जल-जीवन मिशनः भूमिका बदलने की जरूरत

|| जल-जीवन मिशनः भूमिका बदलने की जरूरत|| 


पक्ष हर परिवारको नल से जल। भारतीय जनता पार्टी के घोषणा-पत्र में घोषित 'जल-जीवन मिशन' का लक्ष्य यही है। जाहिर है कि अब यह हमारी मौजूदा केन्द्रीय सरकार का लक्ष्य बन गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने की समय-सीमा वर्ष 2024 रखी गई है। एक नज़र से देखें तो यह सपना प्रभावित करता हैइस सपने और लक्ष्य के पक्ष में कई तर्क हो सकते हैंधरती के नीचे का पानी तेजी से नीचे उतर रहा हैप्रदुषित भूजल के इलाकों की संख्या भारत में तेजी से बढ़ रही है। लिहाजा पेयजल की उपलब्धता और गुणवत्ता का संकट भी तेजी से ही बढ़ रहा है।


फरवरी से जून महीनों के दौरान कई इलाकों में पीने के पानी के लिए टैंकर पर निर्भर रहना पडता है. कहीं-कहीं पीने योग्य पानी के स्त्रोत दूर हैं, वहाँ पानी पाने के लिए लंबी दूरी तक चलकर जाना पडता है. बोझ को कमर, सिर या साईकिल पर ढोकर लाना पड़ना है। लोग ऐसे गाँवों में अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते जहाँ दूर से पानी ढोने के काम औरतों के जिम्मे हैं। संभव है कि कई लड़कियाँ सिर्फ इसीलिए स्कूल न जा पाती हों। कई इलाकों के भूजल में भारी धातु तत्व, फ्लोराइड, नमक तथा आर्सेनिक जैसे ज़हर की उपस्थितिलोगों को बीमार बना रही है। उनके पास कोई विकल्प नहीं है, सिवाय इसके कि वे पानी साफ करने की मशीनें लगाएँ अथवा बाज़ार से पानी खरीदने में पैसा गँवाते रहें। तर्क दिया जा सकता है कि यदि हर परिवार को नल से जल पहुँचा दिया जाए, तो इन सब परेशानियों से निजात मिल जाएगी। अतः यह किया जाए। जितना बजट चाहिए हो, दिया जाए।


प्रतिपक्ष इस सपने के प्रतिपक्ष में भी तर्कों की कमी नहींपूछा जा सकता है कि जहाँ-जहाँ नल पहुँच गए, क्या वहाँ-वहाँ के नलों में हम पर्याप्त पानी पहुंचा पा रहे हैं? जो पानी पहुंच रहा है, क्या उसकी गुणवत्ता ऐसी है कि उसे सीधे पीया जा सकता है? हर घर में नल से जल वाली दिल्ली में पीने के पानी के लिए बाजार पर निर्भरता घटने की बजाए बढ़क्यों गई है? इन प्रश्नों के पक्ष में दिल्ली, बैंगलौर, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, भोपाल, जयपुर, शिमला जैसी राजधानियों से लेकर टिहरी, गैरसेण जैसे पहाड़ी इलाकों तक की सूची को सामने रखकर कहा सकता है.


जनाब! जब मूल स्त्रोत में पानी होगा, तब तो नल से जल पिलाओगे। सूखती केन को सामने रखकर यही सवाल केन- बेतवा नदी जोड के भरोसे बंदेलखण्ड को पानी पिलाने का दावा करने वालों से भी किया जा अपनी सकता है। पानी नगरों तथा भौगोलिक विषमता के चलते पहाडी कई इलाकों के हर परिवार को नल से पानी पहुंचाने की कई आवश्यकता को एक बारगी मंजूर कर भी लिया , जाए तो मैदानी गाँवों के संदर्भ में तर्क दिया जा कोई सकता है कि पाइप से पानी की उपलब्धता लोगों को पानी के मामले में पराधीन बनाती हैपानी पाइप से पानी मिलने लगता है तो लोग पानी की स्वावलंबी व्यवस्था के बारे में सोचना और करना... दाना बद कर देते है। इसका तिहरा नुक़सान होता है.


पहला, स्त्रोत तथा आपूर्ति प्रणाली को दुरुस्त रखने की सारी ज़िम्मेदारी जलापूर्ति करने वाले निकाय पर आ जाती है। दूसरा, जल की सहज उपलब्धता के कारण उपभोक्ता उसकी कीमत सिर्फ बिल में दिए पैसे से लगाता है। जिसकी जेब में जितना बिल वहन करने की क्षमता है, वह उतने जल के उपभोग व बर्बादी को अपना अधिकार समझने लगता है। दूसरी ओर, जिसके पास बिल देने के लिए पैसे नहीं हैं उसके पानी का कनेक्शन काट दिया जाता है। तीसरा, अनुभव यह है कि जलआपूर्ति करने वाले निकाय को कई बार जानबूझकर नाकारा बना दिया जाता है ताकि जलापूर्ति को निजी कंपनियों को सौंपा जा सके। इस तरह जल के मूल स्त्रोत के उपयोग के अधिकार प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से कंपनी के हाथों में चले जाते हैं। कंपनी इस अधिकार का दुरुपयोग वेलगाम मुनाफा कमाने में करती है।


जीवन के लिए जल ज़रूरी है यह मानकर ही संवैधानिक तौर पर जलाधिकार को जीवन के अधिकार से जोड़कर देखा जाता है। बोलीविया समेत दुनिया के कई घटनाक्रम गवाह हैं कि इस अधिकार में कंपनियों के हस्तक्षेप का नतीजा अराजक सिद्ध हुआ है। पाना चाह पाइ पानी चाहे पाइप से पहँचाया जाए अथवा नहरों से, जलापूर्ती के इस तत्र का एक कमजोरी यह भी है कि जितना पानी उपयोग में नहीं आता, उससे ज़्यादा बर्बाद हो जाता है। भारत की नहरी सिंचाई व्यवस्था के प्रभावी उपयोग का आँकडा मात्र 15 से 16 प्रतिशत का है। पाइप के जरिए मूल स्त्रोत से नल तक पानी पहँचाने के रास्ते में 40 प्रतिशत तक पानी रिसकर बह जाने का आँकडा हैनदी जोड की परियोजनाओं में इस रिसाव का ख़तरा कई गुना होगा।


बाँधों और सिंचाई परियोजनाओं के बते आर्थिक समद्धि हासिल करने वाला महाराष्ट आज पानी के लिए सबसे अधिक जझता राज्य है. बावजद इसके हम बाँधों, नहरों और पाइपों पर आधारित नटीजोड़ परियोजना को लागू करने की जिद छोड़ नहीं रहेक्यो? गौर कीजिए कि सिंचाई तंत्र तथा बाँधों के लिए वर्ष 2011 तक 07 लाख करोड रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 'जल-जीवन मिशन' की लक्ष्य प्राप्ति के लिए जल-बजट में और अधिक वृद्धि की बात चर्चा में आ रही है।


पूर्व सचिव, जल संसाधन शशि शेखर का बयान आया है कि बजट बढ़ाने से ज्यादा जरूरत पानी के प्रभावी उपयोग की हैपूछा जा सकता है कि जब तक हम पाइप से पानी पहुँचाने के मामले में पूरी तरह लोकपूफ नहीं हो जाते, तब तक क्या हमें पाइप से पानी पहुँचाने का अतिरिक्त ढाँचा बनाने के बारे सोचना चाहिए? अपने या औरों के घर की टंकी हो या कोई सार्वजनिक टूटा नल, बेकार बहते पानी को देखकर जब तक हममें से प्रत्येक के भीतर से रोकने को बेचैनी, साहस और तमीज पैदा नहीं हो जाती, क्या तब तक मैदानी गाँवों को हर घर में नल के सपने से दूर नहीं रखना चाहिए? किसी एक इलाके के हिस्से का पानी ले जाकर किसी दूसरे इलाके को देना अनैतिक है। जलबँटवारों के विवाद पहले से हैं। पाइप से पानी को बढ़ावा देने से पानी के झगडे और अधिक बढ़ेंगे।


ऐसे में पूछा जा सकता है कि हर घर को नल से जल की राह में इतनी विषमताएँ हैं तो क्या ज़रूरी है कि हम इस राह चलें? कम से कम मैदानी गाँवों के मामलों में क्या यह उचित नहीं कि ग्राम्य पेयजल स्वावलंबन की दृष्टि को लक्ष्य बनाएँ? भारत के सबसे कम वर्षा वाले जिले जैसलमेर की रामगढ तहसील के इंतजाम को सामने रखकर दावा किया जा सकता है कि हर इलाके के सिर पर पर्याप्त पानी बरसता है; यदि हर इलाका अपने सिर पर बरसे पानी को संजो ले. तो ही उसके पीने के पानी का इंतज़ाम हो जाएगा। यह एक ऐसा बिंदु है जिस पर आकर पाइप से पानी पहुँचाने के पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच समझौता संभव है, बशर्ते एक शर्त मान ली जाए। तय हो कि अपने नल में अपना पानी ही आएगा, अर्थात नल भी अपना, पाइप भी अपनी, पानी की आपूर्ति का मूल स्त्रोत भी अपना तथा स्त्रोत व आपूर्ति... दोनों का प्रबंधन भी अपने हाथ ही हो. दूसरे इलाके के स्त्रोत से पानी खींच कर लाने पर पूर्ण प्रतिबंध होगा।


आप पूछ सकते हैं कि क्या यह व्यावहारिक है? हाँ, यह व्यावहारिक भी है. और संभव भी है, क्योंकि भारत का पेयजल-संकट पर्यावरणीय कम और गवर्नेन्स से जुड़ा संकट ज्यादा है। केन्द्र सरकार के मुखिया के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने 'न्यू इण्डिया' का सपना सामने रखा है। हर परिवार को नल से जल इसी 'न्यू इण्डिया' के सपने का हिस्सा है। यदि हम चाहते हैं कि 'न्यू इण्डिया' सचमुच पानीदार हो तो सबसे पहला कदम प्रधानमंत्री स्वयं उठाएँ: गौर करें कि पानी का राज्य सरकारों के निर्णय और निर्वहन का विषय है। केन्द्र सरकार की भूमिका सिर्फ तकनीकी और वितीय सहायक की है। केन्द्र सरकार को चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय एवं अंतरराज्यीय प्रवाहों का केन्द्र शासित क्षेत्रों को छोड़कर अन्य जल प्रवाहों व जल-संरचनाओं के प्रबंधन मामलों में वह अपनेआपको सिर्फ और सिर्फ तकनीकी और वित्तीय सहयोगी की भूमिका तक ही सीमित करे। तीसरा स्तर भी होता है; गाँव और नगर के स्तर पर राज्य सरकारें गौर फरमाएँ कि सरकारों का एक ।'लोकल सेल्फ गवर्नमेन्ट' यानी 'स्थानीय स्व सरकार', अर्थात स्थानीय गाँव सरकार तथा स्थानीय नगर सरकार। अब सभी राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वे 'स्थानीय स्व-सरकार' के संवैधानिक दर्जे का सम्मान करें। पेयजल ही नहीं अपितु गाँव स्तर पर संपूर्ण जल-प्रबंधन तथा जल-स्वच्छता की समग्र, स्वावलंबी एवं समयबद्ध कार्य-योजना बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने का संपर्ण दायित्व एवं आर्थिक- तकनीकी-प्रशासनिक अधिकार संबंधित जल संबंधी वार्ड समितियों को सौंप दें। उनकी जल- संरचनाओं के स्थान का चयन, डिजाइन, निर्माण सामग्री तथा प्रक्रिया उन्हें स्वयं तय करने दें। उन्हें तय करने दें कि वे अपने गाँव में नल से आया पानी पीना चाहते हैं अथवा कुँओं, हैण्डपंपों व तालाबों से लाया हुआ।


ऐसा करने हेतु जल स्वावलंबन प्रस्ताव- 2019 में शामिल 21 नीतिगत निर्णय अपेक्षित हैं। कृपया जल स्वावलंबन प्रस्ताव-2019 के प्रत्येक बिद पर गंभीरता से विचार करें। मझे यकीन है कि भारतीय जल प्रबंधन की मौजूदा कमियों से पार पाने की दिशा में यह क्रांतिकारी कदम होगा। तय मानिए कि जल प्रबंधन के इस व्यवस्था बदलाव से सरकार का बोझ घटेगा तथा जिसे पानी पीना है, उसकी हक़दारी और जवाबदारी बढेगीबिना तैयारी के किया गया रचनात्मक कार्य भी विध्वंसक सिद्ध होता हैलिहाजा राज्य सरकारें इसे पूर्ण प्रचार, प्रशिक्षण तथा पूर्व तैयारी के साथ से पर्ण प्रचार प्रशिक्षण तथा पूर्व तैयारी के साथ करें। इससे जल-जीवन का मिशन भी पूरा होगा मिशन भी पूरा होगा और संसदीय लोकतंत्र को पंचायती लोकतंत्र की दिशा में ले जाने का संवैधानिक संकल्प भी।


जल स्वावलंबन प्रस्ताव-2019 मूल विचार जला, पानी का बाजार, पलाया नया अगानि को प्रोत्साहित बनी है। सामाजिक, आर्थिक कोपावणीयह प्रतिमा परियत्ति होती गवानलाली हो। प्राथमिक लक्ष्य प्रकति के पर्यावरणीय गंवर्द्धन तथा प्रत्येक जीव के जीवन व आजीविका हेतु आवश्यक जलसुरक्षा तथा तदनमार गणवता मानकों को हामिल प्राथमिक लक्ष्य प्राप्ति हेत प्रस्तावित एवं गज्य सरकारों से अपेक्षित 21 नीतिगत निर्णय 1. समस्या का निवारण समस्या के मूल कारणों में स्वतः निहित होता है। अतः भूजल गिरावट के दणभावों से निपटने हेत जलापूर्ति, नहरीकरण, नदी जोट अथवा अन्य कोई विकल्प पेश करने की बजाए समस्या के मल कारणां का निवारण ही प्राथमिकता हो2. भूजल स्तर में गिरावट के संकट का मल कारण भूजल-सचयन की तुलना में भूजलनिकासी का अधिक होना है। जल निकासी एवं संचयन में संतुलन स्थापित करने में जवाबदेही सुनिश्चित करने वाली नीति यह हो कि जिसने प्रकृति से जितना और जैसा लिया. वह प्रकति को कम से कम उतना और वैसी गुणवत्ता का जल लौटाए.


यह नीति सिद्धान्ततः अपनी आजीविका अथवा धनार्जन हेतु पानी को अति आवश्यक स्त्रोत के रूप में उपयोग करने वाले सभी उपभोक्ता वर्गों पर लागू हो। सिंचाई एवं उद्योग ये पानी के क्रमशः सबसे बड़े दा उपभोक्ता हैं। अतः यह नीति प्राथमिकता के तौर पर सर्वप्रथम इन दो वर्गों के उपभोक्ताओं पर लागू की जाए। इनमें भी सबसे पहले बोतलबंद पानी, शीतल पेय, शराब आदि बनाने वाली उन कंपनियों पर लाग हो जो स्थानीय समुदाय के हिस्से का सतही/भूजल का अति दोहन कर पानी का ही पैसा बनाते हैं। इस नीति का क्रियान्वयन सनिश्चित करने के लिए ही : अनुशासन-प्रोत्साहन संबंधी शासनादेश जारी हों.


3. विविध भूगर्भ-संरचना, विविध सामाजिक विन्यास और माँग के विविध स्तर व प्रकार पानी प्रबंधन के तौर-तरीकों में विविधता और विकेन्द्रित नियोजन तथा दायित्व पूर्ति की माँग करते हैं। अतः निर्णय, कार्य योजना निर्माण तथा क्रियान्वयन की जवाबदेही का तंत्र पूर्णतया विकेन्द्रित एवं स्वावलंबी हो। 4. 73वें संविधान संशोधन ने ग्राम स्तरीय पंचायती तंत्र तथा 74वें संविधान संशोधन ने नगर स्तरीय निगम-तत्र को 'लोकल सेल्फ गवर्नमेंट' यानी 'स्थानीय स्व-सरकार' का दर्जा दिया है। यह दर्जा संवैधानिक है। इसी के अनुसार, ग्राम पंचायत/नगर निगम की परिधि में आने वाले साझे जल-स्त्रोतों तथा संसाधनों के प्रबंधन तथा आबादी को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने की जिम्मेदारी 'स्थानीय स्व-सरकार' यानी ग्राम पंचायत/नगर निगम की है। इसके लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत/नगर निगम में जल प्रबंधन संबंधी समिति का प्रावधान है। कृषि आदि संबंधित विषय इसी समिति के अधिकार क्षेत्र में हैं। जम्मू-कश्मीर पंचायती अधिनियम में हल्का पचायत (ग्राम पंचायत) को 21 विभागों से संबंधित कार्य, कर्मचारी तथा कोष सौंपने का प्रावधान पहले से है। बिहार प्रदेश में पेयजल व्यवस्था को वार्ड समिति को सौंपने का निर्णय नवंबर, 2016 में पहले ही लिया जा चुका है। अब सभी राज्यों को चाहिए कि प्रदेश शासन गाँव स्तर पर कम से कम ग्राम जल स्वच्छता एवं स्वावलंबन संबंधी विभागों के सभी कार्य, कर्मचारी तथा कोष सीधे-सीधे ग्राम पंचायतों की जल व स्वच्छता संबंधी वार्ड समितियों के अधीन करे। समग्र एवं समयबद्ध कार्य-योजना बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने का संपूर्ण दायित्व व आर्थिक- तकनीकी-प्रशासनिक अधिकार संबंधित वार्ड समिति के हों।


वार्ड समिति के कार्य को सचारू व स्वावलंबी बनाने के मार्ग में जा भी प्रशासनिक, तकनीकी तथा आर्थिक बाधाएँ हों उन्हें समाप्त करने हेतु सतत सक्रिय रहें, निर्णय लें। प्रदेश सरकार तथा स्थानीय प्रशासन स्वयं को सिर्फ प्रेरणा, क्षमता विकास, निगरानी, समीक्षा, समन्वय तथा माँग होने पर अन्य सहयोग की भूमिका में रखें। २. इसी नीति का अनुसरण करते हुए प्रदेश सरकारें नगरीय जल स्वच्छता एवं स्वावलंबन हेतु नियोजन व समयबद्ध क्रियान्वयन का संपूर्ण दायित्व व आर्थिक-तकनीकी-प्रशासनिक अधिकार नगरीय स्व-सरकार अर्थात नगर पंचायतों/नगर-निगमों को सौंपें तथा स्वयं को व स्थानीय प्रशासन को प्रेरणा, क्षमता विकास, निगरानी, समीक्षा, समन्वय तथा माँग होने पर अन्य सहयोगी की भूमिका में रखें। _5. जो प्रवाह एवं सतही जल-स्त्रोत अंतरग्रामीय, अंतरखण्डीय अथवा अंतर- जनपदीय हैं, इनसे संबंधित प्रबंधन कार्य संबंधी निर्णय के अधिकार तथा दायित्व तद्नुसार क्रमशः सीधे क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत/नगर पंचायत/नगर निगम तथा प्रदेश शासन के होते हैं। वे न सिर्फ बने रहें बल्कि अधिक प्रतिबद्धता के साथ ज़मीन पर उतारे जाएं।


6. बाध्यता हो कि प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतें आपस में मिलकर आधिकारिक रूप से प्रत्येक न्याय पंचायत क्षेत्रवार भजल- निकासी की एक समान अधिकतम गहराई तय करे, जिससे नीचे जाने की अनमति सिर्फ लगातार पाँच साला सूखे से उत्पन्न आपात स्थिति में ही हो। यह गहराई 'डार्क जोन' घोषित किए जाने के लिए तय गहराई से हर हाल में कम से कम 10 फीट कम ही हो। पालना नहीं करने पर संबंधित व्यक्ति के शासकीय योजना लाभ वापस लिए जा सकें तथा एक ग्राम सभा में 10 से अधिक व्यक्तियों द्वारा ऐसा करने पर ग्राम पंचायतों को वित्तीय आवंटन रोक दिया जाए। इसी मौलिक नीति के आधार पर नगरपंचायतें/नगर निगम/नगर पालिकाएँ भी अपनेअपने क्षेत्र में भजल की अधिकतम एक समान गहराई तय करें।


7. वित्तीय स्वावलंबन सनिश्चित करने हेत - 11प्रावधान हों कि ग्राम पंचायतों/नगर निगमों/ नगर . को पालिकाओं को केन्द्रीय वित्तीय आवंटन में प्रार HC हासिल हिस्से के अलावा प्रारंभिक पाँच वर्षों तक 12आवश्यकता होने पर जलापूर्ति, सिंचाई, कृषि हेतु आदि मद के वित्त का एक उचित हिस्सा भी जलग्रहण आदि मद क वित्त का एक उचत हिस्सा भाजलग्रहण स्थानान्तरित किया जा सके। ग्राम पंचायत विकास निर्माण योजना के चंदा, दान व सोशल दायित्व के । क 13कॉरपोरेट कोष से धन ले सकने का प्रावधान ताह लिए दी 148. प्रदेश सरकारें एक अंतरजनपदीय नदी । नहरों तथा वन/उद्यान को क्रमश: राज्य नदा तथा राज्य वन/उद्यान का दजो दे। जिला पचायते क्षेत्र पंचायतों की राय के आधार पर अपने-अपने जिले की एक-एक अंतरखण्डीय नदी या झोल या तालाब तथा वन/उद्यान को क्रमशः जनपदीय नदी/जनपदीय झील तथा जनपदीय वन/उद्यान का दर्जा दें। दर्जे के सम्मान के लिए मानक भी खत तय करें और मानकों की प्राप्ति हेत त्रि-वर्षीय कार्य योजना बनाने, कब्जा मुक्ति तथा उसके समयबाट क्रियान्वयन की जवाबदेही भी खुद ही लें। __ इसी तरह क्षेत्र पंचायतें ग्राम पंचायतों की राय से अपने-अपने विकास खण्डों के अंतर-न्याय पंचायती स्तर के एक-एक जल ढाँचे तथा उद्यान/वन को लेकर दर्जा दें, मानक तय करें मानकों की पूर्ति हेतु कार्य-योजना बनाएँ तथा उसका क्रियान्वयन करेंइसी तर्ज पर ग्राम पंचायतें भी अपनी क्षेत्र सीमा के कम से कम एक तालाब को आदर्श तालाब तथा एक-एक आदर्श वन/उद्यान तथा आदर्श चारागाह का विकास करें। 9. भूजल की दृष्टि से संकटग्रस्त क्षेत्र इस कार्य को विशेष प्राथमिकता देकर करें। उन्हें आवश्यकतानुसार अतिरिक्त वित्तीय सहयोग देने के लिए पूरी पारदर्शिता बरतते हुए स्थानीय कंपनी र से कॉरपोरेट सोशल रिसपोन्सीबिलिटी प का शासकीय स्तर पर आह्वान एवं प्रोत्साहन व्यवस्था हो। यह धन सीधे क्रियान्वयन एजेन्सी को दिया जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि इस आर्थिक सहयोग की एवज़ में कंपनियाँ किसी व्यावसायिक लाभ की छूट अथवा सर्जित की गई जल-संरचना/वन/उद्यान के स्वामित्व अथवा उपयोग के अधिकार की माँग न करें। 10. प्रदेश शासन राज्य की प्रत्येक नदी, जल संरचना तथा वन/उद्यान क्षेत्र की भूमि का चिह्नीकरण, सीमांकन तथा उसका भू-उपयोग अधिसूचित करे। ऐसी भूमि का भू-उपयोग बदलने की इजाज़त किसी को न हो। 11. प्रदेश सरकार राज्य नदी के लिए जिन मानकों . को तय करे उन्हें अंतरजनपदीय नदियों के लिए हासिल करने का भी समयबद्ध कार्यक्रम बनाए।


12. प्रदेश सरकार अंतरजनपदीय नदी संवर्द्धन हेतु संबंधित नदियों को केन्द्र में रखते हुए उनके जलग्रहण क्षेत्र के प्रबंधन की परियोजना का भाजलग्रहण क्षत्र के प्रबधन को प निर्माण तथा क्रियान्वयन करे। 13. उद्योगों को शोधित जल के पुनरोपयोग के . लिए प्रोत्साहित किया जाए। 14. ताज़ा जल नदियों में जबकि शोधित जल नहरों में बहाने की नीति तय हो। ताज़ा जल धीरे-धीरे नदियों में बढ़ाते जाएँ और नहरों में घटाते जाएँ। नहरों में प्रवाह बनाए रखने के लिए शोधन पश्चात पाप्त अतिरिक्त जल को नहरों में प्रवाहित करने को प्रोत्साहित किया जाए। प्रवाहित किए जनपदीय जाने वाले ऐसे शोधित जल की गुणवत्ता की निगरानी वानरण हेत समितियाँ गठित हो। इन समितियों में संबंधित नहर उपभोक्ताओं के पतिनिधियों को बतौर निर्णायक अधिकार प्राप्त 15 कचरे को होकर ले जाना नैतिक एवं वैज्ञानिक नाग माना जाए। कचरे का निष्पादन उसके उपजने के स्त्रोत पर किया जाएइसति के अनुसार, सभी प्रकार की नई बसावटों मेसीवेज पाइपता विकसित करने की बजाए मल उपजने के स्थान पर ही पर्यावरणीय दृष्टि से अनल गल शोधन तकनीकों को अपनाना सारगर्भित किया जाए.


10 मौजदा नगरीय जल-मल के शोधन की नितांत आवश्यकता है. नदी किनारे न करके क्षेत्रवार विकेन्द्रित तंत्र विकसित किया जाए। तदनुसार चार दीवारी वाले आवासीय, व्यावसायिक तथा औद्योगिक परिसरों को मुख्य सीवेज तंत्र से अलग किया जाए। ऐसे परिसरों में जल-गल निष्पादन की स्वयंसेवी तथा पर्यावरणीय दृष्टि स अनुकूल तकनाका का अपनाना आनवाय किया जाए। इसके लिए विशेष प्रोत्साहन योजना ना हो। इस व्यवस्था को अपनाने की पहल सबसे पहले सरकारी परिसरों में हो।


17. राज्य नदी तथा अंतरजनपदीय नदियों के लिए मानक तय करने तथा उनकी प्राप्ति की समग्र एवं समयबद्ध कार्य-योजना बनाने का काम म भूजल, प्रदुषण, सिंचाई, जलापूर्ति, कृषि आदि से संबंधित विभाग मिलकर करें। प्रेरणा, क्षमता विकास, क्रियान्वयन तथा सभी विभागों के बीच समन्वयन की निर्णायक भूमिका पूरी तरह किसी एक विभाग अथवा संस्थान की ho


18. ग्राम पंचायतों/नगर निगमों/नगर पालिकाओं को अपने-अपने स्तर की योजना बनाने तथा क्रियान्वयन हेतु जागरूकता, प्रेरणा एवं क्षमता विकास का कार्य पहले से मौजूद निम्नलिखित प्रशिक्षण संगठनों की भूमिका तय करते हुए किया जाएक) जल एवं मृदा प्रबंधन संस्थान ख) जिला पंचायती राज संस्थान ग) लोक प्रशासन एवं ग्रामीण विकास संस्थान घ) राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय ग्रामीण विकास संस्थान ड) राज्य साक्षरता मिशन जल प्रबंधन हेतु आवश्यकता होगा कि स्थानीय ग्राम पंचायते तथा नगर निगम व पालिकाएँ अपने कार्य क्षेत्र के मौजूदा जल का लेखा-जोखा तैयार करें, माँग और उपलब्ध जलानुसार पयजल, सिचाई, कृषि उपज, जल संचयन तथा निकासी " का नियोजन तैयार करें तकनीकी व आर्थिक समझा के साथ-साथ क्रियान्वयन करने तथा निगरानी, अंकेक्षण व समीक्षा करने का कार्य भी (इस संबंध में जागति, प्रेरणा, प्रशिक्षण, प्रोत्साहन तथा समन्वयन के कार्य अपने आपमें पूर्णकालिक तंत्र की माँग करते हैं। अतः उचित हो तो प्रत्येक प्रदेश सरकार विशुद्ध रूप से उक्त कार्यों हेतु प्रदेश जल संसाधन एवं प्रशिक्षण केन्द्र की भी स्थापना किए जाने पर विचार करे।


इस केन्द्र का कार्य प्रशिक्षण एवं आवश्यकतानसार शोध तो हो ही, साथ ही यहाँ पर प्रत्येक ग्राम पंचायत व नगर निगम क्षेत्र से लेकर राज्य स्तर की जल तथा उससे संबंधित योजनाओं/ परियोजनाओं की समस्त जानकारी उपलब्ध रहेजानकारी प्रसार एवं दो तरफा संवाद हेतु वेबपोर्टल आदि तकनीकों का उपयोग होविभिन्न विभागों के बीच समन्वयन का भी कार्य है विशद्ध रूप से इस केन्द्र की जिम्मेदारी हो सकता राज्य जल संसाधन एवं प्रशिक्षण केन्द्र के लिए पहले से मौजूदा संगठनों के जल विशेषज्ञों प्रशिक्षकों तथा जमीनी अभियान संचालकों की है सेवाएँ डेपुटेशन के आधार पर ली जा सकती हैं। छ) उच्च शिक्षा संस्थानों के भूगोल, पर्यावरण व सिविल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र समूहों के लिए उनके क्षेत्र में स्थित एक ग्राम पंचायत की जल-बजटिंग करने, पंचायती क्षेत्र के भगोल के अनुसार वर्षा जल संचयन के तरीके सुझाने, जल ढाँचों का स्थान चयन व तकनीकी डिज़ायन तय करने तथा उनकी लागत व जलसंग्रहण क्षमता का आकलन करने की परियोजना आवश्यक की जा सकती है.


छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्हीं शिक्षा संस्थानों के भूगोल, पर्यावरण व सिविल इंजीनियरिंग प्राध्यापकों हेतु एक अंशकालिक 'ग्राम्य जल प्रबंधन प्रशिक्षक प्रमाण-पत्र कोर्स' तैयार किया जा सकता है। इसी तर्ज पर स्वयंसेवी संगठनों व जल संबंधी वार्ड समिति सदस्यों तथा समाज कार्य विज्ञान व ग्रामीण विकास प्रबंधन के छात्रों हेतु 'ग्राम्य जल प्रबंधन प्रेक्टिशनर्स कोर्स' तैयार किया जा सकता हैग्राम पंचायतों को तकनीकी सलाह हेतु उक्त दोनों कोर्सेस के जरिए तैयार लोगों की अतिरिक्त सेवाएँ ली जाएँ। इसके लिए तकनीकी सलाहकारों का क्षेत्र पंचायतवार पैनल तैयार किए जाएजो पशिक्षण में शामिल किए जाने वाले विषय निम्नलिखित हो सकते हैं: वर्षा जलसंचयन- स्थान चयन, डिजायन एवं निर्माण तकनीक, नमी संरक्षण, हरीतिमा संरक्षण, नदी संरक्षण एवं नदी जलग्रहण क्षमता विकास। जल का अनुशासित उपयोग एवं पुनरोपयोगतकनीक, शोधन एवं सावधानियाँ। प्रदूषण की रोकथाम- तकनीक एवं व्यवस्था। वार्ड समिति के अधिकार, दायित्व एवं कार्य-प्रणाली। आर्थिक प्रबंधन एवं कोष संचालन ज़मीन पर उतारने की प्राथमिकता भूजल संकटग्रस्त इलाकों के अनुसार तय की जाए। 0 नीतिगत निर्णयों को जमीन पर उतारने से पर्व प्रदेश में वार्ड समितियों द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा तथा तदनुसार आवश्यक नीति व प्रावधानों में सुधार किया जाए। भू-जलसंकट से अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्रों की प्राथमिकता सूची बनाई जाए। उन्हें नीति क्रियान्वयन का सघन क्षेत्र मानकर प्रथम दो वर्ष इन्हीं क्षेत्रों पर ध्यान व धन केन्द्रित किया जाए। समन्वयन, जन-जागरण, प्रशिक्षण, वित्तीयतकनीकी सहयोग तथा निगरानी की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु एकीकृत, निर्णायक एवं जवाबदेह व्यवस्था विकसित की जाए।


21. नीतिगत निर्णयों की मंजरी होने के बाद प्रथम एक वर्ष का समय पूरे प्रदेश में इसका व्यापक प्रचार करने, जल संबंधी वार्ड समितियों/नगरनिगमों की समितियों को जागरूक, प्रेरित तथा क्षमता विकास हेतु उन्हें प्रशिक्षित करने में लगाया जाए।