||दुनियांभर में ग्रीन स्कूल के जनक वीरेन्द्र पंवार||
कभी गरीब मां बाप के पास स्कूल की फीस के 200रू का जुगाड़ न हो पाने के कारण आठवीं में पढ़ने वाले वीरेन्द्र को 6 महिने तक स्कूल छोड़ना पड़ा था, बाद में जब उनके ताऊ ने उन्हें ये पैसे दिए तभी वे स्कूल जा सके थे। बावजूद इसके वे क्लास में प्रथम आए।
नौवीं कक्षा में गये तो फिर आगे पढ़ने में गरीबी आड़े आने लगी। मासूम बालक वीरेन्द्र ने स्कूल के पास ही एक ढ़ाबे में स्कूल जाने के साथ-साथ काम करना शुरू कर दिया जिसके एवज में उसे शाम का भोजन व रहने को बिस्तर मिल जाता था। पहाड़ में पहाड़ जैसी विपदा के बीच शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे नौकरी की तलाश में अहमदाबाद गये जहां से उसने ऐसी उड़ान भरी कि आज उसके मुरीदों में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी शामिल है।
वीरेन्द्र सिंह के “ग्रीन स्कूलों” के कान्सेप्ट ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया है।
वीरेन्द्र का लक्ष्य है कि वे दुनियांभर में 2020 तक 2000 ग्रीन स्कूल खोल देंगे। साथ ही अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड में उनका एक ग्रीन विश्वविद्यालय खोलने का भी इरादा है जिसमें भारत के ही नहीं बल्कि विश्वभर से छात्र यहां अध्ययन के लिए आ सकेंगे।
उनका मानना है कि उत्तराखंड का प्राकृतिक सौन्दर्य तथा यहां के लोगों की इमानदारी व कड़ी मेहनत इस ग्रीन विश्वविद्यालय के लिए एक “ब्रांड” का काम करेेगी।
इरादे पक्के और हौसले बुलंद हों तो दुनिया की हर मुश्किल असान हो जाती है। उत्तराखंड के टेहरी जिले के अति दुर्गम पहाड़ी गांव से निकलकर दुनिया में नाम रोशन करने वाले वीरेंद्र रावत इसकी मिसाल हैं। उन्होंने न केवल ग्रीन स्कूल कांसेप्ट इजाद किया बल्कि आज देश के 100 से ज्यादा स्कूल उनके दिशा निर्देशन में संचालित हो रहे हैं। वीरेंद्र ने बोस्टन यूनिवर्सिटी-अमेरिका में आयोजित आठवें एनवल एमए ग्रीन स्कूल समिट में देश में चल रहे ग्रीन स्कूल कंासेप्ट को प्रस्तुत कर खूब प्रशंसा बटोरी ।
मूल रूप से टिहरी गढवाल में प्रतापनगर ब्लॅाक की उपली रमोली में हेरवाल गांव में मुकुंद सिंह रावत व बच्ची देवी के घर मंे जन्मे आठ संतानों में सबसे बड़े बेटे वीरेंद्र रावत की प्रांरभिक शिक्षा दीप गांव में हुई। उन्होंने इंटर कालेज तोलीसैण, टिहरी से 12 वीं करने के बाद गढ़वाल विवि से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 1994 में नौकरी के सिलसिले में अहमदाबाद चले गए, जहां उन्होंने 1200 रूपये वेतन पर नौकरी की। रावत पर उत्तराखंड की हरियाली का गहरा असर था। वर्ष 2010 में उन्होंने अहमदाबाद में पहले ग्रीन स्कूल की स्थापना की । गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जब इस स्कूल के बारे में पता चला तो उन्होंने खुद इस स्कूल का निरीक्षण किया।
वीरेंद्र को तत्काल प्रदेश में इस तरह के स्कूल के प्रोत्साहन के लिए सलाहकार नियुक्त कर लिया। आज वीरेंद्र सीबीएसइ के 10 से अधिक संबद्ध ग्रीन स्कूलों के संचालक होने के साथ ही 100 से अधिक ग्रीन स्कूलों के संचालन का जिम्मा संभाल रहे हैं। भारत में ग्रीन एजूकेशन के क्षेत्र में दिशा निर्देशक के तौर पर वह 1000 सबसे सफल निर्देशकों मंे गिने जाते हैं।
वीरेंद्र पहले ऐसे भारतीय हैं। जिन्हें बोस्टन यूनिवर्सिटी अमेरिका ने आठवें वार्षिक एमए ग्रीन समिट के लिए आमंत्रित किया और सम्मानित किया।
तीन साल में कोई छात्र, शिक्षक बीमार नहीं पड़ा
वीरेन्द्र ने बोस्टन में अपने भाषण में बताया कि बेहद प्राकृतिक किस्म के इन स्कूलों में तीन वर्षों से न तो कोई छात्र बीमार हुआ और न ही किसी शिक्षक ने बीमारी की छुट्टी ली है। ग्रीन उद्यमियों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
छात्रों में उद्यमिता विकास होने के साथ ही पढ़ाई के दौरान वह पर्यावरण भी बचाते हैं और कमाई करना भी सीखते हैं। शादी समारोहों में ग्रीन गिफ्ट का प्रचलन भी तेजी से बढ़ रहा है।
क्या है ग्रीन स्कूल कांसेप्ट
ग्रीन स्कूल कांसेप्ट पृथ्वी, जल, हवा, आग व आकाश पर आधारित है। इन स्कूलों में प्रवेश करते ही प्राकृतिक सुन्दरता का अहसास होता है। वीरेन्द्र ने इस कांसेप्ट के तहत स्कूलों के लिए अलग से सिलेबस डिजाइन किया। वह न केवल बोर्ड का सिलेबस पढ़ाते हैं बल्कि उन्हें पर्यावरण मित्र और उससे कमाई का रास्ता भी सिखाया जाता है। इसके लिए स्कूलों में वह कार्बन आधारित आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं। बारिश का 100 प्रतिशत पानी ही सभी प्रक्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है। वेस्ट से खाद बनाने, पेपर रिसाइक्लिंग से प्लास्टिक रिसाइक्लिंग का काम पढ़ाई के दौरान बच्चे को सिखाया जाता है।
यहां कमाया नाम
वर्ष 2014 में डिजिटल लर्निग मैनेजमेंट ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़े गेम चेंजरों की सूची में पहले स्थान पर रखा। वीरेन्द्र रावत दुनिया में 300 से अधिक ग्रीन स्कूल संचालित करने वाली संस्था 'ग्रीन स्कूल एलायंस ग्लोबल बेस्ट यूएसए' के काॅर्डिनेटर हैं। इसके अलावा बोर्ड आॅफ मैनेजमेंट, सीयू शाह यूनिवर्सिटी, गुजरात, टेक्नोलाॅजिकल यूनिवर्सिटी अहमदाबाद, इंटरनेशनल सोसाइटी फाॅर एनवायरमेंट एजूकेशन कमेटी, सीबीएसइ के सदस्य होने के साथ यंग मास्टर प्रोग्राम आॅन सस्टेनेबल एबिलिटी, यूनेस्को के प्रमाणित प्रशिक्षक भी हैं। इसी वर्ष वाइबें्रट गुजरात 2015 में वीरेंद्र ने ग्रीन स्कूल प्रोजेक्ट को पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत किया ।
2000 ग्रीन स्कूल का लक्ष्य
अमेरिका में मौजूद वीरेंद्र रावत ने बताया कि आज वह गुजरात में 100 ग्रीन स्कूलों के निर्देशक हैं, जिनमें 61 सरकारी ग्रीन स्कूल शामिल है। मकसद वर्ष 2020 तक 2000 ग्रीन स्कूलों की स्थापना है।
एक सोच है ग्रीन स्कूल
ग्रीन स्कूल एक सोच है, जिसमें जीने के लिए आधारभूत तत्व जल, गगन, वायु, अग्नि और पृथ्वी को छात्रों को उपलब्ध कराया जाता है। पांचों तत्वों के बारे में गहनता से छात्रों को बताया जाता है। ग्रीन स्कूल के भीतर बच्चे के लिए कम से कम एक पेड़ लगाया जाता है। हर एक छात्र से एक पेड़, जिससे हर छात्र को जीवनदायिनी वायु मिले। स्कूल में खेल भी पर्यावरण से संबधित होते हैं।
अब वीरेन्द्र अपनी जन्म भूमि उत्तराखंड के लिए एक बड़ी कार्य योजना पर काम कर रहे हैं उनका इरादा यहां एक ग्रीन विश्वविद्यालय खोलने का है जिसमें वे स्थानीय मानव संसाधन को प्रशिक्षित कर इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बनाना चाहते हैं जिसमें देश-विदेश के छात्र यहां आ सकेंगे।
उन्हें अपने पिता द्वारा कर्ज लेकर व मां द्वारा अपने तमाम जेवर गिरवी रखकर दस साल में बने अपने पुस्तैनी मकान के खाली पड़े रहने का मलाल है वे पहाड़ में ऐसे हजारों खाली पड़े मकानों के उपयोग पर भी योजना बना रहे हैं।