गोगा पूजा

यह उतराखण्ड में यमुना नदी के आर-पार बसे समुदाय जौनसार, रवांई और जौनपुरी भाषा के लोक गीत है। जिसे पाठको तक पंहुचाने के लिए गीत और भावार्थ सहित हिन्दी रूपान्तर किया गया है।


||गोगा पूजा||


गोगा पुजयारों बाई गोगा रें, गोगा पुजयारों .........2
छामरे की पाती बाई गोगा रे, उच्चाणें लाया बाई गोगा रे........2
आखा चुुलुआ के फूलों बाई गोगा रे, उच्चाणें लाया बाई गोगा रे ..............2
आखा चुुलुआ के फूलों बाई गोगा रे, उच्चाणें लाया बाई गोगा रे .........2
पेऊई पीगुडी बाई गोगा रे, उच्चाणें लाणें बाई गोगा रे.................2 
देवे की छामरी बाई गोगा रे, उच्चाणें लाणें बाई गोगा रे ............2 
घटे-घटे घुरू मेरी कोलोडी, चवराले  पूछों/पुजों मेरी कोलोडी .........2
चईते का मीना बाई गोगा रे, तीखड़ा बीचया बाई गोगा रे ..............2
विशु का लाडू बाई गोगा रे, बड़डा वाणीया बाई गोगा रे.  ........2


हिन्दी रूपान्तर
पूजा आज करते हैं गोगा की, पूजेंगे महिनेभर गोगा को -2
पूजेंगे छामरा से गोगा को, बड़ी बड़ी पतियां लायेंगे गोगा को -2
फल-फूल बांटें गोगा को, चूलू के फूल लायेंगे गोगा को -2
फ्योली के फूल चढाते गोगा को, पूजा में बैठायेंगे गोगा को -2
चैत के महिने में गोगा रे, सभी लोग पूजेंगे गोगा को -2
महिना आया चैत का गोगा री, पापड़ रोटी की पूजा गोगा री ।2।


भावार्थ
यह गीत सिर्फ व सिर्फ साल के पहले माह यानि चैत माह में गाया जाता है। विशेष्कर इस गीत को बच्चे गाते है। दरअसल चैत के माह में पहाड़ के सभी गांवो में फूलदेई का त्यौहार मनाते है। फूलदेई का संबध सीधा स्वच्छता से है। इस दौरान पूरे माह गांव के बच्चे व किशोर अवस्था वाले भोर होने से पहले जंगल पंहुच जाते है। प्रातः फूल की कण्डी घर-घर की देहरी पर पंहुच जाती है। देहरी इत्यादि को अब सजाने का काम बढ गया है। घर की दिवारे, घर की देहरी फूल की सजावट से देखते ही बनता है। छामरा एक वनौषधी है जिसकी पती घर पर रखन के लिए शुभ मानी जाती है। गोगा कुल देवता, ग्राम देवता का प्रतीक है उसकी पूजा की बात की जा रही है।