जल के आगमन से खुले आजीविका के द्वार

||जल के आगमन से खुले आजीविका के द्वार||


- जलागम परियोजना से उत्तराखंड के गांवों की बदल रही तस्वीर, आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे ग्रामीण। पहाड़ों पर लहलहा रहे अनार, नीबूं, जामुन के पेड़, और खेतों में मौसमी फल-सब्जियां।
- विश्व बैंक मिशन टीम द्वारा किया गया जलागम कार्यों का निरीक्षण, ग्रामीणो ने की सराहना। कालसी विकास खण्ड के 46 गांवो 5000 लोग जुड़े है जलागम परियोजना से। क्षेत्र में जल सुधारीकरण कार्य से 56 प्राकृतिक जलस्रोतो में लौट आया है पानी.


राज्य बनने के कुछ समय बाद विश्व बैंक के सहयोग से उतराखण्ड के आठ जिलो में ''जलागम परियोजना'' आरम्भ हुई है। वर्तमान में इस योजना का दूसरा चरण आरम्भ हो चुका है। अक्टूबर माह के आरम्भ में विश्वबैंक की एक टीम ने देहरादून के जनजातिय क्षेत्र जौनसार में इस योजना का मूल्यांकन किया। इस दौरान योजना से लाभान्वित लोगो ने मूल्याकंन टीम का जो जोरदार स्वागत किया। यानि वह योजना की सफलता का दूसरा रूप था। हालांकि यह योजना विश्वबैंक के कर्ज से संचालित होने वाली योजना है। पर कह सकते हैं कि कर्ज के पैसे से क्रियान्वित होनी वाली जलागम योजना ने हजारों ग्रामीण किसानों के चेहरों पर रौनक लौटाई है।


ज्ञात हो कि ''जलागम परियोजना'' का ही कमाल है कि जिन गांवो में कभी लोग पानी की एक-एक बून्द के लिए मिलो दौड़ लगाते थे, अब पानी की सुविधा उनके गांव में ही हो चुकी है। झुटाया ग्राम पंचायत के प्रधान बिशन सिंह चैहान का कहना है कि जलागम योजना के कारण न कि उनके गांव में पेयजल की सुविधा हुई है बल्कि गांव के छोटे व मंझौले किसान नगदी फसलो से भी जुड़े है। गांव में नगदी फसल से लोगो के हाथो में स्वरोजगार आया है। कालसी विकासखण्ड के अन्र्तगत परियोजना क्षेत्र के 75 राजस्व ग्रामों में से 46 राजस्व ग्रामों में पानी पहुंच चुका है, लोग आसानी से अब सिंचाई की सुविधा कर पा रहे हैं। अर्थात कृषि एवं सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में वृ़िद्ध हुई है। मूल्यांकन टीम को ग्रामीणों ने बताया कि आगामी वर्ष में भी 24 राजस्व ग्रामों में पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि इससे पूर्व जलागम योजना के अन्र्तगत 187 जल स्रोतों के उपचार पर कार्य किया जा रह है। यहां अलग-अलग ग्रामों में 56 प्राकृतिक जल स्रोतों के उपचार का कार्य युद्धस्तर पर है।


पूर्व में उपचारित जल स्रोतो में पानी की वृद्धि देखी गई है। लोग खुश हैं कि उनके गांव के जलस्रोत में पानी लौट आया है। इसके अलावा कालसी विकासखण्ड के अन्र्तगत 46 ग्रामों में वानिकी, उद्यानीकरण का कार्य विशेषकर निर्बलवर्ग के साथ क्रियान्वित हुआ है। विश्वबैंक की इस कर्ज की जलागम योजना से सीधे 5000 लोग लाभान्वित हुए है। यह तब संभव हो पाया जब लााभार्थी समूह के साथ सीधे ग्राम पंचायत की भागीदारी हुई है। अतएव यहां ग्राम पंचायत की सिफारिश के बिना कोई भी कार्य सम्पादित नहीं हो पाता है।


उल्लेखनीय हो कि विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित, उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना (ग्राम्या-2) वर्ष 2014 में आरम्भ हुई है। इस जलागम योजना की खास बात यह है कि विश्वबैंक की टीम प्रत्येक छः माह के अन्तराल में परियोजना क्षेत्रों के अन्र्तगत कराये गये कार्यों का निरीक्षण करती है। टीम के सदस्य रंजन सामन्त्रय, फोके फेनेमा, सुधरेन्द्र शर्मा, सोनाली ए डेविड, लीना मल्होत्रा, एबेल लुफाफा ने बताया कि वे गांव-गांव जाकर ग्रामीणो का सुझाव एकत्रित करते है और इन सुझावो पर ग्राम पंचायत के साथ बैठकर योजना के सफल क्रियान्वयन की रणनीति बनाते हैं। यह बात वे देहरादून प्रभाग के विकासनगर ग्राम्या-2, के अन्तर्गत कालसी विकास खण्ड के ग्राम पंचायत झुटाया के राजस्व ग्राम निछिया तथा ग्राम पंचायत चापनू में कराये गये कार्यों के निरीक्षण दौरान बता रहे थे। 


उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना (ग्राम्या-2) से जुड़े अधिकारी भी जलागम परियोजना के शतप्रतिशत सफलता की कहानी बयां करते हैं। अपर परियोजना निदेशक/परियोजना निदेशक, ग्राम्या-2, नीना ग्रेवाल, कुमांऊ एवं गढवाल मण्डलों के परियोजना-निदेशक, पी0के सिंह, सयुक्त निदेशक, डाॅ0 आर0पी0 कवि, उप परियोजना निदेशक, देहरादून प्रभाग विकासनगर, पी0एन0शुक्ल, पौड़ी प्रभाग के उप परियोजना निदेशक, अखिलेश तिवारी, अल्मोडा एवं बागेश्वर प्रभाग के उप परियोजना निदेशक डाॅ0 एस0के0 उपाध्याय, पिथौरागढ़ प्रभाग के उप परियोजना निदेशक, सी0बी0 त्रिपाठी, उप परियोजना निदेशक मुख्यालय, डाॅ0 एस0के सिंह, उप परियोजना निदेशक मुख्यालय अजय कुमार, कृषि एवं उद्यान अधिकारी डाॅ0 सी0एम0एस0 नेगी, यूनिट अधिकारी देहरादून प्रभाग विकासनगर विनोद कुमार, नवीन चन्द्र पाण्डेय, जे0एस0 रावत, मुख्यालय के अन्य अधिकारी रमेश नेगी, डाॅ0 जे0सी0 पाण्डेय, डाॅ0 ए0के उपाध्याय, कुलदीप थपलियाल, विकासनगर प्रभाग टेªनिंग इंचार्ज राजेन्द्र सिंह नेगी, एम0आई0एस0 आॅपरेटर खुर्शीद अहमद, प्रभागीय समन्वयक सुश्री आश नेगी सम्वेत स्वर में कहते हैं कि जब गाव में पेयजल की उपयुक्त सुविधा हो, सिंचाई के साधन जुट जाये और समय-समय पर ग्रामीण किसानो को सरकारी विकास की योजनाओं से सरलता पूर्वक लाभान्वित किया जाये तो गांव में खुशहाली स्वस्र्फूत दिखाई देगी।


ऐसा जलागम परियोजना ने राज्य के आठ जिलो में करके दिखाया। उन्होने कहा कि योजना का पहला कार्य गांव में सिंचाई व पेयजल की सुविधा को जुटाना होता है। जिसके लिए वे गावं के ही प्राकृतिक जल स्रोतों का सुधारीकरण करते है। और ऐसा ही हुआ है। इसके बलबूते गांव में जल का आगमन हुआ तो लोग कृषि विकास कार्यो से स्वतः ही जुड़ गये। इसका सफल उदाहरण है कालसी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत चापनू में विकसित किया हुआ 1.25 हैक्टेयर का अनार उद्यान एवं 5 हैक्टेयर क्षेत्रफल में झुटाया ग्राम पंचायत के निछिया गांव का वनीकरण कार्य। इसके अलावा 46 ग्राम पंचायतो में सामूहिक सिंचाई टैंक, सम्पर्क मार्ग-सुदृढीकरण, पाॅली हाउस, रूफ वाटर हावेस्टिंग टैंक, पशु आवास तथा कृषि सब्जी हेतु बाजार उपलब्ध करवाने के लिए सामूहिक संग्रहण केन्द्र जैसे कार्य क्रियान्वित किये गये है। 


योजना की सफलता पर स्वागत
विश्व बैंक मिशन टीम जैसे चापनू और झुटाया गांव में पंहुची ग्रामीणो ने उनके स्वागत में जौनसारी रीति रिवाज से उनका अतिथ्या सत्कार किया। ग्रामीणों ने कहा कि उनके क्षेत्र में कोई भी अतिथि आये तो वे उसे ईश्वर तुल्य मानते हैं। पर उनके क्षेत्र में विश्वबैंक के सहयोग से बाकायदा जलागम जैसी योजना आरम्भ हुई है। जिस कारण उनके गांव में जल का आगमन भी हो पाया है। गांव के चैपाल में एकत्रित ग्रामीणो ने जलागम एवं पर्यावरण से सम्बन्धित सांस्कृतिक कार्यक्रमों पेश किये। झुटाया ग्राम पंचायत के प्रधान बिशन सिंह चैहान ने अतिथियों का अभिनन्दन किया। देहरादून प्रभाग के उप परियोजना निदेशक पी0एन0 शुक्ल ने स्वागत करते हुये कहा कि ग्राम्या-2 परियोजना का मुख्य उद्देश्य, जल, जंगल एवं जमीन का विकास करना है। उन्होंने यह भी अवगत कराया कि कोई भी विकास, पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए, उन्होने जून 2013 में केदारनाथ में हुई भयावय त्रासदी तथा केरल राज्य में आये विनाशकारी बाढ का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि हम अब भी नहीं चेते तो इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति बार-बार हो सकती है। कहा कि परियोजना क्षेत्र के अन्तर्गत 187 जल स्रोतों का ट्रीटमेन्ट प्लान बना लिया गया है जिसमें से 56 जल स्रोतों के ट्रीटमेन्ट का कार्य प्रारम्भ भी कर दिया गया है एवं शीघ्र ही अन्य जल स्रोतों का भी ट्रीटमेन्ट करा दिया जायेग, जिससे परियोजना क्षेत्र के जल स्रोतों में पानी की अभिवृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि उक्त समस्त कार्यो में पारदर्शिता का ध्यान रखते हुए, ग्राम पंचायतों के माध्यम से ही कार्य सम्पादित कराया जाता है।


परियोजना क्षेत्र के ग्राम पंचायत ब्यासभूड के कृषक राजेन्द्र जोशी, ग्राम प्रधान हरिपुर, श्रीमती रेखा देवी, ग्रामीण संतराम चैहान, निर्बल वर्ग सदस्यों एवं अन्य ग्राम प्रधानों एवं कृषकों द्वारा परियोजना द्वारा कराये गये कार्यों की प्रशंसा की गई। उनकी संतुष्टी इस बात पर झलक रही थी कि उनके गांव में पानी की सुविधा होने पर ही स्वरोजगार के साधन जुट पाये है।