कुन्दन का करिश्मा नारायणी उद्यान


||कुन्दन का करिश्मा नारायणी उद्यान||


उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जनपद में स्थित पाब गाँव के समीप न कि सिर्फ ''नारायणी उद्यान'' है वरन् राज्य के औधानिक इतिहास में विशेषज्ञता की अद्भूत मिसाल कायम कर रही है।


मसूरी से लगभग 70 किमी दूरी पर स्थित बीहड़ पहाड़ी गाँव पाब में बंजर पड़ी 03 हेक्टेयर जमीन पर विषम परिस्थितियों के बीच समुद्रतल से 1170 मी॰ की ऊँचाई पर ''नारायणी उद्यान'' को 1994 कृषक कुन्दन सिंह पंवार ने स्थापित किया है। इस स्थान को श्री पंवार ने चार भागों में बाँटा है। पहला भाग समुद्रतल से 1120-1135 मी॰ की ऊँचाई पर स्थित है पर बेमौसमी आम की दशहरी, चैंसा, लंगड़ा, रामकेला, बौम्बेग्रीन, आम्रपाली, अनार व आंवला आदि प्रजाति के फलदार वृक्ष है। दूसरे भाग में खुबानी की बैबाको इटालियन, ओर्दीइटालियन, न्यू कैसल, चारमम्ज, किन्नौ की कागजी नींबू, नींबूस्थानीय, आडू की प्लौरिडा किंग, एफ॰एल॰ए॰ 1633, अखरोट की स्थानीय प्रजाति एवं पिकननट, बादाम की कैलिर्फोनिया, जैको इटालियन टूवानो इटालियन तथा नेबस्ट्रीन आदि प्रजातियाँ 1135-1155 मी॰ कर ऊँचाई पर स्थित है। तृतीय प्रक्षेंत्र समुद्रतल से 1150-1160 मी॰ की ऊँचाई पर स्थित है जहां पर कीवि की एलिसन, हैवर्ड, मौन्टी, तम्बूरी नर, एलिसननर, नाशपाती की बग्गूगोसा, मैक्सरेड बार्टलेट, रैड बार्टलेट, प्लेमिश ब्यूटी आदि प्रजातियां है जबकि चतुर्थ प्रक्षेत्र में सेब की अन्नाइजरायल, स्पर रैडचीफ, औरगन स्पर 106, 107, 111 अन्ना ग्राफट प्रजातियों की फलदार पौध समुद्रतल की 1155-1170 मी॰ की ऊँचाई पर वृहद सफलता की ओर अग्रसर है।



नारायणी उद्यान जहां स्थानीय लोगो की उद्यानीकरण के लिए प्रोत्साहन कर रहा है वहीं राज्य के लिए एक आदर्श के रूप में प्रतिस्थापित हो रहा है। यही वजह है कि उद्यान के जन्मदाता अैर विशेषज्ञ कुन्दन सिंह पंवार को राज्य सरकार ने ''उद्यान पण्डित'' से नवाजा है और वर्ष 2003 में नारायणी उद्यान को सरकार ने एक आदर्श उद्यान का दर्जा दिया है। इसके अलावा श्रीपंवार को वर्ष 2004 में पर्वत जन सम्मान भी प्राप्त हुआ है। श्री पंवार सम्मान को सलाम करते हुए कहते कि उनका विजन इतने भर से पूर्ण नहीं होता है उनका लक्ष्य है कि राज्य को आदर्श हल्टीकल्चर के रूप में विकसित करने का है जिससे लोगों की जीविका में खुशहाली हो और स्वााबलम्बी बनें। ज्ञात हो कि नारायणी उद्यान एक ऐसी जगह पर है जहां पानी का स्त्रोत कहीं दूर-दूर तक नहीं है। किन्तु वर्षा के पानी का बखूबी इस्तेमाल करते हुए उद्यान को ताजगी दी जाती है। यहां सिर्फ उद्यान ही नहंी बल्कि विभिन्न प्रजातियों की फलपौध की भी एक अच्छी खासी नर्सरी है। उद्यान में रासायनिक खादों पर प्रतिबंध है और समय-समय पर फलपौधो पर अनुसंधान भी किया जाता है। जिस कारण यहां पर वर्ष भर आम के फल के लिए एक नायाब तरीका अख्तियारउ किया गया। इन्होने एक ही वृक्ष पर खुबानी, आडू, पूलम जैसे विभिन्न फल प्रजातियों केा उगाकर अद्भूत मिसाल कायम की है। 


यमुना घाटी जो हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है और यहां की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी है। इस घाटी में मात्र एक नारायणी उद्यान है जहां पर विपरित जलवायु के फलदार वृक्षों को एक साथ विकसित किया गया है। उत्तरपूर्वी ढाल में तीन हेक्टेयर भूमी पर स्थापित इय उद्यानमं जहां एक ओर गर्म जलवायु के आम प्रजाति के वृक्ष फलत है वही दूसरी ओर ठण्डी जलवायु की सेब की विभिन्न प्रकार की प्रजातिया विकसित की है। उद्यान सरसब्ज करने के लिए वे समय-समय पर नवीन तकनीकियां प्रयोग में लाते है। जिसमें पाॅली हाउस, टपक सिंचाई, रेनवाटर हारवेस्टिंग, प्रुनिंग सिस्टम, आदि जबकि वे सेब प्रजाति के लिए विशेषकर सेन्ट्रल लीडर सिस्टम, मोडिफाइड सेन्ट्रल लीडर, स्पिडल बुश सिस्टम आदि तकनीक इस्तेमाल करते है। इसके अलावा उद्यान में रासायनिक खादों पर पूर्ण प्रतिबन्ध है जैविक खाद का पूरा-पूरा उपयोग होता है अधिकांश जैविक खाद वहीं तैयार की जाती है। उद्यान पण्डित का मानना है कि उत्तराखण्ड राज्य में किसानों के लिए उत्कृष्ट कार्य उद्यानीकरण ही है। इससे जहां लोगों को स्वरोजगार प्राप्त होगा वही पर्यावरण संरक्षक के भी उपादान प्राप्त होगे। घटते वन और पिघलते ग्लेशियर पर भी वे चितिन्त है कहा कि राज्य को प्राकृतिक संसाधनों पर व्यवसाय के बजाय आय अर्जक गतिविधियों को बढावा देने के लिए खास योजना की आवश्यकता है जबकि उत्तराखण्ड में अधिकांश वन प्रजातियां ऐसी है जिन पर नाशपाती, पूलम, आडू आदि विभिन्न प्राजातियों के फलों को विकसित किया जा सकता है जो काफी हद तक वन संरक्षण कारगर साबित होगें।


काबिल ए गौर यह है कि किवी जैसा किमती फल को इस क्षेत्र में विकसित करने का श्रेय श्री पंवार को जाता है। उन्होने इस फल को 1997 में डा॰ वाई॰ एस॰ परमार औधानिक विश्वविघालय नौणी सोलन हिमाचलद प्रदेश से लाकर रोपित किया जिसने 2002 में फल देना आरम्भ किया है। इसकी पहली बार ''किवी ग्रोवर एसोशियसन'' के वैनर तले तत्काल उद्यान मंत्री गोविन्द सिंह कुंजवाल के मुख्य अथितित्व में बाजार में उतारा गया है। श्री पंवार बताते है कि किवी फल की रासायनिक संरचनाद मंे विटामिन सी. ई. व पोटेशियम जैसे तत्वों की भरमार है यही नहीं हायपरटेंशन, डायबिटीज तथा कैंसर रोधी आदि बिमारियों हेतु किवी एक रोधक फल है। उन्होने बताया कि इस फल की बाजार में किमत 100 से 150 रू. प्रतिकिलो है।
 प्रगतिशील कृषक श्री कुन्दन सिंह पंवार का यह नारायणी उद्यान विशेषज्ञों को भी चुनौती दे रहा है क्योंकि अलग-अलग जलवायु मंे उगने वाले फलदार वृक्ष एक समान जलवायु मं फलित हो रहे है जो विशेषज्ञों के लिए पुनः शोध का विषय बन चुका है। 


श्री पंवार ने दयानन्द एंग्लों विद्यालय (पी. जी.) देहरादून से सन् 1980 मंे बोटनी, कैमिस्ट्री, जाॅलोजी आदि विषयों से स्नातक कर वे एक बार सरकारी सेवा में चले गये। जहां उन्होने भारत सरकार के बन्धुवा मजदूरी प्राधीकरण के माध्यम से जौनसार-बाबर क्षेत्र में बन्धुवा मजदूरी करने वाले लोगों की समस्या का समाधान किया। जबकि वे एक अच्छे कानूनविद् भी है परन्तु उन्हे यह सब रास नहीं आया और इन सब से मोहभंग होकर उनका ध्यान बागवानी बढ़ता गया यही वजह है कि सन् 1994 में नारायणी उद्यान '' स्थापित करके एक किर्तिमान हासिल किया है जो राज्य में उद्यान के क्षेत्र में आर्दश कि रूप में विकसित तो हो रहा है परन्तु उद्यान विशेषज्ञों के लिए शोध का विशय बन चुका है। श्री पंवार ने भविष्य की योजना के बारे में बताया कि वे ''नारायणी उद्यान' की और विस्तार देंगे ताकि शोधर्थियों के लिए सरल भाषा और प्रयोगात्मक रूप मंे सभी विषय उद्यान से संबधित उपलब्ध हो सके। कुल मिलाकर जहां उद्यान के क्षेत्र मंे एक अनुसंधान के रूप मं यह उद्यान विकसित हो रहा है वही यह उद्यान ''चकबंदी'' के लिए भी प्रेरणास्रोत है। सचमुच पुरानी फिल्म उपकार का यह गीत ''मेेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरा मोती'' इस उद्यान ने चरीतार्थ किया है।