एक पहाड़ी बेटी का संघर्षभरा सफरनामा

||एक पहाड़ी बेटी का संघर्षभरा सफरनामा||


यदि वह पुरूष के रूप में पैदा होती तो शायद उसे स्कूल जाने के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। उसे अध्ययन के दौरान ही तीन बार अपने परिजनो के साथ संघर्ष करना पड़ा। यह पड़ाव उसके पांचवी, दसवीं व बारहवी उर्Ÿाीण के दौरान आया है। यही नहीं वह होश संभालते ही समाज में फैली असमानता के लिए लड़ रही है, और उसकी यह लड़ाई आज भी जारी है। इस संघर्षनामा को उŸारकाशी के लोग ''स्वराज विद्वान'' के नाम से जानते है। अर्थात उनके संघर्षो को कई बार राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बनाया गया है। यही वजह है कि स्वराज को उत्तराखण्ड राज्य को सर्वोच्च सम्मान तीलू रौतेली से लेकर राष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित हो चुकी है।


ताज्जुब तो यही है कि जब एक शिक्षक के घर में एक ''बेटी'' पढने के लिए संघर्षरत रही हो तो अन्य सामान्य परिवारो की बात करनी बेईमानी ही होगी। लेकिन इस तरह की मानसिकता को धŸाा बताते हुए उŸारकाशी जनपद के अन्तर्गत मालना गांव की कुमारी स्वराज विद्वान ने नये कीर्तिमान हासिल किये है। जिसकी अब क्षेत्र में लोग मिसाल देते है। राज्य स्त्री शक्ति तीलू रौतेली सम्मान, राष्ट्रीय युवा पुरूस्कार जैसे उत्कृष्ट सम्मान पा चुकि कु॰ स्वराज अपने भण्डसरस्यूं पट्टी में क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत सदस्य पद पर भी विराजमान रही और यहीें से अपनी राजनीतिक कैरियर की शुरूआत करते हुए वे वर्तमान में एक राजनीतिक कार्यकर्ता के मार्फत सामाजिक कार्यो में बढ-चढकर हिस्सा लेती है। वे मानती है कि राजनीति का तात्पर्य दलगत से नहीं होना चाहिए बल्कि एक राजनीतिक कार्यकर्ता के हैसियत से जनहित के कार्यो का सफल संचालन ही शुद्ध राजनैतिक कार्य ही होता है।


उल्लेखनीय हो कि स्वराज के अध्यापक पिता घर से दूर सरकारी सेवा कर रहे थे। मां घरेलू कामकाजी महिला है तथा पीछे तीन और छोटे-छोटे भाई हों तो ऐसे में शिक्षा अर्जन करना एक ''पहाड़ी बेटी'' के लिए टेडी खीर ही नहीं वरन् बहुत दूरूह रास्ता भी था। क्योंकि अमूमन पहाड़ में बड़ी बेटी का होना ही जिम्मेदारियों का पहाड़ ढोने के बराबर होता है। इस तरह बेटी ना पढाने की संर्कीणता पर स्वराज ने अपने घर परिवार को ही नहीं क्षेत्र के लोगो को सोचने के लिए विवश किया है। कारण इसके क्षेत्र में बालिका शिक्षा को बढावा मिला है। जबकि उनके गांव मालना में तत्काल 80 फिसदी लोग सरकारी व गैर सरकारी सेवा में गांव से पलायन कर चुके थे। वे लोग स्थानीय बाजार ब्रहमखाल में रहते हुए भी बलिका शिक्षा का महत्व नहीं समझते थे। अलबŸाा स्वराज के सामने तब एक विकट समस्या आन पड़ी जब वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने जिला मुख्यालय उŸारकाशी जाना चाहती थी। उसके सामने कई सवाल खड़े किये गये वह किसके साथ रहेगी, अकेली कैसी रहेगी, जवान बेटी है बगैरह आदि। लेकिन उसके दृढ संकल्प ने उसका साथ दिया और उनके नजदिकी रिश्तेदार जो कि जिला विद्यालय निरिक्षक कार्यालय में लिपिक पद पर कार्यरत था ने स्वराज को साथ रखने का वादा उनके माता-पिता से किया। एक वर्ष के पश्चात स्वराज जब एक दिन माता ब्रहमज्योती के आश्रम गयी तो माता के आर्शीवाद स्वरूप उन्हे आश्रम में रहने की इजाजत दी गयी। बस यहीं से स्वराज ने अपना अध्ययन का कार्य सम्पन्न किया है।


प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने तक स्वराज ने अपने विद्यालय का नाम रोशन किया और आज भी उŸारकाशी के विद्यालयों में स्वराज की मिसाल दी जाती है। वह हमेशा भाषण प्रतियोगिताओं में प्रथम ही रही है। यहीं से राजनीति का रूझान बढता गया। फलस्वरूप इसके जब स्वराज कक्षा 10 की छात्रा थी तो उन्हे मिलने तत्काल कांग्रेस की वरिष्ठ कार्यकर्ती बीनू आर्य समय-समय पर जाती ही रहती थी। बीनू आर्य स्वराज को भविष्य की कांग्रेस की महत्वपूर्ण कार्यकर्ता देखती थी। सो हुआ भी ऐसा ही। कुछ वर्षो तक स्वराज ने कांग्रेस का दामन थामे रखा। लेकिन राजनैतिक थपेड़ों ने स्वराज को भाजपा की तरफ धकेल दिया। वर्तमान में वह भाजपा का पल्लू पकड़े हुए जिला अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय कार्यकारणी तक का सफर देख चुकी है।
 
काबिलेगौर यह है कि एक ओर पढाई और दूसरी ओर समाज सेवा जैसे कार्यो में तारतम्य बनाय रखने के लिए स्वराज ने नेहरू युवा केन्द्र के लिए राष्ट्रीय सेवा कर्मी के रूप में भी कुछ वर्षो तक कार्य किया। इसके अलावा क्षेत्र में विधवा, विकलांग, वृद्धजन, दलित-शोषितो के मानवाधिकारो की रक्षा व महिला समानता के लिए हिम तरूण सांस्कृतिक सेवा समिति का गठन करके समाज सेवा की नई इबारत लिखी है। स्वराज के कार्यो की महŸाा है कि उन्हे सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा कई बार विभिन्न मचों से नवाजा जा चुका है। स्वराज कहती है कि समाज में आज भी असमानता है। सामाजिक समता के लिए उनका यह आन्दोलन जारी रहेगा। यही नहीं स्वराज ने उत्तराखण्ड में स्त्री विमर्श के लोक गीतो पर भी अध्ययन किया है। फलस्वरूप इसके डा॰ स्वराज विद्वान मौजूदा समय में अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार की एक्ज्यूकेटिव सदस्य है।