ग्लोबल वार्मिंग, तपती धरती, बदलता मौसम
ग्लोबल वार्मिग' का अर्थ है- पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले अपत्याति बदलाव। यानि धरती के वातावरण में तापमान के कारण लगातार हो रहा बदलाव ही सबको दुनिया भर में डराने चौकाने चिंतित करने वाला ग्लोबल वार्मिग' है। पृथ्वी का वायुमंडल एक कांच को खिड़की की तरह है, जो सूर्य से आने वाले अधिकांा विकिरण को पृथ्वों में प्रवेश तो करने देता है, लेकिन पथ्वी द्वारा वापस भेजे जाने वाले लंबे अवरक्त विकिरण यानि इन्फारैड विकीरण को गोनहाउस गैसों द्वारा अबोषित कर अंतरिक्ष में जाने से रोकता है। वायुमंडल पुनः इसके कुछ भाग को वापस पृथ्वी पर भेज देता है। विकिरण के वापस होने का यह प्रवाह ग्रोन हाउस पवाह कहलाता है जो कि पृथ्वी को गर्म रखता है। गोन हाउस गैसे पृथ्वी के ऊपर एक आवरण की तरह काम करती है। हमारी पृथ्वी का तापमान पतिवर्ष लगभग 15 डिगी रहता है। यदि ग्रीन हाउस गैसें न हो तो पृथ्वी का तापमान गिरकर लगभग -20डियो हो जाएगा। धरती को गर्म रखने के लिए ग्रीन हाउस गैसों की मौजूदगी जरूरी है। लेकिन यदि इन गोन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो ये अल्ट्रावायलेट (पराबैंगनी) किरणों को अत्यधिक मात्रा में अवोषित कर लेंगीइससे 'ग्रीन हाउस गैसों का प्रवाह' बद जाएगा और परिणामस्वरूप धीरे-धीरे धरती के तापमान में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि को इस स्थिति को ही ग्लोबल वार्मिग कहा जाता है।
ग्रीन हाउस गैसें
प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-लोरोकार्बन, वाष्प, ओजोन आदि हैं। ग्रीन हाउस प्रभाव के अस्तित्व के बारे में वर्ष 1824 में जोसेफ फुरियर ने बताया था। उनके द्वारा कही बात को वर्ष 1827 और 1838 में वैज्ञानिक क्लाउड पाउलेटने और मजबूत किया।
ग्लोबल वार्मिग के मुख्य कारण
ग्लोबल वार्मिग के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसे ही हैं। ग्रीन हाउस गैस बाहर से मिल रही उष्मा को अपने अंदर सोख लेती है। ग्रीन हाउस गैसों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण गैस कार्बन डाइअक्साइड है, जिसका हम जीवित प्राणी सांस के साथ उत्सर्जन करते हैं। कार्बन डाई अक्साइड पृथ्वी के वातावरण में प्रवेशकर यहां का तापमान बढ़ा देती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदिइन गैसों का उत्सर्जन इसी तरह चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में हमारी पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। ग्लोबल वार्मिग का एक कारण ओजोन गैस की कमी भी है। वायुमंडल में क्लोरोलोरोकार्बन गैस के मक्त होने से ओजोन परत का दिन-प्रतिदिन छ्य हो रहा है। यह ग्लोबल वार्मिग' का एक प्रमुख मानव जनित कारण है।
तेज गति से होता औद्योगिकीकरण भी तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण है। बीसवीं सदी के अंत तक अमेरिकी और यरोपीय देश औद्योगिक रूप से अग्रणी हो चुके थे। इनमें प्रमुख है- संयुक्त राज्य अमेरिका सोवियत संघ इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी आदि। एशियाई देशों में चीन, जापान, भारत आदि भी इस दौड़ में शामिल हैं। सभी विकसित और विकासाील देशों की पर्यावरण प्रदूषित करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सर्वाधिक मात्रा में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। तोव औद्योगिकीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है और प्राकृतिक कार्बन चक्र भी प्रभावित हो रहा है। कोयले के ईधन के तौर पर घरेलू तथा औद्योगिक उपयोग से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड गैस वायुमंडल में एकत्रित हो रही है।
उद्योगों से नाइट्रोजन आक्साइड तथा सल्फर डाइअक्साइड गैस वायुमंडल में उत्सर्जित होती हैं। अत्यधिक जनसंख्या तथा वाहनों की अधिकता के कारण वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि होरही है जो ग्लोबल वार्मिग के महत्वपूर्ण कारणों में एक है। महानगरों के कोर क्षेत्र में उसके बाह्य भाग की अपेक्षा तापमान 2 से 3 डिग्री अधिक पाया जाता है। मुंबई, दिल्ली और कोलकता जैसे महानगरों में बढ़ते तापमान का मुख्य कारण शहर की क्षमता से अधिक वाहनों का होना है। मुंबई और दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 5 लाख वाहन सड़कों पर दौड़ते हैं। वातावरण में छोड़ी जाने वाली कार्बन मोनोअक्साइड में 50 पतिशत योगदान इन्हीं वाहनों का होता है। यही स्थिति न्यूयार्क, लंदन, टोकियो, मैक्सिको सिटी आदि नगरों की भी है। कछदेश ऐसे भी हैं जिनकी अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों पर अधारित है। इन देशों काघरेल उत्पाद और उनसे प्राप्त होने वाली आय में प्राकृतिक संसाधनों की अहम भूमिका है।
है। दक्षिणी एशिया में भारत और चीन दो ऐसे देश है जो अपनी ऊर्जा की आवश्यकता का ज्यादातर हिस्सा कोयला और लकड़ी से ही उत्पादित करते हैं। दक्षिण-पचिम एशिया के ज्यादातर देशों में (अरब, इराक, ईरान, कुवैत आदि) की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पेट्रोल जैसे खनिज तेलों पर टिकी हुई है। इनके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भी ग्लोबल वार्मिग का कारण है।
ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव
पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने लगेगी और समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से पाकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा, जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय इलाकों मे रहने वाले अधिकांश लोग बेघर हो जाएंगे। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से मीठे जल के सोत दूषित होंगे परिणामस्वरुप पीने के पानी की समस्या होगी। 3 डिग्री सेल्सियस के औसत वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि की वजह से अगले 50-100 वर्षों में समुद्र स्तर 0.2-1.5 मीटर तक बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन जलस्रोतों के वितरण को भी प्रभावित करेगा। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भारत के उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात और पश्चिम बंगाल राज्यों के तटीय क्षेत्र जलमगता के शिकार होगे। परिणामस्वरूप आस-पास के गाँवो व शहरों में 10 करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापित होगे, जबकि समुद्र में जलस्तर की वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत के लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीपों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर बताया है कि भारतीय समुद्र 2.5 मिलीमीटर वार्षिक की दर से ऊपर उठ रहा है। एक अध्ययन मेयर र जारहा है कि यदि भारतीय सीमा से सटे समुद्रों के जल-स्तर के ऊपर उठने का यही सिलसिला जारी रहा तो सन 2050 तक समुद्री जलस्तर 15 से 36 सेंटीमीटर ऊपर उठ सकता है। समदी जलस्तर में 50 सेंटीमीटर की वृद्धि होने पर अनेक इलाके डूब जाएंगे। भारत के सन्दरवन डेल्टा के करीब एक दर्जन द्वीपों पर डूबने का खतरा मँडरा रहा है।
गीनहाउस प्रभाव की वजह से मौसम चक्र में परिवर्तन हो रहा है- पहले लोग जबखेती करने के लिए फसललगाते थे तो बारिश सही समय पर होती थी और खेती भी अच्छी होती थी, लेकिन वर्तमान में जब बारिश का मौसम आता है तो उस वक्त भयंकर गर्मी होती है और जाडे के मौसम में बारिशदोनोया किसी सालबाशिबहुत कम होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण दनिया के मानसनी क्षेत्रों में वर्षा में वद्धि होगी जिससे बाद. भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएं पैदा होंगी। जल को गणवत्ता में गिरावट आएगी। ग्लोबल वार्मिग के कारण पीने के लिए स्वच्छजल, खाने के लिए ताजा भोजन और वास लेने के लिए शुद्ध हवा भी नसीब नहीं होगी।
आज ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं जिसकी वजह से धुवीय भालूओं के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। जानवरों की कई प्रजातियां विलुप्त हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग का पश-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देगे। यह अनुमान लगाया गया है कि यदि वर्तमान दर पर ही ग्रीनहाउस गैसो का बनाना जारी रहता है तो पृथ्वी का औसत तापमान 2050 तक 1.5 से 5.5 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ जाएगा। यहां तक की पृथ्वी 10,000 साल में इतनी गर्म हो जाएगी की यहा जोवन संभव नहीं होगा। ग्लेशियर से कई बारहमासी नदियां निकलती है और ग्लेशियरों के जलको अपने साथ बहाकर ले जाती हैं। यदि ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ेगी तो नदी में जल की मात्रा बढ़ जाएगी, जोकि बाढ़ का कारण बन सकती है। वर्षा होने और बादलों के बनने में तापमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः ताप में वृद्धि के कारण वर्षा चक्र भी बदल जाएगा अर्थात कहीं वर्षा पहले से कम होगी तो कहीं पहले से भी ज्यादा होने लगेगी। वर्षा की अवधि में भी बदलाव आ जाएगा। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जैवविविधता पर भी पड़ेगा। वातावरण में अचानक परिवर्तन होने से किसी भी जीव को मृत्यु हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। वास तथा हृदय सम्बन्धी बीमारियों में वृद्धि होगी। दुनिया के विकासौल देशों में दस्त, पेचिस, हैजा, क्षयरोग, पीत ज्वर तथा मियादी बुखार जैसी संक्रामक बीमारियों की बारम्बारता में वृद्धि होगी। पृथ्वी के गर्म होने से इंसानों को गर्म हवाओं का सामना करना पड़ेगा, जो बुखार और मौत तक का कारण बन सकती है। अधिक तापमान और नमी की वजह से मच्छरों के पनपने की सम्भावना बढ़ जाती है। इससे मच्छरों से जुडी बीमारियों जैसे मलेरिया, डेंगू आदिरोग बढ़ेंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तूफानों की बारम्बारता में वृद्धि होगी। पश्चिमी हिमालय में हिमनदों के पिघलने की प्रक्रिया में तेजी आई है। छोटे हिमनद पहले ही विलुप्त हो चुके हैं। कश्मीर में कोल्हाई हिमनद 20 मीटर तक पिघल चुका है। गंगोत्री हिमनद 23 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पिघल रहा हैअगर उनके पिघलने की दर लगातार यही रही तो जल्दी ही हिमालय से सभी हिमनद समाप्त हो जाएंगे जिससे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सतलज, रावी, झेलम, चिनाब, व्यास आदि नदियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इन नदियों पर बनी जलविद्युत परियोजनाएं बन्द हो जाएंगी। इसका विद्युत उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
ग्लोबल वार्मिग से कैसे बचें?
हमें ग्लोबल वार्मिग को रोकने के लिए गेट्रोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम कर हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा। हमें ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाने होगे जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल नहो।क्लोरोलोरोकार्बन के स्थान पर किसी अन्य गैसके इस्तेमाल के विकल्पकोतलाशना होगा।हमें ऐसे वाहन बनाने होंगे जिनसेकमसेकमधुआं निकलता हो। मोटर वाहन में पेट्रोलएवंडीजल के स्थान पर बायोडीजल, सौर ऊर्जा, सी.एन.जी., विद्यत और बैटरीचालितवाहनों का विकासकरना। हमें जीवाम ईधन का कमसेकम उपयोगकरना होगा ताकि ग्रीन हाउस गैसकाउरार्जननहो। जंगलों की कटाई को रोकना होगा। अधिक से अधिक पेड लगाने होंगे जिससे अधिक से अधिक मात्रा में कार्बनडाइआक्साइड अवोषित हो सके। षि में नाइट्रोजन अक्साइड उर्वरक का कम से कम उपयोग करना होगा जिससे नाइट्स आक्साइड का उत्सर्जन कम हो। इसके स्थान पर जैविक खाद के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना होगा। आर्गेनिक खाद्य पदार्थो के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। प्रदूषण से संबंधित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कानून का ईमानदारी और कठोरता से पालन करना। हमें बिजली पर भी अत्यधिक निर्भरता को कम करना होगा, क्योकि बिजली के उत्पादन में भी कार्बनडाई आवसाइड की उत्पत्ति होती है। ऊर्जा की बचत के साथ आम बल्बों की जगह कम्पैक्ट लोरोसेंट लाइट बल्ब (सीएफएल) का उपयोग करना होगा जो कार्बन डाइअक्साइड को कम करने में मदद कर सकता है। वाहन वातावरण में कार्बन डाइअक्साइड की एक बड़ी मात्रा का उत्सर्जन करते हैं। हमें साइकिल और सार्वजनिक परिवहन या अन्य पर्यावरण अनुकूल तरीकों को चुनना होगा। हमें ऊर्जा की खपत में भी कमी लानी होगी और उत्पादों के पुनर्चक्रण की प्रवृत्ति का विकास करना होगा। ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए उत्तरदायी गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाना आवयक है। प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्य प्रयोग ग्लोबल वार्मिग की समस्या का मूल कारण है। इनका उपयोग सन्तुलित मात्रा में किया जाना चाहिए अन्यथा भविष्य में कोई भी अनहोनी हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को देखते हुए समय की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि ग्रीन हाउस प्रभाव के लिये उत्तरदायी गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाई जाये जिससे वैश्विक तापवृद्धिपर प्रभावी नियंत्रण हो सके।
जागरूकता कार्यक्रम
ग्लोबल वार्मिग की समस्या से जागरूकता फैलाकर ही निपटा जा सकता है। हमें प्रति व्यक्तिकार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषणसे जितना मुक्त रखेंगे हमारी पृथ्वी उतनी ही सुंदर होगी। ग्लोबल वार्मिग के प्रति यदि हम आजन चेते तो तो पृथ्वी की तबाही लगभग तय ही है। इस चुनौती का समाधान हाथ पर हाथ धरकर नहीं किया जा सकता। ग्लोबल वार्मिग मानव द्वारा ही विकसित समस्या है, इसलिए इसके हल हेतु सभीदों को मिलकर इस समस्या के बारे में सोचना और मिलकर ही इसका हलखोजना होगा। ऐसा करके ही धरती को बचाया जा सकता है।
आक्सीजन से ही हमारी सांसें चलती है, लेकिन कहीं हमारी यह सांसें इन खतरनाक गैसों की वजह से थमन जायें, इसलिए ग्लोबल वार्मिगको रोकना जरूरी है। स्कूल, कालेज में समय-समय पर पर्यावरण से संबधित प्रतियोगिताओं और विचार गोष्ठियों के माध्यम से भावी पीढ़ी को जागरूक करना होगा। किसी स्थान की जलवायवहाँकी कषि, रोजगार, जल-जीवन, को प्रभावित करती है। इसलिये हम सभी को एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में पर्यावरण की रक्षा करके पृथ्वी को 'ग्रीन' बनाना होगा। धरती की हरियाली-खशहाली ही ग्लोबल वार्मिंग' जैसी विकराल चिंता और चुनौती का एक मात्र स्थाई हल है।