गंगा : संस्कृतिवाहिनी

गंगा : संस्कृतिवाहिनी


देवभूमि उत्तराखण्ड में गंगा के साथ अन्य जलधाराओं ने अपने अमृतजल से इस धरती को सिंचित कर हम सबको धन्य किया है। वास्तव में गंगा के पार्श्व में ही हमारी समृद्ध संस्कृति पल्लवित एवं पुष्पित हुई है। उत्तराखण्ड के पर्वत शिखरों की भुजाओं में गंगा की जलधारा रूपी नदियों की अठखेलियाँ कदम-कदम पर दृष्टिगोचर होती हैं। वे उछलती-कूदती नीचे घाटियों की ओर प्रवाहित होती हैं, स्थानीय समाज के भाव-विचार उनके आचरण के रूप में स्थानीय सांस्कृतिक परम्पराओं का रूप धारण करते हैं। गंगा की इन्हीं नन्हीं धाराओं से जुड़े हैं हमारे कई मिथक-किस्से-कहानियाँ। जिन्होंने हमारे समाज को जनकल्याण रूपी आकार भी दिया है। गंगा ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को एक विस्तृत आयाम देकर हमें सह अस्तित्व का पाठ समझाया। उत्तराखण्ड में नदियों के तट पर अनेक प्रसिद्ध तीर्थ स्थित हैं। गंगा के तट पर हरिद्वार तीर्थ की कीर्ति विश्व प्रसिद्ध है। यहां वर्ष भर देश-विदेश के करोड़ों यात्रियों एवं पर्यटकों का आगमन होता रहता है।


इसीलिए कहा गया 'गंगे तव दर्शनात मुक्ति'। दर्शन से ही मुक्ति का द्वार खोलने वाली सदानीरा गंगा तुझे शत्-शत् प्रणाम है। विश्व के प्राचीनतम् ज्ञान ग्रन्थ ऋग्वेद में गंगा सहित अनेक नदियों से राष्ट्र कल्याण के लिए प्रार्थना की गई है। वास्तव में गंगा भारत की आस्था और संस्कृति की पहचान है। गंगा राष्ट्र जीवन का स्पंदन है। गंगा भारत का काव्य है, अध्यात्म है, अर्घ्य है, आचमन, पूजन, वंदन है। गंगा का अविरल प्रवाह देश, काल, सभ्यता, संस्कृति, आस्था और अर्थ सहित समस्त दृष्टियों का आह्वान है। इसी कारण वैदिक काल से लेकर रामायण काल और तदन्तर महाभारत काल तक गंगा की अनन्त महिमा है।


उत्तराखण्ड हिमालय से निकलने वाली हर नदी गंगा स्वरूप ही है। वास्तव में ये नदियां गंगा की ही बहिनें हैं। ये ही गंगा को पल्लवित एवं पुष्पित करने में योगदान देती हैं। इन्हें भी उतना ही सत्कार, मान-सम्मान इस देवभूमि में मिलता है। गंगा की सात धाराओं में से एक प्रमुख धारा गोमुख से निकलकर राजा भगीरथ के पीछे-पीछे राजा सगर के पुरखों को मोक्ष प्रदान करने आगे बढ़ी थी, इसलिए गंगा को मोक्षदायिनी के नाम से जाना जाने लगा। आज इस नदी में सुखी, समृद्ध जीवन एवं मोक्ष प्राप्त करने की कामना के साथ असंख्य तीर्थयात्री स्नान तथा आचमन करने आते हैं।



स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'