जल-मल का पानी है, यमुना का नहीं है


||जल-मल का पानी है, यमुना का नहीं है||


हालांकि छुटपुट स्तर पर कई बार यमुना नदी की स्वच्छता, अविरलता को लेकर लोग खड़े हुए हैं। यह पहला मौका है जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने गंगा के साथ-साथ यमुना की स्थिति को लेकर गम्भीरता से संज्ञान लिया है। सरकारो को निर्देश दिये कि वे यमुना बेसिन क्षेत्र की स्थिति से स्पष्ट करें। दिल्ली हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना नदियों के मामले में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, दिल्ली और हरियाणा सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब करने के आदेश दिए हैं। जिसकी अगली सुनवाई 11 जनवरी 2019 को होगी। दिल्ली निवासी अजय गौतम की याचिका पर सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने पाया कि इन पांचों राज्यों ने पूर्व में जवाब दाखिल करने के कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है।


बता दें कि दिल्ली निवासी अजय गौतम की दायर याचिका में कहा गया था कि गंगा की भांति यमुना भी हिंदू धर्म की आस्था का केन्द्र है। समस्त कर्मकांडों में गंगा जल के ही जैसे यमुना जल का भी उपयोग किया जाता है। हकीकत यह है कि यमनोत्री से लेकर इलाहबाद तक यमुना नदी की हालत प्रदूषण से बदस्तूर हो चली है। उनकी मांग है कि यमुना की अविरलता और जल की गुणवत्ता के लिये केंद्र तथा राज्य सरकार को निर्देश जारी किये जाएं।


उल्लेखनीय हो कि 12 मई 1994 को यमुना बेसिन राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश (तब उतराखण्ड सम्मलित था), हरियाणा, राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्यमंत्रियों द्वारा ओखला बैराज तक यमुना नदी के उपयोज्य सतही प्रवाह के बंटवारे के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए थे। इस एमओयू में समझौते के क्रियान्वयन के लिए ऊपरी यमुना नदी बोर्ड का गठन भी हुआ। इस बोर्ड का गठन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार ने 11 मार्च, 1995 को एक संकल्प के साथ किया कि यह बोर्ड सदैव यमुना की अविरलता को लेकर संरक्षण के कार्य करेगा। इस हेतु बाकायदा बोर्ड की प्रबन्धकारणी में केन्द्रीय जल आयोग के सदस्य, अंशकालिक अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश (अलग से उत्तराखंड क्योंकि तत्काल यह राज्य का स्वरूप नहीं था), हरियाणा, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली का एक मनोनीत सदस्य, जो मुख्य अभियंता से नीचे के रैंक का न हो, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण का एक मुख्य अभियंता तथा केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधि अंशकालिक सदस्य होंगे। बोर्ड का एक पूर्णकालिक सदस्य सचिव होगा जो किसी लाभार्थी राज्य का नहीं होगा। ऊपरी यमुना नदी बोर्ड सचिवालय के सभी पद केन्द्र व राज्य सरकार के स्टफ एवं अधिकारियों द्वारा प्रतिनियुक्ति के आधार पर भरे जायेंगे। इस तरह यमुना नदी को लेकर बोर्ड का गठन तो कर दिया, साथ ही साथ कार्यालय आदि को संचालित भी किया गया मगर 1994 से लेकर अब तक यानि 24 वर्षो में यमुना नदी की हालात बेहद बिगड़ती चली गई। कौतुहल का विषय यह है कि ऊपरी यमुना नदी बोर्ड जल संसाधन पर हो रहे इस भारी भरकम खर्चे के हिसाब के लिए पिछले 24 वर्षो के अन्तराल में आई-गई सरकारो के पास तनिक भी समय नहीं निकला। यहां तक की अपने गठन से लेकर आज तक ऊपरी यमुना नदी बोर्ड जल संसाधन बोर्ड ने पिछले 24 वर्षो में मात्र 49 बैठकें ही आयोजित कर पाई है।


बताया गया कि ऊपरी यमुना नदी बोर्ड राज्यों के बीच उपलब्ध प्रवाह के आवंटन को विनियमित करेगा व वापसी प्रवाह की भी निगरानी करेगा। सतही तथा भूमि-जल की गुणवत्ता की निगरानी, संरक्षण और उसका उन्नयन, जल-मौसम विज्ञान डाटा, अविरलता प्रबंधन हेतु योजना का अवलोकन, ओखला बैराज तक सहित सभी परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी और समीक्षा समय-समय पर बोर्ड करेगा। इसके अलावा बोर्ड ने भागीदार राज्यों के बीच जल प्रवाह डाटा का वास्तविक समय प्रसार सुनिश्चित करने हेतु यमुना बेसिन क्षेत्र में 11 स्थानों पर जल निकासी को देखने के लिए टेलीमीटरी प्रणाली भी स्थापित की थी, सो अब कागजो में ही धूल फांक रही है। जबकि यमुना बेसिन राज्य सहमत थे कि परिस्थितिकीय दृष्टीकोण से अपस्ट्रीम स्टोरेज को पूरा करने के अनुपात में वर्ष भर में हथिनीकुंड के डाउनस्ट्रीम और ओखला हेडवर्क के डाउनस्ट्रीम के 10 क्यूसेक तक न्यूनतम प्रवाह बरकरार रखा जायेगा। इधर साल 2015 आते आते एनजीटी ने एक आदेश में यह कहा है कि हरियाणा राज्य हथिनीकुंड बैराज से यमुना नदी की मुख्यधारा में सीधे 10 क्यूसेक पानी छोडे और वजीराबाद तक नदी का ई-प्रवाह बनाए रखे।


यमुना पर बांध
भारत सरकार ने यमुना और इसकी सहायक नदियों के ऊपरी फैलाव में रेणुकाजी बांध, किशाऊ बांध और लखवाड़ व्यासी परियाजनाओं नामक तीन प्रस्तावित स्टोरेज परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में शामिल किया गया। इन परियोजनाओं के लिए भारत सरकार ने 90 प्रतिशत की लागत स्वीकृत की है। यमुना नदी पर व्यासी परियोजना निर्माणधीन है। सरकारी दस्तावेजो के मुताबिक यह जल विद्युत परियोजना दिसम्बर 2018 में पूर्ण होगी। इसी प्रकार 20 जून, 2015 को उत्तराखंड सरकार और हिमाचल सरकार ने एक समझौता हस्ताक्षर किये कि हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में और उत्तराखंड के देहरादून जिले में यमुना नदी की सहायक नदी टोंस पर किशाऊ बहुद्देशीय परियोजना का कार्य शुरू हो सके। यह संयुक्त उद्यम भारत सरकार और दोनों राज्यों के माध्यम से निष्पादित होना है। यमुना नदी की सहायक नदी गिरि नदी पर रेणुकाजी बांध परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहण और अन्य कार्यकलाप प्रगति पर हैं।


यमुना नदी और उसके लोग
पहले बात करते हैं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जहां से यमुना गुजरती है। दिल्ली में कोई ऐसी जगह दिखाई नहीं देती जहां यमुना का पानी साफ, निर्मल दिखाई दे। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से यमुना नदी दिल्ली मे प्रवेश करती है। यही पर यमुना को आगे बढ़ने से रोक दिया जाता है। वजीराबाद के एक तरफ यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी ओर एक दम काला। इसी जगह से नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरु हो जाती है। उतरकाशी जिले के कालिन्दी पर्वत से निकलकर यमुनोत्री होते हुए यमुना उत्तर प्रदेश के प्रयाग में जा कर गंगा नदी में मिल जाती है। लगभग 1029 किमी के फासले में यमुना की हालात बहुत खराब स्थिति में दिखाई देती है। सबसे अधिक यमुना के किनारे बसे शहर, नगर और धार्मिक स्थल यमुना नदी को प्रदूषित कर रहे है। रेमन मेगसेस विजेता जल पुरूष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि यमुना नदी नही, अब तो यमुना नाले की कहानी बन गई है। वे बताते हैं कि जब दिल्ली में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ ही नही हो रहा है। कहते हैं कि इस बात को मानने से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि यमुना भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर जाती है।


सिटिजन फोरम फॉर वाटर डेमोक्रेसी के समन्वयक एसए नकवी प्रदूषित होती यमुना की कहानी बताते है। दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का यमुना नदी का सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का ही है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदत्तर होती जा रही है। इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही। चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और वो फिर से अपने रूप में वापस आती है। वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि नदी की हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए। मगर सभी प्रयास कागजो की धूल फांक रहे हैं। हेजार्ड सेंटर की दूनूराय का मानना हैं कि यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी नदी की हाल वहीं की वहीं है। उनकी सलाह है कि नदी को साफ रहने के लिए जरूरी है कि पानी को अविरल बहने दिया जाए। हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा। दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना नदी है ही नही वह तो मल-जल है। पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ नही हो सकती।


बता दें कि साल 2012 के दिसंबर महीने में यमुना की सफाई के मामले में सरकारी एजेंसी के बीच तालमेल की कमी को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और पूछा कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी अभी तक कोई परिणाम क्यों नही निकले। अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि इलाहाबाद के कुंभ में लोग जिस पानी में स्नान कर रहे हैं वो कौन सा और कहां का पानी है? क्योंकि दिल्ली के वजीराबाद से आगे तो यमुना नदी है ही नहीं। यानि यमुना नदी चंबल से अपने स्वरूप में दिखाई देती है।