जी हां! यहां मिलते हैं डा॰ आनन्द राणा से

||जी हां! यहां मिलते हैं डा॰ आनन्द राणा से||




जहां 2015-16 में सड़क पंहुची होगी, तहां लोग 2010 तक यमुना नदी को पास करने के लिए झूलापुल का सहारा लेते रहे होंगे। यानि एक पक्का पुल ही नहीं तो शिक्षा-स्वास्थ्य के बारे में सोचना ही गलत था। अर्थात उत्तरकाशी के दूरस्थ गांव भंकोली के लोग तत्काल शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधा को रोज यमुना पर बने निशदू नामक झूलापुल पार करके और 15 किमी पैदल चलकर स्थानीय नौगांव बाजार पंहुचते थे। ऐसे थपेड़ो के बीच संघर्ष की एक नई इबारत लिख डाली डा॰ आनन्द सिंह राणा ने। यह उत्तरकाशी जनपद के सुदूर गांव भंकोली के डा॰ आनन्द सिंह राणा की कहानी को बयां कर रही है।


एक विशुद्ध किसान, सिर्फ व सिर्फ अपनी खेती-किसानी से वास्ता, अक्षरज्ञान का कोई मलाल ही नहीं। ऐसे में डीलिट् की उपाधी पाना भविष्य के लिए नई दिशा ही कही जा सकती है। अतएव तत्काल उन्हें एक तरफ पढाई और दूसरी तरफ आर्थिक संसाधन उनके लिए दूर की कौड़ी लगती हो, जैसे माहौल में आनन्द सिंह राणा ने अपनी पीएचडी पूरी की है। खास बात यह है कि इस अकादमिक पढाई को पूरी करने के लिए श्री राणा ने यूं ही कोई परिक्षा पास की हो, वरन् उन्होंने उपनी पढाई के साथ-साथ और को पढाना भी आरम्भ किया, यानि ट्यूशन। इसकी सफलता यह रही कि आज श्री राणा का पूरा का पूरा परिवार उच्चशिक्षित है। अब तो वे देहरादून में उन बच्चो को निशुल्क ट्यूशन देते हैं जो आर्थिक विपन्नता के कारण आज की पढाई के माहौल से पिछड़ते जा रहे है।


यही नहीं आवश्यता पड़ने पर उन्हे वे आर्थिक मदद भी करते है। वे जूनूनी है, दृढसंकल्पी है, आत्मविश्वासी है, इसलिए उनकी यह समाजसेवा की रफ्तार कैसे रूक जायेगी।  वे एसजीआरआर डिग्री काॅलेज में अपने अध्यापन के बाद जहां उनका निशुल्क ट्यूशन पढाने का क्रम जारी रहता है वहीं वे चिकित्सा-स्वास्थ्य के प्रति लोगो के साथ देहरादून में मुस्तैद रहते है। जिसकी सेवा वे इन्द्रेश हाॅस्पीटल आदि में लोगो को उपलब्ध करवाते हैं।


वे मानते हैं कि शिक्षा एक ऐसा हथियार है जो समाज में परिवर्तन ला सकता है, आज की प्रतिस्पर्धा में सम्मलित हो सकती है, भविष्य संवार सकती है। इसलिए वे नई पीढी के साथ शिक्षा के कार्यो में जुड़े हैं।