जलग्रहण विकास में सफलता/लाभ का आंकलन

||जलग्रहण विकास में सफलता/लाभ का आंकलन||


                राज्य में विभिन्न जलग्रहण विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन करवाया जा रहा है। प्रायः यह देखने में आता है कि जलग्रहण कार्य प्रारम्भ कर समाप्त भी हो जाते है परन्तु इन जलग्रहण क्षेत्रों में कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व के बेस-लाईन डाटा नहीं लिये जाते है जिससे परियोजना उपरांत अर्जित प्रभाव लाभों का अध्ययन असंभव होता है। अतः यह आवश्यक है कि जलग्रहण विकास कार्यो को प्रारंभ करने से पूर्व बेस-लाईन डाटा लिये जाये। एक्लिट प्रोटोकाॅल दस्तावेजों के साथ साथ समय-समय पर कराये गये मूल्यांकन अध्ययनों, अनुसंधानों, सफलता की कहानियों के समय उक्त बेस-लाईन डाटा के विपरीत अर्जित प्रगति रिकार्ड की जा सकती है। सामान्यतः जिस प्रकार के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण से सम्बन्धित बेस लाईन डेटा लिये जाते हैं, उनका विवरण परिशिष्ट-1 में दर्शाया गया हैं। जलग्रहण क्षेत्र की मांग/आवश्यकता के साथ-साथ इनमें समय के साथ परिवर्तन सम्भव है। यह कार्य परियोजना प्रारम्भ होने से पूर्व अथवा आरम्भिक चरण में ही पूर्ण कर लिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त चयनित जलग्रहण क्षेत्र की उपचार से पूर्व स्थिति दर्शाते विभिन्न फोटोग्राफ्स/फिल्म तैयार करनी चाहिये जिससे कि परियोजना पश्चात तुलनात्मक रूप से फोटोग्राफ्स एवं विडियों फिल्म के माध्यम से प्रभाव का अध्ययन एवं चित्रण किया जा सके। यह कार्य जलग्रहण विकास दल के सभी सदस्यों हेतु अति आवश्यक है। परियोजना क्रियान्वयन संस्था की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे समस्त जलग्रहण क्षेत्रों में बेस लाईन डेटा रिकार्ड करे एवं नियमित रूप से जलग्रहण से जुड़े मापदण्डों के रिकार्ड अंकित कराते रहे।


जलग्रहण विकास कार्यक्रमों हेतु प्रभाव आंकलन


                जलग्रहण गतिविधियों से अर्जित प्रभावों के अध्ययन के संबंध में निम्नानुसार बिन्दु प्रस्तावित किये जा रहे हैः-


जल पुर्नभरण:



  • परियोजना प्रारंभ से पूर्व खुले कुओं का जलस्तर लेना। वर्षवार मानसून से पूर्व एवं मानसून उपरांत नियत तिथी पर कूपवार जलस्तर वृद्धि का रिकार्ड संधारण

  • कुओं में बिजली की मोटर/डीजल पम्प सैट के नियत तिथि/माह में उपयोग में आ सकने के समय का रिकार्ड संधारण

  • अतिरिक्त क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा

  • जल बहाव में कमी

  • मृदा कटाव/बहाव में कमी

  • कूपों के निर्माण में वृद्धि की समीक्षा


4.2.2 फसल उत्पादन



  • फसलवार लिये गये क्षेत्रफल में वृद्धि की समीक्षा

  • प्रति हैक्टेयर फसल उत्पादन की गणना

  • फसलों/पौधों की नवीन प्रजातियों के अपनाये जाने की समीक्षा

  • फसल चक्र में परिवर्तन की समीक्षा

  • पौधारोपण के जीवितता प्रतिशत की समीक्षा

  • क्रोप कटिंग प्रयोगों के आधार पर प्रभावों का अध्ययन

  • रासायनिक खादों पर रोक एवं वर्मी कल्चर को अपनाने की समीक्षा


4.2.3 पशुपालन एवं चारा उत्पादन:



  • जलग्रहण क्षेत्र में चारे एवं घास की आवश्यकता का आंकलन

  • आपूर्ती की व्यवस्था हेतु कार्ययोजना

  • पशुओं की नस्ल सुधार की प्रगति

  • दूध उत्पादन की प्रगति

  • कृत्रिम गर्भाधान से उत्पन्न पशुओं की संख्या

  • जलाऊ ईधन हेतु लकड़ी की व्यवस्था


4.2.4 सामुदायिक शक्तिकरण:



  • स्वयं सहायता समूहों के गठन, बचत एवं केडिट लिकेंजेज की समीक्षा

  • स्कूल ना जाने वाले छात्र/छात्राओं की संख्या में कमी की समीक्षा

  • प्रति परिवार आमदनी में वृद्धि की समीक्षा

  • बच्चों में टीकाकरण की प्रगति

  • साक्षरता स्तर में वृद्धि की समीक्षा

  • स्थानीय निवासियों के अन्यत्र परिमार्जन में कमी

  • रोजगार के वैकल्पिक साधनों में वृद्धि

  • परिवार नियोजन सुविधाओं को नहीं अपनाने वाले परिवारों की संख्या में कमी की समीक्षा


लाभ: लागत अनुपात की गणना



  • परियोजना की आर्थिक साध्यता ज्ञात करने हेतु सारांश रूप में लाभ और लागत की अभिव्यक्ति और तुलना की जाती है। किसी भी परियोजना के लिए लाभः लागत अनुपात को ज्ञात करने के मुख्य रूप से निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • उद्देश्यों को पहचानने के लिएः

  • प्रधानता देने योग्य क्षेत्रों का चयन करने के लिए;

  • प्रभावी मूल्य पद्धति का निरूपण करने हेतुः और


 संसाधनों के संभावी उपयोग को गतिमान करने के लिए।



  1. परियोजना को अल्पव्ययी बनाने, धन का प्रभावी उपयोग और सूचीबद्ध क्रियान्वयन के अवसर में वृद्धि करने के लिए इनका सावधानीपूर्वक आयोजना करना आवश्यक है क्योंकि इसमें सार्वजनिक धन का विनियोग होता है।

  2. किसी भी परियोजना के अन्तिम रूप देने के पूर्व वित्तीय और आर्थिक जटिलताओं को जानना आवश्यक होता है जैसे परियोजना लाभप्रद है या नहीं और क्रियान्वयन के पश्चात क्या मुनाफा मिलेगा। लाभः लागत-अनुपात की गणना वित्तीय और आर्थिक सम्बन्धों पर की जाती है।


आर्थिक मूल्यांकन


                यह महत्त्व देता है, वार्षिक खर्च के घटते हुए मूल्यों और लाभों को जो परियोजना की अवधि के मध्य अपेक्षित हैं। इसमें संस्थापना, सर्वेक्षण, आयोजना और कार्य को सम्पादन करने वाले अधिकारियों के समूह पर किए गए खर्चो की भी ध्यान में रखते हैं और उन्हें सम्मिलित किया जाता है। आर्थिक मूल्यांकन सबसे अधिक सत्य रूप होता है क्योंकि आर्थिक दृष्टि से प्राप्तियों को ज्ञात करने में मदद करता है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले मनुष्यों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित करने आदि में होने वाले खर्च की अवश्य सम्मिलित करें।


वित्तीय मूल्यांकन


                यह संकेत करता है खर्च और चुकाये जाने वाले व्याज के साथ उस खर्च का भी जो प्रतिवर्ष खप जाता है, चाहे परियोजना पूरी होती है या नहीं अथवा प्रगति पर है। इसमें अधिकारी वर्ग के सामान्य कर्तव्यों और कार्यो के अतिरिक्त सर्वेक्षण, आयोजना और क्रियान्वयन की भी गणना की जाती है।


गणना की विधि


                इसमें वर्तमान में होने वाले लाभ की तुलना में बढ़ते क्रम में शुद्ध लाभ को आय प्रोफार्मा में ज्ञात किया जाता है, जिसमें परियोजना के पहले और बाद की कर्षण लागत और एक निश्चित खर्च की गई धनराशि पर बढ़ते क्रम में शुद्ध लाभ की गणना से होने वाली आय सम्मिलित होती है।