दुनियां की नदियों में एंटीबायोटिक प्रदूषण

|| दुनियां की नदियों में एंटीबायोटिक प्रदूषण|| 


संदर्भ - ब्रिटेन के यॉर्क विवि की ताज़ा सर्वेक्षण रिपोर्ट


राह हैरान कर देने वाली खबर है कि दुनिया की नदियाँ एंटीबायोटिक दवाओं के अपशिष्ट से खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होने लग गई हैं। इन नदियों में लंदन की टेम्स से लेकर भारत की गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और महानदी शामिल हैं। इस सर्वेक्षण में वे नदियाँ शामिल की गई हैं जिनकी लंबाई 1000 किलोमीटर से ज्यादा हैब्रिटेन के याक विवि के शोधकर्ताओ ने छह महाद्वीपी के 72 देशों की नदियों पर पहुँचकर यह सर्वेक्षण किया है। ।


सर्वे के मुताबिक कई नदियों में एंटीबायोटिक्स की मात्रा सुरक्षित स्तर से 300 गुना से भी अधिक हो गई है। यह प्रदूषण भविष्य में बैक्टीरिया नाशक जीवन रक्षक दवाओं को बेअसर कर सकता है। खतरे की इस घंटी ने आशंका जताई है कि 2050 तक एक करोड़ लोगों की इस प्रदूषण से मौत हो सकती है। हालाँकि भारत के लिए यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि हमारी जीवनदायी नदी गंगा पर महाजीवाणु यानी 'सपरबग' ने वर्चस्व कायम करके मानव समुदाय पर आतंक का कहर ढाना एक दशक पहले ही शरू कर दिया है। जीएम फसलो के अपशिष्ट भी इस प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यह स्थिति इसलिए भी बनी है क्योंकि दनिया की 37 प्रतिशत नदियों की धारा रोककर करीब 28 लाख बाँध बना दिए गए हैंब्रिटेन के एक्सेटर विवि के प्रोफेसर विलियम गेंज ने बताया है कि मानव शरीर में मिलने वाले कई एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया इन्हीं पर्यावरणीय बैक्टीरियाओं से पैदा हुए हैं। इन बैक्टीरियाओं का पैदा होना खतरनाक है क्योंकि ये भविष्य में रोग-प्रतिरोधक दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट (विरोधी ) क्षमता पैदा कर लेंगे। नतीजतन __ दवाएँ प्रभावी नहीं रह जाएँगी और मामूली बीमारियों से पैदा हो जाने वाले संक्रमण से भी लोगों की मौतें दो होने लग जाएँगी।


संयुक्त राष्ट्र संघ की हालिया रिपोर्ट में भी एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणु में वृद्धि को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल बताया गया है जिसके चलते 2050 तक 1 करोड़ मौतें हो सकती हैं। नदियों में ये दवाएँ मानव और पशु मल के ज़रिए पहुँच रही हैं। यह शोध नदियों के 711 स्थलों पर किया गया, जिसके नतीजे में पाया गया कि 65 प्रतिशत नदियों में एंटीबायोटिक प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुँच गई है। भारत की नदियों की स्थिति बहुत पहले से ही प्रदषण के मामले में चिंताजनक है। देश की जीवनरेखा मानी जाने वाली गंगा में तो एंटीबायोटिक रोधी जीन 'सुपरबग' कई बीमारियों के जन्म का कारक बन रहा है। यह एक प्रकार का जीवाणु, अर्थात : बैक्टीरिया है। सुपरबग ने गंगा किनारे बसे शहरों और कस्बों को अपनी चपेट में ले लिया है। पवित्र 11 गंगा में पुण्य लाभ के लिए जब तीर्थयात्री जलधार में : डुबकी लगाते हैं, तब सुपरबग सीधे उनके फेफड़ों पर हमला बोलकर श्वसन-तंत्र को कमजोर बनाने - का सिलसिला शुरू कर देता है। यह महाजीवाणु इसलिए ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह दो जीन्स के संयोग से बना है।


हालाँकि एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेने वाले सुपरबग के अस्तित्व को लेकर भ्रम की स्थिति है लेकिन हाल ही में ब्रिटेन के न्यूकै सल विश्वविद्यालय और दिल्ली आइ आइटी के वैज्ञानिकों ने गंगा जल पर जो शोध किए हैं, उनमें दिए गए ब्यौरे गंगा में सुपरबग की उपस्थिति का विश्वसनीय दावा करने वाले हैं। गंगा को कचरे के नाले में बदलने वाले उपाय आखिर इसे कब तक निर्मल बनाए रख पाएंगे! गंगा के निर्मलीकरण की महत्वाकांक्षी योजनाएँ अब तक थोथी साबित हुई हैं, लिहाजा गंगा-यमुना के प्रदूषण से जुड़ी खबरें अब झकझोरती नहीं हैंअब तक यह माना जाता था कि गंगा मैदानी इलाकों में कहीं ज्यादा प्रदूषित है, किंतु गंगा कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी जैसे नगरों से कहीं ज़्यादा ऋषिकेश और हरिद्वार में दूषित हो चुकी है।


गंगा इसके उद्गम स्थल गोमुख एवं गंगौत्रीद्ध से लेकर , समापन स्थल गंगासागर तक सभी जगह मैली हो । चुकी है। यही मैल महाजीवाणु की उत्पत्ति और पुल उसकी वंश वृद्धि के लिए सुविधाजनक आवास सिद्ध हो रहा है। वैज्ञानिकों ने इसे ताज़ा उत्पत्ति माना है और दिल्ली के पानी में इसकी मौजूदगी पाए जाने से इसका नाम 'नई दिल्ली मेटालाबीटा लैक्टोमस1 (एनडीएम-1) रखा गया है। यह भी माना गया है कि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से यह पैदा हुआ हैगंगा में मिले सुपरबग की अलग पहचान बनाए रखने की दृष्टि से इसे बीएलएएनडीएम-1 का नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भविष्य में कायांतरण करके अन्य किसी नए अवतार में भी सामने आ सकता है। इस पर नियंत्रण का एक ही तरीका है कि गंगा में गंदे नालों के बहने, सीवर का मल-मूत्र जाने और कचरा डालने पर सख्ती से रोक लगाई जाए।


अतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने भारत को सुपरबग की हकीकत सामने आने पर चेताया था कि प्रतिरोधात्मक क्षमता का असर कम करने वाले जीन , भले भारत में पहले से मौजूद रहे हों, लेकिन जो जीवाण दो जीन के मेल से बना है वह पहली मर्तबा ही देखने में आया है। हालाँकि इस जानकारी के आने से पहले भी भारत में सुपरवग की खोज हो चकी थी। मुंबई के पीडी हिंदजा नेशनल चिकित्सालय और चिकित्सा शोध केंद्र के शोधार्थी पायल देशपांडे, कैमिला रोडिग्स, अंजलि शेट्टी, फरहद कपाडिया, असित हेगडे और राजीव सोमण ने मार्च 2010 में 'ऐसोसिएशन ऑफ फिजीशियन ऑफ इंडिया' के जर्नल में सुपरवग के वजूद का विस्तृत ब्यौरा पेश किया था।


यह अध्ययन 24 मरीजों पर किए शोध का निष्कर्ष था जिसमें बताया गया था कि एनडीएम-1 ऐसा महाजीवाणु है जो अंधाधुंध एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के कारण सूक्ष्म जीवों में जबरदस्त प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित कर रहा हैशोध-पत्र में दावा किया गया था कि कार्बोपीनिम दवा से मुठभेड़ करने में सक्षम इस सुपरबग का बहुत छोटे समय में विकसित हो निकलेजाना आश्चर्यजनक हैकार्बोपीनिम एक एंटीबायोटिक है जो मल्टी ड्रग प्रतिरोधी दवाओं के संक्रमण के इलाज में प्रयोग की जाती है। हालाँकि सुपरबग का भारत या गंगा नदी में पाया जाना कोई अपवाद नहीं है। ये सूक्ष्म जीव दुनिया में कहीं भी मिल सकते हैं: किसी नगर, देश या क्षेत्र विशेष में ही इनके पनपने के कोई तार्किक प्रमाण नहीं हैं। लेकिन : गंगा में इन सूक्ष्म जीवों का पाया जाना इसलिए हैरत में डालने वाली घटना है क्योंकि गंगा दुनिया की नदियों में सबसे शुद्ध जल वाली नदी है और करोड़ों लोग गंगा-जल का सेवन करके अपने जीवन को धन्य मानते हैं।


गोमुख से गंगासागर तक गंगा पांच राज्या स होकर बहती है। इसके किनारे 29 शहर 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले बसे हैं23 नगर ऐसे हैं, जिनकी आबादी 50 हजार से एक लाख के बीच हैकानपुर के आसपास मौजूद 350 चमड़ा कारखाने हैं, जो इसे सबसे ज्यादा दूषित करते हैं। 20 प्रतिशत औद्योगिक नाले और 80 प्रतिशत मल विसर्जन से जुड़े परनालों के मुँह इसी गंगा में खुले हैं। आठ करोड़ लीटर मल-मूत्र और कचरा रोजाना गंगा में बहाया जा रहा है। यही कारण है कि गंगा का जीवनदायी जल जीवन के लिए खतरा बन रहा है। इसीलिए गंगा की गिनती आज दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में हो रही है। यही वजह है कि गंगा . जल परीक्षण के नमूने किसी भी नगर से लिए जाएँ, उनके नतीजे भयावह ही आ रहे हैं। 1985 में राजीव गाँधी की सरकार ने 2526 किमी लंबी गंगा को स्वच्छ बनाने की ऐतिहासिक पहल की थी। यह कार्यक्रम दो चरणों में चला, लेकिन 27 साल में भी सार्थक परिणाम नहीं निकले। 2009 में संप्रग सरकार ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण का भी गठन किया।


इसकी पहली बैठक में गंगा को अगले 10 सालों में अधिकतम स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया गया और नए सिरे से 15 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना को मंजूरी दी गई। पाँच स का दायित्व संभाला, तब उन्होंने बड़े जोर-शोर से गंगा के शुद्धिकरण के लिए 'नमामि गंगे' अभियान चलाया। इस पर अब तक 20,000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन इस अनुपात में भौतिक सुधार जमीन पर दिखाई नहीं देता है। देश की अन्य अनेक नदियाँ भी वेंटिलेटर पर रहते हुए प्रदूषण का चरम भोग रही हैं। इनमें यमुना, चंबल, सिंध, नर्मदा, गोदावरी ताप्ती. महानदी और बनास जैसी नदिया शामिल हैं। औद्योगिक विकास व भवन निर्माण भी निर्मल अविरलता खत्म हो गई है।


नदियों की इन नदियों पर संकट ढा रहा है। नतीजतन नदियों की प्रतिशत धाराओं में इतना प्रवाह नहीं रहा है कि वे भारी प्रदूषण को समुद्र तक बहा ले जाएँ। इस कारण नदियों के जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा आठ भी घट रही है और कई तरह के रसायनों के विलय का होते रहने से पानी भारी हो गया है। बावजूद चिंतनीय । पहलू यह है कि देश के किसी भी राजनीतिक दल के घोषणा-पत्र में नदियों और पर्यावरण के संरक्षण का सबसे गंगा 3 . मुद्दा सिरे से गायब है।