गया है।


छोटे-छोटे जल-स्रोतों को ढूँढकर एल्काथीन पाइप के द्वारा तीन सौ मीटर से एक किलोमीटर तक की दूरी तय करते हुए घरों में पानी की सुविधा उपलब्ध करवायी ग्रामवासियों को घर पर सरलता से पेयजल मिलने लगा। पेयजल के अलावा बागवानी, सब्जी-उत्पादन, पशुओं के उपयोग, मिट्टी में नमी-संरक्षण के साथ मछली पालन के लिए इस व्यवस्था का उपयोग किया जाने लगापहले यह मान्यता थी कि पहाड़ों में मत्स्य पालन असम्भव है। आज पूरे प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में मत्स्य पालन का कार्य हो रहा है । यह कार्य पाटी विकास खण्ड के ग्राम तोली से शुरू हुआ।


तोली ग्राम में पैंतालीस र परिवार रहते हैंसभी परिवारों के पास व्यक्तिगत पाइप लाइन है। गाँव में कोई सरकारी योजना नहीं हैगाँव में पानी की हर एक बूंद का उपयोग होता हैपानी के संरक्षण की जरूरत एवं महत्व को गाँव की बैठकों में बताया जाता हैइन्हीं चर्चाओं से प्रेरणा लेकर फल एवं चारे के पौधे लगाये गये हैं। इस गाँव में सामुहिक जमीन के अलावा व्यक्तिगत भूमि में भी वृक्ष लगाये गये हैइन वृक्षों में बाँज, बुराँश, काफल, खड़िक, भीमल, नाशपाती, नींबू, शहतूत आदि प्रजातियाँ शामिल हैं। फल-पौध में सेब, आडू, प्लम, खुबानी आदि प्रमुख हैं। यहाँ का काम देख कर अन्य गाँवों के निवासी प्रेरणा लेते हैं और अपने क्षेत्र में भी इसी प्रकार के सामुहिक कार्य करते हैंक्षेत्र में ग्रामवासी पर्यावरण संरक्षण के प्रति अत्यंत सचेत हैं.


__ ग्राम तोली में वर्ष 1987-88 में श्री कृष्णानन्द गहतोड़ी जी ने एक छोटे तालाब (तीन मीटर लम्बा व दो मीटर चौड़ा) में स्थानीय मछलियाँ डाल दींतीन-चार वर्षों के बाद कुछ सफलता दिखायी दी। इस प्रयोग को देखते हुए श्री पीताम्बर गहतोड़ी जी ने भी एक तालाब बनाया और उसमें मछली पालना शुरू किया। श्री कृष्णानन्द गहतोड़ी जी पर्यावरण संरक्षण समिति, पाटी के अध्यक्ष व श्री पीताम्बर गहतोड़ी जी इसी संस्था के निदेशक हैं । सन् 1991-92 में संस्था के बैनर तले इस कार्यक्रम को जल-संरक्षण का रूप देकर मत्स्य पालन और सब्जी उत्पादन का कार्य करने का निर्णय लिया गया। गाँव में पहली बार मत्स्य पालन को एक फसल के रूप में देखा जाने लगा। मत्स्य पालन से आजीविका में सुधार लाने की सोच पनपने लगी.


सन् 1993 में सड़क के किनारे लगे हुए संस्था के बोर्ड को देखकर राष्ट्रीय शीतजल मत्स्य निदेशालय के वैज्ञानिक डॉ० वी. सी. त्यागी संस्था के कार्यालय में आ गये उन्होंने संस्था के प्रतिनिधियों से बातचीत की एवं मत्स्य-पालन के लिए बनाया गया तालाब देखा। सुझाव दिया कि वैज्ञानिक विधि से मत्स्य पालन करना चाहिए। उन्होंने संस्था के प्रतिनिधियों को भीमताल (जिला नैनीताल) में बुलाया और मत्स्य पालन की बारीकियाँ समझायीं। साथ ही, राष्ट्रीय शीतजल मत्स्य अनुसंधान की शाखा छीड़ापानी के वैज्ञानिक डॉ० के. डी. जोशी से सहयोग व मार्गदर्शन लेने की सलाह दी। भीमताल में निदेशक डॉ० के. के. वास के आर्थिक सहयोग से कुछ लोगों को प्रशिक्षण दिया गया मत्स्य बीज उपलब्ध कराया श्री कृष्णानन्द एवं पीताम्बर जी को पाँच वर्ष तक मत्स्य बीज एवं चारा देने हेत प्रशस्ती-पत्र दिया। धीरे-धीरे मत्स्य पालन का कार्य जोर पकड़ने लगा। इस प्रयोग का परिणाम अच्छा निकला। उसके बाद संस्था ने इस कार्य को पूरे क्षेत्र में बढ़ाने का निर्णय लिया।


संस्था ने मत्स्य पालन प्रशिक्षण के साथ-साथ ग्रामवासियों को सब्जी उत्पादन, जल-संरक्षण के लिए प्रेरित किया। इस पहल से ग्रामवासियों की आय में वृद्धि होने लगी। संस्था ने पिथौरागढ़ जिले के मत्स्य निरीक्षक से सम्पर्क किया। विभाग द्वारा कृषकों को पूर्ण तकनीकी के साथ-साथ आर्थिक सहयोग भी दिया गया । धीरे-धीरे इस क्षेत्र में छत्तीस मत्स्य तालाब बने । इससे ग्रामवासियों की आय बढ़ने लगी।


इस कार्यक्रम की सफलता से कृष्णानन्द एवं पीताम्बर जी को कई पुरस्कार एवं प्रशस्ती-पत्र दिये गये। कई जाने-माने वैज्ञानिक, विशेषज्ञ एवं सरकारी अधिकारी मत्स्य पालन के कार्यक्रम को देखने के लिए पाटी पहुँचे। धीरे-धीरे उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के आर्थिक सहयोग से जल-संरक्षण के कार्यों में चाल-खाव, बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए टैंक, पॉलीहाउस, वनीकरण, पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियों का विस्तार किया गया। उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान के निदेशक पद्मश्री डॉ. ललित पाण्डे द्वारा आर्थिक सहयोग दिया गयाकार्यक्रम में कई सफलताएं मिलीं। भूमि जल-बोर्ड द्वारा 2010 का भूमि जल पुरस्कार (एक लाख रुपया) संस्था को दिया गया.


संस्था ने उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा के सहयोग से कुमाऊँ में कई अन्य स्थानों पर प्रशिक्षण देकर मत्स्य-तालाब बनवाये। तोली गाँव से शुरू हुआ यह कार्यक्रम आज पूरे उत्तराखण्ड के युवाओं को लुभा रहा है। गाँवों से युवाओं का पलायन कम हुआ है। मत्स्य पालन के साथ-साथ मुर्गीपालन, सब्जी उत्पादन, बागवानी आदि के कार्य भी क्षेत्र में सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं.