इंग्लैंड के इन्वेस्टमेंट बैंकर नवदीप ने भारत में शुरु की बागवानी

||इंग्लैंड के इन्वेस्टमेंट बैंकर नवदीप ने भारत में शुरु की बागवानी, खेती में हो रहे हैं लोकप्रिय||


युवा किसान नवदीप गोलेच्छा की कहानी उन उकिसानों के लिए प्रेरणा का सबब बन रही है जो गाँवों को छोड़कर शहरों की ओर रुख करते हैं, विदेशों में जाकर जॉब करते हैं और फिर वहीं बस जाने का सपना संजोते हैं।


जोधपुर के व्यापारी परिवार से ताल्लक रखने वाले इस युवा ने जीवन में बुलंदियों के शिखर को छुआ और फिर मातृभूमि की सेवा के लिए लौट आए। बकौल नवदीप, “विदेशों में सब कुछ है, पर हिंदुस्तानी मिट्टी की खुश्बू नहीं मिलती।"


अपनी कहानी शेयर करते हए कहते हैं जो अपनी स्कूल की पढ़ाई जोधपुर से की। ग्रैजुएशन के लिए मुंबई चला गया। वहाँ से 'बैचलर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़' की और मास्टर्स के लिए इंग्लैंड चला गया। वहीं से मैंने 'फाइनेंसियल इकोनॉमिक्स' में एमएससी कीकॉलेज टॉपर रहने के कारण ग्रेजुएट स्कीम के तहत वहाँ के 'रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड' में मेरा चयन हो गयामोटी तनख्वाह थी. सब सख-सुविधाएँ भी थीं, पर मन नहीं लगा। मैं स्वदेश लौट आया, अपनी शिक्षा के ऋण को चुकाने के लिए।''


भारत आते ही बदली जिंदगी...


स्वदेश वापसी पर उन्होंने पिता की खाली पड़ी जमीन पर अपनी शिक्षा और मेहनत के बलबूते कामयाबा की इबारत लिखने की सोची। 3 साल की खेतीबाडी ने उन्हें वो मकाम दिलवाया जिसकी कभी से गोची भी नहीं थी। इसी साल 18 माचका उन्हें नई दिल्ली में 'महिंद्रा समृद्धि कृषि सम्राट सम्मान' से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें अनार की खेती में उनके मौलिक नवाचारों के लिए लिए प्रदान किया गया।


वे इन दिनों जोधपुर से 170 किलोमीटर दूर सिरोही में अपने 150 एकड के 'नेचुरा फार्म' को विकसित करने में जुटे हैं। फिलहाल 30 एकड़ में अनार, पपीता और नींबू की खेती कर रहे हैं। धीरेधीरे उनकी पहचान सफल अनार उत्पादक किसान के रूप में बन रही है.


था। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए नवदीप बताते हैं, "घर-परिवार में कोई भी कृषि से नहीं जुड़ा था, यहाँ तक कि मेरे दोस्तों में से भी कोई कृषि का 'क' नहीं समझता था। ऐसे में खेती में हाथ आजमाना थोड़ा अजीब था, पर मैं किसानी का मन बना चका था।


ये वे दिन थे जब हर कोई मेरा सलाहकार बन गया था। 'कहाँ तुम विदेश से पढ़कर आए और अब खेती की सोचते हो! पूरी दुनिया खेती छोड शहरों की तरफ जा रही है और तुम विदेश से आकर जंगलों में जाने की सोचते हो?'


किसानों से मिला तो उन्होंने गेंहूँ और रायड़े की खेती की सलाह दी। बोले कि तुम नए हो, तम्हारे लिए यही ठीक है। इसमें ज्यादा रिस्क भी नहीं है और फिक्स इनकम हो जाएगी। पर मुझे कुछ अलग और बड़ा करना था। अब मेरे लिए खेती और भी ज्यादा चुनौतीभरा काम हो गया था। मुझे अपने लिए फैसले को सही साबित करना था। अंततः मैंने अनार की खेती का man banaya


हुए नए तजुर्बे..


मेरे लिए चलेज था कि अनार कहा स लू? कोई पौधा 30 रुपए में मिल रहा था, कोई 10 में तो कोई 100 रुपए में। मैं उन किसानों से भी मिला जो सालों से अनार की खेती कर रहे थे। उन्होंने भी अजीबोगरीब बातें ही कहीं कहा कि 2 साल खेतों में घूमकर रिसर्च करो, फिर पौधे लगाओ। मैंने सोचा कि 2 साल बर्बाद करूँ उससे बेहतर है कि अभी लगाऊँ और 2 साल बचा लूँ। इन 2 सालों में बहुत कुछ सीखासतत सीखते रहने की प्रक्रिया के चलते आगे बढ़ता गया.


मेरे खेत के अनार की चर्चा सुनकर 'राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र', सोलापुर की निदेशक डॉ. सिरोही तक आई। होरी खेती की शरुआती ज्योत्स्ना शर्मा जी मेरे फार्म की विजिट करने के लिए । उपलब्धि थी।"


गणवत्ता से समझौता न करेंकिसान...


अनार के भाव इस साल कम रहे, जिससे किसानों निराशा छाई। गौर करें तो पाएंगे कि अनार समाल 20 रुपए किलाम भाविक और 60 किलो में भी। यह फर्क आपक उत्पाद की गणवत्ता के कारण है। अनार की गुणवत्ता में उसकी साइज और कलर का सबसे बड़ा रोल है।''


'श्रीनिंग' अपनाकर अनार को एक्सपोर्ट करे...


किसान की सोच यही रहती है कि अगर उनके संत में खडा अनार का पौधा 3 साल का है तो उस पर जितने भी फल हैं, वह सब के सब ले लेवे। लेकिन वह ऐसा न कर और सीमित मात्रा में फल की सोच रखे तो अच्छे साइज़ का फल ले सकता है। दरअसल किसान थानिग पर ध्यान नहीं देते। अनार की खती मथानिग बहुत महत्वपूर्ण है।


अभी अनार एक्सपोर्ट में बहुत ज्यादा संभावनाएँ हैं। है। मेरे खेत को एपीडा द्वारा राजस्थान के पहले खेत रूप में अनार नेट में रजिस्टर्ड किया गया है। अब मैं अगले साल से अनार को एक्सपोर्ट कर पाऊँगा। यदि अनार का प्रोडक्शन बंपर हो गया है तो उसको 'बेचने के लिए बाजार भी हमको ही तलाशना होगा। सिर्फ डॉमेस्टिक मंडियों के भरोसे ही हम कब तक बैठे रहें? गुणवत्ता वाले फल को एक्सपोर्ट करके ट वैल्यू (सही कीमत) भी तो कमा सकते हैं।"


'थीनिंग' क्या है, इसे भी समझना होगा...


"यदि आपके पौधे पर 200 फल लगे हैं तो मुझे पौधे की साइज और उम्र देखकर यह तय करना है कि कौन से 70, 80 या 90 फल मुझे रखने है, ताकि मुझे फल की ऑप्टिमम साइज़ मिल सके। । यदि मेरा पौधा 2 साल का है और उस पर 100 फल हैं और मैं 100 के 100 फल ले लूँगा तो एक फल 100 ग्राम का ही होगा। ऐसा करने पर मुझे उसक सही दाम नहीं मिलेंगे। ऐसा करने की बजाय मैं इस पर 30, 40 या 50 फल ही रख जो 200 से 250 ग्राम तक के हों, तो मुझे मार्केट में इनकी अच्छी वैल्यू मिलेगी। एक्सपोर्ट सेक्टर में जाना है ता हमारा फल 200 से 250 ग्राम से ऊपर का होना ही चाहिए। गुणवत्ता का नहीं फल होगा तो ही हम एक्सपोर्ट कर सकेंगेअतः हमें थीनिंग पर ध्यान देना होगा।''


अनार के अलावा पपीते और नींबू की खेती भी...


वे साढे 3 एकड़ में पपीते की खेती कर रहे हैं। पपीता 'रेड लेडी 786' वैरायटी का है। पपीते पर उनका दूसरा ट्रायल है। पिछली बार उन्हें प्रति पोधा 80 से 85 किला फल मिला था। इस बार वे मल्चिंग पेपर पर पपीते की खेती कर रहे हैं। मल्चिंग के अंदर ही इनलाइन ड्रिप इरिगेशन भी हैसाथ ही 100 प्रतिशत जैविक कागजी वैरायटी के नींबू का बगीचा भी उन्होंने तैयार किया है। यह नींबू 15 से 20 दिन तक खराब नहीं होतादस साल जलार्ड में वे 20 बीघा में नींब के बगीचे को बहा रहे हैं। 'केन्द्रीय लिंबवर्गीय संशोधन केंद्र', - नागपुर की 'एनआरसीसी 7' एवं '8' वैरायटी को लगाने का मन बनाया है। भविष्य में 15 बीघा में सीताफल की खेती का मन बना चक गोलेच्छा कहते हैं, “मैं चाहता हूँ कि मेरे खेत में सब पौधे अलग-अलग प्रकारकहा, ताकि मालभर आय होती रहे। आग चलकर उस फार्म के माध्यम से एग्रीकल्चर रिज्म का बढावा देना भी मेरी सोच का हिस्सा है।


खेती से कमाए 70 लाख...


पहले ही प्रयास में अनार की खेती में 70 लाखम्पार की आय करने वाले नवदीप कहते हैं, “इस ऑकंडे को मैं एक्सपोर्ट की मदद से अगले साल सवा करोड रुपए तक ले जाना चाहता हूँ। अब यकीन हो गया हैकि खेती है तो सब मुमकिन है।'


____प्रस्तुतिः मोईनुद्दीन चिश्ती लेखक देश के जाने माने युवा कृषि, पर्यावरण पत्रकार एवं कृषि परिवर्तन के विशेष संवाददाता हैं. साभार - कृषि परिवर्तन