ग्राम काण्डई
ग्राम काण्डई, जिला चमोली, में महिला संगठन सन् 1970 के दशक में ही बन गया थाइस गाँव की स्त्रियों ने चिपको आंदेलन के दौरान योगदान दिया था। यह संगठन पुराना तो है पर धीरे-धीरे एकता कम हो गयीवर्ष भर में महिलायें कभी-कभार गोष्ठियाँ करती थीं। जब कभी गोष्ठी होती तो गाँव की कुछ ही महिलायें उपस्थित होतीं। जब गोष्ठी में ना आने का कारण पूछा जाता तो कहती कि फायदा नहीं हैं। गोष्ठी में आने से क्या मिलेगा, ऐसा सोचती तथापि कुछ महिलायें ऐसी थी जो बैठकों में निरंतर चर्चा करती और दैनिक कार्य भी समय से निपटा लेती थीं। वे गोष्ठी में आकर गीत भजन गाती, सुख-दुःख की बातें करती और संगठन की मजबूती के लिए प्रयासरत रहतींसंगठन में सभी महिलाओं को जोड़ने के लिए प्रयास करतीं।
जब ये महिलायें गोष्ठी के बाद घर वापस जाती तो आपस में गाँव के विकास के बारे में चर्चा करती । गोष्ठी में जिन मुद्दों पर चर्चा होती उन्हें रास्ते में चलते-चलते, जंगल आते-जाते और घर पर अन्य लोगों को बतातींमहिलाओं की समस्याओं पर बातचीत करतीं। जो महिलायें गोष्ठी में नहीं आती थीं वे भी समझ लेती कि गोष्ठी में भाग लेने से अनेक जानकारियाँ मिलती हैं। इस तरह, धीरे-धीरे सभी महिलाओं की यह सोच बनी कि क्यों न वे भी कम समय के लिए ही सही गोष्ठियों में जरूर जायें। इस तरह, सभी महिलायें हर माह ग्राम-गोष्ठी में सम्मिलित होने लगीसंस्था ने भी इस दिशा में निरंतर प्रयास किये।
वर्तमान में महिला संगठन काफी अच्छा, मजबूत एवं स्नेह-प्रेम से भरपूर गठन बन गया है। प्रत्येक माह की पन्द्रह तारीख को बैठक होती है। गाँव की सभी महिलायें गोष्ठी में उपस्थित रहती हैं। संगठन में एकता होने से सभी महिलाओं में आपसी प्रेम रहता है। सभी महिलायें साथ-साथ घास, लकड़ी लेने जंगल में जाती हैं। यहाँ तक भी मैंने अपने गाँव में देखा है कि यदि किसी अकेली महिला को कहीं बाहर जाना हो तो गाँव की अन्य स्त्रियाँ उसके घर के सभी काम निपटा देती हैं। जैसे घर में बँधी हुई गाय-भैंस को पानी देना, घास–चारा देना, पानी भरना आदि काम करके एक-दूसरे की मदद करती हैं। यह संगठन के माध्यम से ही संभव हो पाया है।
महिलायें समय एवं परिस्थितियों के अनुसार गाँव की समस्याओं को हल करती हैं।संगठन के नेतृत्व में सार्वजनिक चारागाह और जंगल बनाये गये हैं। श्रमदान के तहत रास्तों और झाड़ियों की सफाई जैसे सभी कार्य मिलकर किये जाते हैं। कभी कोई सरकारी योजना ना हो तो ग्रामवासी रास्ता स्वयं बनाते हैं। संगठन में एकता होने से लोगों की शक्ति बढ़ती है। शक्ति पैसे में नहीं बल्कि इन्सानों की एकता में होती है।
जब महिलायें गोष्ठी में सम्मिलित होने के लिए आती हैं तो सबसे पहले चेतना-गीत या फिर भजन गा कर शुरुआत करती हैं। मेरे गाँव की महिलायें प्रत्येक माह दस रुपये जमा करती हैं। इस धनराशि की एक पूँजी बन जाने के बाद आवश्यक सामुहिक हित की वस्तुएं को खरीदती हैं या फिर किसी गरीब परिवार में शादी के लिए रुपये दे देती हैं। उधार लेने वाले परिवार बाद में पैसा लौटा देते हैं। यह धन महिला संगठन के खाते में जमा किया जाता है।
महिला संगठन हर गाँव मे होना चाहियेइससे गाँव में तनाव की स्थिति उत्पन नहीं होती। अगर मन-मुटाव हो भी जाये तो संगठन की सदस्याएं बातचीत करके समस्याओं को सुलझा लेती हैंसंगठन होने से गाँव में आपसी भाई-चारे के रिश्ते बने रहते हैं। लोगों में प्रेम और जुड़ाव मजबूत होता है।
आज गाँव के सभी सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में महिलायें साथ-साथ जाती हैं आपस में मिलकर खाना बनाती हैं, प्रेम से रहती हैंसंगठन के कारण ही महिलाओं की जिन्दगी में परिवर्तन देखने को मिलता है। दैनिक काम के अतिरिक्त कुछ महिलायें पुस्तकालय पढ़ने के लिए से पुस्तकें ले जाती हैं। प्रत्येक माह महिला संगठन की गोष्ठी होती है। महिलायें खुले मन से प्रतिभाग करती हैं। खुशी-खुशी अपनी बातें कहती हैं। संगठन की वजह से गाँव के सभी काम आसानी से हो जाते हैं। गाँव का संगठन काफी मजबूत बन गया है। क्षेत्र में संगठन की पहचान है और प्रतिष्ठा भी। सरकारी अधिकारी एवं अन्य गैर-सरकारी संस्थाएं भी दोगड़ी-काण्डई गाँवों के संगठन से प्रभावित हुए हैं।