दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा वैज्ञानिक संरक्षण

||दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा वैज्ञानिक संरक्षण||


यह एक सुखद संयोग ही था, जब सदियों से संजोयी और संभाली उत्तराखंड की ऐतिहासिक-दुर्लभ पांडुलिपियों की अनमोल धरोहरों के वैज्ञानिक संरक्षण की शुरुआत टिहरी के बादशाहीलीथौल स्थित श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय प्रांगण की गुनगुनी धूप में राष्ट्रीय पाडुलिपि मिशन भारत सरकार द्वारा की गई।


पुराना दरबार ट्रस्ट टिहरी द्वारा 16 अक्टूबर से 20 अक्टूबर 2019 तक आयोजित इस अति महत्वपूर्ण कार्यशाला में इतिहास और विज्ञान ने साथ-साथ खड़े होकर एक नए युग का सूत्रपात किया। यह बड़ा ही अच्छा मौका था जब पुराना दरबार हाउस ऑफ आर्कियोलोजिकल एंड आरकाइवल मटिरियल क्लेक्शन ट्रस्ट के मुखिया टिहरी राजपरिवार के ठाकुर भवानी प्रताप सिंह और राष्ट्रीय पांडलिपि मिशन, भारत सरकार के संरक्षणकर्ता की पांच सदस्यीय टीम ने टिहरी, चमोली उत्तरकाशी समेत कई जिलों के प्रतिनिधियों और संरक्षणकर्ताओं समेत श्रीदेव समन विश्वविद्यालय, गढ़वाल विश्वविद्यालय, कई राजकीय महाविद्यालय के प्राध्यापको, शोधार्थियों, छात्रों, पत्रकारों, आम लोगों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकर्मियों और व्यक्तिगत पांडलिपि संरक्षणकर्ताओं के साथ मिलकर उत्तराखंड के कोने-कोने में बिखरी पांडलिपि संपदा के वैज्ञानिक संरक्षण की दिशा में पहला मील का पत्थर रखा।


इस ऐतिहासिक कार्यशाला पर बात करने से पहले इसकी पृष्ठभूमि जानना बहुत जरूरी है कि आखिर ऐतिहासिक महत्व की दुर्लभ पाइंलिपियां अचानक कहां से आई? यह अब तक कहां टबी थीं और इस ऐतिहासिक यात्रा का सूत्रधार कौन है? इन पाडुलिपियों का क्या महत्व है और संरक्षण की भावी योजना क्या है? तो सुनिए यह भी एक रोमांचक यात्रा ही है किकैसे पाडलिपि मिशन की टीम पुराना दरबार ट्रस्ट के साथ सदियों से यं ही हमारे गांवों- गांवों में खादरों ढेबरों, काकरों, बक्सों, कंडियों, अलमारियों में रखी पुरखों की इस ज्ञान संपदा तक पहुंच गई।


यह सब जानने को आपको टिहरी राजवंश के इतिहास के पन्नों की धूल झाड़नी होगी किपराना दरवार ट्रस्ट क्या है और इन ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेजों का स्रोत क्या हैं? टिहरी राजपरिवार में जन्मेकुवर विचित्र शाह एक साहित्यप्रेमी और विद्यानगगी व्यक्ति थे। वह आजीवन दुर्लभ दस्तावेजों, गथों और पाइलिपियों का संकलन करते रहे। साहित्य सृजन का यह प्रेम उनके तीसरे पुत्र टाकुर कैप्टेन शुरवीर सिंह पंवार को विरासत में मिलाकैप्टेन पंवार बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह पहले आर्गी में कैप्टेन और बाद में रिहरी रियासत में गृह सचिव रहे। वह एक महान साहित्यमृजक और शोधार्थी थे। उनको जहां कहीं भी कोई दुर्लभ और महत्वपूर्ण दस्तावेज मिलता वह उनके पिता के संजोय गंग्रहालय में शामिल हो जाता।


कैप्टेन पंवार के हिस्से में पुराना दावार टिहरी स्थित महल का भवन आयाजिसमें प्राचीन तिवारियां, खोली, छाजे, नक्काशीदार अन्य संरचनाj देवदार के बक्से, आलमारियां, रियासत कालिन अब-शम्ब, मांट-वर्तनी समेत दर्लभ पथों दस्तावेजों एवं पाइलिपियों का सालों से मंजोया पम्नकालय और संग्रहालय आया।बाटी उन्होंने गढ़ राजवंश के बहुत सी सनदों, शोध ग्रंथों और दलन परनकों का संग्रह यो जोड़ा। उनके और भाई नौकरियों में चले गए लेकिन उनका वध टिहरीमेवारदा देश की आजादी के बाद वह उत्तरप्रदेश सरकार में प्रशासनिक अधिकारी बनकर फतेहपुर, रामपुर, अलीगढ़ जैसी संवेदनशील जगहों पर तैनात रहे। वह जहां भी जाते, परानी धरोहरो को सहेजने व संजोने का काम करते और समय समय पर राष्ट्रीय पत्रपत्रिकायला विषयों पर अपनी कलम चलाते। वह एक इतिहासकार, साहित्यकार और शोधार्थी के तौर पर हमेशा याद किये जाते रहेंगे। उनके सभी लेख गहरी विवेचना एवं गहन शोध के बाद लिपिबद्ध होते।


1973 में सेवानिवृत्ति के बाद वह गढ़वाल विश्वविद्यालय की मीनेट के सदस्य नियुक्त हुए और अपने पैतृक भवन में एक चौकीदार संरक्षक और क्योटर के माफिक हजारों पुस्तकों और दुर्लभ ग्रंथों के खजाने की रक्षा करते रहे। उनके दरवाजे हर विद्याप्रेमी, छात्र, साहित्यकर्मी, बुद्धिजीवी, इतिहासकार, साहित्यकार और शोधार्थी के लिए चौबीसों घंटे खुले रहते। दर्जनों शोधार्थियों ने इस संग्राहलय-पुस्तकालय का फायदा उठाया।


पुराना दरबार ट्रस्ट के पास 250 विविध पांजलिपियों और लगभग 2500 दुर्लभ लूज पेपरों का संग्रह और अन्य ऐतिहासिक महल की वस्तुएं सुरक्षित है। पराना दरबार स्र की बौद्धिक संपदा केन्द्र की सदियों पुरानी परंपरा जारी है। इन्हीं दुर्लभ ग्रंथों एवं पाइलिपियों के संरक्षण के सिलसिले में राष्ट्रीय पाडुलिपि मिशन और पुराना दरबार ट्रस्ट साथ-साथ खड़े हुए।


2003 में स्थापित राष्ट्रीय पांडुलिपिमिशन, भारत सरकार द्वारा पुराना दरबार ट्रस्ट को 2019 में अपना क्षेत्रीय पांडलिपिसंसाधन केन्द्र घोषित किया। इसी संसाधन केन्द्र के अन्तर्गत पुराना दरबार ट्रस्ट ने उत्तराखंड में याता बिखरीदुर्लभपांडुलिपियों की खोज और उनके वैज्ञानिक संरक्षण हेतकार्यशरू किया है। सूचना प्रौद्योगिकी और ज्ञान विज्ञान के इस दौर में पांडुलिपियों का महत्व और प्रासंगिकता बढ़ गई है। प्रत्येक देश अपने मौलिक ज्ञान और प्राचीन विज्ञान को सहेजना चाहता है ताकि उस पर नये शोध किये जाएं जिससे समाज को वैचारिक और प्रयोगिक रूप से उनमें लिखी जानकारियां कालाभ मिल सके। अनादिकाल से उत्तराखंड में शिक्षा-दीक्षा और लेखन की पंरपरा रही है, जो वेदों से शुरू हुई। वेद बद्रीनाथ में लिखे गये। आदिगुरु शंकराचार्य की तपस्थली, कर्मभूमि एवं ज्ञानार्जन का क्षेत्र भी यहीं रहा है। यहां ज्ञान-विज्ञान एवं सामाजिक क्षेत्रों की पांडुलिपियां बहुतायत में मिली हैं। यहां के शासकों को चंद, कत्यूरी व पंवार वंश से संबधी हस्तलिखित गंथ भी मिले हैं, जिसमें महाराजा फतेहाशाह का फतेहप्रकाश', महाराजा सुर्दान शाह का सभासार' आदिटिहरी शासनकाल में 1835-36 के दौरान लिखे गये। कवियों में हंसपुरी के चंददास ने 'रामविनोद' और 'कृष्ण विनोद'जैसीरचनाएं और भषण ने 'अलंकार प्रकाश'जैसी रचनाएं यहीं की। रतनकवि द्वारा रचित फतेह प्रकाश, गुरु गोविंद सिंह द्वारा लिखित विचित्र नाटक और ज्योतिष एंवतंत्र विद्या के महारथी पंडित महिधर डंगवालके हस्तलिखित ग्रंथ भी पुराना दरबार ट्रस्ट के निजी संग्रह में हैं।


इस क्रम में मई 2019 में पराना दरबार टस्ट और पांडलिपि मिशन ने अपने पहले पड़ावपर देहरादून में उत्तराखंड की चारधाम विषयक पाइलिपिसंपदा'कार्यशालाकी थी। टकी चारधाम विषयकपाटलिपिसंपदा कार्यशालाकी थी। जिसमें बहुत सी मौलिक जानकारियों के साथ वक्ताओं ने अपने सारगर्मित शोध पत्र एवं पांडुलिपियां प्रस्तुत की थीं। लेकिन पाडुलिपि संरक्षण की दिशा में जमीनी कार्य की शुरुआत हेतु इस कार्यशाला से हुई।


इस मौके पर श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. यू एस रावत ने पांडुलिपि संरक्षण के वैज्ञानिक संरक्षण की जोरदार वकालत करते हए पुराने समय में प्रयोग होने वाले पांडुलिपि संरक्षण के जैविक तरीकों पर भी प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता डा. योगबंर सिंह बाल ने पांडुलिपि मिशन, पुराना दरबार ट्रस्ट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, पंवार वंश के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कैप्टेन शूरवीर सिंह पंवार के संग्रह में मौजूद साहित्य, कविताओं, पुस्तकों, ग्रंथ, ज्योतिष, आयुर्वेद, रियासत कालिन अभिलेखों, टिहरी रियासत के महत्वपूर्ण फैसलों, सामाजिक सरोकारों से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों, चित्रकार मौलाराम की कृतियों- गढ़वाली पेंटिग्स, संग्रहालय में मौजदप्राचीन चैत एवं मणकके चित्रों का संग्रह, टिहरी रियासत में मौजूदराजस्थान, कांगड़ा, गढ़वाल की कलाकृतियों के संग्रह, कलाकार अवतार सिंह पंवार की गढ़वाली जन-जीवन की कृतियों और उनके योगदान का जिक्र करते हुए हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बलि की 1937-44 तक कविताओं की पांडुलिपियों, अवतार सिंह पंवार की 1945-52 की कलाकृतियों और नरेन्द्र सिंह भंडारी की 1935-38 की पांइलिपियों का प्रदर्शन भी किया। उन्होंने बताया कि बैरिस्टर मुकंदीलाल ने सालों मौलाराम की गरिम्सका अध्ययन कर उनका गढ़वाल पॅटिम' के नामसेप्रकाशनकर दुनिया में प्रसिद्धि दिलाई। इसका विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया। आज मौलाराम की कृतियां गढ़वाली पेंटिम' के नाम से ही प्रसिद्ध हैंकार्यशाला में मोलारामतोमर के वशंज डा. तोमर ने इस महान कलाकार की प्राचीन कतियों का प्रदर्शन भी किया।


राज्य अभिलेखागार के पूर्व निदेशक डा. लालता प्रसाद द्वारा उत्तराखंड में 2003 में स्थापित राज्य अभिलेखागार का इतिहास, उसमें मौजूद हजारों पाइलिपियों की विस्तृत जानकारी, यहा मौजूद राज्य भर के महत्वपूर्ण तहसिक व्याक्तगत दस्तावजा व पांडुलिपियों के संग्रह, राज्य के 30 साल पुराने प्रशासनिक और ऐतिहासिक महत्व के संरक्षित दस्तावेजों, 1816 से संरक्षित ब्रिटिश कालीन दस्तावेज, समाचार पत्र, पत्रिकाओं, 1849से अभी तक के गजेटियर, आमलोगों द्वारा दान दिये दुर्लभ दस्तावेजों आदि के संग्रह 1849 स अभातक के गजाटयर, आमर की कहानी और उनकी सॉट कापियों, हार्डकापियों, और माइक्रोफिल्मस के रूप में संरक्षित करने की वैज्ञानिक प्रकिया के बारे में विस्तार से बताया गया। साथ हीचिंता प्रकट की गई कि इतनी मेहनत सेतैयार किये महत्वपूर्णसंग्रहालयकाकोई उपयोग नहीं हो रहा है।


राष्ट्रीय पांडुलिपिमिशन के संरक्षण विंग की निदेशक डा. कृति श्रीवास्तव के नेतृत्व में पांच सदस्यीय टीम ने 30 प्रशिक्षणार्थियों से वैज्ञानिक संरक्षण के एक एक पहलू पर प्रयोग करवाकर संरक्षण कार्य करवाया गया। पालिपियों के ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व, उनके अनुरक्षण-संरक्षण की मिशन की प्राथमिकता, मिशन की स्थापना के इतिहास और महत्व पर डा. कृति ने कहा कि यह एक जटिल प्रक्रिया है जो आम आदमी ही नहीं बुद्धिजीवियों की समझ से भी परे का विषय है। हमें बहत मश्किल होती है. लोगों को यह समझाने में कि यह कार्य क्यों महत्वपूर्ण है मिशन की पहली प्राथमिकता हर तरह की पांडुलिपियों को एकत्र करना, सूचीबद्ध करना और उनका वैज्ञानिक उपचार करना है। देश भर में एकत्र पांडुलिपियां भारत सरकार के कैटालॉग में सूचीबद्ध होंगी पर उनपर स्वामित्व दानदाताकाही होगा।वैज्ञानिक किटकाप्रयोगकरतेहए स्थानीय 30 प्रशिक्षणार्थियों ने कुल 600 से ज्यादा पांडुलिपियों को संरक्षित करने का कार्य इसदौरान किया।पडिलिपिसंरक्षण काय का अपनी आंखों के सामने होते देखना वाकई एक सुखद व रोमांचक पहाड़ी यात्रा सरीखा ही था।


कार्यशाला में पुराना दरबार ट्रस्ट द्वारा प्रदर्शित सैकड़ों दर्लभदस्तावेजों के बीच 29 फीट लंबीलगभग 150 साल पुरानी कुंवर विचित्र शाह की जन्मपत्रीकासार्वजनिक प्रदर्शन खास आकर्षण का केंद्र थी। रुद्रप्रयाग जनपद केसतेराखाल और शिवपुरी गांव के बवाल परिवारों द्वारा प्रदर्शित लगभग 2500 से ज्यादा दर्लभ पाइलिपियों का प्रदर्शन देखकर पाइलिपि मिशन की टीम हैरान थी। यह पांडुलिपियो लगभग 300-400 सालपुराना थाइनके बारे में बर्तवाल बंधुओं द्वारा बताया गया कि यह ज्योतिष शास्त्र, इतिहास, आयुर्वेद इनके गढ़वाल के राजस्व अभिलेखों, सैन्य मामलों. तंत्र-मंत्र. कर्मकांड आदि से संवधी हैं।