जनमैत्री संगठन से बागवानी में सुधार

जनमैत्री संगठन से बागवानी में सुधार


महेश सिंह गलिया


महेश सिंह गलिया जनमैत्री संगठन के इतिहास में 23-24 दिसम्बर 2004 का समय अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। उस वक्त, उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान, अल्मोड़ा में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। युवाओं के लिए मा आयोजित इस कार्यशाला में एक सौ दो नवयुवकों ने भाग लियाइसमें उत्तराखण्ड के अन्य युवा भाई-बहिनों के साथ जनमैत्री संगठन के सिद्धांतों एवं कार्यप्रणाली पर चर्चा करने का अवसर मिला। जनमैत्री संगठन की दृढ़ सोच थी कि संगठन से जुड़ी स्थानीय कृषक महिलाओं और नौजवानों में एक संकल्प को साकार करके स्नेह-प्रेम के भावों की मजबूती के साथ ठोस काम किया जाये। 


जहाँ चाह हो, राह भी निकल आती है । सन् 2011 में क्षेत्र में “निकरा" परियोजना शुरू हुई । जनमैत्री-संगठन ने गल्ला क्षेत्र (जिला नैनीताल) में इस कार्य को करने का जिम्मा लियाखेती और बागवानी के सुधार से संबंधित गतिविधियों को जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में समझने की कोशिश की गयी।


इस कार्यक्रम के तहत किसानों की सहुलियत के लिए अनेक कृषि-उपयोगी यंत्र उपलब्ध करवाये गयेसाथ ही, सब्जी के बीज एवं फलों की पौध भी किसानों को प्राप्त हुईगाँवों में पानी की सुविधा के लिए विशेष प्रयत्न किये गये।अनेक परिवारों ने पॉली हाउसों का निर्माण करके आमदनी बढ़ाई। निकरा परियोजना से कृषकों को मिले लाभों का आंशिक विवरण इस प्रकार है:


रुट ट्रेनर


किसानों द्वारा बैमौसमी सब्जी की पौध एवं फूल उगाने, फलदार नींबू-प्रजाति एवं कहीं पर पदम आदि वृक्षों की पौध उगाने के लिए रूट ट्रेनर का उपयोग किया गया है।


कृषि यंत्र


लगातार परम्परागत तरीके अपनाने के बाद जब नये कृषि यंत्रों का उपयोग शुरू हुआ तो निश्चित रूप से किसानों की कार्यकुशलता बढ़ी। पारंपरिक यंत्रों के बार-बार खराब होने की समस्या खत्म हुई गल्ला क्षेत्र में रेक बहुपयोगी साबित हुआ है। कुदाल को भी सराहा गया हैमडुवा–थ्रेशर द्वारा एकल महिला-पुरुष भी कम समय में सरलता से कार्य कर पाते हैं । मड़ाई के पश्चात् फामा निकालने तक का कार्य मशीन की मदद से सहजता से हो जाता है। विशेषकर महिलाओं द्वारा इस यंत्र को सराहा गया है।


मौसम की विषम परिस्थितियों के बावजूद ग्राम गल्ला में सात दिन के अंदर स्पैकर टैफिना नाम का कीट नियंत्रित रहा । मौन-वंश को ध्यान में रखकर इस दवा का उपयोग सिर्फ सुबह-शाम के वक्त स्प्रे करते हुए किया गया। अन्य संगठनों को भी यह तरीका उपलब्ध करवाया है।विगत वर्ष, शरद ऋतु में फूलों के अभाव से पुष्प-रस पराग की कमी हो गयी थी। इस वजह से स्थायी मौन-गृहों से बड़ी संख्या में मधुमक्खियाँ पलायन कर गयी थीं। इस वर्ष, मौसम की गड़बड़ी की वजह से मात्र दो मौन–बॉक्स में ही मधुमक्खियाँ डाली जा सकी हैं।


कुरमुला-ट्रैप


गल्ला क्षेत्र में लम्बे समय से कुरमुला कीट सब्जी, अनाज एवं फलों की नर्सरी को भारी नुकसान पहुंचा रहा थाकुरमुला-ट्रैप के प्रयोग से सार्थक परिणाम मिल रहे हैं। वातावरण से आयमेट, फॉस्फेट जैसी जहरीली दवाओं की दुर्गन्ध मिटी है। खेतों में पुनः रामदाना (चुआ) के पौधे पनप रहे हैंविगत वर्षों की तरह खेतों में मटर, सेब, आडू की नर्सरी एवं पौध को कुरमुला कीट द्वारा नष्ट करने की गति धीमी हुई हैवी.एल. कुरमुला ट्रैप से बेहतर परिणाम किसान ट्रैप के हैं। 


पॉली हाउस


निकरा परियोजना के अंतर्गत गल्ला के आस-पास के गाँवों में आठ पॉली हाउसों का निर्माण हुआ है। इस सुविधा के उपलब्ध हो जाने से किसान सब्जी, फल वृक्षों की नर्सरी के लिए पौध और विभिन्न प्रकार की सब्जियों के बीजों का उत्पादन कर रहे हैं।


सब्जी के बीज एवं पौध


इस वर्ष क्षेत्र में अनाज, सब्जी और बीजों का मिलाजुला उत्पादन रहा। विशेष रूप से वी. एल. शिमला मिर्च, भिण्डी, चौलाई, मडुवा आदि का उत्पादन ठीक रहा। वैसे भी 2012 में सूखे की स्थिति थी। 2013 में कीवी के पौधों में अच्छी बढ़त देखी गयी परंतु बाहर से मंगवाये गये नीबू और माल्टा की पौधों में बढ़त कम हुई है।


प्लास्टिक के डिब्बे बहुपयोगी साबित हुए हैं। ग्रामवासी फल तोड़ने, सब्जी-संग्रह के अलावा गोबर की खाद उठाने, ईंट इत्यादि लाने-ले जाने और पानी भरने में इन डिब्बों का प्रयोग कर रहे हैं। इसके उपयोग से बारदाने के लिए पेड़ों और रिंगाल पर दबाव कम होना स्वाभाविक है।


शौचालय निर्माण


स्वास्थ्य एवं स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्तराखण्ड महिला परिषद् द्वारा सत्रह शौचालयों के लिए सहयोग प्राप्त हुआ। ग्रामवासियों को शौचालय बनाना ही था, राहत मिलीशौचालय बनाने में ग्रामवासियों ने शीघ्रता दिखाई। शौचालय बनाने में अच्छा कार्य कियानिर्माण-संबंधी सभी निर्णय महिला संगठनों की खुली गोष्ठियों में लिये गये इससे ग्रामवासियों के बीच स्वास्थ्य, शौचालय एवं पानी से जुड़े हुए मुद्दों पर स्पष्ट समझ और एक अच्छी कार्य-योजना बन सकीइस कार्यक्रम से महिलाओं में आपसी मेलजोल और जुड़ाव बढ़ा है। साथ ही, जल-जनित बीमारियाँ कम हो रही हैं।