||एक जीवित नदी की मरने पर कहानी||
उतराखण्ड पहाड़ी राज्य का अपने पहाड़ में सबसे बड़ा शहर है अल्मोड़ा। मौजूदा समय में इस पहाड़ी नगर की जनसंख्या लाख से भी ऊपर चली गई है। इसी शहर की प्यास बुझाती है कोसी नदी। मगर वर्तमान के हालात कोसी नदी के बदस्तूर है। बताया गया कि किसी जमाने में कोसी नदी अपने मूल से लगभग 200 किमी से भी आगे तक बहती थी। सो हाल ही में कोसी नदी की लम्बाई लगभग 50 किमी से कम तक ही रह गई है। आगे यह नदी नालो के रूप में बहती है। जिस तरह से कोसी का पानी लगातार सूखता जा रहा है, वह भविष्य में भयावह हो सकता है।
इधर वैज्ञानिक भी मानते हैं कि बिना लोक सहभागिता के कोसी का पुनर्जीवन आसान नहीं है। क्योंकि रिचार्ज करने वाले प्राकृतिक स्रोत भी सूखने के कगार पर पंहुच गये हैं। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण और विकास संस्थान की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार बताया गया कि कोसी के जलागम क्षेत्र में 1200 प्राकृतिक जल स्रोत हैं जो कोसी नदी के पानी को रिचार्ज करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। किन्तु इन प्राकृतिक जलस्रोतो पर भी ग्लोबलवार्मिंग खतरा मंडराने लग गया है। अल्मोड़ा में कोसी नदी का जलस्तर इतना कम हो गया है कि नदी सूखने के कगार पर पंहुच गई है। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने कोसी की स्थिति को लेकर जो आंकड़े प्रस्तुत किये हैं वे काफी डरवावने हैं। ऐसे में कोसी नदी को पुनर्जिवित करने के अभियान का महत्व और बढ़ जाता है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में भी पाया कि कोसी नदी में मिलने वाली 14 प्राकृतिक जल धाराओं की स्थिति ठीक नहीं हैं। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक किरकिट कुमार के अनुसार जो 1200 प्राकृतिक जल स्रोत कोसी की अविरलता को बढाते थे वह रखरखाव के अभाव में उपेक्षा के शिकार हुए हैं। अर्थात अब ये नौले जल संवर्धन में अपनी भूमिका निभाने में असमर्थ हो चुके हैं। जबकि एक बार फिर स्थानीय लोगो की आश जगी है, कि कोसी पुनः अपने रूप में बहेगी। चूंकि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कोसी के पुनर्जीवन के लिए कमर कस दी है। इस तरह से लोगो में विश्वास जगता दिखाई दे रहा है कि सरकार और लोग मिलकर कोसी नदी को एक पानी से भरी जीवनदायिनी नदी बना देंगे।
कोसी बचाओं के लिए लोक आहवान
उल्लेखनीय हो कि जीवनदायिनी कोसी नदी के अस्तित्व को बचाने और इसे पुनः सदानीरा बनाने के लिए एक बार फिर से जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने मुहिम आरम्भ कर दी गई है। संस्थान के कोसी बचाओं कार्यक्रम में जिला प्रशासन अल्मोड़ा व सिंचाई विभाग के आला वैज्ञानिकों और आस पास के गावों के जनप्रतिनिधियों ने भी अभिायान का हिस्सा बनने के लिए ठान ली है।
गौरतलब हो कि बदलते परिवेश में अधिकाशं नदियों का पानी का स्तर दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है जो चिंतनीय है। स्थानीय लोगो का मानना है कि बदलता पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, जंगलों में आग सहित जलधाराओं को सूखने के कारण हो सकते हैं। जिससे नदियों का जल स्तर घटता जा रहा है। बता दें कि कोसी नदी के बहाव क्षेत्र में 350 गावं और 190 सब सेक्टर जुड़े हैं। साथ ही कोसी नदी में 25 छोटी छोटी नदियां भी मिलती है। जीबी पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान के निदेशक किरीट कुमार का मानना है कि कोसी नदी के पुनर्जीवीकरण के लिए नदी के उदगम क्षेत्र पिनाकेश्वर से जागरुकता कार्यक्रमों की शुरूआत कर इसे एक मिशन के रूप में चलाना होगा।
कोसी नदी के किनारे रोपे पौधे
लोगों ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री के साथ शपथ ली है कि वे नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करेंगे। अभियान की शुरूआत में ही कुछ लोगो ने कोसी नदी के किनारे स्वच्छता कार्यक्रम भी चलाया है। और वन विभाग के साथ मिलकर वृहद पौधा रोपण का कार्य भी किया। दूसरी ओर कार्यक्रम के दौरान सिंचाई विभाग कोसी नदी के संरक्षण के लिए छः स्थानों पर जलाशलों का निर्माण करेगा। जलाशयों के निर्माण के लिए सर्वेक्षण कर डीपीआर तैयार की जा रही है। जबकि ल्वेशाल, पच्चीसी, चनौदा, ग्वालाकोट, कोसी एवं क्वारब के अतिरिक्त काकड़ीघाट, भुजान तथा छड़ा में भी जलाशयों का निर्माण पूर्व में ही प्रस्तावित है। इस तरह से इन स्थानों पर झील व जलाशय बनने से भूमिगत जल भंडार में वृद्धि होगी, साथ ही साथ जल संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
अभियान एक
कोसी बचाओं अभियान के प्रथम चरण की शुरुआत डीनापानी के समीप गधोली गांव से की गई। गधोली गांव में पेड़ लगाने के लिए दस गड्ढे खोदे गए, वहीं बरसाती पानी रिचार्ज करने को पांच और चाल-खाल भी बनाई गईं। सनद रहे कि यह मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत का ड्रीम प्रोजेक्ट है। योजना के तहत गधोली गांव में आठ सौ चाल-खाल बनेंगी। वहीं दो हेक्टयर क्षेत्र में चैड़ी पत्ती के पौधों का रोपण किया जाएगा। इसके लिए सात सौ गड्ढे खोदे जाने का लक्ष्य है। कोसी कुमाऊं क्षेत्र की प्रमुख नदी है। कौसानी के निकट धारपानी धार पिनाथ नामक स्थान से इसका उद्गम है। इस नदी की 21 सहायक नदियां हैं और 97 जलधाराएं हैं। वर्तमान में कोसी नदी के जलागम क्षेत्र की 49 सहायक नदियां लगभग सूख चुकी हैं।
एसएसजे परिसर एनआरडीएमएस के निदेशक प्रो. जेएस रावत बताते हैं कि 25 वर्ष के शोध के बाद इन रिचार्ज जोन और नालों को सक्रिय करने में ग्रामीणों की सहभागिता जरूरी है। कोसी कैचमेंट एरिया को 14 रिचार्ज जोन में बांटा गया है। यह पहली गैर हिमानी नदी होगी जिसके पुनर्जीवीकरण के लिए कार्य किया जा रहा है।
कोसी एक परिचय, अभियान से जुड़े कई गांवं
कोसी पुनर्जीवीकरण अभियान से गधोली गांव के अलावा पिलखा, घनेली, उडियारी, घुरसों, कुटगोली, छानी, जासौड़ा आदि गांवों के लोगों भी अभियान से जुड़ चुके हैं। कोसी कौसानी के निकट धारापानी पिनाथ धार से निकल कर दक्षिण दिशा की ओर बहती है। सोमेश्वर तथा अल्मोड़ा नगरों से बहती हुई यह ख्वारब पहुँचती है, जहाँ सुयाल नदी इसमें मिल जाती है। इस तरह से कोसी खैरना, गरमपानी, तथा कैंची इत्यादि क्षेत्रों से होती हुई आगे बढ़ती है। सल्ट पट्टी पहुँचने के बाद मोहान तक यह उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती है, जहाँ से यह एक तीखा मोड़ लेकर दक्षिण-पूर्व की ओर बहने लगती है। ढिकुली से गुजरने के बाद रामनगर पंहुचकर यह मैदानों में उतरती है। रामनगर से 70 मील का सफर तय करने के बाद सुल्तानपुर में यह उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है। यह रामपुर नगर के बायीं ओर से गुजरती है और चमरौल के पास रामगंगा में मिल जाती है।
यद्यपि कोसी नदी उत्तर भारत की महत्वपूर्ण व प्रमुख नदियों में से एक है, परन्तु पिछले कुछ ही दसकों के दौरान विलुप्तता की ओर जा रही है। लगभग 30-40 वर्ष पूर्व कोसी नदी की लंबाई 225 किलोमीटर तक थी, दुर्भाग्यवश 2017 में सिमटकर लगभग 41 किमी ही बताई जा रही है। पहले इसकी लघु सरिताओं (गधेरों) की संख्या 1820 थी, जो 2017 में सिमटकर 118 तक रह गयीं हैं। इन लघु सरिताओं के दम तोड़े जाने के कारण ही कोसी का बहाव 41 किमी पर ही सिमट चुका है।