||गंगा स्वच्छता का संकल्प||
मानव कल्याण के लिए अवतरित गंगा आज उसी मानव की संवेदनहीनता के कारण निरन्तर प्रदूषित हो रही हैमानवीय स्वार्थ एवं विकास की अनियोजित दौड़ में जीवनदायिनी गंगा उसी मानव से अपनी स्वच्छता के लिए याचना करती प्रतीत हो रही है। नदियों के जल को निर्मल बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से निरन्तर प्रयास की आवश्यकता है। बढ़ती आबादी के दबाव से उपजे अपशिष्ट पदार्थों ने आज इन नदियों में जहर घोल दिया है।
यह हमारे समय की सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम रोज नहाते समय भारत की नदियों का आह्वान तो करते हैं, लेकिन खुद नदियों को मैला करने पर तुले हैंतन और मन की निर्मलता देती हैं हमें ये नदियाअत: हमारा दायित्व बनता है कि हम नदी-घाटों को निर्मल बनाये रखें। ऐसा चिन्तन देश के हर नागरिक को करना होगागंगा और हिमालय की पवित्रता को बनाये रखना हमारा परम कर्त्तव्य है। गंगा की पवित्रता गोमुख से लेकर गंगा सागर तक बनी रहे, इसके लिए हम सबको संकल्प लेना है।
सर्वपाप विनाशिनी
चान्द्रायाणसहस्रं तु यश्चरेत्कायशोधनम्। पिबेद्यश्चापि
पिबेद्यश्चापि गङ्गाम्भः समौ स्यातां न वा समौ।
अपने पापों को शुद्धि के लिए एक हजार चन्द्रायण व्रत किये जाएं तो वे गंगाजल पान के पुण्य के समान नहीं होतेअर्थात् पवित्र गंगाजल का सेवन करने से मिलने वाला पुण्य एक हजार चन्द्रायण व्रत करने से भी अधिक होता है।
सभी लोकों में मोक्षदायिनी
गङ्गा हि सर्वभूतानांमिहामुत्र फलप्रदा।
भावानुरूपतो विष्णो सदा सर्वजगद्धिता।
यज्ञदानतपोयोग जपाः सनियमायमाः।
गङ्गा सेवासहस्रांशं लभन्ते कलौ हरे।।
गंगा समस्त प्राणियों को इस लोक में और परलोक में पुण्यफल प्रदान करने वाली है। यह सदा ही समस्त जगत का हित करने वाली है। यज्ञ, दान, तप, योग, जप, नियम और यम- ये सब गंगा के सेवन से सहस्र अंश के बराबर इस कलियुग में होता है।
लोक मंगलकारी : गंगा
सर्वतीर्थमयी गंगा सर्वदेवोमयी हरिः।
माँ गंगा में सभी तीर्थ और भगवान नारायण में सभी देवता समाहित हैं। गंगा में पुण्य स्नान के बाद अन्य नदियों में स्नान की आवश्यकता नहीं होती। महाभारत में इसी बात की पुष्टि करते हुए कहा गया है, न गङ्गासदृशं तीर्थं न देवः केशवात परः।। सम्पूर्ण पृथ्वी पर गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और केशव अर्थात भगवान श्री कष्ण से परे कोई भी देवता नहीं है। माँ गंगा भगवान विष्णु के श्रीचरणों से निःसृत होती है और ब्रह्मा के कमण्डल में समाहित हो जाती है, भगवान शंकर की जटाओं में विलीन होती है, भगीरथ के अथक प्रयासों से पृथ्वीलोक में विचरण करती है। ऐसी पतित पावनी गंगा का सेवन क्षणभर के लिए भी प्राप्त हो जाए तो मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता है।
स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'